बुधवार, 28 सितंबर 2011

महंगाई की बत्तीसी ..



महंगाई की बत्तीसी ...

                             
                                 अभी हाल में महंगाई पर कितनी खबरें आई और गयी ... मुयी महंगाई.. टस से मस ना हुयी ... वहीं की वहीं रही ...ऊपर से .. एक कोने में खड़ी वो जोर-जोर से हंसती अगल जा रही है ... साथ खड़े बाज़ार भाई से उसे अभी कहते  सुना की ... भाई,  मैं ना तो कहीं जाती हूँ और ना आती हूँ ... फिर भी मेरे बारें लोग हमेंशा चर्चारत रहने से मुझे बड़ा सुख अनुभव होता हैं .. ...मैं तो शास्वत हूँ ... महाभारत काल में भी थी ... रामायण काल में भी ... कृष्ण और सुदामा थे तब भी थी ही ...और आज कौन सी नहीं हूँ ... लोग मुझे हमेशा क्यों कोसते रहते है ... लम्बी लम्बी सांसे लेकर वे क्या जताना चाहते है .. मैं उनकी बातों मैं आने वाली नहीं ... देखो ना उस मुए सुनील की माँ को ...वो क्या मुझे लेकर कम परेशान रहती थी जब सुनील छोटा था ... तब सुनील की दादी अपने पुराने ज़माने को याद कर कर के सुनील की माँ को नानी याद दिला दिया करती थी ... अरे बहु जानती हो हमारे ज़माने मैं घी इतने रुपये सेर था ! ...ऐसा था वैसा था ... पर उससे किसी ने पूछने की जहमत नहीं उठाई  की वह उस ज़माने में कितने सेर घी खरीद पाती थी ......अरे वो अब्दुल चूड़ीवाला थोडा समझदार है ...अपनी ख्वातुन की महंगाई की रट पर वो झल्लाकर ठीक ही कहता है  ..खात्यां ..की खात्यां अन गुर्गुरात्यां ..!!!

                             

                                  अरे ...ये खुश होकर रहे तो मैं क्या बढ जाउंगी ?... रोते रहेंगे तो क्या घट जाउंगी ...? बड़ी बातें करते है ... थोडा संभलकर क्यों नहीं खर्च करते अपनी आमदनी ... अब देखो ३२ रूपये की बात  ...आज तो  हद कर दी ... ३२ रुपय्ये मैं क्या होता है ! ... क्या मिलता है !!  ... कैसे  कोई जिए इतने कम में !!!  ... ये सरकार महंगाई के जले पर नमक ना डाले !!!!      सुबह से लगा है गरीब की वकालत में मुआ टी.वी. ..  पर उस गरीब से कोई नहीं पूछता ...  ना ही वो मुआ बताता ! ... मैंने कहा ...  बोलो भाई सही बात बताओ ... तो कहने लगा .. अरे ..रहने दो..  कोई नहीं सुनने वाला यहाँ ... ये केवल रोना ही जानते है ... इनकी असलियत तो तुम भी खूब जानती हो !   महंगाई दीदी ... मेरा नाम ले लेकर हल्ला तो खूब मचाते है ... खैरात बंटते ही मुझे भूल ..  खुद खा जाते है ... सरकार सही कह रही है ... ३२ रूपये में  दो वक्त खाना खाता हूँ ... खाता रहूँगा ... तुम्हारा आशीर्वाद रहे मुझपर ...और इन महंगाई के रोने वालों से बस इस ग़ज़ल की दो लाईने कहना चाहता हूँ ...  "" तुम से मिलकर मुझे रोना था बहुत रोना था ... पर आपकी इस बात ने मुझे रोने ना दिया  ""    

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

उपवास की पुंगी फिर बजी ...


उपवास की पुंगी फिर बजी ... 

