शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

वो शाम … !!!

                 मन में कहीं भरोसा या कहे एतबार हो तो कई बातों के मायने ही बदल जाते हैं … और आने वाले वक्त के प्रति भरोसा ना रहे तो फिर कई भली बातें भी निराशा का फैलाव रोके नहीं रोक पाती हैं … और निराशा का सागर फिर अपने किनारों पर वो तबाही मचाता हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं।


              हमें तो बस हर किसी की मुस्कराहट में , खिली हुई सी हंसी में आने वाले वक्त के मंगल सन्देश ही दिखें जब की हौले-हौले भलाई अपना राज स्थापित कर ही रही होती हैं। 

                जीवन की गाड़ी हमेशा एक-सी सामान सपाट राहों पर कब दौड़ी हैं ? … पर हर मोड़ पर आगे आने वाले मंज़र के बारें में खुशफहमियां ही वक्त की रफ़्तार को सुगम बनाती हैं … इस कोशिश में मन वो ताकत हासिल कर चूका होता हैं की भले कोई दुर्गम चढ़ाई क्यूँ ना आये वह कब उसे पार कर लेता हैं , पता ही नहीं चलता।

                हर शाम एक सी रहती है … बस मन की संवेदनशीलता ही तो बदलती हैं … और उन मन की संवेदनाओं पर हमारा कहाँ नियंत्रण रहता हैं … बस नियंत्रण तो उन पर हमारी की जाने वाली प्रतिक्रिया पर ही रखना होता हैं … और यूँ हौले हौले जीवन नैया आगे बढ़ती हैं। 

                  लताजी की आवाज़ में यह गीत किशोर -दा को श्रद्धांजलि हैं … और आज लता जी भारत- रत्न सी होकर हमारे बीच है ही … उनकी पावन उपस्थिति को नमन और उनके लिए मंगल कामनाएं।

               वो शाम भी कितनी अजीब थी जब भारत और पकिस्तान का बंटवारा हुआ था   … पर कभी किसी पाकिस्तानी ने क्या खूब कहा था  … बंटवारा ठीक से नहीं हुआ हमें नूरजहाँ मिली …. पर भारत को म. गाँधी  मिले और मिली लता जी।  … और होता भी यही हैं जहाँ सद्भाव रहे ,  घर के बड़े बुजुर्ग भी स्वभावतः वहीँ  रहना पसंद करते हैं।

                   आओ हम सद्भावना और सौजन्यता को बढ़ाये … हिलमिल रहे !!!

सोमवार, 9 सितंबर 2013

आकाश तुम्हारा हो ….

         उस दिन शाम को घर लौटा तो बेटी बोली - पापा वो अपने घर में हैं … देखों उसे हम उठा कर भीतर ले आये …. श्रीमती दरवाजे पर कड़ी थोड़ी चिंतित दिखी 


          उस दिन जाने क्या हुआ पता नहीं … पर हमारे घर के उजाल-दान में बना कबूतर का घोसला और उसके दो नन्हे बच्चे नीचे फर्श पर गिर पड़े … उनमें एक तो थोड़ी देर तड़प कर चल बसा … पर दूजा मेरे आने तक संघर्ष कर रहा था। 

      पत्नी अधीर हो रही थी … कह रही थी कुछ करो , इसे बचाओ … मैंने देखा कबूतर का नन्हा बच्चा बड़ा कमजोर था … उसे कैसे संभाले सूझ नहीं रहा था …. उधर कबूतर - कबूतरी का जोड़ा भी बैचेन था … मैंने हथियार डाल दिए … मैंने कहा बच्चा इतना नाजुक है की उठाने से मर ही जाये … और इसे रखु कहाँ … इनका घोंसला भी तो अब नहीं रहा। 

                  फिर मैं उठा सोचा कोशिश करने में क्या जाता हैं …. पुराने मुलायम कपड़ों से किसी तरह मोड़ -माड कर गोल -वोल करके एक घोंसले नुमा बनाया और आहिस्ता से उस नन्हे बच्चे को उसी उजाल - दान में रखा और नीचे आ गया। 

            सबसे कह दिया … अगर वह कबूतर-कबूतरी का जोड़ा उस नन्हे के पास आ गया तो यह बच जायेगा … देखा थोड़ी देर बाद वे आ गए अपने नन्हे के पास … आज सात दिन हुए वो नन्हा कबूतर का बच्चा अब थोडा संभल गया हैं … टुकुर-टुकर दुनिया निहार रहा हैं … सब कुछ ठीक रहा तो कुछ और दिन हमारी मेहमानवाजी का मौका देकर खुले आकाश को नापने बाहर निकल पड़ेगा। 

                        हमारे पुण्य में यह कबूतर का नन्हा बच्चा भी भागीदार हो … उसका भला हो !!

सोमवार, 2 सितंबर 2013

जय हे !!!

जागे मंगल प्रेरणा !!!

         भारतीय आम जनता की भूख , बेबसी , और काम नहीं होने की लाचारी का फायदा अब तक हमारे देश में अगड़ों ने , सक्षम लोगो ने हर बार उठाया हैं , …. देश ने भूख , बेबसी , और काम नहीं होने की लाचारी को खाद्य सुरक्षा से , शिक्षा के अधिकार से , और मनरेगा से भली तरह से निपटने के हथियार की तरह देखा हैं …. और आज खाद्य सुरक्षा का अधिकार संसद के दोनों सदनों में बहुमत से मान्यता प्राप्त कर गया हैं … अब देश की प्राथमिकता कमजोर और अक्षम वर्ग के जीवन की मुश्किलों को और अधिक प्रभावी तरीके से आसान बनाने की हैं। 

              मेरी शुभ -कामना हैं गरीबों , दबे कुचलों और असहायों का शोषण रुकने से उनके हौसलों को बहुत बल मिलेगा और उनकी क्षमताओं और प्रतिभाओं का देश की मुख्य धारा को अपार सहारा मिलेगा … और उनके सहज उत्थान से देश की उन्नति में उनकी भागीदारी असरदार और अभूतपूर्व होगी। 

… जय हे , जय जय जय , जय हे !!!!