सोमवार, 23 जनवरी 2012

बन्दे में था दम ...

बन्दे में था दम ...



                             
                     जाग्रति फिल्म का यह गीत प्रदीप साहब की लिखी एक नायाब रचना हैं ... आजकल देखने में आ रहा है  की गाँधी का नाम लेकर या उनकी तस्वीर के आगे बैठकर लोग गाँधी-वाद  के नाम पर घेराव,  दुरागाह  तथा सद्भावना की जगह दुर्भावना को देकर भारी अविश्वास को बढावा देते हैं  ... यूँ प्रतीत होता हैं की उन्हें तो बस उनके नाम का सहारा चाहिए ... अहिंसा के सिद्धांत से उनका दूर-दूर का भी नाता नहीं ... अहिंसा का इस्तेमाल आन्दोलनों में करते समय जिनसे वे घृणा करते हैं उन्हें कोसने या उन पर कीचड़ उछालने में ( वैचारिक हिंसा )  जरा भी  देर या कोताही नहीं करते ... कीचड़ इस हद तक उछाला जाता हैं की उनके संपर्क में आ रहा युवा गुमराह होकर अहिंसा के हथियार को हिंसा की म्यान में रखा हुआ पाता हैं .... फैसला नहीं कर पाता की वह क्या करें ... गाँधी जी पर उसकी जानकारी बस मंच से मिल रही बातों तक ही सिमट कर रह जाती हैं  ... दो - चार -मिनट आज के युवा से बात करें तो पाते हैं कि वह अपनी तरह के  गाँधी-वादियों के साथ खड़ा तो हैं पर अहिंसक आन्दोलनों में साधनों की पवित्रता के महत्त्व से वह कितना अनजान है / हिंसा का मतलब आज के युवा के लिए सिर्फ मारपीट तक ही सिमट कर रह गया है ... वैचारिक हिंसा की बारीकियों से उसका परिचय भी कैसे हो ... उसके सामने कहीं कोई मिशाल ही नहीं ...कहीं कोई उदाहरण ही नहीं /

                                                अंग्रेज बंदूकों से लडाई में माहिर ही नहीं थे उनके पास सालों- साल तक लड़ने की अंतहीन तैयारी भी थी ... पर बन्दुक के आगे निहत्तों से कैसे लड़ा जाएँ इस बात की उनकी न तो कोई तैयारी थी ... न अनुभव / बस यहीं वे पिछड़ने लगें ... गाँधी जी मानते थे की  " अपराध से तो घृणा की जाय पर अपराधी से कदापि नहीं " ... इस बात अमल करते हुए गाँधी जी ने अपनी कथनी और करनी  की समानता से अंग्रेजों का हाल बेहाल कर दिया ... वे समझ ही नहीं पाए  ... उनकी अजीब ठब की लढाई की करामात का लोहा सदियों तक दुनिया भुला नहीं पायेगी ... गाहे-बगाहे उनकी भूरी-भूरी प्रसंसा आये दिन सुनने में आती ही रहती है ... गाँधी जी ने कभी प्रचार प्रसार को या भीड़ को महत्व  नहीं दिया .. कवी प्रदीप साहब ने बड़ी सुन्दरता से गाँधी जी जैसे विशाल व्यक्तित्व को शब्दों में ढाला हैं ... गीत सुनते हुए ... विचारों को चलने दे ...




दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल 
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल 

आंधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल 
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल .. 

धरती पर लड़ी तूने अजब ढब की लढाई 
दागी कहीं तोप  न  बन्दुक  चलाई

दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई
वाह  रे फ़क़ीर खूब करामात दिखाई 

चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल 
 साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ..

शतरंज बिछाकर यहाँ बैठा था ज़माना 
लगता था के मुश्किल हैं फिरंगी को हराना 
टक्कर थी बड़े जोर की दुश्मन भी था दाना 
पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना 
मारा वो कस के दांव तो उलटी सभी की चाल 
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ..

जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े 
मजदुर चल पड़े थे और किसान चल पड़े
हिन्दू व मुसलमान सिख पठान चल पड़े
कदमों पे तेरे कोटि-कोटि प्राण चल पड़े 
फूलो सेज छोड़ दौड़ पड़े जवाहर लाल 
 साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ..

 मन में थी अहिंसा की लगन तन पर  लंगोटी 
लाखों में घूमता था लिए सत्य की सोंटी ... 
वैसे तो देखने थी हस्ती तेरी छोटी ... 
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी "
दुनिया में तु  बेजोड़ था, इन्सान बेमिसाल ..
साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल ... 
जग में कोई जिया है तो बापु तु ही जिया ...
तु ने वतन की राह पे सब कुछ लुटा दिया ..
माँगा न कोई तख़्त न कोई ताज ही लिया ..

