शनिवार, 25 अगस्त 2012

कासे कहूँ पीर अपने जिया की ...!!!

कासे हूँ पी ने जिया की ...!!! 








          मानव मन की पीड़ा कभी अत्यंत गहरी और अतिसवेंदनशील होकर भी जब अव्यक्त रह जाती हैं, तो मन मरुस्थल सी वीरानियों में अकेला भटकने को मज़बूर ही नहीं हो जाता बल्कि टूटने की कगार तक जा पहुंचता है /  

               हर स्थिति सतत बदलाव के कुदरती नियम से अच्छी तरह बंधी हुई हैं , फिर भी विषम स्थितयों में मन की अतिअधीरता के चलते पुराने कर्म संस्कारों का विशाल जखीरा जैसे ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता ... और वक्त जैसे थम-सा जाता है / यही समय असली परीक्षा का होता हैं / ऐसे ही समय में जिन्दगी के सारे अनुभव दांव पर लग जाते हैं / ऐसी विकट परिस्थितियों से अपने दम पर बाहर निकला इन्सान सही अर्थों में अपने जीवन को सार्थक कर लेता हैं /

           गीत में यही भाव प्रधान हैं कि मन सहानुभूति के शब्द सुनने को जैसे तरस गया हैं ...जीवन की बिषम राहों में जब कोई नहीं मिले जिससे अपना दुःख बांटा जा सके ... उस बियाबान में खुद के सबसे नजदीक खुद होकर भी अपनी मदद  नहीं कर पाना फिर हमारा दुर्भाग्य ही हुआ  ... इस गीत में भी नायिका तात्कालिक बातों से आगे नहीं सोच पा रही हैं ... चूँकि वह दुःख के पहाड़ों तले दबी हुई सी हैं ..एक चक्रव्यूह में बुरी तरह उलझी हुई है ... जैसे किसी अंधी सुरंग से बाहर आने को छटपटा रही हैं ... 

               इस कदर अवसाद और पीड़ा से उबरने में हमेशा खुद की खुद को मदद ही एकमात्र सहारा होती हैं ... और हमारी एक एक साँस को जतन से अगर संभाला जाएँ तो संभाली हुई एक एक साँस धीरे धीरे अवसाद की अंधी सुराग से हमें बाहर खीच लाती हैं ... और हमारे सामने फिर होती हैं विस्तीर्ण आकाश- सी अनन्त संभावनाएं ... //


                   1972 की फिल्म " दस्तक " को राष्ट्रिय फिल्म पुरुस्कार सहित एकाधिक पुरुस्कारों से नवाजा  गया था ... राजिंदर सिंह बेदी साहब द्वारा लिखित एवं निर्देशित, मदन मोहन साहब के अनमोल और संगीत में ढलकर मजरुह सुल्तानपुरी साहब का यह नगमा इस फिल्म के जैसे प्राण हैं ... संजीव कुमार साहब और नवागत अभिनेत्री रेहाना सुल्तान जी   का अभिनय इस फिल्म की शान हैं ... फ़िलहाल यह गीत सुने जरूर ... इस गीत को गाने के लिए लता जी बार-बार जानबूझकर छोटी-मोटी गलतियाँ इसलिए कर रही थी की वे सब मदन मोहन साहब की आवाज में इस गीत को सुनना और रिकार्ड करना चाहते थे .. वे अपनी योजना में सफल हुए और मदन मोहन साहब ने इस गीत को गाकर दिखाया ...तभी यह गीत स्त्री-पुरुष दोनों की आवाजो में उपलब्ध हो सका  वर्ना योजना तो केवल लता जी आवाज में ही रिकार्ड करने की थी  ... मन की बातों मन में दबाकर ना ही रखे किसी अपने के सामने गाहे-बगाहे बोला करें ... फिर मिलेंगे /

रविवार, 19 अगस्त 2012

सदाशयता बनी शक्ति ...


