शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

...राम जाने कब !!



           हमारा देश अतियों का देश हैं ... बुराई का विरोध नहीं होगा ... तो फिर नहीं होगा अतियों तक खिचे चले जायेंगे हर बात को लेकर ... बुराई का विरोध होगा तो फिर आननफानन में इस काम को भी अतियों तक खींचे ले जायेंगे ... हर किसी बात पर दूसरों पर उंगलियाँ उठाना हो तो , कोसना हो तो वह भी अतियों तक .. 

                  नियम तोडना हो तो फिर वही अतियों तक ... नियम बनाना हो तो भी फिर अतियों तक ... अपने लिए सजाएं मांगना हो तो वह भी अतियों तक ... अपनी लालच के ऊपर हमें काबू पाना हो तो उसके लिए भी सख्त से सख्त जन लोकपाल ... 

                   भाई आखिर समझे... हम आपस में एक दुसरे को सुधारने के अंतहीन सिलसिले को स्वयं अपने सुधार के रस्ते के इलावा और किसी तरह ख़तम नहीं कर सकते ...  

                                अब महिलाओं के लिए परदे की बात , पहनावे की बात उठेगी तो फिर उसे अतियों तक ले ही जायेंगे ... कभी खुलेपन के नाम पर , कभी मानवाधिकार , कभी आक्रोश , कभी दमन , कभी शांतिपूर्ण प्रदर्शन , कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ही नाम पर  ... हर बात में लगभग हम संतुलन खो ही देते हैं ... 

                                कभी कभी अंदेशों के संदेशे हमारा प्यारा TV मिडिया  इस तरह देता है की समाचारों को वह भविष्य वाणियों  की शकल देकर बातों को बातों  बातों में  यूँ गोल गोल घुमाता है की सर चकरघिन्नी हो जाएँ  ... 

                               हम कहीं तो अपनी जिम्मेवारी भी समझे ...  कभी तो स्वयं पर नियंत्रण की अहमियत को स्वीकारें ... कभी तो इस दिशा में विचारे ...  

                            यूँ ही यह बात दिल में आज आ गयी की संतुलित व्यवहार कब हमारे जीवन का अंग  बनेगा ...राम जाने 

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

नए आन्दोलनों के बुजदिल नेतृत्व ...




                 क बात यह महसूस हुई की पिछले दिनों हुई कथित शांतिपूर्ण आन्दोलन को स्वस्फूर्त कहा गया ... जो की असंभव हैं ... हजारों लोग नियत समय पर , तय नारों के साथ ... एक से सामाजिक या आर्थिक परिवेश से  ... एक सी सोच वाले ...  एक से विरोध के तरीकों और वो भी केवल एक तय ग्रुप को निशाना बनाने वाले ... जरा पचता नहीं ... और फिर अपना मिडिया ... जो अचानक इतना सक्रीय और न्यूज़ के साथ अपने एक तरफा और नाजायज व्युव्स को बड़ी खूबसूरती से नेतृत्व की शक्ल देता हुआ नए अवतार में था ... बिना अदृश्य नेतृत्व के हुआ होगा ... जरा पचता नहीं !!  ... सारी  भीड़ किसी अदृश्य मगर बुजदिल नेतृत्व की शिकार नहीं थी ... बिलकुल जमता नहीं ... !!!

                                    गांधीजी ने भी आन्दोलन किया ... और लम्बे समय तक किया ... बिना मिडिया की किसी विशेष मदद के आग्रह के अपने बलबूते किया ... पर कभी भीड़ को उकसाया नहीं ... कभी पीछे नहीं रहे ...हमेशा  सामने रहकर ... जनता के बीच ... सारी  स्थितियों का खुद सामना करते हुए ... खुद जेल जाते हुए .. खुद लाठियां  खाते हुए ... जिसका विरोध कर रहे हैं उसके साथ अतुल्य शिष्टता का व्यवहार करते हुए .. अहिंसक रहकर ... शिष्ट और अनुत्तेजक नारों के साथ ... अपनी कथनी और करनी की गजब समानता के साथ किया ... तभी अंग्रेज सरकार भी अपने पास हिंसा के अकूत संसाधन होते हुए भी लाचार होती गयी ...बंदूकों के साथ  निहात्तों से कैसे  लड़ा  जाया ... इस बात की न तो उनके पास कोई समझ थी न ही तैय्यारी ... डराकर तो  वे सबको कंट्रोल करना जानते थे ... पर जिन्हें अभय का साथ हो उन्हें कैसे भयभीत किया जाएँ उनकी पहुँच और समझ से दूर की बात थी ... वे असहाय साबित हो रहे थे ... गाँधी जी जीतते जा रहे थे ... और सबसे बड़ी बात अंग्रेज भी इस लढाई से हार जरुर रहे थे ...पर नए और इंसानियत के अजूबे हथियार " अहिंसा " से विस्मित , चकित भी थे ... और इस हथियार की अचूक मारक क्षमता से उतने ही प्रभावित भी ..

