शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

इंदु बनी इंदिरा


थोड़े से मेकअप के बाद इंदिरा जी ने अपनी साड़ी की तहों को ठीक किया और मेकअप मेन का शुक्रिया अदा किया और चल दी अपने घर से लगे कार्यालय की तरफ कोई दो सौ मीटर का फासला तय करते ही उनका एक विदेशी न्यूज एजेंसी के साथ इंटरव्यू का प्रोग्राम निश्चित था । दीवाली की रात बीत चुकी थी पर अभी भी पटाखों की आवाज कभी-कभी वातावरण में गूंज उठती थी । दूसरी तरफ इंटरव्यू स्थल पर लॉन की भी साफ सफाई लगभग पूरी हो चुकी थी ।

इंदिराजी सधे हुए पर तेज कदमों से आगे बढ़ रही थी । वे तय कार्यक्रम से कुछ मिनिट लेट थी । तभी सामने आफिस की सुरक्षा चौकी पड़ी उसमें उनके पसन्दीदा दो सिक्ख जवान तैनात थे । उन्हें सामने देख इंदिराजी मुस्कुरा उठी और उनसे "नमस्ते" कहा । तभी एक सिक्ख जवान ने अपनी पिस्तौल से उन पर एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दी । उसके बाद दूसरे ने तो उन पर धड़ाधड़ सैकड़ों गोलियां दागी । इंदिरा जी के बूढ़े पर मज़बूत निर्भय शरीर से रक्त फुट पड़ा । आज जैसे उनका संकल्प पूरा होने को आया था । उनकी इच्छा थी उनके खून का एक एक कतरा देश के काम आये । और आज उन गुमराह सिक्ख युवकों के गुस्से को एक तरह से निकालने के लिए उनका खून बड़ी तेजी से बह रहा था । दोनों सिक्ख जवान इस दुष्कृत्य को करने के बाद भागे नही, शांत रहे क्योंकि एक माँ ने उनके गुस्से को उनसे अलग कर दिया था ।

दरअसल जब कोई समुदाय सम्प्रदाय के आधार पर उन्माद से भर उठता है तो वो अपने ही सम्प्रदाय का सबसे पहले और सबसे बड़ा अहित करता हैं । पंजाब भी कुछ इसी तरह के रस्ते पर था । ऐसे में गुमराह समाज को सही रस्ते पर लाने के पीछे मंशा यही होती है की सब हिलमिल रहे और आतंक की जगह शांति का राज हो । बाद में हम देखते है की इंदिरा जी के कुछ कड़े कदम पंजाब में सुख और शांति के लिए अभूतपूर्व हिम्मतवाले और कारगर कदम रहे भले जिसके लिए उन्हें अपनी जान भी गंवानी पड़ी ।

मितरो,  वो माँ सचमुच बड़ी बहादुर होती हैं जो अपनी भटकी हुई सन्तान को भले रस्ते लाने के लिए कड़े फैसले लेने से भी नही हिचकती है पर उन सबके पीछे उस माँ का अपनी सन्तान के प्रति अतुलनीय भरोसा और प्रेम ही रहता हैं । और उसे ये ख़ौफ़ नही सताता की अपनी सन्तान के लिए उसके कड़े फैसले से उसकी ही जान पर भी खतरा आ सकता हैं । इंदिरा जी ने उन सिक्ख युवकों पर खूब भरोसा किया था जैसे कोई माँ अपनी सन्तान पर करती हैं ।

जो हो,  बचपन में अपनी सुरक्षा को लेकर डरने वाली इंदु अब इंदिरा बन चुकी थी । और हम देखते है अपने किसी सूबे की खुशहाली  लिए उन्होने अपने प्राण भी न्योछावर कर दिए थे और अपने पिता की सीख को जमीन पर उतार दिया था की केवल अपनी सुरक्षा के बारें में ही नही सोचो अपने साथ सबकी सुरक्षा की चिंता करो । और ये बात इंदु से तब कही थी जब वो पहाड़ी रास्तों पर दौड़ती कार में बैठी-बैठी डर रही थी और कार से उतरने की जिद कर रही थी ।

इंदिरा जी ने एक नही कई कड़े फैसले लिए जो देश हित के मामलों में अभूतपूर्व और बेमिसाल रहे । उन्होने देश हित से आगे बढ़कर पड़ौसी देश बंगला देश के हित सुख के लिए भी वो कदम उठाये जिनकी आज कल्पना भी नही की जा सकती हैं ।

भारत को गर्व है अपनी बहादुर स्त्री शक्ति पर । इंदिरा गांधीजी की स्मृति को सादर नमन ।

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

गांधीजी की ऐश ट्रे !!!


गांधीजी की ऐश ट्रे !!!

हिंदुस्तानी प्रचारसभा की बैठक गोबर लिपि जमींन पर सेवाग्राम की गांधी कुटी में चल रही थी । कुर्सियों के आभाव में सभी जमीन पर बैठे थे । काका साहेब कालेलकर, पं. सुन्दरलाल, डॉ ताराचन्द, श्रीमनन्नारायन और स्वयं बापू । इस मीटिंग के तुरन्त बाद मौलाना आज़ाद के साथ गांधीजी की एक जरुरी मीटिंग थी । अतः अगली मीटिंग से जरा पहले बापू अपनी जगह से उठे और एक कुर्सी मंगवाई तथा एक छोटी तिपाही स्वयं ले आये । फिर एक आले में रखा मिटटी का छोटा पात्र उस तिपाही पर रख दिया ।

चल रही मीटिंग में से किसी ने बापू से पूछ लिया कि ये कुर्सी और तिपाही क्यों लगाई । तब बापू ने हंसकर कहा " मौलाना आने वाले है ना उन्हें जमीन पर बैठने की आदत नही हैं । ये सारा प्रबन्ध उन्ही के लिए हैं ।

और वह मिटटी का छोटा पात्र किस लिए है ? फिर प्रश्न आया ।

ओह' उसका पूछते है ? वह ऐश पॉट हैं । फिर गांधी ने उन्मुक्त हंसी बिखेरते हुए पूछा । क्यों ? कैसी है कल्पना ?

जो लोग मौलाना आज़ाद की धूम्रपान की लत से परिचित थे उस ऐश पाट का रहस्य तुरंत समझ गए ।

मितरो म. गांधी जिस किसी को एकबार अपना मान लेते थे फिर किस तरह उसे पूरा अपनाते थे और वो भी बिना अपनी बात थोपे हुए । याने दूसरों की वैचारिक स्वतंत्रता और आदतों का कितना बारीक़ ध्यान रखते थे की उनके साथी असहज ना महसूस करें । इसीलिए तो वे अपने साथ विभिन्न सम्प्रदायों, वर्णों, जातियों और बोली भाषा और देश विदेश के प्रतिभावान , तेजस्वी और गुणी स्त्री पुरुषों को अपने साथ जोड़ सकें और वो भी अक्षुण्ण भरोसे के साथ ।

बापू तुम फिर आना मेरे देश !!!