रविवार, 23 अक्तूबर 2011

फायनली वें आ रही हैं ...

फायनली वें आ रही हैं  ...

                         सुदूर देवलोक से लक्ष्मी जी भारत-भूमि के लिए उल्लू पर सवार होकर निकल पड़ी है ...  इस बार की यात्रा  से पहले उन्हौने भी पूरी तैयारी की ... अपनी टीम के कोर ग्रुप के  सदस्यों में से एक गणेश जी को स्थिति के आकलन के लिए १० दिनों का धुआंधार दौरा करवाया ... फिर लगे हाथ दुर्गा जी का भी ९ दिनों का दौरा करवा दिया  ...ताकि कोई कोर कसर न रहे /  तभी अचानक विघ्न संतोषी रावण  के आ धमकने से लक्ष्मी जी की यात्रा टलने वाली थी पर किसी तरह महिला मोर्चा ने करवा चौथ का अनसन करके डेमेज कंट्रोल किया /.......अब फायनली वें आ रही हैं /

                              लक्ष्मी जी की टीम के अहम्  सदस्य गणेश जी की सलाह पर इस बार वे धरती पर मंदी और महंगाई के चलते विशेष पैकज की घोषणा  भी करने वाली है ... पर भ्रष्टाचार के चलते गरीबों तक धन नहीं पहुंचा पाने की मज़बूरी के चलते पहले से ही धरती पर उनके कार्यकर्त्ता अन्ना और बाबा रामदेव ने नाना प्रकार के अनसन किये और भांति - भांति के   अस्त्र शास्त्रों का खुलेआम प्रदर्शन किया ... यहाँ तक की पुराने ज़माने की अचूक मिसाईल आमरण अनसन को भी झाड़ पोंछकर खूब चलाया /  उसी मिसाईल के बार-बार के धमाकों से परेशां होकर लक्ष्मी जी के कार्यक्षेत्र  भारत- भूमि की वर्तमान सरकार ने  आखिर भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कड़ा कानून बनाकर अगली ठण्ड तक लागु करने का तय कर लिया है /  धरती पर अन्ना की टीम के मंसूबों से भी आगे जाकर यह कानून केवल सरकारी कर्मचारियों तक सिमित न रहकर , निजी क्षेत्र  एवं गैर सरकारी सेवा संगठनों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी नजर गढ़ायेगा ... ताकि  कोई  कोर कसर  बाकि ना रहे ....  आखिर धन की देवी के उपासक तो सभी है ना ?

                                  हर बार की तरह इस बार भी लक्ष्मी जी ने यह कहा की सभी को उनकी योग्यता और कर्म फल के सिद्धांत से आगे जाकर कुछ भी दे पाना उनके वश में नहीं ... पर धरती पर बसने वाले उनके भक्त इस बात पर कान देने को तैयार नहीं ... वे धन की देवी लक्ष्मी को मनाने और प्रसन्न करने के यत्न करने लगे है ... लक्ष्मी जी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित हो इसके जतन वे खूब कर रहे है ... कई तरह की पूजा-पाठ, व्रत-उपवास और मुहूर्त निकले जा रहे है / वहीँ ऊपर आकाश से गणेश जी एवं माँ सरस्वती यह सब देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहे है ... वे दोनों खूब अच्छी तरह जानते है ... धन की देवी लक्ष्मी उन लोगों की व्यर्थ की कोशिशों में न कभी उलझी है न उलझेंगी /  गीता के कर्म के नियम को लक्ष्मी देवी खूब अच्छी तरह से मानती ही नहीं जानती भी है  ... फायनली वें आ रही है ... बाहर-बाहर से साफ-सफाई और दिखावा  भले करों ... पर अंतर साफ हो ..मन पर नियंत्रण रहे ... ये काम भी कर लो ... यहीं देखने फायनली वें आ रही है !!!!! 

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

अब यहाँ से आगे ....

अब यहाँ से आगे .... साधन पवित्र हो !! 





