सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

वंशवाद !!!


          वंशवाद का विरोध हमें केवल घृणा सिखाता हैं … और वह भी उससे और केवल उस बात के लिए, जिसमें किसी वंश में जन्म लेना केवल संयोगवश ही होता है,  यह सब जानते हैं। 

      इस तरह हम आज जिस वंश में जन्म लिए हैं उसका भी जाने - अनजाने अपमान कर जाते हैं .... हमें किसी वंश में जन्म मिले यह उस वंश का हम पर उपकार ही हुआ और असीम उपकार हुआ … अब आगे अपनी-अपनी करनी और यॊग्यता के बल पर ही अवसर मिलेंगे … जो भला हैं वह आगे बढ़ता जायेगा … जो नहीं वह थोड़ी दूर चलकर रुक भी जायेगा। ।

                     देखते नहीं कितने ऊँचे वंशों में जन्मे भी उतना बिकास नहीं कर पाये जितना वे कर सकते थे … ऐसे कई उदाहरण हैं … और बड़े- बड़े वंशों के हैं  , इनमें सबसे बड़ा उदाहरण " गांधी " शब्द को सब कुछ मानने वाले और केवल इस शब्द का ही सब योगदान होता हैं, यूँ मानने  वाले या किसी  वंश में जन्म लेना ही कोई काबिलियत होती हैं,  यूँ मानने वाले यहाँ एक बात पर गौर करें ---

                   म. गांधी जी के सबसे बड़े सुपुत्र हरिभाई गांधी अपने पिता कि इतनी विशाल प्रसिद्धि के बावजूद उनके बराबर तो क्या उनके बिलकुल विपरीत हुए … कारण यह नहीं कि महात्मा गांधी जी ने उन्हें आगे बढ़ने से कभी रोका हो … म. गांधी के दूसरे  पुत्र भी हुए  जिनका हम नाम भी ठीक से नहीं जानते हैं … इसका मतलब यह भी नहीं कि वे काबिल नहीं रहे होंगे … पर हाँ हो सकता हैं सबकी अपनी- अपनी कर्मों की लेखी और वर्त्तमान कर्मों कि नींव भी अपनी- अपनी जगह रहती ही हैं। 

                    खैर कोई किसी से कितनी नफ़रत करें इसका कोई अंत नहीं … पर हाँ वास्तविक भला तो सद्भाव जगाकर ही होता हैं … जो जो काबिल हैं खूब आगे बढे … जो नकारा हैं वे पीछे रहने ही वाले हैं … कुदरत के इस नियम पर तो कम से कम भरोसा तो रहे। 

                  नफरत का विस्तार रुके ..... मन शांत हो … दिल बड़े हों 

                   कोई कितने ही बड़े वंश का हो … या हो निहायत छोटे वंश का -- कर्मों के फलों पर विश्वास रखे -- जैसे बीज वैसे फल -- जैसे कर्म वैसे फल -- और जैसे किसी बीज का फल जल्दी आता हैं , वह तुरंत मिलता हैं … और किसी बीज का फल काफी देर से आता हैं -- इस तरह हमारे अपने कर्मों के फल भी --- कभी तुरंत, तो कभी माध्यम देर से … और कभी- कभी काफी देर से समय पाकर आते हैं … कभी- कभी तो एक बार फल देकर रुक जाते हैं -- कभी- कभी बार- बार फल मिलते हैं --- और हाँ कभी- कभी तो जन्म जन्मान्तरों तक मिलते हैं।  आओ हम सभी अपने- अपने कर्मों पर नज़र रखे … भले कर्म करें , नफ़रत का कर्म नफ़रत के फल ही लाएगा और सद्भाव का कर्म वैसे ही सद्भाव रूपी फल लाएगा। 

                आओ इस अमूल्य और अतुलनीय नियम को केवल मान कर ही ना रह जाएँ … उस पर घोर विश्वास करके ही ना रह जाएँ -- अमल करें -- क्योकि अमल ही बीज बनते हैं --- और उन बीजों के ही तो फल ही तो आगे आना हैं। 

सबका भला हो !!!


बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

जब दुश्मन प्यारा लगे …


                गुस्सा और नफरत सहज खरपरवार - सी बिना विशेष प्रयास के हमारे दिलों में उग जाती हैं … या ऊगा दी जाती हैं … अब वह नफरत जायज हो या नाजायज नुकसान तो हमारा ही करती हैं … नफरत के कारण को मिटाने से आज तक दुनिया में कभी नफरत का नाश नहीं हुआ … 

              वस्तुतः नफरत के कारण को नहीं उसके फैलाव को रोकना होता हैं … और उसका फैलाव कोई रोके तो भला कहाँ रोके … फैलाव हमारे दिलों में होता हैं … उसे वहीँ रोके … हमारे अपने भले के लिए … और साथ ही साथ सबके भले के लिए। 

               कल सुना कोई अपने मित्रों की किसी गलती पर उनके प्रति नफरत में कई - कई साल जलता रहा … पर उसका भला अंततः हुआ अपनी नफरत पर विजय पाकर …. यह बड़ी बात हैं। 

                म. गाँधी पर छः बार हमले हुए … पांच बार उन्हौने अपने ऊपर हुए हमलों को नज़रअंदाज किया … और छटी बार अपने प्राणों की आहुति देकर सद्भाव और सौजन्यता की मिशाल कायम कर गए … वे अपने से नफरत करने वालों से नफरत करके पहली बार में ही मार दिए गए होते … यही कारण रहा की वे मरकर भी अजेय हैं।

                           हो सके तो बाकि सब करें नफरत किसी से ना करें ... सुने यह गीत भी कुछ यही कहता हैं --
  
     

सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

बातें हैं बातों का क्या ?


       १) इस तरह की भगदड़ वाली घटना और उससे भारी  जन-हानि पहली नहीं होती हैं , अनगिनत हैं  …. और हर तरह के सम्प्रदाय के पवित्र स्थलों पर हुई हैं  , और हर तरह की गुड गर्वर्नेन्स या बेड  गर्वर्नेन्स की सरकारों में हुई हैं  … यहाँ तक की विदेशों में भी हुई हैं  …

   २) और हर  घटना के बाद कोई सरकारों का इस्तीफा मांगता हैं , कोई प्रशासन को ठीक करता हैं  … कोई कोसता है  … कोई बचाव करता हैं  … कोई दुराव करता हैं  …. 

               ३) और हर घटना के बाद सबक सीखे जाते हैं  … और उनका पालन होता हैं  … और उन  सबकों को फिर नयी घटना की आगवानी के लिए भुला भी दिया जाता हैं  … और कभी कोई नया कारण  भी उत्पन्न हो जाता हैं  …. 

               ४) फिर भी जनता जागरूक हो , उसे अंध-विश्वासों से दूर रहना सिखाया जाय , उसे "  मन-चंगा तो कठौती में गंगा "  कैसे उतारे यह बताया जाय , कण -कण में भगवान् हैं , वह हर भले- बुरे , काले- गोरे , इन्सान के अन्दर हैं यह उसे जंचाया जाय   …. उसकी आस्था को विवेक की आँख दी जाय  …. यह काम जिसका हैं वह हर बार अन- चिन्हा  रह जाता हैं  ... वह हर बार सम्प्रदायों की ओट में छुप जाता हैं  … वह जो हो उसे आगे आना ही होगा  …. उसे जनता को अपने- अपने सम्प्रदायों में ठीक से सुशिक्षित करना ही होगा  …. अगर एसा होता हैं  …. तब मिनिमम गर्वनेंस की बात खुद- ब - खुद हो जाएगी  …. 

