मंगलवार, 30 सितंबर 2014

अंग्रेज और हमारी कमजोरी !





               भारत में अंग्रेज सफल हुए उसका केवल एक बड़ा कारण रहा । वह है हमारा बंटा हुआ होना । तब  हमारे बीच एक ना होने के तीन बड़े कारण, अव्यवहारिक जाति-पाती व्यवस्था, सांप्रदायिक विद्वेष और देश में अनेक राजे रजवाड़े और उनके छोटे छोटे स्वार्थ ।

                सांप्रदायिक विद्वेष के बीज डालकर भारतीय समाज को कमजोर करना और फिर राज करना अग्रेजों की " फुट डालो राज करो " वाली सबसे घटिया निति रही और इसमें वे प्रमुख कारक होते हुए भी साहूकार ही बने रहे ।

                              म. गाँधी ने इन्ही तीन कारणों में से दो प्रमुख करणों पर सबसे अधिक काम किया और अंग्रेजों की राज करने की प्रमुख सहूलियत पर लगभग विराम सा लगा दिया , देश सबल होकर आज़ाद ही नहीं हुआ बल्कि निरोग भी हुआ । यही कारण था की अंग्रेज और उनके साथी , म.गाँधी से बहुत चिडते रहे , नफरत करते रहे ।

                                             तब हो या अब हमें एकता भाव को खूब बढ़ाना ही होगा । 

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

साथी हाथ बढ़ाना !!


सुनी सुनाई बातें अपनी जगह पर हकीकत कुछ यूँ हैं -

      हमारा देश जीडीपी के मामले में दुनियां में पांचवा देश हैं - जहाँ जीडीपी का औसत पिछले दस सालों में 7.5 % रहा। इसमें सभी राज्यों का भरपूर योगदान रहा। सभी ने अपने तयी खूब प्रयास किये।

     अगर हम विगत 60 सालों में कुछ ना करते तो हम आज दुनियां के जीडीपी के पैमाने पर 1947 की तरह 132 वें स्थान पर ही रहते। ऐसा तो नहीं है ना, आज हम पांचवे स्थान पर हैं।

          आओ मायूस ना हों - तरक्की बहुत की हैं और बहुत करेंगे - ख़ास तो सामाजिक स्तर पर शोषण को जितना हो सके उतना कम करना होगा - कारोबारियों द्वारा आम जनता का शोषण बहुत हद तक रुका हैं, और बहुत रोकना हैं।

           ज्यूँ- ज्यूँ हमारे संसाधन शोषितों तक सहज रूप पहुंचने लगेंगे हमारा सामाजिक आर्थिक ठांचा और अधिक सबल होगा।

           भारत की इस आर्थिक - सामाजिक तरक्की को दुनियां बड़े गौर से निहार रही हैं, और मनरेगा जैसे कार्यक्रम की तो संयुक्तराष्ट्र भूरि- भूरि प्रसंसा भी करता हैं।

          आओ भारत को और मज़बूत भारत बनायें, तरक्की की पहुंच और अधिक लोगों तक जाएँ।

जन  -गण मंगल दायक जय हे  !!!



बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

हमारी ऊर्जा , आप और हम !!!



       आओ भारत की विगत साठ-पैसठ सालों में ऊर्जा ( बिजली ) की स्थिति पर नज़र डालें तो पाएंगे की हम सतत उन्नति के पथ पर रहे।

        देश आज़ाद हुआ तब हमारी बिजली उत्पादन क्षमता 1362 MW के आसपास थी और पर कैपिटा बिजली की खपत मात्र 16.30 Kwh ही थी और आप आश्चर्य करेंगे भारत के एक भी गांव में बिजली की पहुँच नहीं थी। 

       इस स्थिति को अगर ध्यान में रखेंगे तो आपको देश में बिजली की प्रगति की जद्दोजहद का एक अंदाजा होगा जो भारत का भारत पर भरोसा बढ़ाएगा। और 2012-13 तक आते आते भारत ने अपनी बिजली उत्पादन को 20660 MW तक बढ़ाया और कैपिटा बिजली की खपत 813 Kwh तक आ गयी। और 537947 गांवों तक बिजली ने अपना सफ़र तय किया।

                 बीते दस सालों में बिजली उत्पादन में पांच गुना की उल्लेखनीय वृद्धि हुई। 

                 आज भारत के गाँवो में बिजली की सुगम और भरपूर पहुँच सुनिश्चित हो इस हेतु विशेष प्रयास जारी हैं। भारत और अमेरिका के साथ परमाणु संधि की बदौलत इस लक्ष्य को पाना अधिक आसान और तेज होगा, ऊर्जा की प्रचुरता हमारी उन्नति को तेज करेगी।

                पर वास्तविक प्रगति तो तब मानी जाय जब गरीब घरों में बिजली सहज हासिल हो, अभी 2 करोड़ से अधिक घरों में बिजली मुफ्त दी जा रही हैं, ताके वे विकास की दौड़ में असहज महसूस ना करें। 

" भरोसा रहे भारत पर भारत का "

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

जीवन से भरी आँखें ...