अमृत दिया सभी को मगर खुद जहर पीया 
जिस दिन तेरी चिता  जली रोया था महाकाल 
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल 
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल 
रघुपति राघव राजा राम ...


                                          एक तरफ जब आज का युवा,  गाँधी को आज के माहौल में खोजता हैं ... वह थोड़ा अपना स्वयं का अध्ययन गाँधी जी विषय में बढाये ... न की दूसरों की गायों को चराने का सा काम करें ... निश्चय ही वह बड़ी उर्जा और ताजगी पायेगा ... और गाँधी को जैसे-जैसे जानता जायेगा ... कुछ नहीं खोएगा ... हर बार नयी सकारात्मक उर्जा से ओतप्रोत हुए बिना नहीं रहेगा ... भला हो !!! 


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रविवार, 22 जनवरी 2012

कहीं तो मिलेगी ..!!

कहीं तो मिलेगी ...
    



                     जीवन में आशा-निराशा का आना- जाना लगा रहता है ... जीवन की गाड़ी कभी उबड़-खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाती है तो कभी सपाट सड़क पर सरपट दौड़ती है ...  कभी पतझड़ से सामना होता है तो कभी सुन्दर दृश्यावली सामने होती है ... कभी तो जीवन की गाड़ी एक- एक इंच बड़ी मुश्किल से सरकती उसे धक्का भी लगाना पड़ जाता है ...और कभी हवा से बातें करती है / हर स्थिति में सम और प्रसन्न रहना ही " जीवन जीने की कला है " यह बात कहना निहायत आसान है पर व्यवहार में जब समता भावना उतरने लगे तभी माने की कल्याण की बात हुयी अन्यथा इस गीत के समाप्त होने पर एक शून्य-सा सामने खड़ा होगा /

                             १९६२ में बनी "आरती" फिल्म का यह खुबसूरत नगमा गीतकार मजरूह सुल्तान पूरी साहब की लेखनी का कमाल है ... लता जी की स्वरलहरिया  रोशन साहब की मौसिकी में सज कर पूरी ताकत से इस बात का एहसास कराती हैं की भाई निराश न हो जाना ... कभी तो मिलेगी ... बहारों की मंजिल राहें !

                                खैर ... रास्ते कैसे भी ही उनपर हम समता भाव लिए चलें तो चलें आखिर कैसे ? अगर यह बात मन में उठ रही हो तो मानो थोडा-सा और आगे हम समाधान की तरफ बड़ गए समझो  ... हाँ भाई अब भाग्य भरोसे कब तक बैठे रहोगे  ... हम हमारे मन की कई कमजोरियों को जो हमारी जिंदगी की गाड़ी की राह में हमेशा परेशानियाँ खड़ी करने से बाज नहीं आती जैसे ... साहस की कमी , अधीरता , विषमता के भाव , क्रोध , घृणा  इत्यादि  ... और जिन्हें हम भाग्य मानते है ...अब उनपर हम काबू ही नहीं पा सकते है वरन उनसे नितान्त छुटकारा भी संभव है ... और इसी उपाय का नाम हैं विपश्यना ध्यान साधना ... जो भगवान बुद्ध की एक अनुपम खोज है ... और आज उसी शुद्धतम रूप में उपलब्ध है ... अधिक जानकारी के लिए www .vridhamma .org . लॉग ऑन करें !! मंगल हो !!!




शनिवार, 14 जनवरी 2012

मन सबका आधार ...!!!

मन सबका आधार ...!!





                                     मारी फिल्मों का विशाल संसार,  सागर के किनारे बसा है ... और फिल्म संसार में संगीत का विशाल भंडार है ... अनेकों अनमोल कृतियाँ हैं ... कई अनमोल रचनाएँ तो अप्रतिम हैं ... ऐसे ही एक फिल्म " काजल " का यह भजन ...  " तोरा मन दर्पण कहलायें ..."  एक बार सुनो तो मन सारी थकान भूल तरोताजा हो उठता हैं / मीना कुमारी जी का सदाबहार और सहज अभिनय, आशा जी की झरने- सी कलकल आवाज इस गीत को चार चाँद लगाती है  /

                              सच ही तो हैं ... मन से बड़ा न कोय ... एक उजला मन किस कदर संसार के जन-मानस पर छा सकता हैं ... इस बात के हमारे सामने अनेकों उदाहरण हैं ... और हम हैं कि इस दर्पण पर जमी धुल को साफ करने का कोई प्रयत्न ही नहीं करते और न ही कोई उपाय होगा ... इस बात पर विचार करते हैं !!!  ... बस अनवरत खुद को खरा साबित करने के ओछे प्रयास में दूसरों पर कीचड़ उछाल कर यह प्रार्थना करते हैं कि  .. हे भगवान हमें उजला कर ... ज्ञान दे ... शरण दे ... और जैसी करनी वैसी भरनी के अटल नियम का  गाहे- ब -गाहे बस मखौल उड़ाते हैं / 