Great spiritual force of moral conduct in life
 
                  गाँधी बाबा ने भी कमाल की खोज की .. उपवास करके उन्हौने तो बहुत सारे फायदे उठाये ही .. पर उस अस्त्र के कितने और फायदे होंगे शायद ही उन्हौने सोंचा होगा .. आज की युवा पीड़ी ने तो उनके उपवासों के बारे में पूरी तरह नहीं जानती ..पर हाँ .. उसकी समझ में आने लगी है .. उपवास की महत्ता ..मोटे तौर पर देखा जाय तो ..उपवास करने के कई कारण हो सकते है ..कई कारणों से उपवास किया जा सकता हैं .. शास्त्रीजी ने उपवास चलाये थे अनाज की कमी से निपटने के लिए के लिए ..गांधीजी ने अधिकतर उपवास पश्चाताप के लिए या अपने सत्याग्रहियों की गलतियों को ठीक करने के लिए या फिर नैतिकता के अध्यात्मिक बल से अंग्रेजी हुकूमत पर वार करने के लिए .. आम आदमी उपवास करता है भगवान की खुशामद के लिए.. और प्राकृतिक चिकित्सा रोगों से लड़ने की शक्ति के इजाफे में उपवासों का बड़ा सुन्दर इस्तेमाल करती आई है ..!! आज जब कोई गांधीजी की तस्वीर के तले उपवास से डराने धमकाने की नजीर पेश करता हैं तो वह जाने अनजाने हमारे युवा को गांधीजी के नाम पर एक तरह से गुमराह ही करता हैं .. महात्मा गांधीजी के जीवन से जुड़े कुछ हालातों पर नज़र डाले तो गांधीजी के उपवास से जुड़े मंतव्य हमारी युवा पीड़ी की नज़रों में स्पष्ट हो सकते हैं ...


" सवेरे का समय था . मैं सभा में बैठा था . मेरी समझ में नहीं आ रहा था की मुझे क्या करना चाहिए . किन्तु सभा में ही मेरे मुंह से निकल गया " यदि मजदूर फिर से दृढ़ न बने और फैसला होने तक हड़ताल को टाल न सके, तो मैं तब तक के लिए उपवास करूँगा / " ( कितना सहज और सटीक निर्णय )


महात्मा गाँधी अपने उपवास से भी किसी डराने के लिए इस्तेमाल करने में विश्वास नहीं करते थे वरन उपवास अपनी या अपने सत्याग्रहियों गलतियों को ठीक करने या पश्चताप के साधन के बतौर ही अधिकतर हुआ ... वरन आजकल तो उपवास से दबाव बनाकर अपनी मांगे मनवाने का अजब ढब चल पड़ा हैं ... और धेराव को गाँधी जी के हथियार की तरह दिखाया जा रहा हैं / जो की निहायत दुर्भाग्यपूर्ण और गुमराह करने वाला हैं /

एक जगह वे लिखते हैं " उनके विरुद्ध उपवास करना उन पर ज्यादितियों के सामान था / मैंने मालिकों को समझाया मेरे उपवास के कारण आपको अपना मार्ग छोड़ने की तनिक भी जरुरत नहीं फर्क तो आप पर मजदूरों की हड़ताल का ही पड़ना चाहिए / "


सद्भावना बढाने में भी उपवास की कारीगरी का इस्तेमाल होने जा रहा है इस तरह उपवास की तकनीक बड़ी तेजी से उन्नति कर रही है ..वह दिन दूर नहीं जब हर समस्या का एक ही उपाय होगा ..उपवास ... !!! उपवास कैसे लंबे खींचे जाय .. उपवास के दौरान भूख लगे ही ना ... कितने लोगों को बुलाया जाय ... कैसे तोड़े उपवास ... मिडिया की उपवास में भूमिका ... उपवास और उसका बजट ... सबसे लम्बा उपवास ... उपवास और प्रबंधन के नियम ... काला धन और सफल उपवास ...सर्वाधिक लाभ वाले सफल उपवास ... और अंत में जाकर डॉक्टर ऑफ़ उपवास पर भी ना थमेगी यह उपवास यात्रा ...!! उपवासों की तकनीक का अब दोहन शुरु हुआ है ...बड़े दिनों बाद बड़े और पैसे वाले लोगों का उपवास तकनीक पर अब ध्यान गया है ... देखना अब पैसों की कमी इस तकनीक के विकास मैं कोई बड़ी बाधा उत्पन्न नहीं कर पायेगी ... करोड़ों का खर्च होगा .. आज कल प्रबंधन के गुरु रोज नए नए गुर इजाद करने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे ... हालिया भारत में इसके एक दो सफल परिक्षण हो चुके है ... सफलता मिलती देख उपवास की पुंगी अब खूब बजायी जाएगी .. जब तक नयी पुंगी का अविष्कार ना हो ..या यह पुंगी बेकार न हो !!!

