बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

हमारी ऊर्जा , आप और हम !!!



       आओ भारत की विगत साठ-पैसठ सालों में ऊर्जा ( बिजली ) की स्थिति पर नज़र डालें तो पाएंगे की हम सतत उन्नति के पथ पर रहे।

        देश आज़ाद हुआ तब हमारी बिजली उत्पादन क्षमता 1362 MW के आसपास थी और पर कैपिटा बिजली की खपत मात्र 16.30 Kwh ही थी और आप आश्चर्य करेंगे भारत के एक भी गांव में बिजली की पहुँच नहीं थी। 

       इस स्थिति को अगर ध्यान में रखेंगे तो आपको देश में बिजली की प्रगति की जद्दोजहद का एक अंदाजा होगा जो भारत का भारत पर भरोसा बढ़ाएगा। और 2012-13 तक आते आते भारत ने अपनी बिजली उत्पादन को 20660 MW तक बढ़ाया और कैपिटा बिजली की खपत 813 Kwh तक आ गयी। और 537947 गांवों तक बिजली ने अपना सफ़र तय किया।

                 बीते दस सालों में बिजली उत्पादन में पांच गुना की उल्लेखनीय वृद्धि हुई। 

                 आज भारत के गाँवो में बिजली की सुगम और भरपूर पहुँच सुनिश्चित हो इस हेतु विशेष प्रयास जारी हैं। भारत और अमेरिका के साथ परमाणु संधि की बदौलत इस लक्ष्य को पाना अधिक आसान और तेज होगा, ऊर्जा की प्रचुरता हमारी उन्नति को तेज करेगी।

                पर वास्तविक प्रगति तो तब मानी जाय जब गरीब घरों में बिजली सहज हासिल हो, अभी 2 करोड़ से अधिक घरों में बिजली मुफ्त दी जा रही हैं, ताके वे विकास की दौड़ में असहज महसूस ना करें। 

" भरोसा रहे भारत पर भारत का "

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

जीवन से भरी आँखें ...



      मन की निर्मलता सबसे पहले आँखों में झलकती हैं, और आँखें ही सबसे पहले मन की निर्मलता तो ग्रहण करती हैं। निर्मल मन व्यक्ति की आँखे गजब का आकर्षण और चुंबकीय सम्मोहन लिए होती हैं।

             आँखें जब जीवन से भरी होती है तो उनमें फिर प्रकाश की उजली किरणें ठहरती नहीं , दोहरी होकर देखने वाले की तरफ लौट- लौट आती हैं। इस गीत में चित्रकार अपनी कल्पना की आँखों की तस्वीर बनाने से पहले शून्य में अपनी तुलिका को कुछ यूँ घूमता हैं जैसे वहाँ शून्य में ही अपने सारे रंग भर देगा, तब तक दरवाजे के हिलते पर्दों के सहारे जीवन की सुंगंध भी हौले से वहाँ आ रही होती हैं।

          आओ सुने 43 साल पुरानी फ़िल्म " सफ़र " का यह गीत। हमारे युवा इस गीत के माध्यम से उस समय के माध्यम वर्गीय जीवन को भी निहारे, एक भली सादगी के साथ उन्हें हौले- हौले विकसित होते तब के भारत के भी दर्शन होंगे। 

          इन्दीवर साहब की अनुपम रचना , कल्याण जी आनंद जी के संगीत सुमधुर में ढलकर यह गीत दिमाग पर गहरा सकारात्मक असर छोड़ता हैं। इस गीत में कमाल सादगी है, और हाँ जीवन भी भरपूर हैं। देखें तो सही, जरा जी कर , हाँ वही , सुनकर !