गुरुवार, 28 मार्च 2013

ये तेरा घर ... !!!



              डौस का घर ... और घर में उसका घर ... जी हाँ ... एक छोटी सी,  परी सी,  चिड़िया ने बला की खूबसूरती से अपना एक घर बनाया हैं ... अपनी नन्हे बच्चो की खातिर ... अब घास फूस भी कहाँ शुद्ध रहे ... और इस चिड़िया ने किसी से शिकायत भी नहीं की ...ना ही किसी को कोसा ... अब देखो ना ज़रा इस घोंसले को ध्यान से ... किस मेहनत से उसने फायबर ग्लास के रेशों को गुंथकर प्लास्टिक की पन्नियों / सूखे पत्तों / जुट के रेशों का सदुपयोग कर अपना घोंसला बनाया हैं ... 

                      इस  घोंसले में उसके लगभग डेढ़ इंच लम्बे और कोई बीस -पच्चीस ग्राम वजनी दो बच्चे अभी दिनभर अपनी माँ के द्वारा लाये चुग्गे पर आश्रित हैं ... कुछ दिन और विश्राम करने के पश्चात् चिड़िया इस घोंसले को छोड़कर फिर खुली प्रकृति की गोद में उड़ जाएँ शायद ... 

                 चिड़िया तुम्हारा मंगल हो ... मेरी मंगल कामना में तुम्हारा भी स्थान रहेगा ... तुम मुझे अनासक्त किस तरह रहे यह सिखा गयी ... पर तुम्हारी तरह बन सकूँ ... इसमें वक्त लगे मुझे शायद ...पर चल पड़ा हूँ ... 

बुधवार, 27 मार्च 2013

होली आई रे ...


    प्रकृति को भी होली के आने का बड़ा इन्तजार रहता हैं ... और यही कारण  है की प्रकृति की कृति मानव भी इसके प्रभाव में खूब रंग जाता हैं ... होली में जातपात और सम्प्रदायों के भेद मिट जाते हैं , मानव मन अपने मुखौटो को उतार कर नैसर्गिक स्वरूप में कई रंगों से रंग कर एक रंग हो जाता हैं  ... 

               ...  होली पर फ़िल्मी गीतों की लम्बी फेहरिस्त हैं ... एक से बढकर एक उम्दा गीत बने हैं ... आज होली की बेला पर फिल्म " मदर इंडिया " का गीत "  होली आई रे कन्हाई .. " दूर से आती टीवी की आवाज के सहारे धीमे - धीमे कानों में गूंज रहा हैं ... शमशाद बेगम साहिबा की खनकदार आवाज इस गीत को रंगती हुई सारे माहौल को रंगों की मस्ती में डुबोती-तैराती आगे  बढ़ती जाती हैं ... पीछे केवल मस्ती और उल्लास,  उमंग रह जाते हैं ... छूटे न रंग,  यूँ रंग दे चुनरिया यह आरजू करना मन की स्वभाविक आरजू होती हैं ... पर चुनरिया पर कोई रंग ना चढ़े यह यत्न करना .. और चुनरिया को जस की तस रख देना भी तो मानव का ही धर्म हैं ...

         ... 1957 की सुपर हिट सदाबहार फिल्म " मदर  इंडिया  " का यह गीत "   होली पर बने,  रचे गीतों में सर्वश्रेष्ट हैं ... फिल्मांकन भी इस गीत की मस्ती के अनुरूप रंगीन हैं ... सुनील दत्त साहब और नर्गिस जी का नैसर्गिक आकर्षण और प्रेम भी इसी फिल्म के दौरान हुआ था ... नौशाद साहब का बेहतरीन संगीत इस गीत के साथ हैं ... गीत को बजने दे ... और होली की यादों में खो जाएँ ... फिर मिलेंगे ... मिलते रहेंगे ... !!! 



मंगलवार, 19 मार्च 2013

सहारा मिल गया होता ...