     
   पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गाँधी ने हमारे देश को एक नयी उर्जा के साथ आगे बढाया /


              वे जब इस महत्वपूर्ण पद पर आसीन हुए तब उनके विषय में कई तरह की बातें भी चली ,  और सबसे ज्यादा यह की वे राजनीति के मामलों में अनुभवी नहीं हैं ... और उनकी इस कमी को बड़ा चढ़ाकर देखा गया /  

          परन्तु उन्हौने अपनी सदाशयता ,  निर्मल मन और सभी के प्रति सद्भाव की भावना  और देश के लिए सकारात्मक सोच जो उनमें पूर्व संस्कारों की वजह से विरासत के रूप में थी को ही अपने काम करने की शक्ति  बनाया /

        और यह सिद्ध कर दिया की राजनीति के दांव पेंच , भाषण कला और हाज़िर जवाबी से नहीं आम जनता का भला होता हैं  सदाशयता ,  निर्मल मन , सभी के प्रति सद्भाव की भावना  और देश के लिए सकारात्मक सोच से और उससे आगे बढ़कर देश के लिए सचमुच बलिदान होने तक की तैय्यारी से  /

       एक समय ऐसा भी आया जब उनके एक विश्वसनीय सहयोगी ने ही उनकी ईमानदारी पर शक ही नहीं किया बल्कि उस बात से सारा आसमान सर पर उठा लिया ... वे अविचल रहकर उस आरोप का डंटकर सामना करते रहे ... और फिर जनता ने उनके हक में फैसला दिया ... पर दुर्भाग्य वे देश को एक बार फिर अपना नेतृत्व देने से पहले ही एक क्रूर दुर्घटना का शिकार हुए ... और सद्भाव की खातिर अपना जीवन आहूत कर गए /


                     बाद में देश पर कारगिल जंग की नौबत बनी तब भी दुश्मन को उखाड़ फेंकने वाली बोफोर्स तोपों की हमारे बहादुर वीरों का भरपूर साथ देने की  ... और आज भी चारों ओर कम्पूटर और उसकें उपयोग की वजह से खुशहाल होती देश की जनता उनकी दूरंदेशी और देश के लिए सद्भावना के साथ सोच को मन ही मन याद जरूर कर लेती हैं /

                  अगर कोई इन्सान अच्छे कर्म करता हैं तो उसे कुदरत फिर अपने आप और भलाई करने के मौके देती जाती हैं ... कोई इन मौकों का दुरुपयोग कर फिर बुरे कर्म करता हैं ... और कोई फिर इन अवसरों से और आगे अच्छे कर्म करता हुआ कुदरत के उपकार को नहीं भूलता ... इसे ही कोई कोई वंशवाद  से भी जोड़कर अनजाने में ऐसे लोगों को जो अपने पूर्व कर्मों की वजहों से आगे की कतार में खड़े होते हैं ... उससे बेवजह नफ़रत या  घृणा करके अपना ही प्राकृतिक विकास बाधित / कुंठित करते हैं ... और कर्मों के सिद्धांत और उनके फल के अटल नियम का अकारण मजाक उड़ाते हैं / 

 स्व.राजीव गाँधी की यादों को सादर नमन //




शनिवार, 18 अगस्त 2012

अपनी परेशानी मुझे दे दो ...


अपनी परेशानी मुझे दे दो ...






           
              लिबी राणा " निवेदिता " के लिए इस गाने में अभिनय का भला कितना स्कोप था ... प्यानो पर बैठकर अभिनय के लिए बस 3  मिनिट का समय ही तो था ... पर उन 3  मिनटों इस छोटे अंतराल में लिबी राणा ने अपने उम्दा अभिनय से इस गीत में गजब का  सम्मोहन भर दिया है  ...1964  में बनी फिल्म " शगून " का यह खुबसुरत गीत जगजीत कौर जी की अपनी एक अलग पहचान को और मजबूती प्रदान करता हैं / साहिर साहब की यह उम्दा गजल,  खय्याम साहब के लाजवाब संगीत और जगजीत कौर जी की कशिश भरी आवाज में ढल कर यह ग़ज़ल अपना रंग खूब जमाती हैं /

             जब मानव मन का निश्छल प्रेम और त्याग की उच्चतम अवस्थाओं के आसपास होता हैं तब वह ठीक इसी तरह की मानसिकता से दो चार होता है /  इन अवस्थाओं में मन फिर अपने आपे से बाहर जाकर किसी और के हितसुख की चाह इस कदर उदात्त भावनाओं में डूब कर करता हैं की वह दुआ बन-बन आसमान तक उठ जाती हैं /
   
