गुरुवार, 29 नवंबर 2012

तुम याद आयें ...



                     वा कभी ठंडी तो कभी गर्म , कभी तेज तो कभी मध्यम होकर बहती ही रहती हैं ... पर कभी - कभी इन हवाओं के साथ यादें भी बहकर आ जाती हैं ... और केवल यादें ही नहीं कोई भुलाबिसरा एहसास बहता हुआ  मन के किनारों से टकराने लगता हैं ...और मन फिर उसी तरह संवेदनशील हो उठता हैं जिस तरह पहले कभी हुआ था ... और यादों के जखीरे से भूली बिसरी तरंगे उठ - उठ कर तेज होती जाती हैं ...

                       वही बीते नज़ारे, वही बीते वाकये फिर उसी लय में एक - एक कर जागी आखों के सामने सपनों की तरह गुजरने लगते हैं ... गुजरते जाते हैं ...


                         एक-एक लम्हा और अधिक उर्जा से लबरेज बस नजदीक ही कहीं छुपा हुआ सा महसूस होता हैं ... जब मन अपनी सारी ताकत लगाकर भी उस भूले एहसास की पुनरावृत्ति होते नहीं देखता तो हलकी सी निराशा आना लाज़मी हैं ... जिंदगी की राहों में पुराने मक़ाम कभी लौट कर नहीं आते ... बस हर नए मक़ाम पर हर एहसास को जब-जब हम बिना छुए हुए से गुजरते जाएँ तो सफ़र एक हद तक आसान  हो जाता हैं ... 

                       लो फिर चलने लगी ठंडी हवा ... आओ उसके छूने को अनछुए सा गुजर जाने दें ... हाथों से छूकर किसी एहसास को नाम देना उलझन का और बढ़ते जाने का सबब बनता जाता हैं ... हवाओं पर , घटाओं पर , बादल  बिजली, बारिश पर हमारा जोर नहीं ... और यादों पर ... भी कहाँ हमारा वश होता हैं ?  ... पर हमारा वश हो सकता हैं इन सबके एहसास को कोई नाम न देने पर ...
 
                         कबीर साहब  भी यही कर गए ... चादर ओढ़ी तो , पर मैली नहीं हुई ... उस पर कोई नाम नहीं लिखा ... हर याद एक एहसास लेकर आती हैं ... उस एहसास को कोई नाम नहीं देना ही जीवन जीने की कला हैं ..

                                                         1966 की 46 साल पुरानी  की फिल्म " दो बदन " का यह गीत बड़ा ही सुगम है ... एक उम्दा काम्बिनेशन बन गया हैं ... गीत के बोल , संगीत की धुन , बेमिसाल गायकी , साधा हुआ अभिनय  , दृश्यों का संयोजन कुछ यूँ गुंथे हुए हैं की आँखें बंद हो या खुली कतई फर्क नहीं पड़ता ... यादें बेरोकटोक आती जाती रहती हैं ...

सुने सुनाये ... लाइफ बनाये । .... शुभ दिन।  


मंगलवार, 13 नवंबर 2012

अन्धकार से प्रकाश की ओर ...

             

भगवान् बुद्ध ने जिस ज्ञान का साक्षात्कार किया , उसका भारतीय धर्म - साधना में क्या स्थान हैं , यह प्रश्न हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । इसकी ठीक अवगति प्राप्त कर लेने पर उस महत अनुभव की ओर हमारी श्रद्धा बढेगी , जिसे तथागत ने प्राप्त किया था और जो ज्ञान के उस रूप से आगे का विषय हैं , जिसकी अभिव्यक्ति वैदिक वांग्मय में हुई है। अधिक विस्तृत विवेचन न कर यहाँ केवल दो स्फुट विचार रख देना उपयुक्त होगा।

वैदिक ऋषि ने किसी अज्ञात परा शक्ति से प्रार्थना की थी ...

" मुझे असत से सत की और ले चल।


मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चल।


मुझे मृत्यु से अमृत की ओर ले चल। " 



कितने उदात्त है ऋषि के ये शब्द ... असतो माँ सद्गमय ... तमसो माँ ज्योतिर्गमय ... मृत्योर्माS मृतं गमय ...