                 म सबको फ़क्त इतनी सी शिकायत ही तो रहती है ... कि हमें  किसी की मुहब्बत हा सहारा मिल गया होता .. .. खैर शिकायतें होना हर बार लाजमी हो यह कतई जरुरी भी तो नहीं .... हमारी नजरो को हर दम वही नज़ारे दिखाई दें ... जिन -जिन नज़रों को वे निहारना चाहती हैं ... और इसी जद्दोजहद में जो जो नज़ारे सामने हैं उनसे हम नज़रे फिराते रहते हैं .... यूँ ख़ुशी हमारे नजदीक होकर भी दूर दूर रहती हैं .

              तूफां आते रहते हैं ... और कौन से किनारों के मिल जाने से तूफानों से निजात मिल जाती हैं ... दरअसल हम अपने अपने सपनों से प्यार करते हैं ... और जो जो हमारे सपनों की मददगार मालूम होते हैं ... वे भले लगते हैं ... पर जब जब किन्ही दो के सपने नहीं मिलते तो टकराव या दुराव शुरू हो ही जाता हैं .

                    तूफान भी मन में उठते हैं ... किनारे भी वहीँ हैं ... फिर भी बैचेन क्यूँ रहते है हम ... इसका कारण तो यही हैं एक कि हम तूफानों को किनारे से अलग कर के देखना और महसूस करना चाहते हैं ..

            " आप आये बहार आई " फिल्म का नाम ही सार्थक है ये इशारा करने के लिए कि किसी खास बड़ी खुशियों  के इन्तेजार में जाने कितनी छोटी छोटी खुशियों की क़ुरबानी हम देते रहते हैं ... 1971 से अब तक जाने कितने बरस बीत  गए फिर भी यह गीत " मुझे तेरी  मुहब्बत का सहारा मिल गया होता ... " हमेशा तरोताजगी भरा लगता हैं  ... " मोहम्मद रफ़ी साहब की विशाल सागर सी गहराइयों सी आवाज़ और लता जी की किनारों सी भरोसे वाले सुरों  में यह गीत सुन्दर बन पड़ा हैं ... आनंद बक्षी साहब की सुन्दर रचना ... लक्ष्मी -प्यारे जी के संगीत में ढलकर कानों में जाकर ह्रदय में सीधे उतर जाती हैं ...

             फिर भी सबको सबकी मुहब्बत का सहारा मिले ... इसी आस के साथ ... शुभ दिन !!! 


सोमवार, 11 मार्च 2013

बापू कथा के बहाने ...




             चपन से ही म. गाँधी जी को जानने का जब जब अवसर मिला मेरी  उनके प्रति जिज्ञासा बढती सी गयी ... उसी दौरान कहीं उनके विषय में तीव्र निंदा भी सुनी ... तभी से मन ही मन सोचा की इतनी भले इन्सान की भी इतनी निंदा ... फिर भी मन में हमेशा ही जहाँ से म. गांधीजी के बारें में जानने का अवसर मिलता उन्हें अपने तयी जानता ही रहता ... 


                      फिर एक अवसर मिला जब पहली बार जाना म. गांधीजी  आध्यात्म के क्षेत्र में बहुत आगे पहुंचे हुए थे ... और फिर उनके जीवन में यहाँ वहां जब भी कुछ जानने या पढने का अवसर मिलता ... अब मैं ...  उनके जीवन को इस नए आयाम से भी समझने की कोशिश करता रहा ... और सचमुच यहां - वहां बिखरे उनके जीवन के किस्सों में आध्यात्म की ऊँचाइयों के प्रमाण भी मिलते ही रहे ... स्वयं भी मेरी आध्यात्म में रूचि के चलते ...अब उनके विषय में जानने का जोश दुगुना होता गया ... 

