मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

उज्जैन स्थित पुरातन वैश्य - स्तूप


उज्जैन का प्राचीन स्तूप ....



                          थागत भगवान बुद्ध कि निष्प्राण रुपकाया कि दाहक्रिया करके बचे हुए अस्थि अवशेष के लिए भगवान का निर्देश था - " तथागत के अस्थि-अवशेष कि स्थापना के लिए बड़े चौराहों पर स्तूप बनाना चाहिए, वहाँ आकर कृतज्ञं नागरिक पुष्प - माला,  गंध आदि चढाते हुए अपने मन में तथागत के प्रति श्रद्धा-जनित कृतज्ञता जताएंगे / वह चिरकाल तक उनके हित-सुख के लिए होगा / कृतज्ञता भरी श्रद्धा से कब कोई अपने मन में निर्मल प्रसन्नता जगाता है तब उस पुण्यकर्म का फल भी स्वभावतः प्रसन्नता प्रदायक ही होता है /



                 तथागत कि रुपकाया के अस्थि अवशेष को यूँ स्तूपों में निधान कर सुरक्षित रखने का एक अन्य लाभ यह भी होता है कि उनके एक हाड़-मांस वाले ऐतिहासिक महापुरुष होने कि सच्चाई का प्रमाण चिरकाल तक स्वतः सिद्ध रहता है / उन्हें एक काल्पनिक पौराणिक व्यक्ति मानने का भ्रम दूर होता है / यही नहीं सहस्त्रों वर्षों तक जनसाधारण को तथागत के प्रति कृतज्ञता भरे श्रद्धा सुमन चढाते रहने का पुण्य अवसर मिलता रहता है / इसके अतिरिक्त साधक लोगों को उस अद्भुत रुपकाया के अस्थि अवशेषों से निरंतर प्रस्फुटित होती हुई निर्मल निस्पृहता कि धर्म तरंगों  के सानिध्य में तप-साधना करने का ठोस लाभ मिलता रहता है  इसी तारतम्य में उस समय के भारत में तथा आस-पास के पडौसी देशों में  स्तूपों कि एक श्रंखला सी बनती गयी... सम्राट अशोक का उज्जैन से गहरा नाता था अतः मध्यप्रदेश में भी अनेकों स्तूपों का निर्माण होना पाया जाता है पर उज्जैन स्थित स्तूप अपनी निर्माण शैली के कारण सबसे अलग है / यह मिटटी से बना है एवं आज तक अपने पुरातन स्वरूप में कायम है / शंकु आकार का यह स्तूप अपने गोलाकार आधार पर ४४४ फुट है एवं शिखर कि ऊँचाई लगभग १११ फुट है, जो आसपास एक चौकोर आधार पर चारों ओर ४० फुट  चौड़ी कम गहरी नहर-नुमा संरचना से घिरा हुआ है / संभवतः इसी नहर- नुमा नाली कि मिटटी से इसे बनाया गया होगा  / इस स्तूप में कहते है भगवान बुद्ध का एक दांत,  उनके उपयोग में आने वाला आसन  सन्नहित है / इस विलक्षण स्तूप के समीप ही एक अन्य स्तूप भी इसी तरह से बना हुआ है पर आकार प्रकार में कही अधिक छोटा है /



                  २४००  वर्षों से ज्यादा समय गुजरते- गुजरते अब  यह विस्मृत सा एवं उपेक्षित है पर असाधारण है .. उज्जैन रेलवे स्टेशन से ५-६ किलोमीटर दूर  ठीक  कर्क रेखा पर  स्थित यह स्तूप आजकल वैश्य टेकरी के नाम से जाना जाता है ... शायद यह उस समय के उज्जैन नगर के किसी धनाड्य सेठ ने भगवान के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रगट करने के कारण बनवाया हो या भगवान गौतम बुद्ध के पहले हुए भगवान वेस्सभु बुद्ध का इस स्तूप से कोई सम्बन्ध रहा हो यह खोज का विषय है .. इसके इतिहास कि पड़ताल होनी चाहिए एवं इसका संरक्षण तथा विकास भी  /