वैदिक ऋषि की यह प्रार्थना सब काल के लिए मानवता की सर्व श्रेष्ठ प्रार्थना हैं। वैदिक युग की साधना और आशा-आकांक्षाओं की पूरी अभिव्यक्ति यहं हुई हैं। अब हम इस प्रार्थना के साथ उन उद्गारों को मिलाएं जिन्हें अभी सम्बोधि प्राप्त कर लेने पर भगवान् बुद्ध ने प्रथम बार प्रगट किया था।


" अविद्या नष्ट हुई , विद्या उत्पन्न हुई।


अन्धकार नष्ट हुआ प्रकाश उत्पन्न हुआ।


अमृत के द्वार खोल दिए गए हैं। " 



अहो गंभीर बुद्ध वाणी !!! ... अविद्या विह्तो , विज्जा उप्पन्ना ... तमो विह्तो , आलोको उप्पन्नो ...अपारुता अमतस्स द्वारा।


भगवान् बुद्ध ने अक्षरतः वही प्राप्त किया जिसकी प्रार्थना वैदिक ऋषि ने की थी। आकस्मिक होते हुए भी शब्दों और भावनाओं के क्रम तक में कितनी भारी समानता हैं , यह दोनों अध्यात्मिक अनुभवों की सच्चाई की द्योतक हैं। सम्पूर्ण औपनैषदिक साहित्य को छान डालने पर भी एक भी ऋषि का ऐसा उदहारण ना मिलेगा , जिसने अपने अनुभव के आधार पर इतनी परिपूर्णता के साथ घोषित किया हो कि उसकी अविद्या नष्ट हो चुकी हैं , अन्धकार विदीर्ण हो गया हैं और उसने अमृत को पा लिया हैं। वैदिक युग के लिए यह एक प्रार्थना हैं, आकांक्षा है। उसकी प्राप्ति तथागत की बोधि के रूप में हुई हैं। भारतीय आध्यात्मिक विकास का यह एतिहासिक क्रम हैं।


तथागत जब हुए तब भारत का विस्तार आज के अफगानिस्तान से लेकर सुदूर बर्मा देश तक और उत्तर में हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक एक था ... ( " उनके समय का भारत " विश्वगुरु " के नाम से भी जाना जाता था, उस समय सच्चे अर्थों में हमारे देश में शांति एवं समृद्धि का वास था / नैतिकता का इतना बड़ा निर्भीक प्रचारक संसार में दूसरा कोई नहीं हुआ, कर्मयोगियों में गौतम बुद्ध सर्वश्रेष्ठ है / उनके उपदेश इतने सरल की राह चलने वाला भी उन्हें समझ जाय / उनमें सत्य को अति सरलता से समझाने की अद्भुत क्षमता थी / उनके पास मस्तिष्क और कर्मशक्ति विस्तीर्ण आकाश जैसी और ह्रदय असीम था / वे मनुष्यों को मानसिक और आध्यात्मिक बंधनों से मुक्त करना चाहते थे / उनका ह्रदय विशाल था, वैसा ह्रदय हमारे आसपास के अनेकों लोगों के पास भी हो सकता है और हम दूसरों की सहायता भी करना चाहते हों पर हमारे पास वैसा मस्तिष्क नहीं / हम वे साधन तथा उपाय नहीं जानते , जिनके द्वारा सहायता दी जा सकती हैं / परन्तु बुद्ध के पास दुक्खों के बंधन तोड़ फेंकने के उपायों को खोज निकालने वाला मस्तिष्क था / उन्हौने जान लिया था की मनुष्य दुक्खों से पीड़ित क्यों होता है और दुक्खों से पार पाने का क्या रास्ता है / " ...स्वामी विवेकानंद )


उस कालखंड की गौरव गाथा ... अफगानिस्तान की पहाड़ियों में , पाकिस्तान स्थित तक्षशिला में , भारत में अजन्त एलोरा , बोधगया , नालंदा , सारनाथ यहाँ वहां सब जगह बिखरे अवशेषों के द्वारा अपने विराट अस्तित्व की कहानियां आज भी उसी तरह सुनाता हैं .. आज भी कोई इन जगहों की यात्रा करें तो वहां की सम्यक तरंगे विशिष्ट शांति का एहसास कराती हैं और साफ महसूस की जा सकती हैं ...

शनिवार, 10 नवंबर 2012

उड़ान संख्या OWL1111 .. से फायनली वे आ रही हैं ...