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

उसने धक्का दिया , मैंने नहीं लिया !!


उसने धक्का दिया ,  मैंने नहीं लिया !!!


                 सुना आपने अब 73 रूपये प्रति लीटर पेट्रोल का भाव होने जा रहा है ... और बढ़े इसके भाव मेरी बला से ... /   हुआ यूँ की पिछली बार जब भाव बढ़े तो सोचा कोई हमें परेशान करे और हम हो जाये तो गलती उसकी नहीं हमारी ही तो है ... गोविंदा की एक फिल्म का डायलोग " मैंने तुझे धक्का दिया, तुने क्यों लिया " बस यही बात उस समय दिमाग मैं कौंध गयी ... और तलाश शुरु की, धक्का प्रूफ आइटम की ,  आइन्दा  जब अगली बार दाम बड़े तो मैं रोऊ नहीं हँस सकूँ  ... इस तरह से फिर दाम बढे और मैं अछूता रहा .. निर्लिप्त रहा ...अनटच  रहा  ... और जानते हो आज शाम से अब तक हँस  रहा हूँ  /  न दिल  टुटा ...और न  जला /  आप भी अगर हँसना चाहे तो मेरे साथ इस गाने को गुनगुना कर हँस सकते है ..." जब अपने हो जाये बेवफा तो दिल टूटे ... जब दिल टूटे तो रोयें क्यूँ ..हम  नाचें  क्यूँ नहीं ..हम गायें क्यूँ नहीं ..."

                                   चलो अब बता ही देता हूँ ... यूँ तो पिछले चार-पांच सालों से मेरी नजर में वो थी ... तीन चार बार तो उससे मिला भी ..पर अपना नहीं सका ... पिछली बार जब पेट्रोल के भाव बढ़े तो ज्यादा न सोंचते  हुए उसकी ओर कदम बड़ा ही दिए ...और खरीद ली मित्रों एक " इलेक्ट्रिक बाईक " ... आज दो महीने हो गए ... फिक्र को धुएं में नहीं उड़ाता.... जिस तरह धीरे से खटमल,   खटियन में जाता है...बस ठीक उसी  मानिंद सड़क पर किसी के भी पास से गुजर जाता हूँ ... भुत की तरह ... बिना आवाज कहीं भी प्रगट हो सकता हूँ ...// 

                                  दोस्तों इलेक्ट्रिक बाईक ले लेने मैं कोई बुराई  नहीं ... फायदे अनेक है ... हर तरह से सोचा जाये तो ये बाईक ६० पैसे / किमी पड़ती है ...यानि पेट्रोल स्कूटर से तुलना करें तो १.२२ पैसे / किमी  का फायदा / मोटर सायकल से तुलना की जाये तो ६५ पैसे / किमी  का फायदा / और चलने चलने मैं बड़ी आराम दायक तथा ४० किमी/ घंटा  की रफ़्तार से दौड़ सकती है ... अंत मैं अपनी बात ख़त्म करते हुए कहता हूँ ... पेट्रोल के बढ़ते भावों से परेशान हो तो .. लेते   क्यूँ नहीं ...   !!!!!!

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया ...!!!

