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रविवार, 24 फ़रवरी 2013

घेराव : एक जंगलीपन ...






                         पिछले एक डेढ़ साल से देश में जो कुछ आन्दोलन हुए उन्हें करने के असली हकदार तो राजनैतिक दल थे ... परन्तु किसी खास उद्देश्य की चाह में उन्हें गैरराजनैतिक रंग दिया गया ... और यूँ करने के लिए म. गाँधी की युवाओं में लोकप्रियता खूब हैं यह जान उनके नाम का खूब इस्तेमाल हुआ ... पर मंतव्य भला न होने और म. गाँधी द्वारा किये आन्दोलनों को सही स्वरूप में नहीं रखे जाने से आन्दोनन मात्र आरोप - प्रत्यारोप की दुकान बनकर रह गए .. 

                  मंचो पर गाँधी की बड़ी तस्वीर लगायी गयी ... गाँधी टोपी पहनी गयी ... युवाओं में यह प्रचारित किया गया की यह आज़ादी की दूसरी लढाई हैं ... म. गाँधी जी के नाम पर खूब युवा जुटे भी ... पर आन्दोलन की सफलता शुरू से ही संदिग्घ थी ... क्योंकि म. गाँधी के मूल अस्त्र अहिंसा का सही स्वरूप इन आन्दोलन कारियों के हाथ कभी नहीं रहा ... आज वह आन्दोलन अपनी कोई पहचान नहीं रखता ... भीड़ में कहीं खो गया हैं ...

                   उस समय मिडिया और इतर लोगों के प्रभाव में हमारा युवा बुरी तरह जकड़ा हुआ था .. उसे कोई सही बात बताई जाएँ तो भी एक जूनून के सर पर सवार होने के कारण उसे सुनने वाला नहीं था ...असल में गाँधी जी आन्दोलनों के दौरान घेराव करने की नीति  को अनीति मानते थे ... और इसे हिंसा से भी निम्न स्तर पर रखते थे , वे इसे "  जंगलीपन " की हरकत  कहते थे ...उनका मत था की घेराव करने वाला यह जानता  है की विरोधी उस पर वार नहीं करेगा ... अतः यह हिंसा से भी बदतर स्थिति  जब हम विरोधी को वार करने का भी मौका नहीं देकर एक तरह से काफी अपमानजनक स्थिति में ला  खड़ा करते हैं ... अतः यह कृत्य जंगलीपन से अधिक कुछ नहीं ... 


                    पर हमारा युवा  आपेक्षाकृत शांत हैं ... अतः उसके सामने म. गाँधी के मूल विचार रखे जाएँ तो वह भविष्य में सही निर्णय ले सके और यूँ निराश ना हो ...

                  पिछले सालों के कथित आन्दोलनों में घेराव , अशिष्ट भाषा और अनसन /उपवास का खूब बेजा इस्तेमाल भी हुआ ... आओ आज जाने म. गाँधी घेराव के कितने खिलाफ थे ... संलग्न चित्र में उनके मूल विचार पढ़े ... स्वयं जाने म. गाँधी को दुनिया क्यूँ इतना चाहती हैं ...

सबका भला हो !!