                वह अपने प्रिय की खातिर इतना अधिक फिक्रमंद हो उठता है की वह उसकी हर मुश्किल को , हर हार को अपने सर लेकर उसे खुशहाल देखना चाहता हैं / अपने प्रिय की खातिर ज़माने से भी लड़ना पड़े तो लड़ना चाहता है /

                यहीं उदात्त प्रेम की भावना भौतिक धरातल से ऊपर उठकर अध्यात्मिक धरातल को जब छूती हैं तो सूफियाना होकर फिर चारो दिशाओं में .. ऊपर नीचे हर तरफ प्राकृतिक झरनों सी झर- झर बहती हैं ... किसी बादल सी बेपरवाह होकर हर छत को भिगोती हैं ... किसी बच्चे की मुस्कान सी अनमोल होकर सहज उपलब्ध होती हैं ... किसी पक्षी की तरह हर आँगन फुदकती हैं चहकती हैं  /

सोमवार, 13 अगस्त 2012

आज की युवा पीड़ी , गाँधी और उनके युग की एक झलक ...


                   इनाम जीता हुआ व्यक्ति बेईमानी कर ही नहीं सकता और ... बड़ा दानी व्यक्ति गलती करें तो कोई फर्क नहीं पड़ता..... यहीं सन्देश आजकल परोसा जा रहा है .... भाई जी गलती अगर हम करे तो वह हमारे मैले आँचल पर कम दिखाई देगी ... पर किसी उजली चादर वाले के दामन पर ज्यादा ... बस यहीं से विनम्रता का पहलु सामने आता है ...

                 हमारे जैसा इन्सान अपनी गलती मानने में शायद अपराधिक देरी कर जाय ...पर एक उजाला और समझदार इन्सान यहीं पर विनम्रता से उसे कबूल करता है ... कई बार तो वह स्वतः संज्ञान लेकर आगे बढकर कोई बताये इससे पहले अपनी चुक मान लेता है...यूँ करके वह औरों के लिए आदर्श और अपनी नजरों में कहीं अधिक उठ जाता है ... उजले व्यक्तित्व  का इन्सान कभी भी अपनी मामूली सी गलती को हिमालय सा बड़ा और दूसरों की बड़ी गलतियों को मुआफ करने की गजब ताकत रखता है ... इसी से ज़माने के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत होता है की हर मानव से गलती संभव है ... इसलिए वह अकर्मण्य न बने ... डरें नहीं ... और न ही घबराये ... पर गलती करके उसे कबूल न करके दूसरी ओर उल्टा सरकार या किसी को भी जो उसके जुर्म की याद दिलाये उसे शुक्रिया कहने की जगह कोसना या धिक्कारना ठीक तो नहीं ...

                     निंदक नियरे राखिये... कबीर दास जी की अनूठी और काम की सिख है..... पर आज के माहौल में यह बात लोग समझने को राजी नहीं ... अन्ना का सप्पोर्ट करने में और उनकी अच्छी बातों के अनुरूप आचरण करने में यही फर्क है .... इसीलिए उनके भक्त सप्पोर्ट करने का आसान रास्ता अपनाते है .... और ऐसा करने को वह टीम भी कहती है ...किसी भली बात को सप्पोर्ट करना उस बात को आचरण में उतारने से कहीं सरल है /

                   आज कल सत्याग्रह का प्रचार तो आये दिन दिखने -सुनने में आ रहा है, परन्तु इसका प्रभाव कहीं कुछ ठोस दिखाई नहीं पड़ता, लालच भ्रष्टाचार की लगाम है l लेकिन इस लगाम पर कोई लगाम नहीं... वहीँ ईमानदारी का गहना है विनम्रता और न्यायप्रियता, इस पर कोई विचार नहीं ... अतः एक हथियार फिर भी मौजूद है वह है सतर्कता ... एक-एक का मन सतर्क रहे इसके उपाय भी है ... मन में जब कभी लालच जगे ... बेईमानी जगे ... घमंड का प्रादुर्भाव हो ... बस वहीँ लगाम लगे ...तो असल बात बने ... वर्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ यह लडाई भी एक आडम्बर बनकर रह जाएगी .!!!