                                  आजकल के इन आन्दोलनों को अहिंसक नाम दिया जाता हैं ... शांतिपूर्ण प्रदर्शन नाम दिया जाता हैं ... फिर भी इनके अदृश्य नेतृत्व छुपते क्यों हैं ... क्योंकि उनके मंसुबें भले नहीं होते वे बुजदिल ही हैं ... केवल देश में असंतोष फैलाना ... और स्थितयां बिघाड़ना ही उनका मकसद होता हैं ...और फिर कोई अगर बात करके समस्या के हल तक पहुँचाने के लिए बात करे भी तो किससे ... कोई तो सामने नहीं होता ... और भीड़ को पीछे से मिडिया के द्वारा लगातार अंदेशों के संदेशे दिए जाते हैं ... सारा कुछ भगवान् भरोसे ..

                               इससे होता क्या हैं ... नेतृत्व विहीन जोशीला युवा अपना कीमती समय और कभी कभी अपना कीमती भविष्य दांव पर लगा बैठते हैं ... किसी की रोटी सिक जाती हैं ...कोई बर्बाद हो जाता हैं ... और इन सबके बीच अदृश्य नेतृत्व और बुजदिल होता जाता हैं ... न कुछ मिलता,  ना मिलाता ... ग्लास  फोड़े चार रूपये अलग ..

                                  हमारे युवा अपनी सोच खुद विकसित करें ... अपने मुंह अपनी तारीफ करने वाले ... थोड़े से नैतिक बल ... और अपने त्याग का बखान करने वाले ... दूसरों को निरा निकम्मा और खुद को महान  देशभक्त कहने वाले ... लगतार दूसरों की तरफ उंगली  उठाने वाले ... अदुश्य नेतृत्व को पहचाने ... तभी संभव हैं देश में शांति और उन्नति हो , सौजन्यता हो  ... केवल कोर विकास नहीं विकास के साथ दिलों में प्रकाश भी हो ...

                                  एक बात और अभी के आन्दोलनों में अदृश्य नेतृत्व  किसी बुरे मनसूबे से काम कर रहा था इसकी इस बात से भी पुष्ठी होती हैं की हिंसा की शुरुआत होती दिखाई देने पर भी ... कभी उसकी निंदा या उसकी रोकथाम हो इस हेतु कोई आगे नहीं आया ... जबकि गांधीजी ने अपने आन्दोलनों में थोड़ी सी हिंसा को भी बर्दास्त नहीं किया और बिना इसकी परवाह किये की इतना सफल आन्दोलन फिर खड़ा करना कितना मुश्किल होगा अपने कदन बिना खौफ पीछे कर लिए ... वो केवल इसलिए की अहिंसा को वे केवल कथनी नहीं करनी का विषय मानते थे ... भला हो !!

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

" हम सुधारेंगे ...






हमारा देश एक सच्चा गणतंत्र है ... हर बार , हर विपत्ति से वो नया रास्ता ढूंढता है .. हर बार वो लड़खड़ाकर फिर चलने लगता है .. भली सोच वाले लोग हर पार्टी. हर दल में है ...गांधीजी ने आजीवन व्यवस्था का सम्मान करते रहे थे ... वे धीरज और विवेक से काम लेते थे ... किसी भी स्थिति में शार्टकट में वे भरोसा नहीं रखते थे ... अपराध से तो वे घृणा कतरते थे पर अपराधी के प्रति करुणामयी भाव रखकर उसे स्वयं सुधार की ओर प्रेरित और उत्साहित करते थे ... आज कल तो दूसरों पर ऊँगली उठाना फैशन बन गया है .... हम सुधरेंगे जग सुधरेगा की जगह बस " हम सुधारेंगे चल पड़ा है " .... 