                                     जब मैं छोटा था .. तो  देखता था की आस पास के बड़े और समझदार लोग पुराने गानों के बड़े दीवाने होते है ... और मेरी तो समझ से ही परे होते थे ऐसे गाने ...बड़ी कौफ्त होती थी ... ओर लगे हाथ निराशा भी की क्यूँ नहीं पसंद आते मुझे  इस तरह के पुराने गाने ... मैं तो किशोर- दा का दीवाना था ... और अकारण बड़ों की पसंद को अपनी पसंद बनाने मुड भी नहीं होता था ... बड़ों की पसंद , नापसंद तो थी पर मन इस बात को मानता था की कहीं ना कहीं मेरी ही समझ ही में कोई कमी है .. काफी समय गुजरा ... एक बार किशोर-दा का एक इंटरव्यू कहीं पढ़ा कि किशोर- दा  तो सहगल साहब के फैन हैं  ! ... तो बड़ा अचरज लगा कि मेरे आदर्श गायक का आदर्श मेरा आदर्श क्यों नहीं ... फिर लगा सहगल साहब के गाने सुनने ... पर बात बनती नहीं दिखी ... खैर इसी पसंद - नापसंद कि उलझन के साथ  समय गुजरता गया ... इस बीच ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी लगी ..वहाँ पाया कि चारों तरफ पुराने गानों के रसिक ही ज्यादा है ...और तो और  ऑल इंडिया रेडियो भी ऐसे ही संगीत को ज्यादा तरजीह देता है ... अब तो अपने आप को घिरा हुआ महसूस करने लगा ..
                            
                                  एक दिन पद्मश्री उस्ताद लतीफ़ खान साहब को अकेला पाकर बड़ी झिझक के साथ उनसे अपनी बात कही ... उन्हौने समझया ... भाई कानों को तैयार करो उम्दा संगीत सुनने के लिए ... ये कैसे हो ...तो समझाया ...थोडा शास्त्रीय संगीत सीखो ... फिर कहीं से अच्छे गुरु की तलाश की और लगा सिखने शास्त्रीय संगीत ... संगीत तो पूरी तरह नहीं सीख पाया पर हाँ कान जरूर तैयार हो गए ....अच्छा संगीत सुनने की थोड़ी सी क्षमता जरूर आ गयी... //




बेगम अख्तर साहिबा की गायी ये गजल सुनिए ....

ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया /...२
जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया //
यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुजर जाती थी /
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया //
कभी तक़दीर का मातम, कभी दुनिया का गिला /
मंजिले-इश्क में हर जाम पे रोना आया //
जब हुआ जिक्र ज़माने में मुहब्बत का शकील /
मुझको अपने दिले-नाकाम पे रोना आया //
                                          
                                               मल्लिका -ए -गजल बेगम अख्तर साहिबा की  लरजती खनकदार आवाज जैसे वीरान सड़कों पर डोलती गाड़ी की तरह उतरती-चढ़ती जाती है .. जैसे बहुत बड़ा काफिला ख़ामोशी  के साथ  चल रहा हो और एक पुरजोर बुलंद सुरीली आवाज सबको राह दिखाती आगे ले जा रही हैं  .. खुद पहले थोडा आगे जाकर फिर पीछे पलट कर कहती है ...आ जाओ यहाँ तक  ... कभी यु लगता है जैसे आसमानी बादलों पर सवार हो,  साया बन राह आसान करती है ... कभी तो मानो यह एहसास दिलाती है ..की बस मंजिल आ गयी ... और लगे हाथ फिर आगे का रुख कर जाती है ...!!!



रविवार, 11 सितंबर 2011

मुझे फिर बुलाया ..लो मैं आया !!!

मुझे फिर बुलाया ..लो मैं आया  !!!  


