शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

टोपी की कहानी …


          टोपी के बाहरी किनोरो पर कुल जमा छह सात इंच की जगा , इतनी महत्त्व की हो जायेगी कभी सोचा भी नहीं था। टोपी की सीधी सपाट किनोर ने पगड़ी और साफों की सलवटों वाली दिखावटी सतह को दोयम दर्जे का साबित कर दिया हैं।

           और जब यह किनोर गांधी टोपी सी उजली और सफ़ेद हो तो फिर क्या कहने, इस पर कुछ भी लिखो , टीवी और मिडिया के घूरते कैमरों, चेहरो के हाव भाव- से अंदेशो के संदेशे और सूचनाओ का घालमेल परोसते मिडिया घरानो के भी शोषण का इंतेजाम आसानी से बिना प्रयास हो जाता हैं। 

इसे कहते है " तू चेहरे- चेहरे, मैं टोपी- टोपी "


         आओ हम जाने की यह टोपी जो आजकल फिर चलन में हैं वह और किसी कारण नहीं , बस टोपी के बाहरी किनोरो पर दोनों तरफ शर्तिया हासिल कुल जमा छह सात इंच की जगा के उपयोग की असधारण सुविधा के कारण ही हैं।

        म.गांधी ने फिर क्यूँ टोपी पहनी और लोगो ने उनका अनुसरण किया यह भी जाने , म. गांधी साफों और पगड़ियों के खर्च और उनकी सामाजिक स्थितियों से वाकिफ थे , और भारत को अंग्रेजी हेट की तरफ जाने से रोकना भी चाहते थे , और इतना ही नहीं वे भारतीय सर पर एक प्राकृतिक ताज भी देखना चाहते थे , जो गर्मी में सर को ढंके भी और मान सम्मान तथा सादगी को भी दर्शाये। 

          बाद के दिनों में म. गांधीज ने इस टोपी को भी अलविदा कह दिया और वे वक्त- जरुरत अपनी दो गज की सफ़ेद धोती को ही बड़े सहज तरीके से सर का ताज भी बना लिया करते थे। 

                                                                    बापू, तुम फिर आना मेरे देश !!!