आजकल आन्दोलनों का फैशन - सा चल पड़ा हैं ... नकली आन्दोलनों से युवा जुड़ता जा रहा हैं ... क्योंकि उसके मन में भी देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भरा हुआ हैं ... पर उसका दुर्भाग्य की वह किसी भले और परिपक्व नेतृत्व की जगह अब तक केवल मुंह-फट और अधीर और बदजुबान और गुस्सैल नेतृत्व के हाथों ही खेल रहा हैं ... इस तरह कानून को अपने हाथों लेने और व्यवस्था भंग करने के कारण हमारे युवा अकारण ही अपना भविष्य दांव पर लगा देते हैं ....


बुद्ध, महावीर , कबीर और नानक की यह भूमि सारी दुनिया को उजाला देती रही है ...विश्वास रहे .. फिर जन- जन का मन अधिनायक बन कर उभरेगा ... फिर लोग समझेंगे की उनकी भलाई किस बात में है .. भला हो

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

आपकी याद आती रही ...!!




स्मिता पाटिल जी की अदाकारी बेमिसाल थी ... क्योंकि उनका अभिनय और लुक एक आम भारतीय नारी के बहुत करीब था ... उनकी अभिनीत एक फिल्म " गमन " का एक खुबसूरत गीत , छाया गांगुली जी की आवाज में " आपकी याद आती रही रात भर .... " जब भी सुनता हूँ यूँ लगता हैं मन अँधेरी सुनसान सी गलियों के सन्नाटे में तैर रहा हैं ... और हर दरवाजे , हर मोड़ से यह गीत रह रहकर झांक रहा हैं ... 



             यादों का आना हो तो सबसे ज्यादा आँखों पर बीतती हैं ... कभी लगता हैं यादें दिये की लौ की थरथराहट पर , आँखें  की हर हरकत सवार हैं ... पर यादें तो होती हैं सुनी आँखों का तारा , जो चाँद की खोज में सारे  आकाश में उसे खोजती रहती हैं ... और आकाश बस टुकुर-टुकुर निहारता ही जाता  हैं ... 

          आसपास कोई आवाज नहीं भी होती फिर भी कान अपना काम बखूबी करते रहते हैं ... सुनते रहते हैं अनुसुनी आवाजों को ... आसपास कोई गंघ हो या ना हो , कमबख्त यादें पूरी शिद्दत से कोई परिचित सी मिठास भरी महक फिजाओं में बिखेर ही देती हैं ... तभी चश्में -नम हो जाएँ ... तो समझे यादें के आने का बखत हैं ... अब सुहानी यादों के झरोखों से सर्द हवाओं की तेजी बढे ... आओ चांदनी को जगमगाने दिया जाएँ ... 

             1980 का दौर फ़िल्मी दुनियां में सामानांतर फिल्मों के प्रयोगों का युग था ... जब आम प्रचलित मसाला फिल्मो की जगह इंसानियत से जुड़े किसी मसलें को लेकर कहानियों का जाल कुछ इस तरह बुन जाता था कि  फ़िल्में आम इन्सान के जीवन की झांकी विशेष गति से कुछ यूँ बयां करती थी की दर्शक और परदे के बीच  दुरी घट  कर बस हाथों से छूलो इतनी भर रह जाती थी ... कहानियां मन को हौले से छूकर निकल जाती थी ... फिल्म " गमन " एक मुम्बईया टेक्सी चालक की पीड़ा और जद्दोजहद का बड़ा संवेदन-शील चित्रण हैं ... फ़िलहाल सुने यह खुबसूरत गीत ... भला हो !!

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

क्योंकि हर एक भारतीय जरुरी होता हैं ...!!!

...क्योंकि हर एक भारतीय जरुरी होता हैं ....कानून और पुलिस अगर जीरो टालरेंस के स्तर पर काम करें तो क्या जुर्म ख़तम हो जायेंगे ... 

नहीं ....कभी नहीं ..??

अगर ऐसा होता तो दुनियां में जहाँ भी इस तरह की स्थितियां हैं ... वहां अपराध जीरो प्रतिशत हो गए होते ...

... नहीं होते ना ?

