सोमवार, 30 नवंबर 2015

" धर्म को धर्म ही रहने दो "



दुनिया का कोई धर्म हो शुरुआत में बहुत शुद्ध होता हैं । और उसके अनुयायी धर्म को कैसे धारण करे इसपर सारा जोर लगाते हैं । धर्म को जीवन का अंग बना लेते हैं । 

          जैसे सदाचार, शील और मन के विकारों से लड़ना तथा मन पर काबू पाना धर्म के मूल अंग है और लगभग सभी धर्मों के मूल अंग हैं । फिर धीरे धीरे धर्म धारण करने में शिथिलता आती जाती हैं । तो धर्म धारण करने से जो वास्तविक लाभ मिलते हैं उनसे हम वंचित होते जाते हैं । जब धर्म जीवन में नही उतरता तो लोग उसकी तरफ स्वभाविक आकर्षण खोते जाते है । उसके अनुयायियों की संख्या कम होने लगती हैं । अब उस उस धर्म के बड़े लोग या साफ कहें तो ठेकेदार चिंतित होते हैं । तो वे शार्टकट की तरफ आकृष्ट होते हैं । मानों जैसे धर्म को ओढ़ना सिखाते हैं । किसी भी चीज को ओढ़ना बड़ा आसान होता है ना इसीलिए बस कहते हैं अरे भाइयों इतना तो करो - ये ये तीज त्यौहार मना लो , ये ये व्रत उपवास रोजा या फ़ास्ट इत्यादि रख लो , इस इस तरह की वेश भूषा पहना करो , इस इस तरह के चिन्ह धारण करो , इस इस तरह की प्रार्थना करो । 

                     तो वे लोग देखते हैं की लोगों को या कहे उनके अनुयायियों को ये करना आसान लगता हैं । और वे सब आसानी से पहचाने जाते हैं कि अरे ये ये फलां फलां धर्म के लोग हैं । बाड़े बन्दी आसान होती हैं । पर मितरो ये तो शुद्ध दिखावा हुआ ना ? और दिखावे से भला कब धर्म जीवन में उतरा हैं । सो लोग अपने अपने मनों में टनों मैल लिए चलते हैं । और खूब भ्रम में रहते हैं देखों मैं कितना धर्मवान हूँ ना । परन्तु ये मन के मैल उसका लोक व्यवहार सुधरने नही देते और लोक व्यवहार असहिष्णुता, बैर भाव और घृणा द्वेष से भरा हो तो खुद भी दुखी रहते हैं और फिर दुःख अपने तक सिमित नही रखते औरों को भी बांटते हैं । दिखावे जोड़े तो जाते है भले के लिए पर धीरे धीरे ये ही प्रमुख हो जाते हैं और धर्म गौण हो जाता हैं । घर्म गौण हो जाता है फलदायी नही रहता । निष्प्राण और निस्तेज हो जाता हैं । 

                  मितरो म. गांधी शुद्ध धर्मिक व्यक्ति थे । अगर आप ध्यान से देखें तो उन्होने कभी धर्म को ओढ़ा नही । उसका दिखावा नही किया । इसीलिए खुद भी धर्म से खूब लाभान्वित हुए और सारे जीवन सबको प्रेम और सद्भाव ही बांटते रहे । म. गांधी का अपने मन पर काबू था । और निरंतर वे मन को शुद्ध करते रहते थे । तभी तो किसी के भी प्रति उनके मन में दुर्भाव नही जग पाता था । तभी तो सबको उनसे अभय मिलता था । तभी वे सबको और सब उनको प्रेम कर पाते थे ।

सबका भला हो ।
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रविवार, 15 नवंबर 2015

गांधी की शक्ति

म. गांधी ने कभी तीन चार दल नही बनाये । माने अलग अलग नामों से । जिसमें कुछ हिंसा को अपनाते, और कुछ अ हिंसा का स्वांग रचते । कुछ लोगों को जाती धर्म के आधार पर बांटते और कुछ एकता का राग अलापते ।

उन्होंने बस अपना एक ही रस्ता चुना और भी सविनय अवज्ञा और सम्यक अहिंसा के साथ ।

इसी कारण उनकी शक्ति बंटी नही एक रही । वरना क्या होता उनका कोई एक दल लोगों को बांटता और एक जोड़ने का दिखावा करता तो फिर गांधी कैसे सफल होते और देश दुनिया में जाने जाते ।

दोस्तों बापू बड़े सजग रहते थे । दोगलेपन और उसे अपनाने वाले अपने साथियों पर कड़ी नज़र रखते थे । हम अगर ध्यान से देखें तो उन्होने अपने कई साथियों को लाख अच्छे होने के बावजूद भी जब देखा की उनका झुकाव भेदभाव की तरफ है या हिंसा की वकालत करते है को देर नही की अपने से दूर कर दिया ।