                                    पिछले दिनों अन्ना जी टीम सामने आई तो पता चला वो दो-राहे पर है   ...असमंजस्य की शिकार है ... और उन्हें जनता की मदद की दरकार हैं  / पहली बार तो लगा की शायद वे लोग गंभीर है ... पर फिर  टीवी चैनलों चलने वाली बहसों में उनमें पूर्वाग्रह,  दुराग्रह की हद तक नजर आया .. आक्रामकता अब उनकी  एक ऐसी बुराई बन चुकी है की उससे पीछा छुड़ाने में उन्हें बहुत वक्त लगेगा  ... अन्ना जी के स्तर के व्यक्तित्व के विकास के लिए उनकी टीम ने अपने अन्दर अब तक कोई प्रयत्न नहीं किया ... जब वे कहते है की वे टीम अन्ना है तो फिर अकेले अन्ना के भरोसे वे सब क्यों है ... उनकी ही यह घोषणा थी कि वे टीम अन्ना पर लगे आरोपों कि स्वतंत्र जाँच एक निवृतमान न्यायाधीश से करवाएंगे ... उसमें इतनी देर क्यों ? क्या सरकार की किसी भी देरी पर हल्ला मचाने में वे इतनी देर करते ? कथनी और करनी की  समानता से टीम अन्ना के सदस्य काफी दूर है ... जबकि अन्ना जी ने जितना जितना कहा वे करते रहे है ... यहीं पर आकर टीम अन्ना,  अन्ना को कमजोर कर देती है ... और यहीं कारण है की दूसरी पंक्ति में अभी कोई लीडर नहीं जो अन्ना के भरोसे पर खरा उतर सके / विनम्रता से भी काम बन जाते है ... शिष्टाचार से भी दुश्मन पर जीत हासिल हो सकती है ... घृणा को प्यार से जीता जा सकता है ... गाँधी की तस्वीरों के इतनी नजदीक रहकर भी वे अब तक नहीं जान पा रहे है /

                                                         
                                                            आज जब फिर से गाँधी जी ( Gandhi ) और उनके अहिंसक आन्दोलनों की हम केवल चर्चा ही नहीं कर रहे हैं ... उन पर चलकर भी देखा जा रहा है ... ऐसे में अगर दुसरें सुधर जाय... मैं तो ठीक हूँ ...की जगह सुधार की पहल पहले हमारी ओर से हो ...पर हाँ ... तर्क-शक्ति और उसके उपयोग में टीम अन्ना का कोई सानी नहीं है ... पर तर्कों से बहस जीती जा सकती है ... दिल नहीं ... . अभी कल कहीं से सुना कि " पहला पत्थर भ्रष्टाचारियों पर वो फेंके जिसने कोई पाप नहीं किया हो ... तब तो समाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज ही नहीं उठेगी "...एक हद तक सही है पर नकारात्मकता से भरी हुई है .... पर अगर इसे यूँ कहा जाये कि उस पर पहला पत्थर मारा जाय जो हमारे सबसे नजदीक हो ... तो शायद हमारी नज़र हम पर पहले पड़े क्योंकी सबसे नजदीक तो हमारे हम ही हुए ना ... फिर कैसे किसी पर पत्थर फेंकने की नौबत आयेगी ..और बरबस मन कचोटने लगेगा ...उठता हुआ हाथ रुक जायेगा तथा स्वयं सुधार का राजमार्ग खुल जायेगा /

                   अगर कोई कसम खाकर यह कहता है की मैं दूध का धुला हूँ तो उसके साथ जमाना खड़ा होता है ... ऐसे में अगर वहीं गच्चा खा जाता है तो मेरे भाई उसकी लडाई कमजोर हो जाती है ... उसके साथ खड़े लोग अवाक् रह जाते है ...एक बात और हमारी लड़ाई कोई दूसरा नहीं लड़ सकता, ना ही लड़  पायेगा, और वह लडाई है अपने अन्दर से भ्रष्टाचार को निकाल बाहर करना वह भी बिना दिन्डोरा पिटे .. क्योंकि हमारा कोई बुरा आचरण हो .. उसके पहले शिकार हम ही होते है ... !!   भगवान बुद्ध की वाणी " जैसे लोहे के ऊपर उठा हुआ मल ( जंग ) उसी पर उठ कर उसी को खाता है , वैसे ही मर्यादा का उल्लंघन करने वाले ( व्यक्ति ) के अपने ( ही) कर्म ( उसे ) दुर्गति की और ले जाते हैं    // धम्मपद // "