                 अन्यथा तेजी से बढती जानकारी के युग में समय रहते वह आगे नहीं आया तो फिर वह ओट में छुपा ही रह जायेगा -- अब बहुत देर तक अफवाहे , दुष्प्रचार , दुराचार , कुटिलता ,  पाखंड वह  चाहे कोई करें टिकेंगी नहीं उजागर होती ही जाएँगी  ।

               आशा हैं राम सबके भीतर जागेंगे  …. हमारे अन्दर का अन्धकार हमने  ही फैलाया हैं  … उसे हमें ही मिटाना होगा 

                सबका भला हों !!    … सुने यह गीत भला हैं  … और सारे  दिन ताजगी से भर देगा  … इस तरह की काबिलियत से लबरेज हैं    … 

                             
कसमें-वादें प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों  का क्या ? 

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

वक्त तो लगता हैं !!




       देश आजाद हुआ … तब हम भारतीय ३२ -३५ करोड़ के आसपास थे , रोजगार, खाद्यान्न और सांप्रदायिक झगड़े टंटो की विकराल समस्या थी … पर भला हुआ इस पावन धरा पर मजबूत लोकतंत्र की गहरी नींव लम्बे आज़ादी के संघर्ष के दौरान पड़ चुकी थी … सांप्रदायिक झगड़ों और उनसे हुए अतुलनीय नुकसान से सांप्रदायिक सद्भाव का महत्त्व भली तरह उजागर हो चूका था … हिंदुस्तान ठोकरें खाकर अब ठाकुर " भारत " के नए अवतार में था … जिसके प्राण बना हमारा अतुलनीय खूबियों वाला संविधान !!

                  शुरूआती बीस- तीस साल तक भारत बड़े उद्योगों के सृजन में, और कृषि के विकास के कामों में भारत तल्लीन रहा … ताके उत्पादन के क्षेत्र में , रोजगार के क्षेत्र में और खद्यान्न के मामलों में हम आत्म - निर्भर हो सके , और इतिहास को हम देखें तो हमें विश्व का सहयोग भी मिला और हम सफल भी हुए ही। 

                    परन्तु अब भी पूंजीपति और बिचौलियों द्वारा आम जनता के परिश्रम का शोषण जारी था … और शुरुआत में जब हम संभल रहे थे शोषण पर एकदम से नियंत्रण स्थितियों के बिघड़ने का कारण बन सकता था … और देश समता और बराबरी के लिए खामोश लढाई लढता रहा । 

                    जब हम थोड़े संभले तो बारी आई सपनों के उडान भरने की और सबसे पहले हमें आकर्षित किया " कार " ने, फिर कार आई … इसके बाद धीरे-धीरे प्रगति करता भारत " अमर घर चल से निकल कर " कम्यूटर की दुनिया में प्रवेश कर गया … फिर दौर शुरू हुआ आर्थिक सुधारों का … यही से भारत ने उडान भरी महत्वाकांक्षी और बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के सम्यक और कल्याणकारी मंसूबों की दिशा में , जहाँ शोषित को उसके हक प्राकृतिक रूप से मिले ऐसी कोशिशें शुरू हुई … संचार के क्षेत्र में, आवास और संरचनात्मक ढांचे की बनावट के तेज काम इस महत्त्व के काम को उल्लेखनीय गति देते गए। 
                 बहुतेरे काम अभी भी होने हैं … लेकिन उचित अवसर जान सामाजिक आर्थिक प्रगति और शोषितों को उनके श्रम का उचित मुल्याङ्कन हो और शोषितों को उनके वाजिब हक मिले इस दिशा में मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा का अधिकार , चिकित्सा की सुलभता और, भूमि सुधार के उपाय और इन सबकी सफलता सुनिश्चित करने वाला " आधार " … उज्जवल भविष्य की वह गाथा लिखेगा कुछ दशकों में धुल से किस तरह कोई सुगन्धित फुल खिल उठता हैं यह दुनिया देखेगी  ...  हम कोरे विकास के कागज के असंवेदन शील और असुगंधित फुल बन कर ही ना रह जाएँ   … हमारे दिलों से दिल मिले।  

