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गुरुवार, 7 मार्च 2013

रेल और जेल में बीता आधा जीवन बापू का ...

                    गाँधी जी ने हमेशा अपनी यात्रायें रेलगाड़ी के तीसरे दर्जे में की ... उस समय और आज़ादी के बाद भी कई सालों तक हमारी रेलों में तीसरा दर्जा भी हुआ करता था .

               
     गाँधी जी को रेल यात्राओं के दौरान कई बार जागते हुए ही रातें गुजारनी पड़ती थीं ... .. क्योंकि तीसरे दर्जे में बैठने की जगह भी काफी मुश्किल से हासिल होती थी ... भीड़ मानों इस कदर होती थी ... जैसे भेड़-बकरियों को ठूस दिया गया हो .... म. गांधीजी के जीवन में रेल यात्राओं का सर्वाधिक महत्त्व रहा हैं ... अपने राजनैतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के आदेश पर रेल की यात्राओं से ही उन्हौने सारे देश के हालातों को समझा ... और हिदुस्तान की नब्ज को टटोला ...

             दक्षिण आफ्रिका से लौटने के बाद उन्हौने भारत में लगभग 11680 दिन गुजरे उसमें से लगभग 2338 दिन जेलों में और 2920 दिन रेलों में .... जो की उनके भारत में व्यतीत समय का लगभग आधा हैं . गांधीजी ने अपने तन को हमेशा एक चादर नुमा कपडे से ही ढंका . वह भी अपने हाथों बनी खादी का कपडा होता था .... .जिसे वे स्वयं धोते थे ... और बिना प्रेस किये ही धारण करते थे ....



 वे केवल एक बार अपेंडीसाईटीस के ऑपरेशन के लिए अस्पताल में भर्ती हुए थे ... बाकि समय अस्वस्थता की दशा में प्राकृतिक चिकित्सा से स्वयं भी ठीक होते रहे और अपने साथी आश्रमवासियों को भी ठीक करते रहे .... वे कहते थे मिटटी , पानी , हवा और धुप से की जाने वाली प्राकृतिक चिकित्सा भारत जैसे गरीब देश के लिए अधिक उपयुक्त हैं एवं निरापद भी ...