देखो न ... सलाम करने से ज्यादा महत्त्व की बात यह हुई कि हम कैसे सलाम करते हैं ... सौ -सौ सलाम भी, दिल से किये एक सलाम की बराबरी नहीं कर सकते ... सलाम करने की या किसी की सलामती की चाह दिल में किस कदर हैं ... उसी के अनुरूप सलाम का असर बदल जाता हैं ... जब-जब दिल में किसी की सलामती के भाव कमजोर हों ... और सलाम करना मजबूरी हो .. तो फिर शरीर को बड़ी मेहनत से सलाम को असरदार बनाना पड़ता हैं ... और यूँ करते हुए अकसर शरीर अकड़ने लगता हैं ...
इस तरह अकड़ के किया जाने वाला सलाम , सलाम करने वाले के लिए वो शुभ फल नहीं ला पाता .. जिनकी उम्मीद की जाती हैं ... अब कोई सलाम के उलटे असर को कितना ही कोसे बड़ा फर्क नहीं पड़ता ... खैर ऐसी हालत में जो हुआ सो हुआ आगे सलाम दिल से ही करें वर्ना पासा पलटने में देर नहीं लगती ... और इस उहापोह में हमारा एक सलाम भी तो जाया हो जाता हैं ।देखना जवाब में सलाम फिर सलाम की शक्ल में ही लौटेगा ... और सद्भाव के भाव वातावरण में ठीक वैसे ही और बढ़-चढ़ कर तैर जायेंगे जैसे हमने सलाम करते समय मन में धारण किये थे। ........... भला हो !!!