                       ब-जब भी आता हूँ .. कोई डेढ़ , कोई तीन तो कोई दस दिनों तक मेरी खूब आवभगत में लगा रहता है ... मुझे पटाने की हर जुगत की जाती है ... मेरे सामने खड़ा रहकर बार-बार मेरे माता - पिता की याद दिला- दिला कर ...पुर्व में किये उपकारों का बखान सतत किया जाता है ... और धीरे से नई फरमाईशें रखना  कभी नहीं भूलते  ...मैं भोला हूँ यह वे अच्छी तरह जानते  है ... कई बार मेरे सामने दुविधाएं खड़ी करने में भी कोई कोताही नहीं बरतते ... अपने बनाये नियम कानून खुद ही तोड़ते है ...अपनी बनायीं सजाओं से मुझे ही बचाने को कहते है... भैय्याजी गीता तो हम सबने पढ़ी है ...जो जैसे कर्म करेगा ठीक वैसे ही फल उसे मिलने वाले है ...मैं भला गीता का यह शाश्वत नियम कैसे बदल सकता हूँ .... इस बार भी उनके बुलावे पर मैं आया ... मेरी माता ने कहा ... जा रहे हो ... देखना वे सब इस बार बड़े कड़े नियमों को बनाने की जुगत में है ... एक दुसरे को सुधारने के हर प्रयत्न वे कर रहे है ... यूँ  लगता है जैसे वे अपने ही हथियारों से अपने ऊपर ही वार करने की कोशिश में हो ... वे पाप से नहीं पापी से घृणा करने की सोंच में है ... तू वैसे भी कम बोलता है ... सुनना ज्यादा पसंद करता है ... हमेशा अच्छी तरह से सोंच विचार करके निर्णय लेता है ... जल्दीबाजी में काम करना तेरी फितरत नहीं ... पर वे बड़े अधीर है ... तुझसे ही सारी मांगे मनवाने की कोशिश करेंगे ...बेटा तू दबाव में आकर उनकी हर मांग पर जल्दी से कैसे सहमत होगा ... कैसे कह पायेगा..." तथास्तु ..सारे भ्रष्टाचारी अभी के अभी ख़तम हो जाएँ "... तू भोला है ... तेरे भक्त नासमझ .. तथास्तु मत कहना ..उन्हें इशारों में समझाना की तथास्तु कहते ही .. कितने बच पाएंगे ?    मैं ही जानता हूँ .. / 
  
                      मेरे पिता भी अपने आप को नहीं रोक पाए ... अपने पूर्व अनुभव के आधार पर कहने लगे ... एक बार मैंने भी किसी को यह वचन दे दिया था की ..जिसके सर वो हाथ रखे वो म्रत्यु को प्राप्त हो जाये ...फिर क्या था मेरे भक्त ने उसे मुझ पर ही उस वरदान को आजमाने की कोशिश की .. बड़ी मुश्किल से बच पाया ...देखना जरा ध्यान से रहना वहाँ दस दिन ...काली कमाई तेरे चरणों अर्पण करे तो ...उन्हें याद दिलाना की भाई यह गलत है ... बिजली  की चोरी से तेरा पांडाल रोशन करे तो कहना ...ये ठीक नहीं ... तेरे सामने अगर अनाचार हो तो उन्हें समझाना ...शायद वे इस बार समझ जाये ...क्योंकि कुछ दिन पहले ही रामलीला मैदान पर १३ दिनों तक उन्हें  खूब समझाया गया है ... पर मैं देखता हूँ ...वे अपने भ्रष्ट आचरण से कम,  दूसरों के बुरे आचरण से  ज्यादा परेशान है... उन्हें समझाना तुम अपने मन के मालिक नहीं बनोगे तब तक कैसे सफल होओगे ? ...कब अपने पॉव पर खड़े होओगे ? ... जितने नियम अभी बना रखे है ... उनका पालन क्यों नहीं कर पाते ?.... उनका पालन ही करने लगो तो नए नियमों का भार तुम पर क्यों पड़े ?... क्या उनके पालन को सुनिश्चित करने वाले महकमे का बोझ तुमपर नहीं आएगा ?... ..अपने अन्दर के लालच, क्रोध, वासना और अहंकार कैसे कम हो !! ..इसके  उपाय की खोज में तुम क्यों नहीं जुट जाते ?...जानते हो आज तुम्हे सौभाग्य से इन दुर्गुणों से निजात पाने का  उपाय उपलब्ध  है ... उसका  अभ्यास क्यों नहीं  करने की सोचते ? ...मैं भी  उनकी कोई मदद नहीं करता जो स्वयं अपनी मदद नहीं करना चाहते ...!!! 