                   महात्मा गाँधी जी के जीवन की एक घटना... गाँधीजी प्रतिदिन सुबह एक चम्मच शहद,  निम्बू पानी के साथ लेते थे , अतः उनकी इस जरूरत का ध्यान उनके सहायक हमेशा रखते थे ... वे किसी समय यात्रा पर थे और उनके सहायक ने दो-चार दिन की जरूरत के हिसाब से शहद अपने साथ रख लिया ... यात्रा के एक दिन के बाद उन्हें फिर अगली सुबह शहद पानी मिला तो वे पूछ बैठे यह शहद कहाँ से आया ?  जवाब आया पिछले मुकाम से आगे और शहद लगेगा सोंच कर छोटी सी शीशी में शहद  का संग्रह कर लिया था /  महात्मा गाँधी संग्रह के खिलाफ थे .. उन्हौने तुरंत गलती को ठीक करने की ठानी और आगामी कई दिनों तक शहद का त्याग किया / जब गाँधी की तस्वीर के सामने ... गाँधी की विचार-धारा का मान नहीं बढेगा तो फिर क्या मिलेगा कोरे आदर्शवाद से !! गाँधी जी हमेशा अपनी छोटी से छोटी गलती को भी हिमालय जैसी बड़ी मानते थे और दूसरों की बड़ी से बड़ी गलती को भी मुआफ करने की अद्भुत क्षमता रखते थे /

                  अच्छा होता अगर टीम अन्ना अपनी गलती को सही गलत-तर्कों से सही साबित करने की जगह पूरी विनम्रता से कबूल कर लेती / परन्तु उसे अपनी साफ-धवल छवि की ज्यादा चिंता है ...  हम मानव हैं गलतियाँ होती रहेंगी, जब तक हमारे मन पर हमारा पूरा नियंत्रण नहीं हो जाता और हमारे अन्दर से सारी बुराईयाँ नहीं निकल जाती .. हमारा मन सद्गुणों से नहीं भर जाता / 
                 
                        जब कोई गाँधी जी की तस्वीर के आगे बैठकर विनम्रता और अहिंसा की बातें खूब करता है और उसके आचरण में वे जरा भी नहीं उतर पाती तो गलत सन्देश जाता है ... गौर करें की कई मर्तबा अंग्रेजों को जो तहजीब और शिष्टाचार में हम भारतीयों से अपने आप को कहीं आगे मानते थे ...उनको गाँधी जी  की विनम्रता और शिष्टाचार ने एक नहीं कई बार सोंचने और झुकने को मजबूर किया था / आज तो हमारे देश के ही नेताओं को जिनका योगदान सिरे से नकारा नहीं जा सकता ... उन्हें भी शिष्टाचार की सारी हदें पर करके जाने क्या क्या कहना एक सशक्त लोकपाल की खातिर जायज ठहराया जा रहा है ... गोया लोकपाल नहीं कोई अमृत माँगा जा रहा हो और यह दिखाया जा रहा है की केवल और केवल वे ही लोकपाल के सच्चे हिमायती है ....अरे उनकी सोंच सकरात्मक होती तो जन लोकपाल बनाते-बनाते ही उनके जीवन में उसका असर दिखाई देता ..ऐसा हुआ तो नहीं ना ?  ऐसा होता तो फिर आज यह कहने की जरूरत नहीं बचती की अगर हमसे कोई गलती हुयी है तो हमें सजा मिले ..यह हठधर्मिता की पराकाष्ठा है ... प्रजातंत्र में यह सब गाँधी जी के नाम पर ठीक नहीं !!!. जब तक सदाचार जीवन का एक अंग नहीं बन जाता ...तब तक समझे की कोई कानून काम नहीं करेगा ... जब तक स्वानुशासन का महत्व नहीं उजागर होगा ....?  
                 