                पर भारत के पुनः अभ्युदय का विशेष प्रयोजन अभी कुछ साल और लगे पर यह होगा ही कि हम भारतीय उन ऊँचाइयों को छुए जिनके कारण भारत कभी " सोने की चिड़िया कहलाया " था। 

                वक्त तो लगता हैं … हालिया फोर लेन सड़कें जब हमें इठलाये … हम भारत के विकास की कहानी में पगडंडियों , कच्ची सड़कों और बैलगाड़ियों के योगदान को सिरे से ना नकारें … हम हमारे देश के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े प्रयत्न को याद रखे … यादें हौसले देती हैं। 

                  नए परिंदे को उड़ने में वक्त तो लगता हैं … पर … वह उड़ेगा और उन्मुक्त आकाश हमारा ही हैं … और भारत विश्व कल्याण के भार से भारित भी है ही।



सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

फल देगा भगवान् … !!

       किसने बनाया इस देश की बहुसंख्य जनता को अंधभक्त ?

 … इस देश की जनता को सम्प्रदायों ने ही अंधभक्त बनाया है   … सम्प्रदायों के गर्न्थों की सांकेतिक भाषाओँ और फिर उन सांकेतिक भाषाओँ के व्याख्याकारों ने इस कमी का बहुत फायदा उठाया  ….  सांप्रदायिक ग्रंथों की भाषा का सांकेतिक होना , और जनभाषा में उनका ना होना उसके व्याख्या कारों  के लिए  एक बहुत अच्छा अवसर साबित हुआ  …. भले और कल्याणकारी ग्रंथों की उसने व्याख्याकारों ने मन माफिक व्याख्या की   … जनता को स्वर्ग और नरक के मायाजाल में उलझाया  … और फिर हद तो तब कर दी जब उन्हौने " भगवान् "  को रचा और लगे हाथ यह आश्वासन भी दिया की बस भगवान् को खुश करने का तरीका मुझ से सिख लो , और फिर निश्चिन्त हो जाओ , कितने ही पाप करो तुम्हारे स्वर्ग की टिकिट  पक्की हैं।

              स्कुल कालेजों की शिक्षा लोगों में अंधभक्ति मिटाती  तो आज बड़ी तादाद में पढ़े लिखे लोग इन बाबाओं की तरफ आकर्षित नहीं होते या उनके जाल में फंसते नहीं , या उनका अनुचित बचाव भी करते नहीं।

             मेरे विचार से " जैसे कर्म वैसे फल " यह हर संप्रदाय की भली और कल्याणकारी  सीख  हैं  … इस सीख  को लोगों में खूब प्रचारित करना चाहिए   …. और हमें अपने लोक व्यवहार इस अमिट  , अटल सिद्धांत के मद्देनज़र ही  करना चाहिए।  

…           देखिएगा,  बाबा फिर यूँ गायब हो जायेंगे जैसे कभी हुए ही ना हो !!!


               आने वाला वक्त इसी बात का हैं " हिन्दुस्तान अपनी करनी और कथनी के अंतर को कम करेगा  … वह इसी तरफ अग्रसर हैं  … दुनिया खूब जानती हैं  … हम बहुत भली बातें करते हैं  … पर उनका पालन नहीं करते   ….

            दुनिया हमारी भली बातों  को हमारे कर्मों से परखेगी  … और यह हमारी जवाबदारी हैं  …और दुनिया में सबसे पुरातन संस्कृति होने  का दंभ भरने के कारण  हमारा कर्तव्य भी  हैं  … भारत के नाम के अनुरूप हम पर भारत के   पुनराभ्युदय  के साथ यह बहुत बड़ा भार भी हैं  ….  हम उस भार से भारीत  हैं  … जिम्मेवार हैं।

                                            सबका भला हो !!!