                         हम सबको एक मसीहा की तलाश रहती है ... इधर-उधर कोई मिला नहीं कि बस उसके भरोसे सारे झगड़े छोड़ संसार की उहापोह से दूर चैन की नींद निकालने में देरी नहीं करते हैं ...  मन से कोई बात छुप नहीं सकती ... यह हम सब समझते हुए भी खुद को ठगने के उपक्रम में ताउम्र लगे रहते हैं  ... कब हम मनरूपी  अनमोल धन की  रक्षा के उपायों में अपने आप को झोकेंगे ... संसारी क्षेत्र में उन्नति के लिए  ईमानदारी, सदाचार , शिष्टाचार , मानवता , करुणा , दान , मन पर नियंत्रण का अभ्यास और मन की सफाई कितनी जरूरी हैं सब जानते हैं ... पर इन पर कितना अविश्वास हैं ...  बेईमानी , अनाचार, भ्रष्टाचार , पशुता  , घृणा , लुट , नशे-पते , और मन पर कालिख पोतने के उपायों की मार्केटिंग जोरों पर हैं /

                      भगवान बुद्ध की वाणी यहाँ हमारा मार्ग बड़ी खूबसूरती से प्रशस्त करती है ....उनके उदगार हैं .... " शत्रु शत्रु की अथवा बैरी बैरी की जितनी हानि करता है, कुमार्ग पर लगा हुआ मन उससे ( कहीं ) अधिक हानि करता है " ....... " जितनी ( भलाई ) न माता पिता कर सकते हैं , न दुसरे भाई -बंधु , उससे ( कहीं ) अधिक  भलाई सन्मार्ग पर लगा हुआ मन करता है "

                     अब इस गीत को प्ले किया हैं तो भाई ६ मिनिट ही तो लगेंगे ... इसे पूरा होने दे ... और थोडा सोंचे तो सही ...शायद बात बन जाये ... भलाई का राजमार्ग हाथ लग जाये /
                      
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शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

दो दिल टुटे ..!!

दो दिल टुटे ... !!!



                      कैफी साहब का लाजवाब तराना  ... मदन मोहन साहब की लाजवाब मौसिकी .... लता जी का सात सुरों की अमराई में अकेला निकल पड़ना ... इस उदासी से भरे गीत को दिल की गहराइयों में सीधे उतार देते है ...मानव मन की उदात्त भावनाओं को वैसे तो किसी तरह लफ़्ज़ों में बयां करना निहायत दुरूह और नाजुक काम है ... पर कभी -कभी ऐसी घटनाएँ घट ही जाती है ...जब मानव मन उदासी के सागर में हिचखोले खाता है ... बहुत सीमित संभावनाओं के सहारे जीवन नैय्या लहरों की मर्जी के सहारे चलती है ... रुख हवाओं का जिधर का होता है उधर बहती है /

                            जिन्दगी का सफ़र कभी तो बड़ा अनुकूल ... तो कभी बड़ा प्रतिकूल जान पड़ता है ... सदियों से ये जमीं यह सब देखती आई है ...वहीँ जाने ...कहाँ के हैं ... किधर के हम हैं / चलते रहना ही तो राहगीर का नसीब हैं ... यही करणीय है ... यहीं कृत्य है /  प्रिया राजवंश का सधा हुआ ,  निर्मल सहज अभिनय गीत को बस दर्शनीय ही नहीं बनाता ... मन की संवेदनाओं की गहरी अभिव्यक्ति कर जाता हैं /  "  मैं ना रहूंगी लेकिन ... गूंजेंगी आहें मेरी गाँव में ... अब ना खिलेगी सरसों ... अब ना लगेगी मेहँदी पांव में......!!! " इन लाइनों के आते न आते प्रिया जी की सुनी आँखों का अपलक आसमान को निहारना एकसाथ जाने कितना कुछ कह जाता है ... यह उनके ही अभिनय के बूते की बात है /

ऐसी  स्थितियां जीवन में जब-जब आये... अकेला बिलकुल महसूस न कीजियेगा .. हाँ भाई ..   ध्यान करना सीखो ....अपनी  साँस को अपना मित्र बनाओ ...  वह साथ नहीं छोड़ेगा मरते दम तक ... .... खूब भला हो !!!

