गुरुवार, 14 जनवरी 2016

अपनी पीठ आप मत ठोक रे ...

     भारत एक तरह से विश्व का प्रतिबिम्ब हैं । विविधतायें इसकी खूबी है । विश्व के लगभग हर धर्म और सम्प्रदायों की यहाँ ब्रांचेज हैं । इस भूमि पर ही उत्पन्न हुए कई धर्म और उनके सम्प्रदाय अरबों खरबों सालों से इस धरा पर हैं । सभी सम्प्रदाय अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और सभी लगभग कई मुद्दों पर एक दूसरे से विभिन्न मत रखते हैं । दुनियां भर की छुआछूत, जातिगत समाज की कुव्यवस्था और गरीबी तथा वैभव की खाइयां होते हुए भी इंसान इंसान के बीच सद्भाव कैसे कायम रहे इसकी अद्भुत मिसालें हैं । बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक होने के फायदे है तो नुकसान भी हैं । कभी विश्वगुरु होने का गुरुर है तो आधुनिक टेक्नोलोजी विश्व से हासिल करने की आतुरता भी हैं , लालच भी हैं ।


         समृद्ध इतिहास है तो उस इतिहास से अनभिज्ञता भी हैं । कई वैज्ञानिक अविष्कारों कर सकने का मिथ्या अभिमान भी है तो कई खूबियों के जन्म दाता होने का पता भी नही । विश्व को एक कुटुंब बना देने की विशाल योजना है तो उसकी कोई दिशा नही । कई धर्मों का अविष्कारक होकर भी अभी तक धर्म का मर्म ना समझपाने की घोर लापरवाही भी भावी विश्व गुरु की एक खूबी हैं ।


             इसीलिए इसकी विविधतायें ही इसकी खूबी हैं । जो विश्व को आइना दिखाते रहती हैं । कुछ ना होकर भी कैसे सब कुछ होने का गर्व किया जाय । कैसे आपस में लड़ते हुए भी जिया जाय । कैसे घोर सामाजिक और सांप्रदायिक विषमताओं में भी जियो और जीने दो को अपनाया जाय ।


वर्तमान में तो भावी विश्व गुरु की विश्व को यही देन हैं । सबका भला हो |||

मंगलवार, 12 जनवरी 2016

बुद्ध मेरे इष्ट ..# स्वामी विवेकानंद

बुद्ध मेरे इष्ट ..# स्वामी विवेकानंद # Sawami Vivekanad 

           " एक हजार वर्षों तक जिस विशाल तरंग से भारत तरंगित रहा, सराबोर रहा उसके सर्वोच्च शिखर पर हम एक महामहिम को देखते है, और वे है हमारे शाक्यमुनि गौतम बुद्ध / उनके समय का भारत " विश्वगुरु " के नाम से भी जाना जाता था, उस समय सच्चे अर्थों में हमारे देश में शांति एवं समृद्धि का वास था / नैतिकता का इतना बड़ा निर्भीक प्रचारक संसार में दूसरा कोई नहीं हुआ, कर्मयोगियों में गौतम बुद्ध सर्वश्रेष्ठ है / 

                        उनके उपदेश इतने सरल की राह चलने वाला भी उन्हें समझ जाय / उनमें सत्य को अति सरलता से समझाने की अद्भुत क्षमता थी / उनके पास मस्तिष्क और कर्मशक्ति विस्तीर्ण आकाश जैसी और ह्रदय असीम था / वे मनुष्यों को मानसिक और आध्यात्मिक बंधनों से मुक्त करना चाहते थे / उनका ह्रदय विशाल था, वैसा ह्रदय हमारे आसपास के अनेकों लोगों के पास भी हो सकता है और हम दूसरों की सहायता भी करना चाहते हों पर हमारे पास वैसा मस्तिष्क नहीं / हम वे साधन तथा उपाय नहीं जानते , जिनके द्वारा सहायता दी जा सकती हैं / परन्तु बुद्ध के पास दुक्खों के बंधन तोड़ फेंकने के उपायों को खोज निकालने वाला मस्तिष्क था / उन्हौने जान लिया था की मनुष्य दुक्खों से पीड़ित क्यों होता है और दुक्खों से पार पाने का क्या रास्ता है /

                        वे अत्यंत कुशल व्यक्ति थे - उन्हौने सब बातों का समाधान पा लिया था / सारे जीवन वे दुःख - विमुक्ति का मार्ग जनता में बांटते रहे और लोंगों को अपने दुक्खों से बाहर आने के लिए प्रेरित करते रहे / उन्हौने हर किसी को, बिना भेद भाव के वेदों के सार की शिक्षा दी / सब मनुष्य बराबर हैं किसी के साथ कोई रियायत नहीं / वे समता के महान उपदेशक थे / वे कहते थे आध्यात्मिकता प्राप्त करना हर स्त्री-पुरुष का अधिकार है / 