           
सुधार के उपाय की खोज मैं ध्यान रत बच्चे 
                      मैं सदा  की तरह इस बार भी आया ...  दूसरों की ओर कम और अपनी ओर  ज्यादा देखना !!...ऐसा करते ही देखना सहज रूप से तुम सुधार की ओर एक-एक कदम बढ़ाते जाओगे !! ... बिना किसी झगडे के ! ...बिना किसी शोर शराबे के ! ....भक्तों मैं फिर आ गया !!! ... इस बार कोई चोरी की बिजली से मेरे पंडाल रोशन न करे ... बेवजह सड़कों को जाम न करें ... !!   

बुधवार, 7 सितंबर 2011

दिल का हाल सुने दिलवाला ...!!!





                                                 कल हमारी  दिल्ली दहल उठी .. एक बार फिर नापाक मंसूबों ने देश की एकता पर चोट करने की कोशिश की .. एक बार फिर सबने एक दुसरे को कोसा .. फिर सब पर उंगलिया उठी ..  फिर मिडिया सक्रिय हुआ .. फिर से लोग सांत्वनाएं  देने आगे आये .. संसद ने फिर एक साथ आंतकवाद से लड़ने की कसम खायी .. !!!! 

                        कल संवेदनाओं का अनोखा एवं दुर्लभ आदान-प्रदान भी हुआ .. श्री राहुल गाँधी जब घायलों का हाल पूछ  रहे थे तो एक महिला ने अपने दुखों के बीच उनके दुखों का हाल पूछकर इंसानियत की मशाल  जला दी .. अश्रुधाराएँ बह निकली ...!!   भला हो हमारी  मिडिया का जिसने उसे उजागर किया .. अनेकों नकारात्मकताओं बातों के बीच सकारात्मकता  की सुगंध फैल गयी ..!!! 


                        अब बहुत हो चूका हमें एक समान नीति बनाना होगी .. आपसी सद्भाव चाहे ये बिगड़े या वो उसकी एक सामान निंदा करनी होगी .. जुर्म को सांप्रदायिक चश्मों से देखना बंद करना होगा .. जब हम आपस में द्वेष और दुर्भावना के बीज बोते रहेंगे तो उनके अंजाम से हमें कौन बचाएगा .. हम एक रहेंगे और दुसरे  के संप्रदाय को अपने संप्रदाय से कम सम्मान कभी नहीं देंगे .. तो कौन हमें बुरी नज़रों से देखने की हिमाकत कर पायेगा भला  ?.. आपस में लड़वाने वालों से हमें ही बचना होगा !!.. यूँ ही नहीं कहा जाता एकता में गजब की शक्ति होती है .. हमें एक बनाना ही होगा .. बिना समय गंवाएं ...!!

सोमवार, 5 सितंबर 2011

आसान हल कम ही पसंद आते है....



                 अन्ना के आन्दोलन के aftershocks अभी आ रहे है .. मुझे लगता है ..हम भारतीयों को समस्याओं के आसान हल कम ही पसंद आते है ... भ्रष्टाचार में कम या ज्यादा हमारा सबका योगदान होता है ... और हम सब इस आस मैं है कि जन लोकपाल हमारा कल्याण कर देगा ...भ्रष्टाचार केवल पैसों कि मांग करके काम कर देना या करवा लेना ही नहीं ...और भी आगे है ... भ्रष्टाचार याने बुरा आचरण ... बुरी या  कड़वी बात कहना, चोरी करना, झूठ  बोलना , हत्या ( हिंसा) करना , नशेपते  का सेवन करना, व्यभिचार करना  ... इत्यादि / और जो इस तरह के बुरे कर्म हमसे जाने-अनजाने हो जाते है वे तीन चरणों में संपन्न होते है  ... पहला मानसिक , दूसरा वाचिक तीसरा  कायिक / परन्तु तीसरा कर्म ही लोगों के सामने दिखाई देता  है ... जबकि उस कर्म का जन्म तो मानसिक स्तर पर काफी पहले हो चूका होता है ... कुदरत मानसिक कर्म को देखती है ... और कानून कायिक कर्म को महत्व देता है ... वाचिक कर्म तो उसकी पकड़ में कभी कभी ही आ पाता है ... निरंतर हमारे मन में कर्म होते रहते है .. जिसका मन पर नियंत्रण है ...या यो कहे जिसका मन आपेक्षाकृत कम मैला हैं वह अपने आप को बुरे कर्मों से बचा पाता है ...( यहाँ यह गौर करे कि अन्ना स्वयं किसी कानून से डरकर ईमानदार नहीं हैं  ) .. .