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बुधवार, 11 जनवरी 2012

बुद्ध मेरे इष्ट ... # स्वामी विवेकानंद



बुद्ध मेरे इष्ट ...                                          # स्वामी विवेकानंद 




            " एक हजार वर्षों तक जिस विशाल तरंग से भारत तरंगित रहा, सराबोर रहा उसके सर्वोच्च शिखर पर हम एक महामहिम को देखते है, और वे है हमारे शाक्यमुनि गौतम बुद्ध / उनके समय का भारत " विश्वगुरु " के नाम से भी जाना जाता था, उस समय सच्चे अर्थों में हमारे देश में शांति एवं समृद्धि का वास था / नैतिकता का इतना बड़ा निर्भीक प्रचारक संसार में दूसरा कोई नहीं हुआ, कर्मयोगियों में गौतम बुद्ध सर्वश्रेष्ठ है / 

              उनके उपदेश इतने सरल की राह चलने वाला भी उन्हें समझ जाय / उनमें सत्य को अति सरलता से समझाने की अद्भुत क्षमता थी / उनके पास मस्तिष्क और कर्मशक्ति विस्तीर्ण आकाश जैसी और ह्रदय असीम था / वे मनुष्यों को मानसिक और आध्यात्मिक बंधनों से मुक्त करना चाहते थे / उनका ह्रदय विशाल था, वैसा ह्रदय हमारे आसपास के अनेकों लोगों के पास भी हो सकता है और हम दूसरों की सहायता भी करना चाहते हों पर हमारे पास वैसा मस्तिष्क नहीं / हम वे साधन तथा उपाय नहीं जानते , जिनके द्वारा सहायता दी जा सकती हैं / परन्तु बुद्ध के पास दुक्खों के बंधन तोड़ फेंकने के उपायों को खोज निकालने वाला मस्तिष्क था / उन्हौने जान लिया था की मनुष्य दुक्खों से पीड़ित क्यों होता है और दुक्खों से पार पाने का क्या रास्ता है /



                                    वे अत्यंत कुशल व्यक्ति थे - उन्हौने सब बातों का समाधान पा लिया था / सारे जीवन वे दुःख - विमुक्ति का मार्ग जनता में बांटते रहे और लोंगों को अपने दुक्खों से बाहर आने के लिए प्रेरित करते रहे / उन्हौने हर किसी को, बिना भेद भाव के वेदों के सार की शिक्षा दी / सब मनुष्य बराबर हैं किसी के साथ कोई रियायत नहीं / वे समता के महान उपदेशक थे / वे कहते थे आध्यात्मिकता प्राप्त करना हर स्त्री-पुरुष का अधिकार है / 

                         उन्हौने निम्मतम व्यक्तियों को भी उच्चतम उपलब्धियों का अधिकारी बताया / उन्हौने हर किसी के लिए निर्वाण के द्वार खोल दिए / बुद्ध की बातें लोगों में बड़ी तेजी से फैलने लगी / ऐसा उस अद्भुत प्रेम के कारण हुआ, जो मानवता के इतिहास में पहली बार एक विशाल ह्रदय से प्रवाहित हुआ और जिसने अपने को केवल मानव मात्र की ही नहीं अपितु प्राणी मात्र की सेवा में अर्पित कर दिया - ऐसा प्रेम जिसने जीव-मात्र के लिए मुक्ति का मार्ग खोज निकालने के अतिरिक्त अन्य किसी बात की चिंता नहीं की / 

                             उस समय के भारतवर्ष में ( आज के बर्मा से अफगानिस्तान तक तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक ) करोड़ों लोगों उनके बताये मार्ग पर चलकर अपना मंगल साधा था / बुद्ध ने कहा - " ये सारे अनुष्ठान और अन्धविश्वास गलत है, जगत में केवल एक ही आदर्श है, सारे मोह ध्वस्त कर दो, जो सत्य है वही बचेगा ! बादल जैसे ही हटेंगे सूर्य चमक उठेगा ! सारे जीवन उन्हौने अपने लिए एक विचार तक नहीं किया / मत्यु के समय भी उन्हौने अपने लिए किसी विशिष्ठता का दावा नहीं किया / मैं आजीवन बुद्ध का परम अनुरागी रहा हूँ ..अन्य किसी की अपेक्षा मैं बुद्ध के प्रति सबसे अधिक श्रद्धा रखता हूँ - वे मेरे इष्ट हैं / "



                                  ( नोट :  जिस साधन, जिस उपाय " विपश्यना " की खोज बुद्ध ने की थी एवं जिसे लोगों में उदात्त चित्त और मुक्त हस्त से सारे जीवन बांटते रहे वही विपश्यना साधना आज अपने शुद्ध रूप में आचार्य श्री सत्यनारायण गोयनका जी के प्रयत्नों से उपलब्ध हैं / कहते है दुक्खों से विमुक्ति का अनमोल मार्ग कोई क्या मोल लेकर सिखाए ! अतएव इस विद्या को आज भी बिना किसी मोल के, बिना भेदभाव के उसी प्रकार सिखाया जाता है जिस प्रकार उस समय सिखाया जाता था / आज भी वही परिणाम आते है जैसे २६०० वर्ष पूर्व आते थे / विपश्यना के ये शिविर पुराने लाभान्वित साधकों के दान पर चलते है ..सबके मंगल के लिए ! सबके कल्याण के लिए !! )

                                                                                           ******* 

सोमवार, 9 जनवरी 2012

अब यहाँ से आगे ....