             एक अवसर आया जब हमारे शहर में " बापू कथा "  का आयोजन भी हुआ ... " बापू कथा " यह शब्द ही मेरे लिए रोमांच जगाने के लिए काफी था ... म. गांधीजी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई साहब पुत्र " श्री नारायण भाई देसाई " का बचपन बापू के आश्रमों में बापू के इर्द गिर्द बीता  ... और बापू को उन्हौने अपने साथ खेलते हुए ... बातें करते हुए ... हंसी मजाक करते हुए ... इस बात से बेखर की वे कितने महान हैं ... बिलकुल सहज अंदाज में देखा ... वही नारायण भाई देसाई साहब ने एक बीड़ा उठाया है ... वे गांधीजी के बारें में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर पांच दिनों की "बापू कथा " सुनाते हैं ... 

                म. गांधीजी को जानने और समझने का यह अवसर मेरे लिए निराला था ... मैं भी पांचो दिन कथा सुनने गया  ... और कई बातों की सच्चाई को जाना ...  मेरी जानकारियों को नए आयाम मिले ... आज अचानक कुछ यूँ हुआ की कुछ बातें याद करते करते मन नारायण  भाई देसाई साहब के प्रति कृतज्ञता से भर - भर गया  ... 

                  बापू कथा सुनने का अवसर ... हमारे युवा भी जरुर उठाये ... सुनता हूँ youtube पर भी बापू कथा की कई लिंक मिलती हैं ... और संचार क्रांति के युग में यह बहुत बड़ी सुविधा हैं ... हमारे युवा म. गांधीजी को स्वयं जाने ... आज जब सारा संसार उनको जानना चाहता है ... उनकी और आशा भरी नज़रों से देखता हैं ... हमारा उनको जानना अभी बहुत  बाकि हैं ... और गांधीजी की राह आसान होते हुए भी हमें क्यूँ मुश्किल लगती हैं ... इस दृष्टी कोण से युवा लाभान्वित हुए बगैर नहीं रहेंगे ... भला हो !!!

( संलग्न चित्र : श्री महादेव भाई देसाई साहब और उनके परिवार तथा नारायण भाई के बचपन के हैं  ) 

गुरुवार, 7 मार्च 2013

रेल और जेल में बीता आधा जीवन बापू का ...

                    गाँधी जी ने हमेशा अपनी यात्रायें रेलगाड़ी के तीसरे दर्जे में की ... उस समय और आज़ादी के बाद भी कई सालों तक हमारी रेलों में तीसरा दर्जा भी हुआ करता था .

               
     गाँधी जी को रेल यात्राओं के दौरान कई बार जागते हुए ही रातें गुजारनी पड़ती थीं ... .. क्योंकि तीसरे दर्जे में बैठने की जगह भी काफी मुश्किल से हासिल होती थी ... भीड़ मानों इस कदर होती थी ... जैसे भेड़-बकरियों को ठूस दिया गया हो .... म. गांधीजी के जीवन में रेल यात्राओं का सर्वाधिक महत्त्व रहा हैं ... अपने राजनैतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के आदेश पर रेल की यात्राओं से ही उन्हौने सारे देश के हालातों को समझा ... और हिदुस्तान की नब्ज को टटोला ...

             दक्षिण आफ्रिका से लौटने के बाद उन्हौने भारत में लगभग 11680 दिन गुजरे उसमें से लगभग 2338 दिन जेलों में और 2920 दिन रेलों में .... जो की उनके भारत में व्यतीत समय का लगभग आधा हैं . गांधीजी ने अपने तन को हमेशा एक चादर नुमा कपडे से ही ढंका . वह भी अपने हाथों बनी खादी का कपडा होता था .... .जिसे वे स्वयं धोते थे ... और बिना प्रेस किये ही धारण करते थे ....



 वे केवल एक बार अपेंडीसाईटीस के ऑपरेशन के लिए अस्पताल में भर्ती हुए थे ... बाकि समय अस्वस्थता की दशा में प्राकृतिक चिकित्सा से स्वयं भी ठीक होते रहे और अपने साथी आश्रमवासियों को भी ठीक करते रहे .... वे कहते थे मिटटी , पानी , हवा और धुप से की जाने वाली प्राकृतिक चिकित्सा भारत जैसे गरीब देश के लिए अधिक उपयुक्त हैं एवं निरापद भी ...