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                       कुछ समय बाद यह स्थिति आने वाली है कि जब हम यह देखेंगे कि लोकपाल जैसी संस्था पर भारी- भरकम खर्च करके भी बात नहीं बनी तभी शायद हमारी मानसिकता किसी और उपाय कि तरफ जाएगी ... क्योंकि समस्याओं  के  एलोपैथिक  उपचार  में हमारी चाहत प्राकृतिक उपचार से ज्यादा  है / हम स्वयं कुछ नहीं करना चाहते , कानून का तकिया बनाकर सो जाना चाहते है ...पर बात नहीं बनेगी ... क्योंकि हमारे  मन की जड़ों तक विकारों के पहुँच बन गयी है ... मन की जड़ो का उपचार  किये बिना ऊपर-ऊपर से दवाओं का छिडकाव कितनी मदद करेगा  भला ...?


                                                                                                         
                                                                                                                                                          
हमारे  मैले मन की सफाई हो ..मन की सफाई  और मन पर नियंत्रण का उपाय हमारे  हाथ लगेगा तब बात बनेगी ... जहाँ  समस्या है वहीँ उसका हल भी सौभाग्य  से मौजूद है ...वह है विपश्यना ध्यान साधना में ..!!! विपश्यना हमारी  मदद करेगी ... मन की सफाई में ... साफ और स्वच्छ मन स्वभावतः ईमानदार और चरित्रवान बनता जायेगा ... सम्राट  अशोक एक सफल राजा हुआ है हमारे देश में ... वह किस तरह सफल हुआ सुराज कि स्थापना में .. 

भ्रष्टाचार से वह यूँ लड़ा ....!!




                       " लवार के बल पर सम्राट अशोक कलिंग पर विजय पा चूका था ... हिंसा और उसका तांडव जो उसके फैलाया था उसके परिणाम उसके सामने थे ...हिंसा के रास्ते हल नहीं निकलते .. डंडे के बल पर हम प्रजा के दिलों पर राज नहीं कर सकते .... ऐसी  समझाईश इस लढाई से पहले उसके अनुभवी सलाहकार  उसे एक नहीं कई बार दे चुके  थे....परन्तु वह अपनी हट पर कायम रहा ...  लोकतंत्र ना होने के कारण वह अपनी मर्जी का मालिक था और कलिंग का युद्ध टाला न जा सका था /


                      युद्ध की विभीषिका देख सम्राट अशोक का  ह्रदय आत्मग्लानी से भर उठा ... पश्चाताप की अग्नि उसके दिल में धधक उठी .. वह सही मायनों में अपनी प्रजा की भलाई के लिए तड़पने लगा ... उसे यह बात समझ में आ गयी की हम अपने मन के विकारों के कारण ही दुखों में पड़ते है ... जिसका मन प्रेम और करुणा से भरा है वह हिंसा से विरत ही रहता है और जिसका मन क्रोध और वैमनष्य से ओतप्रोत है वह न चाहकर भी हिंसा और अपराध में पड़ ही जाता है ... सदाचार, प्रेम और करुणा के उपदेशों से मन के विकारों पर एक झीना - सा पर्दा ही पड़ता है ....डर कर मानव-मन मौके का इंतजार ही करता है ...  मन के विकार मौका मिलते ही फिर उभर आते है ..और जीवन में कड़वाहट घोल देते है /  यह मामूली सी बात उसे अब बहुत महत्व की  जान पड़ी /

