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रविवार, 13 नवंबर 2011

" मैं तो आरती उतारूँ रे ..."



" मैं तो आरती उतारूँ रे ..."






1975 में बनी  फिल्म  " जय संतोषी माँ " का यह गीत ..." मैं तो आरती उतारूँ रे ..." अपने समय के सारे रिकार्ड तोड़ कर बड़ा  मशहूर हुआ था ... हिंदी सिनेमा की दस शीर्ष हिट फिल्मों में शुमार इस फिल्म का यह गीत मंगेशकर बहनों में कम मशहूर उषा जी के गले की देन है ... संतोषी माँ जिसके साथ हो फिर उसकी तो पौ-बारा ही समझे ... एक कम बजट की, सामान्यसी फिल्म के साथ संतोषी माँ की बड़ी कृपा रही ...कवि प्रदीप की लेखनी से निकला गीत " मैं तो आरती उतारू रे ..."  उस समय के जनमानस पर जैसे जादू का सा असर  कर गया था /



                              यह गीत एक सामान्य लय-ताल में डोलक-मंजीरों की आवाज के साथ शहनाई के संग शुरू होता है ..फिर तो उषाजी की आवाज जैसे इस गीत को आसमानी उचाईयों पर ले जाती है /  भक्तिरस के साथ माँ संतोषी का गुणगान धीरे-धीरे चरम पर पहुँच जाता है ...बहुत ही सामान्य से फिल्मांकन के असामान्य नतीजो के लिए जानीजाने  वाली यह कृति कितने संतोष-भाव से गढ़ी गयी है ...यह बात इस गीत में सहज अनुभव की जा सकती है ... गरबा डांस के निहायत आसान से स्टेप्स भी गीत में जान फूंके बिना नहीं रहते /



                               संतोषी माँ अगर मंदिर से मन के अन्दर बस जाये तो वरदान के भंडार मानो जैसे खुल ही गए समझो ...संतोष धन अपने अन्दर थोडा सा भी जगे तो बड़े फल मिलते ही है ... जीवन सुधर जाता है ... फिर मन का मयूरा बरबस नाच उठता है ... सुन कर देंखे जरा इस पुराने सदाबहार नगमे को ... एक अलग एंगल से ...एक अलग अंदाज से ...मन संतोष से भर जाये बस और हमें क्या चाहिए ....

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब, गीत को आपकी टिप्पणी ने और निखार दिया।