                       उन्हौने निम्मतम व्यक्तियों को भी उच्चतम उपलब्धियों का अधिकारी बताया / उन्हौने हर किसी के लिए निर्वाण के द्वार खोल दिए / बुद्ध की बातें लोगों में बड़ी तेजी से फैलने लगी / ऐसा उस अद्भुत प्रेम के कारण हुआ, जो मानवता के इतिहास में पहली बार एक विशाल ह्रदय से प्रवाहित हुआ और जिसने अपने को केवल मानव मात्र की ही नहीं अपितु प्राणी मात्र की सेवा में अर्पित कर दिया - ऐसा प्रेम जिसने जीव-मात्र के लिए मुक्ति का मार्ग खोज निकालने के अतिरिक्त अन्य किसी बात की चिंता नहीं की / 

                      उस समय के भारतवर्ष में ( आज के बर्मा से अफगानिस्तान तक तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक ) करोड़ों लोगों उनके बताये मार्ग पर चलकर अपना मंगल साधा था / बुद्ध ने कहा - " ये सारे अनुष्ठान और अन्धविश्वास गलत है, जगत में केवल एक ही आदर्श है, सारे मोह ध्वस्त कर दो, जो सत्य है वही बचेगा ! बादल जैसे ही हटेंगे सूर्य चमक उठेगा ! सारे जीवन उन्हौने अपने लिए एक विचार तक नहीं किया / मत्यु के समय भी उन्हौने अपने लिए किसी विशिष्ठता का दावा नहीं किया / मैं आजीवन बुद्ध का परम अनुरागी रहा हूँ ..अन्य किसी की अपेक्षा मैं बुद्ध के प्रति सबसे अधिक श्रद्धा रखता हूँ - वे मेरे इष्ट हैं / "

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

निच्छल प्रेम की छोटी सी भेंट ...



           
            आगाख़ान महल की नज़र बंदी के दौरान म. गांधी का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था। उसी नज़र बंदी के दौरान कस्तूरबा और फिर महादेव भाई देसाई उनके निजी सचिव का भी निधन हो चूका था । अतः ब्रिटिश सरकार ने उनकी रिहाई का तय किया , ताके उनकी अगर मृत्यु हो जाय तो तोहमत ब्रिटिश सरकार के सर ना आये। 

                आगाख़ान महल की नज़र बंदी से रिहाई के बाद भी म. गांधीजी का स्वास्थ्य बहत खराब रहने लगा उन्हें थोड़े एकांत की और समुचित आराम की जरुरत थी। अतः गांधीजी को जुहू मुंबई ले जाना तय हुआ। पर वहां भी उनसे मिलने आने वालों का ताँता लगा रहता था। फिर भी श्रीमती सरोजनी नायडू उनसे मिलने वालों की संख्या को बहुत कुछ नियंत्रित करती थी जिससे उनको ज्यादे से जयादे आराम नसीब हों। 

              उनसे वहां मिलने वालों में दस बारह साल का मैले कपडे पहने एक बालक भी आया। उस बालक की मुलाकात ने तो बापू का दिल ही जीत लिया था। वह बालक बापू से मिलने की सुबह से ही जिद कर रहा था। किस तरह उसका न. शाम को आया। बापू से जब वह मिला तो उसने अपने कमीज की जेब से निकाल कर बापू के चरणों में कुछ फल रख दिए। तब गांधीजी की मंडली जो उस समय वहां उपस्थित थी में से किसी ने उस बालक को ऐसा ही कुछ कह दिया जिससे उस बालक के स्वाभिमान को चोट पहुंची और वह बालक कह उठा - नहीं , महात्मा जी , मैं भिखारी नहीं हूँ। जब से मैंने आपकी रिहाई का समाचार सुना तब से मैं कुली का काम करके कुछ दो - तीन रूपये जमा करके आपके लिए ये नम्र भेंट लाया हूँ । गांधीजी उसका निष्काम प्रेम देखकर द्रवित हो गए , बापू की आँखों से आश्रु धारा बह निकली । उन्होने कहा " बेटा अपने परिश्रम के फल तुम ही खाओ " परन्तु उस दृढ़ निश्चयी बालक ने उन्हें छुआ भी नहीं और कहा - महात्मा जी आप ये फल खा लेंगे तो मेरा पेट भर जायेगा। " यह कहते हुए उस बालक का चेहरा विजय गर्व से दमक उठा और फिर वो आहिस्ता से बापू को प्रणाम कहते हुए उनकी तरफ बिना पीठ किये धीरे - धीरे चला गया। 

               मित्रों, बापू ने भारत भूमि को और यहाँ रहने वाले एक - एक प्राणी के प्रति अगाध प्रेम किया था , और बदले में उन्हें भी भारत भूमि से , यहाँ रहने वालें एक - एक इंसान से वैसा ही स्नेह और आदर मिला था। 

             आओ गर्व करें की हमें म. गांधीजी जैसे राष्ट्रपिता का साथ मिला और मिली उनकी मंगल कामनाएं, मिली उनकी मैत्री , मिला उनका मार्गदर्शन।