                इससे क्या यह सन्देश जाने अनजाने नहीं जाता की एक ओर तो बड़े और ताकतवर लोग कानून से बच जाते है ... वहीँ दूसरी और समाज सेवी और महान लोग गलती की सजा से छुट के पुरे हक़दार है ... फंसना तो बीच के लोगों को ही है .... गुनाह मान लेने को बड़प्पन की निशानी यूँ ही नहीं कहा जाता ... आज भाई केजरीवाल ने फिर पैसा जमा करते वक्त सरकार को जमकर कोसा ... उन्हें कानून से कोई राहत की उम्मीद नहीं थी ......... वर्ना वह यूँ ही कब हार मानते !

                 गांधीवाद का सहारा तो बस दुकान ज़माने के लिए है / इस आन्दोलन की शुरुआत में यह उम्मीद जगी थी की अब शायद आज की युवा पीड़ी , गाँधी और उनके युग की एक झलक देखकर अपने अतीत पर गर्व करेगी ... पर गाँधी ऐसे तो नहीं थे ? so let follow Anna inspite to support !!!

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

रुला के गया सपना मेरा ...


रुला के गया सपना मेरा ... 





                यूँ  तो यह गीत ... शुरुआत में गहन निराशा के भावों का प्रतिनिधित्व करता हैं ...  पर धीरे - धीरे नायिका के सपने का उसकी ओर एक अन्य नाव  में बढ़ना एक बड़ी आशा का संचार कर जाता हैं ... बेलेंस बिघड नहीं पाता / बुरा वक्त गुजरता तो ठीक अपनी ही रफ़्तार से हैं , जैसे अच्छा वक्त गुजरता हैं पर, हमारे मन की अधीरता बुरे वक्त के गुजरने के अन्तर को जैसे निहायत स्लो (slow)  कर देती हैं / 

                 इस गीत के फिल्मांकन में भी इस बात को बड़ी खूबसूरती से उजागर किया गया है ... निराश नायिका की नाव लगभग स्थिर हैं ... और आशा रूपी सुबह नाव में उसकी ओर अपनी गति से बढ़ी चली आ रही है /  कभी कभी हमें होश ही नहीं रहता की निराशा के बादलों के ठीक ऊपर ही हमेशा अनन्त आकाश की संभावनाएं हमेशा बनी रहती है ... और तो और हमारी अपनी सांसों पर ही अविश्वास इस कदर बढ़ जाता है कि एक-एक साँस लेना दूभर होता जाता है ... फिर दिल का बैठना तय ही समझे ... उसका डूबना तो तब रुके जब हमारी अपनी साँस का ही फिर एक बार सहारा लिया जाएँ ... सुनते ही हैं कि " जब तक साँस है , आस हैं " /

              कल हुआ यूँ कि एक समाचार चैनल पर हमारी अपनी मुक्केबाज ख़िलाड़ी " मैरीकाम " ( Merry Kam ) इसी गाने को गुनगुना रही थी ... बहुत मीठी ..  दिल से आती आवाज /  " मैरीकाम " ओलम्पिक में तीसरे स्थान पर रही ... सचमुच एक बढ़ी उपलब्धि ... पर उस विनम्र और सहृदय ख़िलाड़ी की खेल भावना देखों ... वह भारत की जनता से माफ़ी मांगती हैं कि उसने हमें निराश किया जो स्वर्ण पदक नहीं ला सकी ... उनकी यहीं बात उन्हें  विलक्षण खेल भावना और दुर्लभ विम्रता की बदौलत सबमें अलग स्थान दिला गयी ... सलाम " मैरीकाम " / ... आप हमारे लिए किसी स्वर्ण से कम नहीं ... नहीं मिला स्वर्ण यकीं मनों ... कोई गम नहीं /   कोई सपना हो अब रुलाके नहीं जाएँ ... सपने आखिर सपने होते हैं  /

               45 साल पहले आई फिल्म " ज्वेल थीफ "  फिल्म का यह सुन्दर गीत लता जी की आवाज में झील की मानिंद स्थिर लय और गहराई लिए हुए हैं ...  मजरुह सुल्तानपुरी साहब की रचना और एस . डी . बर्मन साहब का संगीत ,  विजय आनंद साहब के खुबसुरत फिल्मांकन / निर्देशन में खूब निखर गया हैं / 

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

पुल तुझे सलाम ....