                  सुदूर देवलोक से लक्ष्मी जी भारत-भूमि के लिए (उड़ान संख्या OWL1111)  उल्लू पर सवार होकर निकल पड़ी है ...  इस बार की यात्रा  से पहले उन्हौने भी पूरी तैयारी की ... अपनी नयी टीम के कोर ग्रुप के  सदस्यों में से एक गणेश जी को स्थिति के आकलन के लिए पहले धुआंधार दौरा करवाया ... फिर लगे हाथ दुर्गा जी का भी ९ दिनों का दौरा करवा दिया  ...ताकि कोई कोर कसर न रहे /  तभी अचानक विघ्न संतोषी रावण  के आ धमकने से लक्ष्मी जी की यात्रा टलने वाली थी पर किसी तरह महिला मोर्चा ने करवा चौथ का अनसन करके डेमेज कंट्रोल किया /.......अब फायनली वें आ रही हैं /

                              लक्ष्मी जी की टीम के अहम्  सदस्य गणेश जी की सलाह पर इस बार वे धरती पर मंदी और महंगाई के चलते विशेष पैकज की घोषणा  भी करने वाली है ... पर भ्रष्टाचार के चलते गरीबों तक धन नहीं पहुंचा पाने की मज़बूरी के चलते अब वे " आधार योजना " की  " विशिष्ठ पहचान संख्या " का सहारा लेने वाली हैं ... और मदद के हाथ सीधे जरूरतमंद तक पहुँचाने वाली हैं ... पिछले वर्षों के भ्रष्टाचार मुक्ति आंदोलनों से अब उनका विश्वास उठ सा गया है ... जिनपर पहले भरोसा किया वे अन्ना और बाबा रामदेव ने नाना प्रकार के अनसन किये और भांति - भांति के अस्त्र शास्त्रों का खुलेआम प्रदर्शन किया ... यहाँ तक की पुराने ज़माने की अचूक मिसाईल आमरण अनसन को भी झाड़ पोंछकर खूब चलाया ... पर अन्तः वे सब भी नाम और श्रेय के मायाजाल में फंसकर रह गए और  बार बार लक्ष्मी जी को आश्वासन पर आश्वासन ही दिए जा रहे थे ...  उसी मिसाईल के बार-बार के नाहक और बेकार धमाकों से परेशां होकर लक्ष्मी जी ने अंततः पुरातन और संवैधानिक व्यवस्था और भारत- भूमि की वर्तमान निर्वाचित  सरकार पर ही भरोसा किया और उसे कठोर निर्णय लेने की शक्ति दी ...

                                         सरकार ने ... सब्सिडी की गैस टैंक की कालाबाजारी को रोकने के लिए कड़े नियम बनाये और सब्सिडी की राशि सीधे हितार्थी तक पहुँचाने के उपाय किये ... इससे गैस की कालाबाजारी पर एक हद तक रोक लग जाएगी और आपूर्ति सुनिश्चित होगी ... महँगी गैस से सस्ते में कार चलने के दुरुपयोग पर रोक लगेगी ... FDI की नयी नीति से रोजगार के अवसर बढेंगे और असली उत्पादकों को सही कीमत हासिल होगी ... बिचौलियों से मुक्ति मिलने से उपभोक्ता का भी खूब भला होगा ... कई कटु निर्णय रहे  .. पर सुदूर भविष्य में इस नीति  का लोहा सब मानेगे ... और भी कई कड़े फैसले अपना भला असर दिखायेंगे ... इस बार लक्ष्मीजी ने यह तय कर लिया हैं की वे बिचौलियों की मदद से नहीं बल्कि  " विशिष्ठ पहचान संख्या " के सहारे अपने भक्तों तक पहुंचेगी ...  आखिर धन की देवी के उपासक तो सभी है ना ?

                                    हर बार की तरह इस बार भी लक्ष्मी जी ने यह कहा की सभी को उनकी योग्यता और कर्म फल के सिद्धांत से आगे जाकर कुछ भी दे पाना उनके वश में नहीं ... पर धरती पर बसने वाले उनके भक्त इस बात पर कान देने को तैयार नहीं ... वे धन की देवी लक्ष्मी को मनाने और प्रसन्न करने के यत्न करने लगे है ... लक्ष्मी जी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित हो इसके जतन वे खूब कर रहे है ... कई तरह की पूजा-पाठ, व्रत-उपवास और मुहूर्त निकले जा रहे है /

                                     वहीँ ऊपर आकाश से गणेश जी एवं माँ सरस्वती यह सब देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहे है ... वे दोनों खूब अच्छी तरह जानते है ... धन की देवी लक्ष्मी उन लोगों की व्यर्थ की कोशिशों में न कभी उलझी है न उलझेंगी /  गीता के कर्म के नियम को लक्ष्मी देवी खूब अच्छी तरह से मानती ही नहीं जानती भी है  ... फायनली वें आ रही है ... बाहर-बाहर से साफ-सफाई और दिखावा  भले करों ... पर अंतर साफ हो ..मन पर नियंत्रण रहे ... ये काम भी कर लो ... यहीं देखने फायनली वें आ रही है !!!!! 

