शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

5:17 PM - महाप्रयाण की बेला

          30 जनवरी 1948 , शाम का वक्त कोई साढ़े चार बजे होंगे ... बापू के सामने उनके शाम का भोजन रख दिया गया ... बकरी का दूध , उबली हुई तरकारी , मौसंबी , ग्वारपाठे का रस मिला अदरक , नींबू और घी का काढ़ा ... बस इतना ही ... !!

          बापू ने अपना अंतिम भोजन सरदार पटेल के साथ बातचीत करते हुए ... धरती पर बैठकर , खुले आसमान के नीचे , प्रकृति की गोद में ग्रहण किया ...तब वे अपने महाप्रयाण से वे केवल 37 मिनिट दूर थे ... और देशहित पर सरदार पटेल के साथ कुछ जरुरी बातचीत जारी थी ... जिसके चलते रोजाना उनकी तयशुदा प्रार्थना - सभा को 17 मिनिट की देरी हो चुकी थी ... समय के निहायत पाबंद बापू इस बात से थोड़े असहज हुए ... और तुरंत चर्चा को विश्राम देकर चल पड़े अपनी अंतिम मंजिल की ओर  बेखबर , बेपरवाह ...!!

                       इधर बापू जितने बेखबर थे अपनी मौत से ... उधर बिड़ला हाउस में शाम की प्रार्थना सभा के लिए जमा पांच -छः सौ की भीड़ में तीन वे लोग भी आ चुके थे जो आज बापू की हत्या को अंजाम देने के बुरे इरादों से लैस थे ... उनकी बैचेनी बढ़ती जा रही थी ... बापू लेट हो रहे थे ...

                        बापू ने देरी की वजह से सभा स्थल तक जाने के लिए तेजी से अपने कदम उठाना शुरू किया ... बापू ने चलते हुए साथ चल रही आभा से चर्चा छेड़ी ... आभा, तू मुझे जानवरों का खाना देती हैं ... और हंस पड़े ... उनका इशारा सुबह दिए गाजर के जूस की तरफ था ... आभा बोली - " बा इसे घोड़ों का चारा कहती थी " ... गांधीजी ने विनोद करते हुए पूछा - " क्या मेरे लिए यह शान की बात नहीं हैं कि जिसे कोई नहीं चाहता उसे मैं चाहता हूँ ?

                       बापू को सभा स्थल तक पहुँचने के लिए अब चंद कदम ही उठाना शेष थे ... उनके कदम अब नर्म दूब पर पड़ रहे थे ... बापू ने बडबडाते हुए कहा मुझे आज देरी हो गयी हैं  ... मुझे यहाँ ठीक 5.00 बजे पहुँच जाना चाहिए था ... देरी मुझे पसंद नहीं ...


                          अब उनके सामने पांच छोटी छोटी सीढियाँ थी जिसे उन्हौने जल्दी से पार कर लिया ... सामने खड़े लोग उनके चरणों में झुकने लगे ... बापू ने उनके अभिवादन का उत्तर देने के लिए अपने दोनों बाजु आभा और मनु के कन्धों से हटाकर हाथ जोड़ लिए ... तभी भीड़ को चीरकर एक व्यक्ति आगे निकल आया ... सभी को यूँ लगा की वह झुककर प्रणाम करना चाहता हैं ... देर हो रही हैं सोचकर मनु ने उसे रोकना चाहा ... उसने मनु का हाथ छिड़क दिया ... और धक्के से मनु गिर पड़ी ... अब वह व्यक्ति था और उसके सामने गाँधी केवल दो फुट के फासले पर रह गए थे ... उसने तुरंत अपनी पिस्तौल बापू को तरफ तान कर एक के बाद एक तीन गोलियां दाग़ दी ... पहली गोली लगी तब बापू खड़े रहे पर दूसरी लगी तब तक खून के धब्बे उनकी सफ़ेद चादर पर उमड़ आये थे ... अब वे गिरने लगे ... तीसरी गोली लगते ही वे जमीं पर गिरने लगे ... उनके मुंह पर अब " हे राम " ये शब्द तैर रहे थे।  तीन अग्नि गोलियां उनकी कृशकाय काया को भेद चुकीं थीं।  उनका  डेढ़ पसली का कमजोर बूढ़ा  शरीर नजदीक से मारी गई दो गोलियों को अपने अंदर रोकने में सफल हुआ था और एक गोली उनके शरीर को भेद बाहर निकल कर सफ़ेद शॉल में उलझ कर रह गई थी। 