         बारिश नहीं होती तो चिंता ... हो जाएँ तो चिंता ... यह तो चलता रहेगा ... पर अगर किसी पर इसका कोई असर  नहीं होता और वो पूरी बहादुरी से हर हाल में डट कर खड़ा रहता हैं ...  तो ... वह हैं हमारा माँ नर्मदा नदी पर " मोर टक्का स्थित ८० साल पुराना एक " आर्क तकनीक " से बना पुल ... जब पानी सर से ऊपर बह रहा होता हैं तब भी ... पानी के नीचे चुपचाप खड़ा रहता हैं ... जब गर्मी और सर्दियों में इसकी उपरी सतह खराब हो जाती हैं ... गड्डे पड़ जाते हैं ...  तब भी किसी से कोई शिकायत नहीं करता ... न ही करता कोई चर्चा इस बात की ,  कि अवागमन कितना बड़ा और उसका भार अब उठाये नहीं उठाता ...  

               इस पुल को आज सलाम करने का जी चाहता हैं ... हमने नयी तकनीक अपनाई ... बड़े बड़े कालेज बनाये ... बड़े बड़े विद्वान् इंजीनियर भी खड़े किये ... पुरानी " आर्क तकनीक "  को बेकार भी साबित किया ... हम अपने ज्ञान पर विस्मित अचंभित होते रहे ... पर हाय ... इस जैसा एक पुल अभी तक नहीं बना पायें ... जो हमें अपनी असफलता पर कोई नया बहाना गढ़ने का कोई मौका दे ... इसके  साथ बने ... इसके बाद बने पुलों को इस बुजुर्ग पुल ने असमय काल के गाल में समाते हुए देखा हैं ... सचमुच बड़ा बहादुर हैं .. यह बुजुर्ग पुल ... इसको सलाम ... इसको बनने वाले मजदूरों को सलाम ... इसके इंजीनियरों को सलाम ... भला हो !!

शनिवार, 4 अगस्त 2012

दोस्ती पर एक दोस्ताना नज़र ..



दोस्ती पर एक दोस्ताना नज़र ..          

           मेरे मित्रों हम सब इस फेसबुक की मार्फ़त मित्रता के बंधन में हैं ... एक नयी तरह की मित्रों की जमात बनी हैं जो संप्रदाय , जात-बिरादरी , आयु , लिंग भेद , छोटे बड़े , अच्छे बुरे , इत्यादि के भेद से ऊपर उठकर आज एक मंच पर हैं ... मेरे एक मित्र ने इसे " फेस्बुकिया मित्र मंडली " नाम दिया हैं ... पर कोई नाम हो मित्र , मित्र ही होता हैं ... एवं मित्रों का होना और मित्रता के बीच संप्रदाय , जात-बिरादरी , आयु , लिंग भेद , छोटे बड़े , अच्छे बुरे , इत्यादि के भेद का न होना मित्रता की एक मजबूत नीवं के होने के समान ही हैं ... अच्छा हैं की हमारे बीच भी इस तरह की ही मित्रता को महत्त्व हैं ... आओ भगवान तथागत ने भी मित्रता पर अपने अनमोल विचार रखे हैं ... उन्होंने मित्रता की महिमा को एक नए अंदाज में उजागर किया हैं ...  जिसका परिचय मैं आपसे करवाने का लोभ  रोक नहीं पा रहा हूँ ... इस पर एक नज़र जरूर डालें  ... बात " भली " लगे तो उसे धारण भी करें ... मित्रों आपका मंगल हो ... खूब मंगल हो !! 