                   टीम अन्ना अपनी इमेज की खातिर .. अपने ऊपर लगे दागों को साफ करने की जगह उन्हें ढकना ज्यादा पसंद कर रही है  ....पर इस उधेड़बुन में वह कई गलत पैमाने भी जाने-अनजाने हमारी युवा शक्ति के सामने रख रही है ...  इससे तो समाज में यही सन्देश जायेगा की भ्रष्टाचार हम करें तो कोई गम नहीं ...हम समाज सेवा भी तो करते है !!!    यानि भ्रष्टाचार से लड़ाई भ्रष्टाचार के साथ !!!  इससे युवा लोगों में एक निराशा की भावना फैलेगी .....इसीलिए शायद वह गाँधी को वह आज के माहौल में खोजते हैं ... और खोजते हैं ऐसी शख्सियत को जिसकी कथनी और करनी में समानता हो ...ऐसे में जब कोई गाँधी सदृश उनके सामने आता है तो वे क्रेजी होकर उसके साथ खड़े होते है ... देश की आज़ादी का आन्दोलन उन्हौने नहीं देखा .. पर देश की खुशहाली के लिए वे भी बहुत कुछ करने का जज्बा रखते है .. वे एक बेदाग और सशक्त नेतृत्व की तलाश में है ... और सौभाग्य से उनके सामने अगर ऐसा नेतृत्व उभर कर आगे आता है तो यह देश के लिए अप्रतिम अवसर होगा ...संभावनाएं बहुत है ... सबके मंगल के लिए ... सबके कल्याण के लिए ....!!! 

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

सत्य अकेला न पड़े !!

सत्य अकेला न पड़े !!
                       सत्य का रास्ता लम्बा होता है ...और असत्य का रास्ता कहीं नहीं पहुंचता ... सत्य अकेला सब कुछ नहीं है ... धीरज, पराक्रम, लगन, जागरूकता, और निष्काम सेवा, अहिंसा और मन पर नियंत्रण के साथ , मन के विकारों से मुक्ति का उपाय इसके ऐसे साथी है ...जिनके बिन सत्य अकेला पड़ जाता है /// अतः सत्य के रास्ते चलना अच्छा है .. अच्छा है धैर्य साथ रहे/
                   ...अच्छा है मन में लगन, जागरूकता और निष्काम सेवा का भाव रहे .. अहिंसा का लक्ष्य हो ... अधिक अच्छा है मन पर नियंत्रण रहे .. अच्छा है मन के विकारों से विमुक्ति का रास्ता हाथ लगे ... पर सबसे अच्छा है हम इस राज मार्ग पर चलने लगे ... सत्य का मार्ग एक जन्म नहीं .. कई कई जन्मों तक चलता रहता है ... छोटे मोटे पड़ाव ... आते रहेंगे !!!!!!!!!! मंगल हो !!!!! 

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

सदाचार बड़े तो दुराचार घटे ...

सदाचार बड़े तो दुराचार घटे ...


 
                                            जब  भी कोई समस्या सामने आये... उसका कोई ओर दिखे ना छोर तो जाने की समस्या बड़ी नहीं बल्कि छोटी हैं उसका समाधान बाहर नहीं बल्कि अपने अन्दर है...क्योकि हमारे मन का प्रमाद उस समस्या के लिए दूसरों को जिम्मेदार बताकर,  दया का पात्र बनकर एक कोने में पड़ा रहना ज्यादा पसंद करता है /  जैसे  खुद का यथार्थवादी आकलन करके सुधार की कोशिशों में तो उसका जैसे विश्वास ही नहीं रहा / यही कारण है की  दलाई लामा को भी भारत में व्याप्त बुराइयों ने एक हद तक हिला कर रख दिया ..वे कह गए की " भगवानों और देवतावों को सुबह शाम याद करने वाला हिन्दुस्तानी मानस इतना लाचार क्यों है कि वह अपने अन्दर व्याप्त बुराइयों कि ओर देखना ही नहीं चाहता "  /  निश्चित ही वे हमारे पुराने गौरवमयी तथा समृद्ध इतिहास के व्यापक परिपेक्ष में आज की परिस्थितियों को लेकर चिंतित थे /   उनका चिंतित होना इसलिए भी  हमें यह सोंचने के लिए बाध्य करता है कि कठोर कानूनों कि बदौलत दुनिया में कहीं भी महत्वपूर्ण बदलाव नहीं लाया जा सका है  / 

