रविवार, 26 जून 2011

दुसरों पे जय से पहले... !

दुसरों पे जय से पहले... !




     दुसरों पे जय से पहले... ! खुद को जय करें ... यह गीत बरास्ता कानों के सीधा दिल में उतर जाता है.. भाव बहुत ऊँचें हैं.. मन की अति उच्च अवस्थाओं का चित्रण है.. सुनते सुनते ही मन एक तरह से सम्मोहित होकर .. समता और मुदिता की उचाईयों को सपने में जीता है.. यका-यक मन अति-बलशाली सा प्रतीत होता है..पर गीत समाप्त होते न होते मन मुरझाने लगता है.. एक शून्य-सा चारों और छा जाता है.. 

                थोडा ठहर कर सोंचे तो पाएंगे की यह सब किसी से माँगा जा रहा था.. एक झलक, एक सपना था.. एक जाल था जो हमारी तरफ फेंका गया था.. और शौक तो देखो उसमें फँस कर हम बहुत खुश हुए जा रहे थे.. पर अंत में निराश होने के आलावा हमारे पास क्या रह जाता है.. भेदभाव मन से कैसे दूर हों ? 

                    दोस्त गलती करें तो क्या हम माफ कर पाते है ? झूठ बोलते रहने की आदत कैसे छूटें ?.. तभी तो सच का दम भर पायें ! और तुक्का ये की दूसरों पे जय से पहले खुद को जय करें.. कैसे संभव हो ? .. मांगे तो मांगे किससे ?.. कौन देगा हमें ?.. कोई क्यों देगा ?.. हम कब मांगते-पन से बाज आयेंगें ? .. 

                 कैसे हो की हम अपने मालिक आप बन जाये.. महावीर, गौतम, ईशा और कबीर अपने आपे से आगे जाकर..मुक्त कहलाये.. खुद को जय कर पायें.. यह नहीं की ऐसे गीत हमारा भला नहीं करते.. करते है जी..हमारे मन में इच्छा जगाते है.. देखो ना मात्र गाना सुनकर सुकून आ जाता है, तो कितना सुकून मिलेगा जब हम खुद पर जय कर पाएंगे.. सोंच कर मन नाचने लगता है ! मन को और कोई नहीं, बस मन ही वश में कर सकता है.. मन पर छाई नकारात्मकता और बुराइयों की चादर को हमें ही हटाना होगा क्योंकि हमने ही तो उन्हें ओढा है !

                                                    मन की शक्ति कहीं मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में नहीं बल्कि मानव मन में ही निहित है और कुदरत ने हमें दे रक्खी है.. कुदरत को हमारी नादानी पर कितना अफसोस होता होगा की उसकी संतान कुँए के पास भी प्यासी है..और कातर कंठ से नादानी में मांगे ही जा रही है / मन की शक्ति जो हमारे अन्दर सुप्त अवस्था में है..बीज रूप में है..उसे हमें विकसित करना होगा..उसका संवर्धन करना होगा / 


                   हम महापुरुषों की वाणी में सुनते भी आये है यथा " जनि नानक बिन आप चिन्हे, कटे ना भ्रम की काई रे ", "Know Thyself", " मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास रे" इत्यादी / संसार में जो भी महापुरुष हुए कठोर तप द्वारा अपने मन की शक्ति को विकसित करके ही हुए..कहीं बाहर खोजने नहीं गए..और इसी शक्ति को अपने अन्दर खोजकर स्वयं मुक्त हुए और बड़े करुण चित्त से संसार को रास्ता बता गए / कोई भी महापुरुष मार्गदाता होता है, मुक्तिदाता नहीं ! आगे और स्पष्टीकरण कर गए की मुक्त होना, बुद्ध होना किसी एक की मोनोपली नहीं..मानवमात्र मन की इस शक्ति को अपने अन्दर खोज सकता है..शायद इसीलिए कहा गया है " हिम्मते मर्दा मददे खुदा " अगर अपने मन की गांठों को खोलने का काम विवेक और श्रद्धा के साथ करेंगे तो धर्म की सारी शक्तियां हमारी मदद करने ही लगेंगी /

                                                  भगवान गौतम बुद्ध ने छः वर्षो की दुष्कर तपश्चर्या के बाद यह घोषणा की थी की मैं मुक्त हूँ.. तथा मन पर विजय का सुख ही मुक्ति का सुख है.. निर्वाण की अवस्था में हूँ अर्थात अब कोई बाण नहीं कोई दुक्ख नहीं.. पर साथ ही साथ उन्हौने यह भी कहा की मैंने खोज लिया है, पा लिया हैं, सत्य को तथा सत्य तक जाने के मार्ग को ! और ऐसा कहकर वे चुप नहीं रह गए सारे जीवन लोगों को अत्यंत करुण चित्त से, मुक्त हस्त से दुक्ख-विमुक्ति का मार्ग बाँटते रहे, वे केवल नीति और आदर्शों की बातें कहकर नहीं रह गए, आदर्श कैसे जीवन में उतरें, कैसे चले सच की राह यही बताते रहे.. तब के भारत में उस समय लाखों-करोड़ों लोगों ने उनके बताये मार्ग पर चलकर अपना मंगल साधा.. आज सौभाग्य से उनका बताया मार्ग "विपश्यना ध्यान" हमें उपलब्ध है, उस पर चले तो वही लाभ आज भी होते है, जो आज से २६०० वर्ष पहले होते थे....!