सिंह मूर्ति 
                  पहले पहल तो उसने राजतंत्र को ठीक से चलाने के लिए कड़े कानून बनाये ..और उनके पालन को सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी नियुक्त किये ...पर उसने देखा की कड़े कानून और सजाओं का डर भी वह प्रभाव नहीं ला पा रहा है  ..जो वह चाहता था .. वह चाहता था उसका राज,  सुराज की मिशाल बने,  जनता की बीच सद्भाव और प्रेम बड़े, लोग स्वभावतः ईमानदार और आदर्श नागरिक बने, प्रशासन की सारी ताकत और समय जो अपराध नियंत्रण और कानून लागु करवाने में जाया होती है ..उसका सदुपयोग प्रजा की भलाई में कैसे काम आये ... इस हेतु वह आतुर हो उठा / 

                     उसका सौभाग्य जागा ...कहीं से यह सलाह मिली की राजन ऐसे उपाय है जिससे हमारे मन के विकार मिटाये जा सकते है .. विकारों से ऊपर - ऊपर नहीं जड़ों तक छुटकारा पाया जा सकता है ...मन के विकार जैसे लालच, घृणा , वासना और द्वेष इत्यादि से मुक्त होता मन स्वभावतः सदाचार और सहिष्णुता की ओर अग्रसर होने लगता  है /


सम्राट अशोक के शिलालेख 
             यह सुझाव उसके गले तो उतरा पर अपनी प्रजा     को जिसे वह अपनी संतान के तुल्य मानने लगा था ..काफी सतर्क था ...इस उपाय को प्रजा पर लागु करने से पहले वह खुद इस राह पर चलकर देखना चाहता था,  ताकि अपनी प्रजा को वह स्वयं अनुभव करके देखा हुआ रास्ता दे पाए ..कही कोई उलझन  न रहे / पर इस हेतु समय की दरकार थी ..विपश्यना साधना रूपी उपाय को आजमाने के लिए उस समय करीब ३०० दिनों का समय लगता था .. राजतन्त्र में जहाँ आये दिन षड़यंत्र और समस्याएं आती है यह कैसे संभव होगा ?   पर वह किसी भी कीमत पर प्रजा की भलाई के लिए यह खतरा मोल लेने को तैयार था /  उन दिनों राजस्थान के बैराठ में विपश्यना का एक सुप्रसिद्ध केंद्र था /  वह वहाँ गया और ३०० दिनों के बाद अपनी राजधानी लौटा ...मन के विकारों का जो बोझ लेकर वह गया था ...उस बोझ के उतार जाने पर वह आश्वश्त था की यह उपाय  उसकी अपनी प्रजा की वास्तविक भलाई के लिए प्रभावी सिद्ध होगा /  अब उसने अपनी प्रजा  के लिए विपश्यना के केंद्र बनवाये और वहाँ  जाने के लिए अपने परिवार, मंत्रियों , शासन के अधिकारीयों , कर्मचारियों  और प्रजा  को प्रेरित करने लगा / धीरे - धीरे इसके परिणाम आने लगे / सम्राट अशोक का शासन सुराज में बदलने लगा ...इसकी भूरी भूरी प्रशंसा व्हेनसांग और अनेकों चीनी यात्रियों ने अपने संस्मरणों में की है / 

सम्राट अशोक के शिलालेख 


                                अपने एक प्रसिद्ध शिलालेख में सम्राट अशोक लिखता है  -  " मनुष्यों में जो धर्म की बढोतरी हुयी है वह दो प्रकार से हुयी है - धर्म के नियमों से और विपश्यना ध्यान करने  से / और इनमे धर्म के नियमों से कम और विपश्यना ध्यान करने से कहीं अधिक हुयी है / " 


                       आज-कल जब भ्रष्टाचार से लडाई जारी है ...अपने अन्दर के विकारों से तो हमें ही जूझना होगा ... भगवान महावीर इसीलिए  महावीर कहलाये क्योंकि उन्हौने सबसे बड़ी लडाई जो अपने स्वयं के मन पर विजय की है,  लड़ी और उसे जीतकर ही वे महावीर बने एवं सारे जीवन लोगों को यह मार्ग समझाते रहे ...सबके मंगल के लिए , सबके कल्याण के लिए !!!