तो दोस्तों , इसी आधार पर गांधी की जन स्वीकार्यता बढ़ी और सम्पूर्ण विश्व में अपने आप फैली। लोगों का विश्वास उन पर बड़ा । अतः जो भी हमारे विचार हों उन पर कैसे दृढ़ रहना ये हमें बापू से सीखना चाहिए और नकलीपन और दोगलेपन से बचना चाहिए । चाहे हम छोटा काम कर रहे हों या बड़ा इससे कोई फर्क नही पड़ता । फर्क पड़ता हैं विश्वनीयता से । यही कारण है की आज भी हमारी विश्वसनीयता पर कोई ऊँगली उठाये तो बिना देरी हम गांधी और बुद्ध का भरोसा सबको देते हैं । और दुनिया हमारा मान रखती हैं ।

आज के हालातों में हम देखें तो पाएंगे दोगले लोग बहुत देर तक सफलता के शिखर पर नही रह पाते क्योंकि उनका दोगलापन और नकलीपन उन्हें शिखर से नीचे खिंच लाता हैं ।

बापू तुम फिर आना मेरे देश ।

रविवार, 8 नवंबर 2015

नया काम …


1947 में जब हम आज़ाद हो गए तो म. गांधीजी को एक नया काम मिल गया और वो था " हिन्दू मुस्लिम एकता का " काम । हमारे कौमी नेताओं के चलते दोनों समुदाय एक दूसरे के प्रति नफरत के शिकार होकर भटक गए थे ।

                    म. गांधी 28 अप्रैल 1947 अपनी शाम की प्रार्थना सभा में वे कहते है - "आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुझे ऐसे पत्र मिलते रहते है , जिनमें मुझपर ये आरोप लगाया जाता है की मुसलमानों के मित्र का काम करके मैंने हिन्दू हितों को हानि पहुंचाई हैं । यदि मेरे 60 वर्षों के सार्वजनिक जीवनसे यह प्रत्यक्ष प्रमाण नही मिला तो मैं शब्दों से लोगों को यह विश्वास कैसे दिला सकता हूँ कि मुसलमानों का मित्र बननेकी कोशिश करके मैंने अपने को एक सच्चा हिन्दू ही सिद्ध किया हैं । और हिंदुओं की तथा हिन्दू धर्म की सच्ची सेवा की हैं । सभी धर्मों की सच्ची शिक्षा का सार यही है की सबकी सेवा करना और सबका मित्र बनना चाहिए और बिना भेदभाव ईश्वर की समग्र सृष्टि की सेवा के द्वारा ईश्वर की सेवा करनी चाहिए । यह पाठ मैंने अपनी माँ की गोद में सीखा था ।

                       अपने मित्रों के प्रति मित्रता का भाव रखना बहुत आसान है । परन्तु जो अपने को हमारे शत्रु समझते हों उनसे मित्रता करना ही सच्चे धर्म का सार हैं ।"

                          इस दिन बापू रात को 9:30 बजे ही सोने चले गए थे कारण उपवासों के चलते थोड़ी कमजोरी भी थी । पर अचानक रात में नींद खुली तो ध्यान आया की सोने से पहले सूत कताई का काम तो वे भूल गए थे सो उन्होने देर रात कुछ देर सूत काता और फिर सो गए ।

                             मितरो, भूल सुधार करने में म. गांधी एक क्षण की भी देरी नही करते थे ।।

बुधवार, 4 नवंबर 2015

सहिष्णुता का मोल समझे

हमारे देश में कितनी विविधतायें है देख कर अचरज होता है । ये विविधतायें ही हमारी असली ताकत हैं । इतनी विविधतायें किसी एक देश में संसार में और कहीं नही हैं ।

भारत की जनसंख्या का लगभग 13 से 18 प्रतिशत हिस्सा ऐसा भी है जो जनजातियों से हैं । ये जनजातियां सम्प्रदाय, उंच नीच , जात पात , पोथी पुराण , रीतिरिवाज , खानपान , पहनावा , दिखावा , धर्म की रक्षा , आधुनिक शिक्षा और संस्कृति से कहीं दूर अपनी ही दुनिया में मस्त रहती हैं ।

इनके परिवेश को सुरक्षित संरक्षित करने के लिए सरकार भी कई कदम उठाती हैं । नीरव जंगलों में, भौतिकता से दूर सुदूर पहाड़ी अंचलों ये सभ्यता अपनी तरह से अपनी दुनिया में जीती हैं और वो भी बिना शिकवा शिकायत के । बिना शोर के ।

कभी-कभी लगता हैं अगर ये लोग हमारी शहरी सभ्यता में रूचि लें तो शायद अचरज करेंगे की हम लोग किस तरह से खानपान के लिए , संप्रदाय की रक्षा की चिंता और उंच नीच के लिए दिन रात लड़ते झगड़ते और सभ्य होने के फेर में असभ्यता की गला काट प्रतियोगिता में उलझे रहते हैं ।

भला हुआ की ये जनजातियां सम्प्रदायवाद से दूर, जातपात से दूर, विकास से दूर, सुविधाओं से दूर अपना जीवन गुजार कर हमें आइना दिखाती रहती हैं ।

आओ हिलमिल रहे । अपने से अधिक दूसरों की चिंता करें ।सहिष्णुता का मोल समझे । जियो और जीने दो के सन्देश की महत्ता समझे ।