गुरुवार, 23 जून 2011

" बुद्ध मेरे इष्ट "



" बुद्ध मेरे इष्ट "               स्वामी विवेकानंद 

                                " एक हजार वर्षों तक जिस विशाल तरंग से भारत तरंगित रहा, सराबोर रहा उसके सर्वोच्च शिखर पर हम एक महामहिम को देखते है, और वे है हमारे शाक्यमुनि गौतम बुद्ध / उनके समय का भारत " विश्वगुरु " के नाम से भी जाना जाता था, उस समय सच्चे अर्थों में हमारे देश में शांति एवं समृद्धि का वास था / नैतिकता का इतना बड़ा निर्भीक प्रचारक संसार में दूसरा कोई नहीं हुआ, कर्मयोगियों में गौतम बुद्ध सर्वश्रेष्ठ है / उनके उपदेश इतने सरल की राह चलने वाला भी उन्हें समझ जाय / उनमें सत्य को अति सरलता से समझाने की अद्भुत क्षमता थी / उनके पास मस्तिष्क और कर्मशक्ति विस्तीर्ण आकाश जैसी और ह्रदय असीम था / वे मनुष्यों को मानसिक और आध्यात्मिक बंधनों से मुक्त करना चाहते थे / उनका ह्रदय विशाल था, वैसा ह्रदय हमारे आसपास के अनेकों लोगों के पास भी हो सकता है और हम दूसरों की सहायता भी करना चाहते हों पर हमारे पास वैसा मस्तिष्क नहीं / हम वे साधन तथा उपाय नहीं जानते , जिनके द्वारा सहायता दी जा सकती हैं / परन्तु बुद्ध के पास दुक्खों के बंधन तोड़ फेंकने के उपायों को खोज निकालने वाला मस्तिष्क था / उन्हौने जान लिया था की मनुष्य दुक्खों से पीड़ित क्यों होता है और दुक्खों से पार पाने का क्या रास्ता है /



                                     वे अत्यंत कुशल व्यक्ति थे - उन्हौने सब बातों का समाधान पा लिया था / सारे जीवन वे दुःख - विमुक्ति का मार्ग जनता में बांटते रहे और लोंगों को अपने दुक्खों से बाहर आने के लिए प्रेरित करते रहे / उन्हौने हर किसी को, बिना भेद भाव के वेदों के सार की शिक्षा दी / सब मनुष्य बराबर हैं किसी के साथ कोई रियायत नहीं / वे समता के महान उपदेशक थे / वे कहते थे आध्यात्मिकता प्राप्त करना हर स्त्री-पुरुष का अधिकार है / उन्हौने निम्मतम व्यक्तियों को भी उच्चतम उपलब्धियों का अधिकारी बताया / उन्हौने हर किसी के लिए निर्वाण के द्वार खोल दिए / बुद्ध की बातें लोगों में बड़ी तेजी से फैलने लगी / ऐसा उस अद्भुत प्रेम के कारण हुआ, जो मानवता के इतिहास में पहली बार एक विशाल ह्रदय से प्रवाहित हुआ और जिसने अपने को केवल मानव मात्र की ही नहीं अपितु प्राणी मात्र की सेवा में अर्पित कर दिया - ऐसा प्रेम जिसने जीव-मात्र के लिए मुक्ति का मार्ग खोज निकालने के अतिरिक्त अन्य किसी बात की चिंता नहीं की / उस समय के भारतवर्ष में ( आज के बर्मा से अफगानिस्तान तक तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक ) करोड़ों लोगों उनके बताये मार्ग पर चलकर अपना मंगल साधा था / बुद्ध ने कहा - " ये सारे अनुष्ठान और अन्धविश्वास गलत है, जगत में केवल एक ही आदर्श है, सारे मोह ध्वस्त कर दो, जो सत्य है वही बचेगा ! बादल जैसे ही हटेंगे सूर्य चमक उठेगा ! सारे जीवन उन्हौने अपने लिए एक विचार तक नहीं किया / मत्यु के समय भी उन्हौने अपने लिए किसी विशिष्ठता का दावा नहीं किया / मैं आजीवन बुद्ध का परम अनुरागी रहा हूँ ..अन्य किसी की अपेक्षा मैं बुद्ध के प्रति सबसे अधिक श्रद्धा रखता हूँ - वे मेरे इष्ट हैं / "