                     आजीवन अहिंसा के रास्तों के राही का सफ़र अब पूरा होने आया ... इसके पहले भी बापू की हत्या के पांच विफल प्रयास हुए थे ... और हर बार बापू ने उनमे पकडाए लोगों पर किसी तरह की ना तो शिकायत दर्ज करवाई और ना ही किसी तरह कार्यवाही के लिए कहा ... इसके पूर्व हुए असफल हत्या के प्रयास जिसमे बापू के ऊपर बम फेंककर हमला किया गया था ... जिसमें वे बच गए थे ... और उन्होंने कहा था ... जब भी कोई ऐसा प्रयास हो ... धमाका हो मैं आहात भी अगर हो जाऊ तो भी मुझे आहात करने वाले के प्रति मेरे मन में सद्भाव रहे ... और रहे मेरा चेहरा अविकल । 

                        प्रकृति ने उनकी यह अंतिम इच्छा भी पूरी की ... मृत्युं के तुरंत पहले उनका चेहरा शांत था और थे चेहरे पर करुणा के भाव ... उनके अपने सहधर्मी भाई ने आज उनके प्राण लिए थे ... हिन्दू पंथ के अति उच्च आदर्श वसुदैव कुटुम्बकम , कर्म के सिद्धांत और सहिष्णुता को सही मायनों में अगर किसी ने जिया हैं तो वे हमारे बापू ही थे ... और पहली बार वर्तमान इतिहास में किसी ने अपनी कथनी और करनी की गजब समानता से सारे विश्व के सामने हिन्दुपंथ की अति उच्च आदर्श वाली बातों को जमीं पर उतारते हुए साकार किया था ... पहली बार विश्व समुदाय ने देश और धर्म के संकुचित दायरों से बाहर निकलकर समान रूप से उन्हें अपनाया था ... महात्मा गाँधी के रूप में इंसानी मूल्यों का जीता जगाता प्रमाण सबके सामने था ... विश्व उनकी मौत पर स्तब्ध था ... अचंभित था । 

                     संसार का कोई ऐसा देश नहीं ... जहाँ उनके निधन पर शोक ना मनाया गया हो ... आज भी उनका दर्शन पहले से भी अधिक प्रासंगिक हैं ... आज भी कोई अगर थोडा सा भी उनके बताये रास्तों पर चले तो उसे जमाना देर नहीं करता गांधीवादी कहने में । 


गाँधी तुम फिर आना मेरे देश !!!

बुधवार, 14 जनवरी 2015

भावी विश्व गुरु ...


भारत एक तरह से विश्व का प्रतिबिम्ब हैं । विविधतायें इसकी खूबी है । विश्व के लगभग हर धर्म और सम्प्रदायों की यहाँ ब्रांचेज हैं । इस भूमि पर ही उत्पन्न हुए कई धर्म और उनके सम्प्रदाय अरबों खरबों सालों से इस धरा पर हैं । सभी सम्प्रदाय अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और सभी लगभग कई मुद्दों पर एक दूसरे से विभिन्न मत रखते हैं । दुनियां भर की छुआछूत, जातिगत समाज की कुव्यवस्था और गरीबी तथा वैभव की खाइयां होते हुए भी इंसान इंसान के बीच सद्भाव कैसे कायम रहे इसकी अद्भुत मिसालें हैं । बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक होने के फायदे है तो नुकसान भी हैं ।

                         कभी विश्वगुरु होने का गुरुर है तो आधुनिक टेक्नोलोजी विश्व से हासिल करने की आतुरता भी हैं , लालच भी हैं । समृद्ध इतिहास है तो उस इतिहास से अनभिज्ञता भी हैं ।  कई वैज्ञानिक अविष्कारों कर सकने का मिथ्या अभिमान भी है तो कई खूबियों के जन्म दाता होने का पता भी नही । विश्व को एक कुटुंब बना देने की विशाल योजना है तो उसकी कोई दिशा नही । कई धर्मों का अविष्कारक होकर भी अभी तक धर्म का मर्म ना समझपाने की घोर लापरवाही भी भावी विश्व गुरु की एक खूबी हैं ।

                         इसीलिए इसकी विविधतायें ही इसकी खूबी हैं । जो विश्व को आइना दिखाते रहती हैं । कुछ ना होकर भी कैसे सब कुछ होने का गर्व किया जाय । कैसे आपस में लड़ते हुए भी जिया जाय । कैसे घोर सामाजिक और सांप्रदायिक विषमताओं में भी जियो और जीने दो को अपनाया जाय ।

                                  वर्तमान में तो भावी विश्व गुरु की विश्व को यही देन हैं ।
सबका भला हो |||

रविवार, 11 जनवरी 2015

गांधी और उनका विरोध ।

गांधी और उनका विरोध ।

म.गांधी अपने विरोधियों और उनके विरोध का बहुत मान रखते थे । सायं कालीन प्रार्थना सभा में वे सर्वधर्म प्रार्थना पर बहुत जोर देते थे । पर उनकी सद्भाव बढ़ाने वाली भली कोशिश का भी बहुत विरोध होता रहा । इस पर म. गांधी ने एक नियम बनाया की सर्वधर्म प्रार्थना सभा के आरम्भ में अगर किसी को एतराज हो तो वो ऊँगली उठा दे, फिर उसका मान रखते हुए उस दिन केवल मौन रहकर ही ईश्वर की प्रार्थना होगी ।