      मन की निर्मलता सबसे पहले आँखों में झलकती हैं, और आँखें ही सबसे पहले मन की निर्मलता तो ग्रहण करती हैं। निर्मल मन व्यक्ति की आँखे गजब का आकर्षण और चुंबकीय सम्मोहन लिए होती हैं।

             आँखें जब जीवन से भरी होती है तो उनमें फिर प्रकाश की उजली किरणें ठहरती नहीं , दोहरी होकर देखने वाले की तरफ लौट- लौट आती हैं। इस गीत में चित्रकार अपनी कल्पना की आँखों की तस्वीर बनाने से पहले शून्य में अपनी तुलिका को कुछ यूँ घूमता हैं जैसे वहाँ शून्य में ही अपने सारे रंग भर देगा, तब तक दरवाजे के हिलते पर्दों के सहारे जीवन की सुंगंध भी हौले से वहाँ आ रही होती हैं।

          आओ सुने 43 साल पुरानी फ़िल्म " सफ़र " का यह गीत। हमारे युवा इस गीत के माध्यम से उस समय के माध्यम वर्गीय जीवन को भी निहारे, एक भली सादगी के साथ उन्हें हौले- हौले विकसित होते तब के भारत के भी दर्शन होंगे। 

          इन्दीवर साहब की अनुपम रचना , कल्याण जी आनंद जी के संगीत सुमधुर में ढलकर यह गीत दिमाग पर गहरा सकारात्मक असर छोड़ता हैं। इस गीत में कमाल सादगी है, और हाँ जीवन भी भरपूर हैं। देखें तो सही, जरा जी कर , हाँ वही , सुनकर !

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

टोपी की कहानी …


          टोपी के बाहरी किनोरो पर कुल जमा छह सात इंच की जगा , इतनी महत्त्व की हो जायेगी कभी सोचा भी नहीं था। टोपी की सीधी सपाट किनोर ने पगड़ी और साफों की सलवटों वाली दिखावटी सतह को दोयम दर्जे का साबित कर दिया हैं।

           और जब यह किनोर गांधी टोपी सी उजली और सफ़ेद हो तो फिर क्या कहने, इस पर कुछ भी लिखो , टीवी और मिडिया के घूरते कैमरों, चेहरो के हाव भाव- से अंदेशो के संदेशे और सूचनाओ का घालमेल परोसते मिडिया घरानो के भी शोषण का इंतेजाम आसानी से बिना प्रयास हो जाता हैं। 

इसे कहते है " तू चेहरे- चेहरे, मैं टोपी- टोपी "


         आओ हम जाने की यह टोपी जो आजकल फिर चलन में हैं वह और किसी कारण नहीं , बस टोपी के बाहरी किनोरो पर दोनों तरफ शर्तिया हासिल कुल जमा छह सात इंच की जगा के उपयोग की असधारण सुविधा के कारण ही हैं।

        म.गांधी ने फिर क्यूँ टोपी पहनी और लोगो ने उनका अनुसरण किया यह भी जाने , म. गांधी साफों और पगड़ियों के खर्च और उनकी सामाजिक स्थितियों से वाकिफ थे , और भारत को अंग्रेजी हेट की तरफ जाने से रोकना भी चाहते थे , और इतना ही नहीं वे भारतीय सर पर एक प्राकृतिक ताज भी देखना चाहते थे , जो गर्मी में सर को ढंके भी और मान सम्मान तथा सादगी को भी दर्शाये। 

          बाद के दिनों में म. गांधीज ने इस टोपी को भी अलविदा कह दिया और वे वक्त- जरुरत अपनी दो गज की सफ़ेद धोती को ही बड़े सहज तरीके से सर का ताज भी बना लिया करते थे। 

                                                                    बापू, तुम फिर आना मेरे देश !!!