                                    ( नोट : जिस साधन, जिस उपाय " विपश्यना " की खोज बुद्ध ने की थी एवं जिसे लोगों में उदात्त चित्त और मुक्त हस्त से सारे जीवन बांटते रहे वही विपश्यना साधना आज अपने शुद्ध रूप में आचार्य श्री सत्यनारायण गोयनका जी के प्रयत्नों से उपलब्ध हैं / कहते है दुक्खों से विमुक्ति का अनमोल मार्ग कोई क्या मोल लेकर सिखाए ! अतएव इस विद्या को आज भी बिना किसी मोल के, बिना भेदभाव के उसी प्रकार सिखाया जाता है जिस प्रकार उस समय सिखाया जाता था / आज भी वही परिणाम आते है जैसे २६०० वर्ष पूर्व आते थे / विपश्यना के ये शिविर पुराने लाभान्वित साधकों के दान पर चलते है ..सबके मंगल के लिए ! सबके कल्याण के लिए !! ) 

शुक्रवार, 17 जून 2011

हम सुधरेंगे युग सुधरेगा ...





              दूसरों को सुधारने के चक्कर में पहले हमें सुधरना पड़ेगा ... और हमें स्वयं अपने सुधार की कोशिश करना पड़ेगी ....ऐसा करके हम दूसरों पर कम और अपने पर अधिक उपकार करेंगे .... इस बात पर आओ दोस्तों सोचना शुरु करे ... एवं उस विधि की तलाश जारी करे जो हमारी स्वयं सुधार की ताकत को उजागर करे .. !
                
                  चिंता मत करो ... स्विस बैंक में रखा पैसा देर सवेर घर आ जायेगा पर उसके आने से पहले हम उसका सदुपयोग करने लायक हो जाये इसकी तैय्यारी करना भी तो जरूरी है ... ११ सदस्य जो लोकपाल के बनने वाले है .. उनकी ट्रेनिंग और खोज करना क्या कम कठिन काम होगा ... वो ग्यारह अगर एक मत नहीं हुए तो उन्हें कौन समझाएगा .. और उस समझाने वाले को कहाँ से लायेंगे ... अतः जरूरी है सभी सच्चे ह्रदय से अपना सुधार करने की सोंचे ... 

            काला धन नाम से ही काला है अगर हम मन से काले रहे तो कालाधन आते ही अपना असर दिखाना नहीं शुरु कर देगा ? काला धन भारत आये इससे पहले सबके अन्दर संतोष धन आ जाये तो सोने पर सुहागा नहीं होगा .. पूत सपूत तो क्यों धन संचय ..पूत कपूत तो क्यों धन संचय ...! 


               एक स्वर से हमें भ्रष्टाचार से लड़ना है .. किसी तरह हार नहीं मानना है .. पर साथ ही साथ स्वनिरिक्षण, आत्मनिरीक्षण की प्रक्रिया को जितनी जल्द हो सके शुरु कर देना चाहिए ! भ्रष्टाचार अकेला आदमी नहीं कर सकता .. यदि हमारे अन्दर धैर्य, साहस और सहनशीलता की बढोतरी हो सके तो भ्रष्टाचार का सहारा लेने की, उसे पालने पोसने की, उसे बढावा देने की जरूरत ही नहीं बचेगी /

             कोई सरकारी मुलाजिम अगर किसी काम को नहीं कर रहा हो और हम अगर थोड़ी देर भी उसके सामने धैर्य और सहनशीलता और उसके प्रति मैत्री भाव के साथ टिक जायेंगे तो वह ज्यादा खड़ा नहीं राह पायेगा ... यही तो गांधीजी ने किया .. उनके कई उदाहरण हमारे सामने है एवं विश्व उनकी इस क्षमता का कायल है ...हमारे लिए वे घर के जोगी के सामान है ... पर नहीं हमें अपने अन्दर इन उत्तम गुणों का विकास करना ही होगा.. 

                आज सौभाग्य से ऐसी विधि हमारे देश में उपलब्ध है जिसका उपयोग करके हम अपने अन्दर धैर्य, साहस, सहनशीलता, ईमानदारी, इत्यादि अतिआवश्यक गुणों का स्वभाविक विकास कर सकते है ... अपने भले के लिए .. और उसके बाद सबके भले के लिए ! काले धन और भ्रष्टाचार की बाहरी लडाई में हम तभी १०० % जीत

                हासिल कर पाएंगे जब उसकी जड़े जो हमारे सबके मनों में है उन पर भी वार हो .. जड़े सुधरेंगी तो पेड़ अपने आप हरा भरा हो जायेगा .. अतः सारा जरूरी काम चलता रहे ... सारी लड़ाईयां हम लड़ते रहे.. अगर हमारे मानस की कालस उजास में हम नहीं बदल पाए तो .. घोटाले, चोरी , लूट, एवं अनैतिक आचरण रूपी राक्षस रूप बदल बदल कर हमारे सामने आते रहेंगे ... एक बार थोडा रुक कर हम इस पर विचार करें .. आज के हालातों में यही करणीय है !