शनिवार, 3 नवंबर 2012

बिन कहे ..बिन सुने ...







             बिन कहे  ..बिन सुने ...दिल ने ..दिल से ... कर ली बातें ... बातों में  ... यहाँ आकर यह गीत अपने चरम पर पहुँच जाता हैं .... और रफ़ी साहब की जादुई और दिल से आती आवाज लता जी की सुरली तानों के साथ बिलकुल यूँ जान पड़ती हैं ज्यूँ खुद  प्रकृति यह गीत गा रही हो .... रफ़ी साहब जब गाते हैं तो जैसे पुरे समां पर छा से जाते हैं ... हर साज ... हर हरकत ... मानो उनकी आगवानी में लग जाते हैं ... वहीँ आसपास मंडराते से रहते हैं ... कहीं दूर नहीं जाते ... न थोडा सा इधर उधर होते हैं ।

                             इस गीत को सुनते हुए यह एहसास खूब गहरे उतर जाता है ... मानो जैसे खुद निसर्ग ही गा रही हैं ... और खूब झूम कर गा रही हैं ... पुरे साल कुदरत जाने कितने रूप धरती हैं ... जाने कितने मंजर दिखाती हैं ... जाने कितनी बार मुस्काती हैं ... कभी डराती तो उससे ज्यादा बार हौसला भी दे जाती हैं ...  ।

                             कुदरत जाने कितनी संभावनाओं के साथ चलती हैं ... चाहे कितने, किन्तु परन्तु हम सोचते रहे ... कुदरत का प्रवाह अपना विशाल अस्तित्व लिए झूम कर चलता रहता हैं ... बस चल पड़ना होता हैं ...बनके साथी राहों में ... और होनी के होने को बस एक हमारा प्रतिक्रिया रहित होना ही सकारात्मकता से भर- भर देता हैं ... और जिंदगानी का सफ़र यूँ ही कट जाता हैं  .... बातों - बातों  में ।

                             तो आओ ... चल पड़े हम सभी साथ-साथ बन के साथी राहों के ... जब कहने सुनने की बहुत ज्यादा गुंजाईश नहीं होती हैं ... तब ही भरोसा अपने चरम पर होकर ... हर मुसीबत से हौले से बचाकर बस यूँ ही आगे बड़ता जाता हैं ... 

                       1969 की फिल्म " अनजाना " का यह खुबसूरत गीत आप भी एक बार सुनकर देखे तो जरा ... मानव मन की बारीकियों और निसर्ग का प्रवाह जैसे कई कही अनकही बातों को हौले से कह जाता हैं ... राजेंद्र  कुमार साहब और बबिता जी का गीत की मांग के अनुरूप अभिनय कमाल का प्रभाव बनाता हैं ... आनन्द  बक्षी जी का सुन्दर गीत ... और लक्ष्मीकांत - प्यारेलाल जी का संगीत सदा की तरह प्रभावी हैं ही ... ।


रिम झिम के गीत सावन गाये , हाय भीगी भीगी रातों में ।

होठों पे बात जी की आये , हाय भीगी - भीगी रातों में ।।

तेरा मेरा कुछ है नाता , बड़ी वो , ये घटा घनघोर है ।
चुप हूँ ऐसे , मैं कह दूँ कैसे , मेरा साजन नहीं तू, कोई और हैं ।।

के तेरा नाम, होठों पे , मेरे तेरे , सपने मेरी आँखों में । 
रिम झिम के गीत सावन गाये , हाय भीगी भीगी रातों में ।।

मेरा दिल भी , है दीवाना , तेरे नैना भी हैं नादान से । 
कुछ ना सोचा , कुछ ना देखा , कुछ भी पूछा ना इक अनजान से ।।

चल पड़े साथ , साथ हम कैसे , कैसे , बनके साथी राहों में ।
रिम झिम के गीत सावन गाये , हाय भीगी भीगी रातों में ।

बड़ी लम्बी जी की बातें , बड़ी छोटी ये बरखा की रात, जी ।
कहना क्या है , सुनना क्या हैं , कहने सुनने की अब क्या है बात , जी ।। 

बिन कहे , बिन सुने , दिल ने, दिल से कर ली बातें , बातों में । 
रिम झिम के गीत सावन गाये , हाय भीगी भीगी रातों में ।।