हाँ ...  हम सभी गलतियाँ क्यूँ करते हैं ... इस बात पर विचार आरम्भ करें ... और फिर अगर हमें इस बात का उत्तर मिल जाएँ ... और गलतियाँ करने के कारण का निवारण करने का रास्ता हाथ लगे ... तो कुछ बात जरुर बन जाएगी ... 

सच्चे  अर्थों में भारत " सोने की चिड़ियाँ " उसी दिन से बनना आरम्भ हो जायेगा ... और इस दिशा में एक-एक भारतीय का योगदान जरुरी हैं 

......क्योंकि हर एक भारतीय जरुरी होता हैं .


रविवार, 16 दिसंबर 2012

हम तो दिल से सलाम करते हैं ..




                                            देखो न ... सलाम करने से ज्यादा महत्त्व की बात यह हुई कि हम कैसे सलाम करते हैं ... सौ -सौ सलाम भी,  दिल से किये एक सलाम की बराबरी  नहीं कर सकते  ... सलाम करने की या किसी की सलामती की चाह दिल में किस कदर हैं ... उसी के अनुरूप सलाम का असर बदल जाता हैं ... जब-जब दिल में किसी की सलामती के भाव कमजोर हों ... और सलाम करना मजबूरी हो .. तो फिर शरीर को बड़ी मेहनत से सलाम को असरदार बनाना पड़ता हैं ... और यूँ करते हुए अकसर शरीर अकड़ने लगता हैं  ...
                                         
                                            इस तरह अकड़ के किया जाने वाला सलाम , सलाम करने वाले  के लिए वो शुभ फल नहीं ला पाता .. जिनकी उम्मीद की जाती हैं ...  अब कोई सलाम के उलटे असर को कितना ही कोसे बड़ा फर्क नहीं पड़ता ... खैर ऐसी  हालत में जो हुआ सो हुआ आगे सलाम दिल से ही करें वर्ना पासा पलटने में देर नहीं लगती ... और इस उहापोह में हमारा एक सलाम भी तो जाया हो जाता हैं ।

                                             सलाम नजर से करें, झुक - झुक कर करें, बार - बार करें , ऐसे  करें या वैसे करें ...  बस दिल से उठने वाली तरंगो पर ध्यान रहे ... मन के किसी कोने में जरा-सी भी अड़चन दिखे ... रंज दिखे ... तनाव -दुखाव दिखे ... दुर्भाव दिखे या दिखे मामूली - सी जलन ... तत्क्षण तनिक ठहर जाएँ ... और जिसे सलाम करना है ... उसके व्यक्तित्व पर विचार करें ... उसके किये किसी पूर्व उपकार पर नजर डाले ... उसके किसी सद्गुण पर ध्यान दे ... उनसे साथ रिश्तों की उर्जा को टटोले  ... यूँ करते ही मन सुगम हो जायेगा ... सरल होकर फिर ... सद्भाव से भर-भर उठेगा ... मन ही मन जिसे सलाम करने जा रहे हैं उसे सलाम करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि .... मन में अब सुगमता हैं ... उत्साह हैं , सुख हैं , सद्भाव हैं , शीतलता हैं ... अब बस गर्मजोशी से मन में सद्भाव जगाते हुए ... सलाम करें ... और सलाम के नतीजे के बारें में सलाम के असर होने तक भूल जाएँ ...  और अनासक्त भाव ओढ़े अपने काम से काम और राम से राम रखे ... अबके असर होकर रहेगा ...

                                             देखना जवाब में सलाम फिर सलाम की शक्ल में ही लौटेगा ... और सद्भाव के भाव वातावरण में ठीक वैसे ही और बढ़-चढ़  कर तैर जायेंगे जैसे हमने सलाम करते समय मन में धारण किये थे। ........... भला हो !!!

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

" आधार " हर नागरिक का अधिकार ....