                                आज भारत के पास दुनिया का सारा उच्च कोटि का अध्यात्म होते हुए भी वो इतना बेअसर क्यों है कि मानव मन अपने अन्दर की बुराईयों से छुटकारा नहीं पा रहा है  ?   हमारे कर्म जैसे होंगे देर सबेर वैसे ही फल आना है ... कोई देवी,  कोई देवता , कोई पीर,  कोई फ़रिश्ता अच्छे बुरे फलों से हमें नहीं बचा सकते ... अगर हमारे कर्म बुरे होंगे तो नतीजे कोई नहीं बदल सकता ... पर हमने अपने आप को भुलावों में रखकर किसी की कृपा के इंतजार में,  हाथ पर हाथ रखकर एक ओर बैठे रहने को अपनी आदत बना लिया है /  धार्मिक ग्रंथों का पठन पाठन करके देख लिया, व्रत - उपवास करके भी देख लिया , तीज - त्यौहार भी मनाते ही जा रहे है...  पर क्यूँ हाथों से मन की  शांति फिसलती ही जा रही है ...इसलिए क्यों ना हम इस समस्या के  दुसरे पहलु पर भी गौर फरमाएं  ...राष्ट्र रूपी पेड़ को सुधारना हो तो उसकी जड़े जो एक-एक भारतीय के मन से सम्बन्ध रखती है क्या उस जड़ों का सुधार नहीं होना चाहिए ...आखिर कब तक हम पेड़ पर ऊपर-ऊपर से विषैले रसायनों  का छिडकाव करते रहेंगे ?  कब उसकी जड़ों की ओर ध्यान देंगे ? 

                            आज हम भ्रष्टाचार को कोसने में कोई कोताही बरतना नहीं चाहते ... कोई बरते तो वह हमें पसंद नहीं ... पर यहाँ थोडा सा रूककर सोंचे की सदाचार जो की भ्रष्टाचार की रामबाण दवा है ...का हम कब सेवन करेंगे .... हम इस बात को आज टाल सकते है ... पर सदाचार हमारे जीवन का हिस्सा बने इस बात को जितनी जल्दी हो सके हमें लागु करना चाहिए ... देखिये न एक भ्रष्टाचारी को भी हमेशा एक ईमानदार की ही तलाश क्योकर रहती है ... अतः स्वभावतः ईमानदार  बने ..   बनने का प्रयत्न करते जाय ...  मन में विश्वास जगाये ...  और इस बेवजह महत्व पा गयी बात  की  " ईमानदारी से पेट नहीं भरता .."  को अलग रख  सदाचार के पौधे को मन में विकसित होने के अवसर दीजिये तथा भरोसा रखे बेईमानी से ईमानदारी के फल कहीं अधिक मीठे होंगे /                        
                        

                    आजकल  जब भ्रष्टाचार से लड़ने कि एक मुहीम सी चल रही है ....  पर क्या वह अपने अंजाम तक पहुँच पायेगी जब तक एक एक भारतीय का मन लालच और अन्य विकारों से मुक्त होने को  लालायित ना दिखाई पड़े ... ख़ुशी की बात है कि आज हमें ऐसा रास्ता विपश्यना के रूप में उपलब्ध है जिससे हम अपने मन के विकारों में कमी लाकर उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकते है ....सबका मंगल हो !! 

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

" ईमानदारी से पेट नहीं भरता .." दशहरा मुबारक हो ...!!

  " ईमानदारी से पेट नहीं भरता .."   दशहरा मुबारक हो ...



                                ब  भी कोई समस्या सामने आये... उसका कोई ओर दिखे ना छोर तो जाने की समस्या बड़ी नहीं बल्कि छोटी हैं उसका समाधान बाहर नहीं बल्कि अपने अन्दर है...क्योकि हमारे मन का  प्रमाद उस समस्या के लिए दूसरों को जिम्मेदार बताकर,  दया का पात्र बनकर एक कोने में पड़ा रहना ज्यादा पसंद करता है /  जैसे  खुद का यथार्थवादी आकलन करके सुधार की कोशिशों में तो उसका जैसे विश्वास ही नहीं रहा / यही कारण है की  दलाई लामा को भी भारत में व्याप्त बुराइयों ने एक हद तक हिला कर रख दिया ..वे कह गए की " भगवानों और देवतावों को सुबह शाम याद करने वाला हिन्दुस्तानी मानस इतना लाचार क्यों है कि वह अपने अन्दर व्याप्त बुराइयों कि ओर देखना ही नहीं चाहता "  /  निश्चित ही वे हमारे पुराने गौरवमयी तथा समृद्ध इतिहास के व्यापक परिपेक्ष में आज कि परिस्थितियों को लेकर चिंतित थे /   उनका चिंतित होना इसलिए भी  हमें यह सोंचने के लिए बाध्य करता है कि कठोर कानूनों कि बदौलत दुनिया में कहीं भी महत्वपूर्ण बदलाव नहीं लाया जा सका है  / 


