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सोमवार, 7 सितंबर 2015

पत्थरो में दर्ज इतिहास ...

बुद्ध और उनकी शिक्षा भारत से लुप्त होने से पहले खूब तेजी से लोगों पर अपना असर छोड़ने लगी । जैसे दिया बुझने से पहले अपनी रौशनी बढ़ा देता हैं । पर बुद्ध  की शिक्षा बुद्ध के जाने के बाद  लगभग 500 वर्षों तक विश्व जन कल्याण करती रही ।

किसी भी शिक्षा के दो मुख्य पहलु होते हैं । एक बौद्धिक और दूजा व्यवहारिक । बुद्ध का जोर शिक्षा के व्यवहारिक पक्ष पर अधिक था । वे कहते थे व्यवहारिक पक्ष मज़बूत होगा तभी लोगों को आकर्षित करेगा । मेरी शिक्षा से लोगों का जीवन बदलता है वे सुखी और शांत होते है तो लोग सहज इसकी तरफ आकर्षित होंगे । परन्तु कालांतर में व्यवहारिक पक्ष कमजोर होने लगा और बौद्धिक पक्ष पर ही लोग ज्यादा ध्यान देने लगे । इससे हुआ ये की लोग चर्चा तो बहुत करते थे पर उसका पालन नही करने से उनमें कोई बदलाव नही आता था उलटे अधिक कट्टर और असहिष्णु होने लगे । विवाद बढ़ते गए । व्यवहारिक पक्ष कमजोर होने से बुद्ध की शिक्षा के वो परिणाम नही मिलने लगे जिनकी आशा की जाती थी । अतः उनकी शिक्षा बहुत भली होने के बावजूद कमजोर पड़ने लगी । और कमजोर पड़ती शिक्षा लुप्तता की ओर तेजी से अग्रसर हुई ।

फिर भी जहाँ- जहाँ बुद्ध की शिक्षा गयी वहां वहां वो पत्थरो में अवश्य दर्ज होती रही । महाराष्ट्र की आध्यात्म के रूप में उर्वरा भूमि पर तो बुद्ध के काल का इतिहास पत्थरों पर खूब लिखा गया और यहाँ- वहां बड़ी मात्रा में बिखरा पड़ा हैं । और हर्ष की बात है की द्वितीय बुद्ध शासन भी विश्व में खूब फैले इसका आधार भी महाराष्ट्र ही बना हैं ।

ऐसा ही एक स्थान है "कार्ला" और  वहां की विश्व प्रसिद्द गुफाएं । मुख्य चैत्यगृह आकार में सबसे बड़ा और प्रस्तर पिलरों की बड़ी संख्या से सुसज्जित हैं तथा छत को कमानीदार लकड़ी के पटियों से सहारा दिया है । सारा कौशल विस्मित करता हैं और प्रेरित तथा रोमांचित भी कि भले हमने बुद्ध की शिक्षा को खो देने की गलती की पर पत्थरों में दर्ज इतिहास हमारे साथ अडिग खड़ा रहा । 1909 में अंग्रेज हुकूमत ने इसे विश्व धरोहर के रूप में मान दिया और संरक्षित किया ।

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