अब यहाँ से आगे .... साधन पवित्र हो !! 





                                    पिछले दिनों अन्ना जी की टीम टीवी पर सामने आई तो पता चला वो दो-राहे पर है   ...असमंजस्य की शिकार है ... और उन्हें जनता की मदद की दरकार हैं  / पहली बार तो लगा की शायद वे लोग गंभीर है ... पर फिर  टीवी चैनलों चलने वाली बहसों में उनमें पूर्वाग्रह,  दुराग्रह की हद तक नजर आया .. आक्रामकता अब उनकी  एक ऐसी बुराई बन चुकी है की उससे पीछा छुड़ाने में उन्हें बहुत वक्त लगेगा  ... अन्ना जी के स्तर के व्यक्तित्व के विकास के लिए उनकी टीम ने अपने अन्दर अब तक कोई प्रयत्न नहीं किया ... जब वे कहते है की वे टीम अन्ना है तो फिर अकेले अन्ना के भरोसे वे सब क्यों है ... उनकी ही यह घोषणा थी कि वे टीम अन्ना पर लगे आरोपों कि स्वतंत्र जाँच एक निवृतमान न्यायाधीश से करवाएंगे ... उसमें इतनी देर क्यों ? क्या सरकार की किसी भी देरी पर हल्ला मचाने में वे इतनी देर करते ? कथनी और करनी की  समानता से टीम अन्ना के सदस्य काफी दूर है ... जबकि अन्ना जी ने जितना जितना कहा वे करते रहे है ... यहीं पर आकर टीम अन्ना,  अन्ना को कमजोर कर देती है ... और यहीं कारण है की दूसरी पंक्ति में अभी कोई लीडर नहीं जो अन्ना के भरोसे पर खरा उतर सके / विनम्रता से भी काम बन जाते है ... शिष्टाचार से भी दुश्मन पर जीत हासिल हो सकती है ... घृणा को प्यार से जीता जा सकता है ... गाँधी की तस्वीरों के इतनी नजदीक रहकर भी वे अब तक नहीं जान पा रहे है / 


                   टीम अन्ना की बातें , उनका व्यवहार कितनी निराशा हमारे युवाओं के मन में भर रहा है ... कितनी घृणा वे करने लगे है हमारे लोकतंत्र के महत्पूर्ण स्तम्भ संसद से ...यह अगर युवा  वर्ग से जरा बात करें तो स्पष्ट होता है .... एक लोकपाल की खातिर जो की देर सवेर आएगा ही ... क्या इतनी घृणा फ़ैलाने की इजाजत हमें है ?  ... समझे लोकपाल तो आ जायेगा पर तरुणाई के मन में अन्दर तक फैलाती घृणा और निराशा मिटाने में कितने वर्ष लग जायेंगे ... उनकी बढती अधीरता उनका स्वभाव बन जाएगी ... फिर क्या उपाय होगा टीम अन्ना के पास ... जरा सोंचे तो सही / 


                  वे  चतुर  हैं जानते है की किसी को सुधारने की प्रक्रिया बड़ी कठिन हैं ... इसलिए शायद बड़ी सोंची समझी रणनीति के तहत उन्हौने " Support Anna " कहा ... जबकि  कहना  यह  चाहिए  था   " अन्ना  का  अनुसरण  करों  " पर  वे  जानते  थे  भीड़  कैसे  आएगी  क्योंकि  आसान  हल  हम  भारतीयों  को  खूब भाते हैं / 