                                आज भारत के पास दुनिया का सारा उच्च कोटि का अध्यात्म होते हुए भी वो इतना बेअसर क्यों है कि मानव मन अपने अन्दर कि बुराईयों से छुटकारा नहीं पा रहा है  ?  आये दिन सम्प्रदायों में जैसी कड़ी होड़ सी दिखाई देती है ... धर्म को सामने रखकर हमारे नेता लोग अपनी राजनीति को चमकने की लगातार कोशिशें करते जा रहे रहे है ... भोली जनता जो नहीं समझाना चाहती की उसके कर्म जैसे होंगे देर सबेर वैसे ही फल आना है ... कोई देवी,  कोई देवता , कोई पीर,  कोई फ़रिश्ता  उसे नहीं बचा सकते ... अगर उसके कर्म बुरे होंगे तो नतीजे कोई नहीं बदल सकता ... पर जनता भुलावे में आ ही जाती है ...  धार्मिक ग्रंथों का पठन पाठन करके देख लिया, व्रत - उपवास करके भी देख लिया , तीज - त्यौहार भी मनाते ही जा रहे है...  पर क्यूँ हाथों से मन कि शांति फिसलती ही जा रही है ...इसलिए क्यों ना हम इस समस्या के  दुसरे पहलु पर भी गौर फरमाएं  ...राष्ट्र रूपी पेड़ को सुधारना हो तो उसकी जड़े जो एक-एक भारतीय के मन से सम्बन्ध रखती है क्या  उस जड़ों का सुधार नहीं होना चाहिए ...आखिर कब तक हम पेड़ पर ऊपर-ऊपर से विषैले रसायनों  का छिडकाव करते रहेंगे ?  कब उसकी जड़ों कि ओर ध्यान देंगे ? 




                             आज हम भ्रष्टाचार को कोसने में कोई कोताही बरतना नहीं चाहते ... कोई बरते तो वह हमें पसंद नहीं ... पर यहाँ थोडा सा रूककर सोंचे की सदाचार जो की भ्रष्टाचार की रामबाण दवा है ... जब तक एक-एक भारतीय के जीवन का अहम् हिस्सा नहीं बनेगा ... तब तक एक नहीं कई-कई जन -लोकपाल भी भ्रष्टाचार रूपी केंसर से हमें नहीं छुड़ा सकते ... हम इस बात को आज टाल सकते है ... पर सदाचार हमारे जीवन का हिस्सा बने इस बात को जितनी जल्दी हो सके हमें लागु करना चाहिए ... देखिये न एक भ्रष्टाचारी को भी हमेशा एक ईमानदार की ही तलाश क्योकर रहती है ... अतः स्वभावतः ईमानदार  बने ..बनने का प्रयत्न करते जाय ...  मन में विश्वास जगाये ...और इस बेवजह महत्व पा गयी बात  की  " ईमानदारी से पेट नहीं भरता .."   को अपने मन से निकाल दे ...वर्ना भ्रष्टाचार का विरोध केवल दिखावा साबित होकर रह जायेगा ...मान लो जोर जबरदस्ती  करके भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक  काबू पा भी लिया ... और जन मानस में सदाचार कैसे बड़े इसकी कोई  कोशिश ही नहीं की   ...सदाचार के पौधे को विकसित ही नहीं होने दिया  .... तो फिर पश्चिम के देशों जैसी हमारी हालत नहीं होगी ?   जहाँ पर भ्रष्टाचार तो अवश्य कम पाया जाता है ... पर  भावना शून्य और आपसी सद्भाव  से दूर वहां का समाज कैसे आत्मकेंद्रित और खुदगर्जी की हदे पर करता जा रहा है ...यह क्या कम चिंता का विषय है उनके लिए .... और हम उन पर हँसते है !   एक तरफ तो बुरे आचरण को दूर करने के प्रयत्न होते रहे और  दूसरी और सद्गुणों के  संवर्धन का  काम भी साथ-साथ चलता रहे .. तो सोने  पे सुहागा होगा ... सचमुच मंगल होगा !!!
                            