उन दिनों सांप्रदायिक विद्वेष देश में बहुत गहरा फैला हुआ था । प्रार्थना सभा में एक व्यक्ति ऐसा भी शामिल होता था जिसे इस्लाम धर्म पर आधारित प्रार्थना पर विरोध होता था । भला मानुस था पर सांप्रदायिक शक्तियों के बहकावे में गुमराह भी था । वो बराबर ठीक समय पर आता और प्रार्थना  शुरू होने से पहले अपनी ऊँगली उठा कर विरोध दर्ज करता और बापू उस दिन मौन रहकर ही ईश्वर की उपासना करते । ऐसा सतत होता रहा पर एक दिन प्रार्थना का समय आया पर उनका वो विरोधी नही आया तो बापू चिंतित हुए और पूछा आज वो भाई नही आया क्या ?

बाद में बापू ने अपना सन्देश वाहक भेजकर उस विरोध करने वाले भाई के हालचाल पुछवाये और उसकी कुशलता की कामना की ।
बापू की उन प्रार्थना सभाओं में बाद में लार्ड माउन्ट बेंटन भी सपत्नीक आते थे और बापू के ठीक सामने जमीं पर बैठकर प्रार्थना में पुरे समय उपस्थित रहते थे ।

जिस दिन बापू की जान उनके ही सधर्मी भाई ने ली उस दिन उनका वो विरोधी जिसे उनकी सभी धर्मों में गहरी आस्था नही रुचती थी उसकी आँखें भी नम थी और उसकी आस्था भी बाढ़ेँ तोड़कर अनंत हो गई थीं ।

बापू तुम फिर आना मेरे देश !!!

बुधवार, 7 जनवरी 2015

तु कौन है रे ?

तुम कौन है रे ?

सब कुछ भूल कर आजकल एक अजीब सी चर्चा चलने लगी है की हम कौन हैं ?

और सभी अपनी अपनी जान सच ही कहते होंगे । कोई कहता हैं सभी हिन्दू हैं ! तो कह पड़ा सभी जन्म से मुसलमान हैं ! और कल एक और सच सामने आया सभी जन्म से दिगंबर है !

अभी और सच सामने आएंगे । और इसमें कुछ गलत भी नहीं । और ऐसा नही की इस तरह की बहस पहली बार उठी हों । यह सनातन बहस हैं की हम कौन हैं ?

करोड़ों वर्षों से यह सवाल उलझा हुआ ही हैं उनके लिए जो अपने अपने दुराग्रह से चिपके हुए हैं और सच के करीब होकर भी कोरे हाथ हैं । नदी किनारे भी प्यासे हैं । सो अभागे हैं । और इस सवाल के ना हल होने में ही जिनके छोटे छोटे मतलब हैं ।

फिर भी युवाओं एक फ़िल्मी गीत इस सवाल के सही जवाब के इतना करीब पहुंच गया था की अचरज होता हैं । पर हम कठिन सवालों के सरल जवाब से थोडा नही बहुत ज्यादा परहेज करते हैं और यह आदत सी बन गई हैं की सरलता को ठुकरा दो और कुटिलता को अपनाते रहों ।

खैर सुनियेगा यह गीत । और कैसा लगा कमेंट्स में लिखियेगा क्योंकि कमेंट करने से  हमारी अभिव्यक्ति की क्षमता में निखार आता हैं ।  और हम निखरे , कौन भला नही चाहता ?

सबका भला हों !!!

Watch "Dhool Ka Phool - Tu Hindu Banega Na Musalman Bane…" on YouTube - Dhool Ka Phool - Tu Hindu Banega Na Musalman Bane…: http://youtu.be/jqcyUkUFzrc

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

जन जन की बात

जन जन की बात ...

                         
                  र्म की रक्षा उसके पालने वाले एक एक जन के अंदर हो और हर जन अंदर अंदर से खूब धार्मिक हो तो फिर धर्म की बाहरी बाहरी रक्षा की जरा भी जरूरत नही । धर्म फिर खूब बलवान होता हैं ।


                               अन्यथा धर्म को मानने वाले भीतर से धार्मिक ना हो और धर्म के बाहरी आवरणों, दिखावों को महत्व दें और उनकी रक्षा को ही धर्म की रक्षा मानने की भूल करें तो फिर धर्म बलहीन होकर ना अपनी रक्षा कर पाता है ना अपने रक्षक की ।

                    मित्रों , दूसरे कारण तो नगण्य हैं भारत से बौद्ध धर्म संस्कॄति के समूल विलोपन के पीछे यही कारण बड़ा था ।

आओ धर्म की रक्षा के महत्व को समझे और सच्चे धार्मिक बनें । दिखावटी सांप्रदायिक नहीं !

अपने भी भले के लिए और औरों के भी कल्याण के लिए ।