                                                         
                                                            आज जब फिर से गाँधी जी ( Gandhi ) और उनके अहिंसक आन्दोलनों की हम केवल चर्चा ही नहीं कर रहे हैं ... उन पर चलकर भी देखा जा रहा है ... ऐसे में अगर दुसरें सुधर जाय... मैं तो ठीक हूँ ...की जगह सुधार की पहल पहले हमारी ओर से हो ...पर हाँ ... तर्क-शक्ति और उसके उपयोग में टीम अन्ना का कोई सानी नहीं है ... पर तर्कों से बहस जीती जा सकती है ... दिल नहीं ... . अभी कल कहीं से सुना कि " पहला पत्थर भ्रष्टाचारियों पर वो फेंके जिसने कोई पाप नहीं किया हो ... तब तो समाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज ही नहीं उठेगी "...एक हद तक सही है पर नकारात्मकता से भरी हुई है .... पर अगर इसे यूँ कहा जाये कि उस पर पहला पत्थर मारा जाय जो हमारे सबसे नजदीक हो ... तो शायद हमारी नज़र हम पर पहले पड़े क्योंकी सबसे नजदीक तो हमारे हम ही हुए ना ... फिर कैसे किसी पर पत्थर फेंकने की नौबत आयेगी ..और बरबस मन कचोटने लगेगा ...उठता हुआ हाथ रुक जायेगा तथा स्वयं सुधार का राजमार्ग खुल जायेगा /

                   अगर कोई कसम खाकर यह कहता है की मैं दूध का धुला हूँ तो उसके साथ जमाना खड़ा होता है ... ऐसे में अगर वहीं गच्चा खा जाता है तो मेरे भाई उसकी लडाई कमजोर हो जाती है ... उसके साथ खड़े लोग अवाक् रह जाते है ...एक बात और हमारी लड़ाई कोई दूसरा नहीं लड़ सकता, ना ही लड़  पायेगा, और वह लडाई है अपने अन्दर से भ्रष्टाचार को निकाल बाहर करना वह भी बिना दिन्डोरा पिटे .. क्योंकि हमारा कोई बुरा आचरण हो .. उसके पहले शिकार हम ही होते है ... !!   भगवान बुद्ध की वाणी " जैसे लोहे के ऊपर उठा हुआ मल ( जंग ) उसी पर उठ कर उसी को खाता है , वैसे ही मर्यादा का उल्लंघन करने वाले ( व्यक्ति ) के अपने ( ही) कर्म ( उसे ) दुर्गति की और ले जाते हैं    // धम्मपद // "

                   महात्मा गाँधी जी के जीवन की एक घटना... गाँधीजी प्रतिदिन सुबह एक चम्मच शहद,  निम्बू पानी के साथ लेते थे , अतः उनकी इस जरूरत का ध्यान उनके सहायक हमेशा रखते थे ... वे किसी समय यात्रा पर थे और उनके सहायक ने दो-चार दिन की जरूरत के हिसाब से शहद अपने साथ रख लिया ... यात्रा के एक दिन के बाद उन्हें फिर अगली सुबह शहद पानी मिला तो वे पूछ बैठे यह शहद कहाँ से आया ?  जवाब आया पिछले मुकाम से आगे और शहद लगेगा सोंच कर छोटी सी शीशी में शहद  का संग्रह कर लिया था /  महात्मा गाँधी संग्रह के खिलाफ थे .. उन्हौने तुरंत गलती को ठीक करने की ठानी और आगामी कई दिनों तक शहद का त्याग किया / जब गाँधी की तस्वीर के सामने ... गाँधी की विचार-धारा का मान नहीं बढेगा तो फिर क्या मिलेगा कोरे आदर्शवाद से !! गाँधी जी हमेशा अपनी छोटी से छोटी गलती को भी हिमालय जैसी बड़ी मानते थे और दूसरों की बड़ी से बड़ी गलती को भी मुआफ करने की अद्भुत क्षमता रखते थे /

                  अच्छा होता अगर टीम अन्ना अपनी गलती को सही गलत-तर्कों से सही साबित करने की जगह पूरी विनम्रता से कबूल कर लेती / परन्तु उसे अपनी साफ-धवल छवि की ज्यादा चिंता है ...  हम मानव हैं गलतियाँ होती रहेंगी, जब तक हमारे मन पर हमारा पूरा नियंत्रण नहीं हो जाता और हमारे अन्दर से सारी बुराईयाँ नहीं निकल जाती .. हमारा मन सद्गुणों से नहीं भर जाता / 
                 
