लोकप्रिय पोस्ट

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

सात रंग के सपने ... !!!


सात रंग के सपने ... !!!



                     पने हकिगत से काफी दूर ... एक अलग ही दुनियां लिए होते हैं ... फिर भी असल दुनिया से सपनों की दुनियां का महत्त्व कम नहीं होता ... बस जरुरत होती हैं थोड़े से तालमेल की ... ज़रा सी नज़ाकत  की ... क्योंकि सपने कांच की मानिंद जरा से धक्के  से टूट कर बिखर-बिखर जाते हैं। जिंदगी की राहों पर किसी गाड़ी की हेड लाइट की तरह सपने थोड़ी दूर की सड़क को रोशन कर ... जिंदगानी का सफ़र आसान बना देते हैं ... अब कोई केवल हेड लाइट ही जलाये और गाड़ी ना चलाये तो ...  हो गया फिर सफ़र पूरा ... आने से रही फिर कोई मंजिल नयी ?

        अब इस गीत में देखो कोई किसी और के लिए सात  रंग के सपने चुन रहा हैं ... और सपने भी सुरीले ... कितनी बड़ी बात हुई ना ... किसी पराये या अनजान के लिए कौन भला दीये जलाता है ... .पर अकसर कोई होता हैं ... हमें पता ही नहीं होता ... और शाम के धुंधलके से थोडा पहले ,  कोई हमारी राहों में भी दीपक जला दिया करता हैं ... बस यूँ दोस्ताना शख्सियतों को दूर से पहचानने की ज़रूरत  होती हैं ...हकीकत से बहुत पहले सपने जिंदगी में आहट देने लगते हैं ... छोटी-छोटी बातों की उजली यादों को कोई अगर ना भूले तो,  हर घडी मानों जनम-जनम की कड़ियों को जोड़ती -सी नजर आती हैं ।

                        सात रंग के सुरीले सपने मीठी सुबह के होते ही अपना असर खो दे , इससे पहले ही हमें उन्हें यादों के बाग से चुनकर वास्तविकता के धरातल पर बो दे ... और उन्हें कुशल माली की मानिंद प्यार से सींचे ... वरना नाजुक सपनों की कोहरेनुमा चादर दिन की तपन का जरा सा बढ़ते ही , धुंधला जाने का डर  होता हैं ....

42 साल पुरानी फिल्म " आनंद " का यह सदाबहार गीत मुकेश साहब की दिल की तलस्पर्शी गहराइयों से निकलती आवाज में सपनों की दुनियां में हमे चुपके से यूँ लिवा ले जाता है की हकीकत की दुनियां से वहां से बराबर दिखती रहती हैं ... राजेश खन्ना साहब का कहानी के पात्र में डूब कर अभिनय करना भुलाये नहीं भूलता ... 

                   सतरंगी सपने सुख-कहो या दुःख दोनों में सम रहने की अनूठी कला से ही साकार होते हैं ... सपने जीने की एक जरुरी वजह होती हैं ...  

फिर मिलेंगे ...