               भारतीय गणतंत्र अपनी कई विशेषताओं के लिए जाना जाता हैं ... उनमें सबसे बड़ी खूबी हैं ... अनेक मत मतान्तर , अनेकों सम्प्रदायों , पन्थो और मान्यताओं , जाति - बिरादरी , उंच - नीच की तमाम विषमताओं के बीच सबका मिलजुलकर रहना और केवल साथ रहना ही नहीं ... साथ साथ भौतिक और आध्यात्मिक विकास की राह पर भी चलते जाना  ... किसी आश्चर्य से कम नहीं ... परन्तु सब सम्भव हुआ हैं , भारत के पुनः उदय में छुपे किसी अति शुभ की उम्मीद के रहते ... भारतीय गणतंत्र दुनिया को की फिर उसी तरह रहनुमाई करने के मंगल पथ पर अग्रसर हो रहा हैं, जिस तरह पूर्व में वह विश्वगुरु के पद पर आसीन था  ... इस लाजवाब सम्भावना को संभव करने के लिए ही देश तेजी से करवटें बदल रहा हैं ... इस अति महत्त्व के तथ्य को नजरअंदाज कर हम भारतीय गणतंत्र की भूमिका का सही आकलन नहीं कर सकते हैं ।

                       उस शुभ की आहट  ... उस मंगल की अनुगूँज हमें हमारे राष्ट्र गीत में बखूबी सुनाई देती ही हैं ... गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगौर का कोमल और अतिसंवेदनशील मन उस शुभ की , उस मंगल की आहट को बखूबी सुन और देख पा रहा है   ... तभी वे कह पड़ते हैं ... " तव शुभ नाम जागे ... तव शुभ आशीष मागे ... गाहे  तव जय गाथा ... जन-गण-मंगलदायक जय हे  ... "

                      अब तक इस शुभ की आगवानी में एक-एक कर कई कड़ियाँ जुड़ती गयी है ... सबसे पहले हमारे गणतंत्र का संविधान कुछ यूँ बना की उसमें सबको समानता के स्तर पर लाकर हर तरह की अभिव्यक्ति और मान्यता को मानने की भरपूर आज़ादी देकर इंसानियत के कुदरती विकास को मानो  पंख ही लगा दिए  ... आज तमाम विश्व हमारी इस अनेकता में एकता की अजब-गजब रिवायत और इसकी भीनी-भीनी खुशबु से सम्मोहित है .. और बड़ी आशा से हमारी ओर टकटकी लगाये देख रहा हैं ... 

                      अब एक नया, अनूठा और अति महत्त्व का आधार जुड़ रहा हैं ... जिससे हमारे गणतंत्र की इमारत आसमानी बुलंदियों को छूने की कोशिशों में कामयाबी की राह पर सरपट दौड़ पड़ने वाली हैं ... हाँ वही " विशिष्ठ पहचान संख्या " Unique Identification Number ) ... जो देश के हर नागरिक को मिलने वाली हैं ... इस योजना का नामकरण ही उसमें सन्निहित किसी बड़े मंगल के उदय का " आधार " होने का सहज ही इशारा कर देता हैं ...  हर नागरिक की विशिष्ठ पहचान संख्या से आमजन के लिए हितकारी कई योजनाओं को जमीं पर उतारने में अभूतपूर्व मदद मिलेगी और उनका वास्तविक और तुरंत लाभ आमजन तक पहुंचेगा ... इससे आमजन के लिए जरुरी हितकारी योजनाओं का जमीं पर उतरना सुगम और सटीक हो जाने वाला है ... 

                    आमजन की भागीदारी विकास की राह में अधिक कारगर तरीकें से सामने आने वाली हैं ... दीमक की भांति हमारी अर्थव्यवस्था को खाने वाला आर्थिक भ्रष्टाचार पर  " विशिष्ठ पहचान संख्या " योजना के पूरी तरह लागू होने और उसके जमीं पर उतरने के बाद धीरे- धीरे सहज ठंग से बिना किसी हो हल्ले के बहुत कुछ नियंत्रित हो जाने वाला हैं ... तमाम बैंक खाते ... तमाम खरीद फरोख्त ... तमाम लेनदेन ... अब कोई छुपा हुआ व्यवहार नहीं रह जाने वाला हैं ...  " विशिष्ठ पहचान संख्या " के जरिये हर उस लेनदेन पर पारदर्शिता रहेगी ... हर किसी आर्थिक लेनदेन पर नजर रहेगी ... जिन पर अब तक गोपनीयता का आवरण होने के कारण तमाम तरह अनियमितताएं होती रही हैं । 