                        जब कोई गाँधी जी की तस्वीर के आगे बैठकर विनम्रता और अहिंसा की बातें खूब करता है और उसके आचरण में वे जरा भी नहीं उतर पाती तो गलत सन्देश जाता है ... गौर करें की कई मर्तबा अंग्रेजों को जो तहजीब और शिष्टाचार में हम भारतीयों से अपने आप को कहीं आगे मानते थे ...उनको गाँधी जी  की विनम्रता और शिष्टाचार ने एक नहीं कई बार सोंचने और झुकने को मजबूर किया था / आज तो हमारे देश के ही नेताओं को जिनका योगदान सिरे से नकारा नहीं जा सकता ... उन्हें भी शिष्टाचार की सारी हदें पर करके जाने क्या क्या कहना एक सशक्त लोकपाल की खातिर जायज ठहराया जा रहा है ... गोया लोकपाल नहीं कोई अमृत माँगा जा रहा हो और यह दिखाया जा रहा है की केवल और केवल वे ही लोकपाल के सच्चे हिमायती है ....अरे उनकी सोंच सकरात्मक होती तो जन लोकपाल बनाते-बनाते ही उनके जीवन में उसका असर दिखाई देता ..ऐसा हुआ तो नहीं ना ?  ऐसा होता तो फिर आज यह कहने की जरूरत नहीं बचती की अगर हमसे कोई गलती हुयी है तो हमें सजा मिले ..यह हठधर्मिता की पराकाष्ठा है ... प्रजातंत्र में यह सब गाँधी जी के नाम पर ठीक नहीं !!!. जब तक सदाचार जीवन का एक अंग नहीं बन जाता ...तब तक समझे की कोई कानून काम नहीं करेगा ... जब तक स्वानुशासन का महत्व नहीं उजागर होगा ....?  
                 
                   टीम अन्ना अपनी इमेज की खातिर .. अपने ऊपर लगे दागों को साफ करने की जगह उन्हें ढकना ज्यादा पसंद कर रही है  ....पर इस उधेड़बुन में वह कई गलत पैमाने भी जाने-अनजाने हमारी युवा शक्ति के सामने रख रही है ...  इससे तो समाज में यही सन्देश जायेगा की भ्रष्टाचार हम करें तो कोई गम नहीं ...हम समाज सेवा भी तो करते है !!!    यानि भ्रष्टाचार से लड़ाई भ्रष्टाचार के साथ !!!  इससे युवा लोगों में एक निराशा की भावना फैलेगी .....इसीलिए शायद वह गाँधी को वह आज के माहौल में खोजते हैं ... और खोजते हैं ऐसी शख्सियत को जिसकी कथनी और करनी में समानता हो ...ऐसे में जब कोई गाँधी सदृश उनके सामने आता है तो वे क्रेजी होकर उसके साथ खड़े होते है ... देश की आज़ादी का आन्दोलन उन्हौने नहीं देखा .. पर देश की खुशहाली के लिए वे भी बहुत कुछ करने का जज्बा रखते है .. वे एक बेदाग और सशक्त नेतृत्व की तलाश में है ... और सौभाग्य से उनके सामने अगर ऐसा नेतृत्व उभर कर आगे आता है तो यह देश के लिए अप्रतिम अवसर होगा ...संभावनाएं बहुत है ... सबके मंगल के लिए ... सबके कल्याण के लिए ....!!! 
                                   
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शनिवार, 7 जनवरी 2012

हमारा खत .. गांधी का पता...!!!



हमारा खत .. गांधी का पता...!!! 



                       जनता जिस दिन नैतिकता को जीवन में उतारना चाहिए ऐसा सोचेगी और फिर सचमुच उसे जीवन में उतारने को अधीर हो उठेगी ... वह दिन हर एक के जीवन में मंगल के उदय का दिन होगा ... अभी यह धारणा बलशाली है की प्रचार से जनता तक पहुंचा जा सकता है चाहे नैतिक आधार कमजोर ही क्यों ना हो ... पर इस बात से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता की झूठा दिखावा .. बेमतलब के आडम्बर ... कोरे उपदेश ... अर्थहीन वादविवाद ... आरोप प्रत्यारोप ... सत्याग्रह के नाम पर दुराग्रह ... बेमतलब की अधीरता ...अंध-निंदा  इत्यादि का जीवन ज्यादा लम्बा नहीं हो सकता /
                            
                              महात्मा गाँधी जी की प्रसिद्धि और लगातार बढती लोकप्रियता तथा बिना किसी प्रयास के उनकी सर्वग्राहिता इस बात को पुष्ट करती है ... अब तो यहाँ तक देखने में आ रहा है की उनके धुर विरोधी भी उनकी तस्वीर अपने मंचों पर लगाने ही होड़ में कमतर नहीं ... अतः जो नेता सादगी पूर्ण हैं ... कथनी और करनी के महत्व को जानते है ... बोलने से ज्यादा करने में जिनका करने में विश्वास है ... कानून पर जिनका भरोसा है और उनके पालन को जो सुनिश्चित कर रहे है या करते है ... निस्संदेह भविष्य उन्हीं का है ... यही भारतभूमि की तासीर है /

                                  खरपतवार यहाँ उगती रहेगी पर फैलाव और विकास तो असली और सर्वहितकारी फसलों का ही होगा देखो न इस पोस्टकार्ड के पते को १९३० में गांधीजी की लोकप्रियता और सर्व जान्यता की कहानी कहता है जब प्रचार प्रसार के साधन कितने तटस्थ थे ... कितने कम थे ... प्रचार - प्रसार की तो कोई रणनीति  होती ही नहीं थी  ... फिर बस उनका नैतिक और अध्यात्मिक बल ही तो बचता है जो आज तक उनके अस्तित्व को कितना मजबूत आधार दे रहा है ... यह हमारे नेता जितना जितना समझेंगे उतने उतने अपने मंगल के साथ देशहित को आगे बढाएंगे ही ... यही बात धीरे धीरे फैलेगी ही !!

