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रविवार, 16 दिसंबर 2012

हम तो दिल से सलाम करते हैं ..




                                            देखो न ... सलाम करने से ज्यादा महत्त्व की बात यह हुई कि हम कैसे सलाम करते हैं ... सौ -सौ सलाम भी,  दिल से किये एक सलाम की बराबरी  नहीं कर सकते  ... सलाम करने की या किसी की सलामती की चाह दिल में किस कदर हैं ... उसी के अनुरूप सलाम का असर बदल जाता हैं ... जब-जब दिल में किसी की सलामती के भाव कमजोर हों ... और सलाम करना मजबूरी हो .. तो फिर शरीर को बड़ी मेहनत से सलाम को असरदार बनाना पड़ता हैं ... और यूँ करते हुए अकसर शरीर अकड़ने लगता हैं  ...
                                         
                                            इस तरह अकड़ के किया जाने वाला सलाम , सलाम करने वाले  के लिए वो शुभ फल नहीं ला पाता .. जिनकी उम्मीद की जाती हैं ...  अब कोई सलाम के उलटे असर को कितना ही कोसे बड़ा फर्क नहीं पड़ता ... खैर ऐसी  हालत में जो हुआ सो हुआ आगे सलाम दिल से ही करें वर्ना पासा पलटने में देर नहीं लगती ... और इस उहापोह में हमारा एक सलाम भी तो जाया हो जाता हैं ।

                                             सलाम नजर से करें, झुक - झुक कर करें, बार - बार करें , ऐसे  करें या वैसे करें ...  बस दिल से उठने वाली तरंगो पर ध्यान रहे ... मन के किसी कोने में जरा-सी भी अड़चन दिखे ... रंज दिखे ... तनाव -दुखाव दिखे ... दुर्भाव दिखे या दिखे मामूली - सी जलन ... तत्क्षण तनिक ठहर जाएँ ... और जिसे सलाम करना है ... उसके व्यक्तित्व पर विचार करें ... उसके किये किसी पूर्व उपकार पर नजर डाले ... उसके किसी सद्गुण पर ध्यान दे ... उनसे साथ रिश्तों की उर्जा को टटोले  ... यूँ करते ही मन सुगम हो जायेगा ... सरल होकर फिर ... सद्भाव से भर-भर उठेगा ... मन ही मन जिसे सलाम करने जा रहे हैं उसे सलाम करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि .... मन में अब सुगमता हैं ... उत्साह हैं , सुख हैं , सद्भाव हैं , शीतलता हैं ... अब बस गर्मजोशी से मन में सद्भाव जगाते हुए ... सलाम करें ... और सलाम के नतीजे के बारें में सलाम के असर होने तक भूल जाएँ ...  और अनासक्त भाव ओढ़े अपने काम से काम और राम से राम रखे ... अबके असर होकर रहेगा ...

                                             देखना जवाब में सलाम फिर सलाम की शक्ल में ही लौटेगा ... और सद्भाव के भाव वातावरण में ठीक वैसे ही और बढ़-चढ़  कर तैर जायेंगे जैसे हमने सलाम करते समय मन में धारण किये थे। ........... भला हो !!!