                    " विशिष्ठ पहचान संख्या " इंसानों की कई अन्य गतिविधियों और हलचल पर भी नजर रख सकेगा ... इससे अपराधियों की पहचान और उनकी कारगुजारियों पर पैनी नजर रखना भी संभव हो सकेगा ... गुमशुदा व्यक्तियों की खोज और पहचान करना अधिक आसान बन जायेगा ... दुनिया के बहुसंख्य अपराध पहचान छुपाकर ही किये जाते हैं ... अब " विशिष्ठ पहचान संख्या " की बूते पहचान छुपाना नामुमकिन सा हो जाने वाला हैं ... आतंकवाद जैसी कायरान हरकतें भी पहचान छुपा सकने के चलते ही फलती फूलती हैं ... अब " विशिष्ठ पहचान संख्या " के अस्तित्व में आने से इन पर भी लगाम लगेगी ।

                     " विशिष्ठ पहचान संख्या " के जरिये समाज कल्याण के जरुरी क्षेत्रों की पहचान और उसके निराकरण में लगने वाले संसाधनों का सटीक आकलन संभव हो जायेगा ... जिससे वर्तमान में गलत आकलन और गैरजरूरी मदों में धन की बर्बादी पर एक हद तक कमी आकर पैसे का अधिकतम सदुपयोग संभव हो सकेगा।


                    हम वसुदैव -कुटुम्बकम की अवधारणा की बड़ी पैरवी करते हैं ... उस पर हमें बड़ा अभिमान भी हैं ही ... परन्तु सारा विश्व एक कुटुंब हो उससे पहले पुनर्जन्म की सिद्धांत के चलते यह हो ही रहा है ... अब सारे  ब्रह्माण्ड से पुण्यशाली जीव हमारी इस पावन धरा पर जन्म लेने के अपने शुभ संकल्पों के चलते जन्म लेते जा रहे हैं ... और उनका इस धरा पर जन्म किस माँ की कोख से हो यह उनके भी वश की बात नहीं ... 

                    मतलब साफ हैं ... वे हर कहीं ... हर सम्प्रदाय में , हर जाति -बिरादरी , हर प्रदेश में यहाँ वहां सब जगह बिखर जाने वाले हैं ... अब उन सम्यक जीवों के लिए इस पावन धरा पर माहौल बने यही हमारा कर्तव्य है और यही करना हमारा हेतु भी ... जब ऐसे पुण्यशाली जीवों का पुनर्जन्म के अचूक सिद्धांत के तहत सब जगह बिखरना तय ही हैं तो ...ऐसे  में कब तक भला टिक पायेगा कट्टरवाद , जातिगत संकीर्णता , मानव मानव में भेदभाव , सांप्रदायिक वैमनस्य ...  और यकीं माने ... सही मायनों में इस पावन धरा पर विश्व एक कुटुंब बनकर आकार ले रहा हैं ... यही होने जा रहा हैं ... और इसी की तैय्यारियाँ जोर-शोर से जारी हैं ... " विशिष्ठ पहचान संख्या " की अनूठी योजना इस का एक बड़ा और सटीक आधार बन आकर ले रहा हैं



                                जबकि सुधार के ये सारे प्रयत्न जो की निहायत जरुरी हैं ...फिर भी जब तक मानव मन से लालच , वासना , द्वेष , हिंसा इत्यादि विकारों के पूर्व कर्मों के संस्कारों का विशाल जखीरा खतम होने का कोई सम्यक मार्ग हाथ नहीं लगेगा ... तब तक पूर्व कर्मों के फलों का वे चाहे अच्छे हों या बुरे के उदय का समय आता ही रहेगा ... और मानवता अच्छे कर्मों के फलों के उदय के समय का सदुपयोग न कर पाने के कारण  या बुरे फलों के उदय के लिए दूसरों को जिम्मेवार ठहराने की आजकल फ़ैल रही नयी बुरी आदत के चलते ... जब तब दुखी - संतापित होती ही रहेगी ... 

                              यही पीड़ा बुद्ध की भी थी ... तभी उन्हौने अपने अथक प्रयासों से सम्यक मार्ग खोज निकाला था ... और मानवता के इतिहास में अभूतपूर्व प्रकाश  के उदय का कारण बनें थे  आज भी बहुत प्रबल संभावनाएं हैं ... इंसानियत फिर एक बार अपनी बुलंदियों को छूने वाली हैं ... यह उसी की तैय्यारियाँ हैं ...  
                     भला हो !!!