                जो मित्रों को धोखा  नहीं देता ;  वह अपने घर से बाहर ( प्रवास में जाने पर ) खाद्य - भोग का भागी होता है  , उसके सहारे अनेकों की आजीविका चलती है  // १//

             जो मित्रों को धोखा  नहीं देता;  वह जिस जिस जनपद , कसबे  और राजधानी में जाता है  , सर्वत्र पूजित होता है // २ // 

             जो मित्रों को धोखा  नहीं देता ;  उसे चोर परेशान नहीं करते , राज उसका अनादर नहीं करता , वह सभी शत्रुओं पर विजय पा लेता है  // ३ //

            जो मित्रों को धोखा  नहीं देता;  वह प्रसन्नचित्त से अपने घर लौटता है  , सभा में उसका स्वागत होता है  , जाति-बिरादरी में वह उत्तम माना जाता है  // ४ //
           जो मित्रों को धोखा  नहीं देता ;  वह सत्कार करके सत्कार पाता है  , गौरव करके गौरवनीय होता है  , वह प्रसिद्धि और कीर्ति का भोगी होता है   // ५ //

            जो मित्रों को धोखा  नहीं देता ;  उस पूजा करने वाले की पूजा होती हैं , वंदना करने वाले की वंदना होती है  , वह यश और कीर्ति को प्राप्त होता है  // ६ //
            जो मित्रों को धोखा  नहीं देता ;  वह आग के समान प्रज्ज्वलित होता है  , देवता के समान प्रकाशमान होता है  , श्री-युक्त होता है  // ७ //
           जो मित्रों को धोखा  नहीं देता , उसकी गायें प्रजनन करती हैं , खेतों में बोया बढ़ता है और जो बोता है उसका वह  फल खाता है // ८ //
           जो मित्रों को धोखा  नहीं देता ;  दर्रे , पर्वत अथवा वृक्ष से गिरा हुआ वह व्यक्ति , गिर कर भी सहारा पा लेता हैं // ९ //

         जो मित्रों को धोखा  नहीं देता ;  उसे शत्रु पराजित नहीं कर सकता , वैसे ही जैसे की मज़बूत जड़ वाले बरगद के वृक्ष का हवा ( आंधी ) कुछ भी नहीं बिघाड सकती // १० // 

( आज  दोस्ती दिवस पर इस ग़ज़ल का जुदा अंदाज़ आपको भी भाए ... इसे सुनियेगा जरूर ... ) 

         अतः  मित्रों हम उपरोक्त बातों को धारण करें ... और हमारे जीवन में ऐसे अवसर पहले कभी आयें हो जब जब हमें उपरोक्त प्रकार से अनुभव हुए हो ... या हमारे आसपास के मित्रों पर , या लोगों पर इस तरह की बातों को फलीभूत होते कभी देखा हो ... तो भगवान बुद्ध के उपरोक्त अनमोल वचनों से उनका मेल बैठाकर देखिएगा ... जरूर अतुलनीय उत्साह और उमंग का संचार अपने अन्दर पाएंगे ... भला हो !!


दिखावे का मायाजाल ..


                                  हमारे देश में दिखावे को ही हमेशा से तरजीह दी जाती रही हैं ... दिखावा हमारी कमजोरी हैं ... जिस तरह से जब अन्ना पार्टी की दुकान सजी तो सबसे पहले विश्व ब्रांड बन चुके हमारे अपने बापू पर उनकी नज़र पड़ी ... और बड़ी सावधानी से गांधीजी के नाम का इस्तेमाल हुआ ... " दूसरा गाँधी  " ... हमारा युवा जो आज अगर सबसे ज्यादा प्रभावित हैं किसी से तो वह फिर हैं हमारे बापू ... और हमारा युवा गांधीजी सदृश किसी गाँधी का बेसब्री से इन्तेजार करता हैं ... वह चाहता हैं की जो उसने इतिहास से गांधीजी की ऊष्मा और तरंगे महसूस की हैं ... वो खुद उनका वर्तमान में प्रगटीकरण भी देखे ...