                                                 यह भी संभव है ...जन-लोकपाल जिस दिन से लागु होगा उस दिन को हम " भ्रष्टाचार विरोधी  दिवस "  के रूप में मनाने  में करोड़ों का भ्रष्टाचार  करने लगेंगे ....या करते हुए देखेंगे ....   देखिये न आज जो भी फल अन्ना हजारे पा रहे है ... उसमें आखिर उनकी ईमानदारी ही का सबसे बड़ा रोल है ... नहीं तो कौन पूछता उन्हें ?  ... कैसे हो पाता उनकी बातों का असर हम पर ?   कैसे वो टिक पाते  दूर तक इस लड़ाई  में ?... जरा गौर करें ... मन में उत्साह जागेगा ही ... अपने भले के लिए सबके भले के लिए !!! 
                           

                    आजकल  जब भ्रष्टाचार से लड़ने कि एक मुहीम सी चल रही है ....  पर क्या वह अपने अंजाम तक पहुँच पायेगी जब तक एक एक भारतीय का मन लालच और अन्य विकारों से मुक्त होने को  लालायित ना दिखाई पड़े ...ख़ुशी कि बात है कि आज हमें ऐसा रास्ता उपलब्ध है जिससे हम अपने मन के विकारों में कमी लाकर उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकते है ....सबका भला हो ...सबका मंगल हो !!!!!  

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

काश हम यूँ भी सोचकर देखे ...?

 काश हम यूँ भी सोचकर देखे ...?
                                               


" अंतिम आदमी को ध्यान में रखकर योजनायें सरकार बनाया करे "... सरकार ऐसी , सरकार वैसी ... क्या ३२ रूपये में एक आदमी का एक दिन का गुजरा हो सकता है ? ... जाने कितनी बातें आजकल चलने लगती है .... ( सावधानी से अगर आदमी चले तो यह मुश्किल जरूर है पर असंभव नहीं ... आज भी इंदौर में ९०० रूपये में २ वक्त का खाना एक नहीं कई भोजनालय पुरे महीने खिलाने का लेते है जो की ३० रूपये प्रतिदिन का ही होता है ... यहाँ विवाद ना हो .... केवल गुजारें की बात हुयी थी ...और उसका कितना  बतंगड़ बना ... वह और कमाना चाहे तो कोई रोक है भला )  ...  तो क्या ३२ रुपये भी कमाने की कोई जुर्रत न करे या न कमा सके ... तो सरकार उस आदमी की कई तरह से मदद करती है /   गरीब की वकालत करके हम वैचारिक तौर पर उसके साथ खड़े हो सकते है ... पर वास्तविक तौर पर तो उसका अधिकाशतः शोषण ही होता है ... उसके शोषण के लिए जहाँ हम जितने जिम्मेवार है ... वहीं वो स्वयं भी कम नहीं ... अगर यह ठीक नहीं होता तो आज कई ऐसे कई उदाहरण है जो गरीबी में रहकर बिना किसी मदद के ऊँचे उठे है ... और आज अनेकों ऐसे कई गरीब है जो सरकारी मदद के बारें में जागरूक नहीं ... या उसका बेजा इस्तेमाल करते है ... कई गरीब केवल लोगों की मदद की आस में टकटकी लगाये हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते है ... और कई गरीब अपने स्वाभिमान की खातिर बिना कोई मदद अपना जीवन संतोष के साथ बीता रहे है / 


