रविवार, 21 अगस्त 2011

हम सुधारेंगे....

हमारा देश एक सच्चा गणतंत्र है .... हर बार , हर विपत्ति से वो नया रास्ता ढूंढता है ... हर बार वो लड़खड़ाकर फिर चलने लगता है ... ठीक सोंचने वाले लोग हर पार्टी. हर दल में है।  

म. गांधी  व्यवस्था का सम्मान करते थे ... वे धीरज और विवेक से काम लेते थे ... अपराध से तो वे घृणा करते थे  पर अपराधी के प्रति करुणामयी भाव रखकर उसे स्वयं सुधार कि तरफ प्रेरित और उत्साहित करते थे।  

आज कल तो दूसरों पर ऊँगली उठाना फैशन बन गया है .... हम सुधरेंगे जग सुधरेगा की जगह बस " हम सुधारेंगे चल पड़ा है " . 

बुद्ध, महावीर , कबीर और नानक की यह भूमि सारी दुनिया को रास्ता दिखाती रही हैं  ...विश्वास रहे .. फिर जन- जन का मन अधिनायक बन कर उभरेगा ... फिर लोग समझेंगे की उनकी भलाई किस बात में है ..सबका मंगल हो ...!!!!!

रविवार, 14 अगस्त 2011

एक-दुसरे से घृणा नहीं ..प्यार बड़े ..!!



                               भ्रष्टाचार से खुले में आकर लड़ना भ्रष्टाचार के खिलाफ  दिखावटी लडाई ही साबित होगा ../ भ्रष्टाचार केवल पैसो का अनुचित लेन देन ही नहीं आगे भी हैं .....यह तो अपने अंतर- मन की लडाई होना चाहिए .... इतना आसान नहीं .. कानून की कितनी दीवारे बनायेंगे ?  ... असल में हम कोई तंत्र  बनाकर उसके भरोसे भ्रष्टाचार को समूल मिटाने कि कोशिश कर रहे हैं जो एक दिवा स्वप्न ही साबित होगा . लोकपाल कानून के जानकर लोग इस का भी धंधा खोल लेंगे ......./ 

                              अन्ना जी क्यों खुद को ईमानदार रख पाए अभी तक ?.. क्यों वे नैतिकता का जीवन में आचरण कर पा रहे है ? ... क्यों वे अडिग है ? ...क्या कानून के डंडे से डरकर ?  क्या उन्हें भ्रष्टाचार का मौका नहीं मिला इसलिए ? .... नहीं..../   उनका अंतर-मन  साफ है ... वे अपने मन पर काबू रख पाते है .../ 
  

                              हमारे इंदौर में एक कानून बना है ... यहाँ - वहाँ थूकने वाले को  100  रुपये का अर्थ दंड भरना होगा .... तो क्या लोगों ने थूकना छोड़ दिया .... नहीं ना ?... स्वयं हमारे इंदौर के अग्र- नागरिक इस छोटे से कानून का उलंघन करते हुए देखे जा सकते है  / ...... अतः हम मन पर काबू कैसे रख पाए ... हमारे मन से बुराईयों को कैसे दूर कर पायें इस बारे में जितनी तेजी से विचार होगा ...अमल के रास्ते ढूंढे जायेंगे ... लोग उन पर चलने लगेंगे ... तो ही धीरे-धीरे बड़े सहज रूप से हमारे  समाज में नैतिकता का अवतरण होने लगेगा   समय लगे पर यही एक रास्ता है ..../

                                                              अभी तो यूँ लग रहा है जैसे अचानक हम सब एक दुसरें की  बुराईयों से घृणा नहीं कर रहे बल्कि एक दुसरे से घृणा कर रहे हैं  ........ दुसरे साफ-सुथरे  हो जाएँ  .. अपने बारे में विचार किये बगैर ...इन बातों का कैसे असर होगा दूसरों पर नहीं समझना चाहते ..!!! 



शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

कहाँ से शुरु करें ...कोई तो राह मिले ..!!





                                जब  भी कोई समस्या सामने आये... उसका कोई ओर दिखे ना छोर तो जाने की समस्या बड़ी नहीं बल्कि छोटी हैं उसका समाधान बाहर नहीं बल्कि अपने अन्दर है...क्योकि हमारे मन का  प्रमाद उस समस्या के लिए दूसरों को जिम्मेदार बताकर,  दया का पात्र बनकर एक कोने में पड़ा रहना ज्यादा पसंद करता है /  जैसे  खुद का यथार्थवादी आकलन करके सुधार की कोशिशों में तो उसका जैसे विश्वास ही नहीं रहा / यही कारण है की कल दलाई लामा को भी भारत में व्याप्त बुराइयों ने एक हद तक हिला कर रख दिया ..वे कह गए की " भगवानों और देवतावों को सुबह शाम याद करने वाला हिन्दुस्तानी मानस इतना लाचार क्यों है कि वह अपने अन्दर व्याप्त बुराइयों कि ओर देखना ही नहीं चाहता "  /  निश्चित ही वे हमारे पुराने गौरवमयी तथा समृद्ध इतिहास के व्यापक परिपेक्ष में आज कि परिस्थितियों को लेकर चिंतित थे /   उनका चिंतित होना इसलिए भी  हमें यह सोंचने के लिए बाध्य करता है कि कठोर कानूनों कि बदौलत दुनिया में कहीं भी महत्वपूर्ण बदलाव नहीं लाया जा सका है  / 


                                आज भारत के पास दुनिया का सारा उच्च कोटि का अध्यात्म होते हुए भी वो इतना बेअसर क्यों है कि मानव मन अपने अन्दर कि बुराईयों से छुटकारा नहीं पा रहा है  ?  धार्मिक ग्रंथों का पठन पाठन करके देख लिया, व्रत - उपवास करके भी देख लिया , तीज- त्यौहार भी मनाते ही जा रहे है पर हाथों से  मन कि शांति फिसलती ही जा रही है ...इसलिए क्यों  ना हम इस समस्या पर दुसरे पहलु पर भी गौर फरमाएं  ...राष्ट्र रूपी पेड़ को सुधारना हो तो उसकी जड़े जो एक एक भारतीय के मन से सम्बन्ध रखती है क्या  उस जड़ों का सुधार नहीं होना चाहिए ...आखिर कब तक हम पेड़ पर ऊपर-ऊपर से विषैले रसायनों  का छिडकाव करते रहेंगे ?  कब उसकी जड़ों कि ओर ध्यान देंगे ? 

                            आजकल  जब भ्रष्टाचार से लड़ने कि एक मुहीम सी चल रही है पर क्या वह अपने अंजाम तक पहुँच पायेगी जब तक एक एक भारतीय का मन लालच और अन्य विकारों से मुक्त होने को  लालायित ना दिखाई पड़े ...ख़ुशी कि बात है कि आज हमें ऐसा रास्ता उपलब्ध है जिससे हम अपने मन के विकारों में कमी लाकर उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकते है ...ऐसा करके हम ओरों पर कम अपने आप पर ज्यादा  एहसान करेंगे ....सबका भला हो ...सबका मंगल हो !!!!!