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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

छोटा करके देखिये ...


छोटा करके देखिये  ... 





         शांति - काल में हम अपने चारों  ओर आग के बीज  बोते जाते हैं ... वाणी से दूसरों की अंतहीन निंदा करके ...  और जब आग के बीज समय पाकर फलते - फूलते है ... तो इधर - उधर कातर कंठ से बचाओ - बचाओ का शोर करते हैं , सद्भावना के गीत गाते हैं ... थोडा और आगे बड़े तो सरकार को कोसते हैं ... पुलिस को टोकते हैं ... सबको समझाते हैं ... पर खुद समझना नहीं चाहते ...भाई बीज  बोते समय सतर्क रहना ही होगा ...  

         सभी सम्प्रदायों का सार एक ही हैं ... हम सब मानते हैं ... और वही सार सम्यक धर्म हैं ... पर हम  सांप्रदायिक बाहरी आवरणों  को असल धर्म मानकर चलने की सर्वथा गलत राह पर चल रहे हैं ... जबकि सांप्रदायिक  बाहरी आवरण कई मायनों में  भिन्न-भिन्न हैं .... और  उन्ही भिन्नताओं पर वाद -विवाद होता हैं ... एक दुसरे के आवरणों को नीचा -या कभी ऊँचा बताया जाता हैं ... और वाणी की निंदा का कर्म बढ़ते बढ़ते शारीरिक निंदा कर्म यानि ... मार -पीट , हिंसा , या बहुत हुआ तो सांप्रदायिक वैमनस्य ... और आगे बढे तो धर्म की रक्षा के नाम पर आतंकवाद तक जा पहुंचाते हैं ... कोई रुकना नहीं चाहता ... और ऊपर से यहाँ भी प्रतिस्पर्धा यूँ की पहले कौन रुके ... वो रुके तो बेहतर ... मैं तो रुक हुआ ही हूँ ... 

जीवन के विस्तार को छोटे-छोटे टुकड़ों में जानने की एक कोशिश ...  
           हमें जीवन के विस्तार को छोटा करके देखना ही होगा ... क्योंकि जीवन के विस्तार को बड़ा करके देखने की हमारी अभी काबिलियत नहीं हैं ... और जो - जो महापुरुष जीवन के विस्तार को बड़ा करके देख गए हैं ... उनकी बात को समझना नहीं चाहते है हम ... अतः भला हो ... हम जीवन के विस्तार को छोटे-छोटे टुकड़ों में देखें ... और फिर आगे  सुसमय  जान सारी  जानकारी को एक जगह एकत्र कर कुदरत या कहे ईश्वर  , या कोई नाम दे ...बस  उसके  सारे रहस्य को जानने का प्रयत्न करें ...


संलग्न लिंक में आपके लिए निदा फाजली साहब की सुन्दर रचना उपलब्ध हैं ... जगजीत सिंह साहब की उम्दा आवाज में कर्णप्रिय संगीत की संगत कीजिये ... एक झरना  सपनों का हमारे आसपास सुनाई दे शायद ... समय हो तो सुनियेगा जरुर ... 



सुप्रभात !!!