रविवार, 14 जून 2015

हिसाब दो ,,,

          हिसाब मांगने का भी अजीब रिवाज है । बड़ी आसानी से कोई भी किसी से भी हिसाब मांग लेता हैं । और आजकल की अपनी किन्ही उपलब्धियों पर कुटिल मुस्कान बिखरते हुए बड़े अहम भाव से पूछने लगता है, क्या किया तुमने अब तक ?

            ठीक इसी पल वो ये भूल जाता है की सवाल पूछने की काबिलियत के आधार के पीछे भी जिससे सवाल पूछ रहा है उसकी मेहनत तो नही है ?  पर दुनिया सवाल पूछने वाले की तरफ अधिक आकर्षित सहज ही हो उठती है । क्योंकि मानव मन की यह सहज प्रवृत्ति हैं ।

            ऐसे सवालों का एक ही सटीक जवाब हो सकता है कि सवाल पूछने वाले से ही प्रतिप्रश्न पूछा जाय या उसे ये देखने के लिए कहा जाय की समान स्थितियों में और किसने कैसा परफार्म किया है ?

            हम जब आज़ाद हुए, तब हमारे आगे-पीछे कई और देश भी आज़ाद हुए । कोई धार्मिक राज्य बना तो कोई पंथ निरपेक्ष , कहीं लोकतंत्र चुना गया तो कहीं राजतन्त् / सैनिक तंत्र । फिर भी अगर ध्यान से देखेंगे तो सामाजिक हों या आर्थिक हों , वैज्ञानिक हों या तकनीकी हो , शिक्षा हो या स्वास्थ्य हो, लगभग सभी क्षेत्रों मे तमाम विषमताओं जैसे साम्प्रदायिकता और जातिवाद की विषमताओं के बाद भी हमने सर्वाधिक और गर्व दे सकें ऐसी उपलब्धियां पाई हैं ।

            आओ, नैतिक बल के महत्व और ईमानदारी की निति पर शालीन और विनम्र रहकर अधिकाधिक चल सकें इसका प्रयास करें । आखिर ये ही तो सबका "आधार" हैं ।
सबका भला हो ।






गुरुवार, 11 जून 2015

विश्व गुरु होने से पहले

भारत एक तरह से विश्व का प्रतिबिम्ब हैं । विविधतायें इसकी खूबी है । विश्व के लगभग हर धर्म और सम्प्रदायों की यहाँ ब्रांचेज हैं । इस भूमि पर ही उत्पन्न हुए कई धर्म और उनके सम्प्रदाय अरबों खरबों सालों से इस धरा पर हैं । सभी सम्प्रदाय अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और सभी लगभग कई मुद्दों पर एक दूसरे से विभिन्न मत रखते हैं । दुनियां भर की छुआछूत, जातिगत समाज की कुव्यवस्था और गरीबी तथा वैभव की खाइयां होते हुए भी इंसान इंसान के बीच सद्भाव कैसे कायम रहे इसकी अद्भुत मिसालें हैं । बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक होने के फायदे है तो नुकसान भी हैं । 

                         कभी विश्वगुरु होने का गुरुर है तो आधुनिक टेक्नोलोजी विश्व से हासिल करने की आतुरता भी हैं , लालच भी हैं । समृद्ध इतिहास है तो उस इतिहास से अनभिज्ञता भी हैं ।  कई वैज्ञानिक अविष्कारों कर सकने का मिथ्या अभिमान भी है तो कई खूबियों के जन्म दाता होने का पता भी नही । विश्व को एक कुटुंब बना देने की विशाल योजना है तो उसकी कोई दिशा नही । कई धर्मों का अविष्कारक होकर भी अभी तक धर्म का मर्म ना समझपाने की घोर लापरवाही भी भावी विश्व गुरु की एक खूबी हैं ।

                         इसीलिए इसकी विविधतायें ही इसकी खूबी हैं । जो विश्व को आइना दिखाते रहती हैं । कुछ ना होकर भी कैसे सब कुछ होने का गर्व किया जाय । कैसे आपस में लड़ते हुए भी जिया जाय । कैसे घोर सामाजिक और सांप्रदायिक विषमताओं में भी जियो और जीने दो को अपनाया जाय ।

                                  वर्तमान में तो भावी विश्व गुरु की विश्व को यही देन हैं ।
सबका भला हो |||