                                         हम अपने कर्मों में सुधार करते जाएँ तो आगे अच्छे फल आयेंगे ही...  यह आश्वासन ... हमें कहीं और से नहीं बल्कि  " गीता " से ही मिलता है  ... जो अपनी मदद आप नहीं करता फिर खुदा भी उसकी मदद नहीं कर सकता / एक बाप की दो संतानों भी अक्सर एक सी नहीं बन पाती जबकि उनको एक सा परिवेश मिलता है / सरकारों  को कोसना बहुत आसान है ... और यहीं हम करते है ... पर लोगों को यह समझा पाना की अपने कर्मों के सुधार की कोशिश करते जाएँ  ... कठिन साबित होता है ... इसीलिए जब सरकार को कोसने के लिए कोई आगे आता है तो उस कोरस-गान में भले-बुरे सब तन-मन और यहाँ  तक की धन से भी जुट जाते  है ... क्योंकि यह सस्ता सौदा है ... तथा इसमें प्रसिद्धि खूब मिलती है ... या आजकल फेसबुक पर कहे तो  WOW , Good . Excellent  ऐसे कमेन्ट तुरंत मिल जाते है ....  भइय्या जी अगर बेईमान को कानून के डर से ईमानदार बनाया जा सकता ... डरा धमाका कर सबको ठीक किया जा सकता तो  फिर अनेकों  माता-पिता  जो बचपन से ही अपनी - अपनी संतानों को डरा धमका कर सुधाने की क्या कम कोशिश करते है ...और हम देखते है की कई तरह की कोशिशें करने के बाद भी थोड़े ही सुधार पाते है ... कई और बिघड जाते है ... कई डर से दब्बू बन जाते है ... कई मौका परस्त ... कई चालक और नौटंकी बाज .. इन्ही में से आगे जाकर कोई अन्ना ...  कोई सरकारी नौकर ...कोई अमीर ... कोई चालबाज ..कोई तमाशबीन ...कोई धोके बाज .... कोई सरकारों में जाता है ...कोई दल बनता हैं  ...और फिर एक मिला-जुला रूप हमारे सामने आता है ( कानून बने इसका विरोध नहीं...  पर कड़े कानून से ही सब  संभव हो पायेगा ? थोडा सोंच कर देखे .... कहीं यह चींटी को मारने में बन्दूक का इस्तेमाल तो नहीं साबित होगा ...  उसका दुरुपयोग.. कब और कैसे चालक और धूर्त  लोग करने  लगेंगे हमें इसका पता भी लगते लगते काफी देर हो जाएगी ... ऐसे अनेकों  उदाहरण है ) / 


                                        हम कर क्या रहे है ...दुसरे सुधार जाएँ मैं तो सुधरा हुआ हूँ ... कोई उन्हें सुधार दे ...मैं तो  सुधरा हुआ हूँ ...  यहीं मानते जा रहे है ... और ऐसी आवाज जब कोई पुरजोर तरीके से उठाता है तो वह हमें अपनी सी लगती है ..फिर शुरु हो जाता है सामूहिक रुदन और दूसरों को कोसने का काम ... कोई जरा सा ठहर कर यह सोंचने की जरूरत नहीं समझाता की आज जिसकी आवाज में हम अपनी आवाज मिला रहे है वो अगर ईमानदार है तो क्यों ... क्या उसे मौका नहीं मिला इसलिए या वह कानून से डरता है इसलिए ... थोडा रुककर सोंचे तो पाएंगे की वह निर्भीक है, वह स्वभावतः ही ईमानदार है .. इसलिए आज इन्ही दो गुणों की वजह से वह उचाईयों पर है ... अब सवाल यह उठता है की उसके अन्दर तो स्वभावतः ही सही अमुक अमुक सद्गुण है ... मुझमें नहीं ... तो मैं भी क्यूँ ना अपने अन्दर उन गुणों का विकास करने की कोशिस करने लगूँ ... किसी भी हस्ती के साथ खड़े होकर केवल शोर मचाने में ही हम साथ देंगे तो हमारी अपनी पहचान कहीं खो जाएगी ... अगर उसके गुणों को अपने अंदर उतरने की कोशिश करने लगेंगे ... सद्गुण हमारे आचरण में उतरेंगे ... तो हमारी अपनी पहचान भी बनती जाएगी ... यहीं हमारी कोशिश से औरों को भी प्रेरणा मिलेगी ... और उस हस्ती का सही वंदन होगा ...  पूजन होगा /   
        


                                        समय मिले तो विपश्यना ध्यान साधना के बारें में विचार करें ...यह साधना  विधि इस काम में हमारी बड़ी मददगार साबित होगी ... आज के नकारात्मक माहौल में विपश्यना एक क्रियाशील और प्रभावकारी रास्ता है ...विपश्यना एक वैज्ञानिक विधि है ... ..अन्धविश्वास से कोसो दूर है /  हमारे अन्दर घर कर गए बिन बुलाये मेहमान-रूपी  दुर्गुणों की बजह से ही हम अपनी विकास की वास्तविक क्षमताओं का दोहन नहीं कर पा रहे है ... ऐसे सभी  दुर्गुणों को सद्गुणों में बदलने की अद्भुत क्षमता रखती है विपश्यना ... यह हमें स्वावलंबी बनाती है ... और जिम्मेदार भी !!!   काश हम यूँ भी सोचकर देखे ...? अपने भले के लिए ... साथ साथ सबके भले के लिए !!!