                      बस उसकी इसी महत्वकांक्षा को ताड़ लिया अन्ना पार्टी ने और हर आन्दोलन को बापू के नाम से आगे बढाया ... अब उन्हें जरुरत थी किसी नारे की तो पहला नारा दिया ... " हम अन्ना का सपोर्ट करते हैं " ... यहाँ फिर चालाकी से "  अनुसरण " शब्द से परहेज किया ... क्योंकि सपोर्ट करना यानि भीड़ बढ़ाना ... और अनुसरण करना यानि खुद अपने चरित्र को बलवान बनना ... यहाँ युवा चरित्रवान हो उसका मनोबल इतना मजबूत बनें की वह खुद आगे बड़ कर अपने कमजोर मन से होने वाले बुरे आचरण पर काबू कर पायें ... पर अन्ना पार्टी को अनुसरण की कवायद का रास्ता लम्बा और उबाऊ मालूम पड़ा ... अतः युवा सुधरे उनका आचरण सदाचरण की ओर बढे ...  इसमें उनका तनिक भी विश्वास नहीं था ... वे युवाओं को उदंड बनना चाहते थे ... तभी मंच से लगातार भड़काऊ और अमर्यादित भाषण देते रहे ...ताकि युवा बिघडे और इलजाम सरकार के सर जाएँ ...

                       युवा गांधीजी के आन्दोलनों से प्रभावित हैं ... इसलिए भूखा रहकर आन्दोलन का विचार आगे बढाया ... जिससे मिडिया का कवरेज भी खूब मिले ... और थोक में सद्भावना की फसल भी काँटी जाएँ ... पर वे भूल गएँ और हमारे युवा ने भी कोई इस बात की पड़ताल नहीं कि, कि गांधीजी ने उपवास चलायें तो इनका प्रयोजन क्या होता था ... बापू का कोई उपवास लेशमात्र भी इस हेतु दबाव कि खातिर कभी नहीं हुआ कि उनकी मांगे मानी जाएँ ... वरन उनका हर उपवास अपनी किसी गलती पर , या उनके किसी सत्याग्रहियों कि अहिंसा कि अवहेलना पर या सांप्रदायिक हिंसा के कुमार्ग से जनता को वापस सद्भाव और आपसी प्रेम के सन्मार्ग पर लाने को ही उनके उपवास हुआ करते थे ... 

                       अतः अन्ना पार्टी ने हमारे युवाओं को खूब छला ... मुझे पीड़ा तो अधिकतर इस बात कि होती थी कि हममे से बहुसंख्य भावनाओं में बहकर नाहक परेशान होते रहे ... और अन्ना पार्टी के छुपे मंसूबों को पहचानने में खूब देरी कि ... 

                       वे जनता के लिए लोकपाल कि आड़ में फिर एक तंत्र थोपना चाहते थे ... जो कितना भी कड़ा हो ... कठोर हो .. उससे फिर भी 40 -50 % भ्रष्ट आचरण ही कम होता ... ( इससे ज्यादा की उन्हें भी उम्मीद नहीं थी ... और जब यह धरातल पर आएगा तो और सरकारी महकमों की तर्ज पर और कम ही नतीजे दे पायेगा 20 -30 % तक  ) ... 

                       तनिक सोंचे 40 -50 % बुरा आचरण जो अछूता रहता जन - लोकपाल से वो होता के दूर दराज गावों का , पंचायतों का  , कस्बों का .... इतना बड़ा कौव्वा बैठाने और उसके लिए इतनी उतावली से कहीं सीधा हैं ... अपने ही आचरण को और अधिक ऊँचा उठाना ... अपने मनोबल को और मजबूत बनाना ... अपने मन को निर्मल करना ... अगर हम एक - एक ऐसा करें तो 50 % बुरा आचरण या कहें भ्रष्टाचार तो यूँ ही कम हो जाएँ ... और आये लोकपाल भी तो फायदा ही होगा नुकसान नहीं /

                        पर अन्ना पार्टी तो सरकार को घेरने में ही अपना भला देख रही थी ... उसे इस बात कि तनिक भी चिंता नहीं थी कि भारी भरकम जन लोकपाल का भारी भरकम खरचा हमें ही भरना पड़ेगा ... उसके यहाँ वहाँ फैले कर्मचारियों का रौब भी हमें ही भुगतना पड़ेगा ... और जन लोकपाल के कर्मचारी ही कहीं शुरु हो गये तो ... आप ही सोचे ... क्या क्या होगा ...