                                   इस  गीत की रचना कितनी पुरानी है ... फिर भी जैसे आज के हालातों का बयां कर रहा है .... उनके सत्याग्रह के कितने गलत और सतही मतलब निकले जा रहे हैं  ... घेराव की राजनीति ,  वैचारिक हिंसा और बिना सोंचे समझे आरोप प्रत्यारोप   और आक्रामकता का घालमेल कितनी चतुराई से किया जा रहा है / नयी पीड़ी जो गाँधी से प्रभावित है ...उन्हें गांधी जी को जानने के लिए स्वयं अध्ययनशील  होना होगा ... आजकल प्रसारित हर बात को,  हर आग्रह को कितना कितना वो सही है खुद नापे-तौले ... क्योंकि प्रचार-प्रसार के इस युग में कब आपकी झोली में नकली और दिखावटी सामान आ जाये... कौन अधीर है ? ... क्यों अधीर है ? ... अगर यह अगर ध्यान से देंखे ... थोडा धीरज से विचारें तो स्पष्ट होता जायेगा ही /
   

सोमवार, 2 जनवरी 2012

कितने दिन ?

कितने दिन ?


                                             


     देश में आजकल कुछ ऐसा माहौल बना दिया गया है की बस दो चार लोग ही बचे हैं जो देश की भलाई के बारें में बहुत कुछ कर रहे हैं ... और उनके साथ जो नहीं खड़ा हैं,  वे तो बस निरे निकम्मे हैं ... खासकर युआवों  का तो बस भरोसा ही उठा दिया गया हैं ...  चारों ओर असंतोष का एक जाल फ़ैलाने की कोशिशें बुरे मंसूबों के साथ बड़ी सफाई से जारी हैं ... किसी को कुछ और नहीं सूझ रहा है ... चलो जो होना हैं होकर रहेगा .... तब तक भाई इस गाने को थोडा सुने जरूर ... गजब की आशावादिता के दर्शन होंगे ... एक दुसरें के बीच बढती घृणा, अविश्वास पूरा नहीं तो थोडा कम जरूर होगा /

                                                         हेमा जी का अपना विशिष्ठ अंदाज ... गीत में सहजता के साथ सुखद भविष्य के प्रति आशान्वित होकर जीने के सन्देश का सम्प्रेषण एक निहायत अनमोल और दुर्लभ संयोग हैं .... . आनंद  बक्षी साहब की अप्रतिम रचना ...फिल्म " नया दौर " का यह गीत  सचिन  देव बर्मन साहब का संगीत से तराशा गया हैं ... बड़ी खूबसूरती से निराशा के माहौल से आपको निकाल कर एक खुशनुमा और उम्मीदों से भरे माहौल में लाकर कब खड़ा कर देगा ... पता नहीं चलेगा /


                                        सब ये मानेंगे ! ...जिंदगी पे सबका एक सा हक है !... सारी खुशियाँ सारे दर्द हम आपस में बराबर बाटेंगे ! .... इंसानी दुनिया की बुलंद तस्वीर बनाते है ... नया जमाना आएगा ! ... इसकी आश्वस्ति ... इस गीत के प्राण हैं .

                                           हम सकारात्मक होकर मेहनत का रास्ता चुने ... जितनी- जितनी  बार हम किसी काम के लिए दूसरों पर दोष लगाये ... उतनी - उतनी बार हम उस विषय पर समाधान भी पेश करें तो ... हमारे आरोप केवल निराशा के फैलाव को ही नहीं रोकेंगे !  ... आशा का अभूतपूर्व संचार भी करेंगे ! ... तब-तब नकारात्मकता के कारण चुक रही हमारी ताकत में इतना इजाफा हो चूका होगा की सहजता के साथ सफलता की और कदम बढने ही लगेंगे.

                             धीरे - धीरे गीत सवा तीन मिनिट में समाप्त होने लगता है ...पर पुरे दिन के लिए आप तरोताजगी से भर ही देगा  ... और हाँ अगर चाय पीते-पीते गाना सुन रहे हैं तो वह भी गीत सुनते - सुनते ख़त्म होने को आई होगी ... आपका दिन शुभ हो !!!