गुरुवार, 29 मार्च 2012

असल फायदा


असल फायदा 



 स खबर को पढने पर एक बात महसूस होगी की ताउम्र" जादव पायेंग " लड़ा नहीं .. अपितु उसने संघर्ष का कल्याणकारी रास्ता चुना ... आपको थोडा सा अजीब लगे ... पर बात गौर करने लायक हैं ... आज जब हम देखते हैं की सडकों पर उतरकर धरना  देना और घेराव करना एक फैशन-सा बनता जा रहा हैं ... और बड़ी सफाई से उसे महात्मा गाँधी जी से जोड़कर और फुलावा देने की कोशिश की जाती हैं ... पर अगर ध्यान से गांधीजी के जीवन को समझने की कोशिश की जाय तो हमारे युवा पाएंगे की आजकल देश में इंडिया अगेंस्ट करप्शन ( India against Corruption  ) के आन्दोलनों के विपरीत गांधीजी अपने आन्दोलनों में शिष्टाचार और अहिंसा को सर्वोपरि मानते थे ... और घेराव की राजनीती से गाँधी जी का दूर-परे का भी सम्बन्ध नहीं / आखिर लोकतंत्र अपनों को अपनों के खिलाफ लड़ाने का नहीं शिष्ट रहकर संघर्ष करने का नाम हैं /

                                        कल हुआ अन्ना हजारे जी  ( Anna  Hazare  Ji  ) एक दिवसीय उपवास कार्यक्रम उपहास कार्यक्रम और भीड़ की शक्ति का प्रदर्शन बनकर रह गया. दिनभर सरकार को कोसने में ही जाया हुआ. अंततः भीड़ को कोरी नकारात्मकता के अंधे कुँवें में धकेल कर अन्ना जी और उनकी टीम अपनी पीठ आप ठोकती हुयी घर चली गयी /


                                  
                                         तीस साल पहले " जादव पायेंग जी "  अगर की जंगलों को बचाने और उनकी देखरेख ठीक से नहीं हो रही हैं की बात को लेकर अनसन , उपवास , घेराव , सरकारों पर कुछ न करने के लांछन और नित नए आरोपों की बौछार करते तो भाई और सब कुछ हो जाता इतना बड़ा जंगल खड़ा नहीं होता ... पर हाँ अगर उनकी किस्मत अच्छी होती तो कोई विदेशी सम्मान जरूर उनकी झोली में होता ... पर उन्हौने दिखा दिया की  असल फायदा तो सकारात्मकता को जमीं पर उतारने से ही होता है /

                                         हम गलत के खिलाफ बोलें इसकी यहाँ खिलाफत नहीं ...  पर हाँ साथ ही साथ जिसे हम सही ठहरा रहे हैं ... जो हमारे आदर्श हैं ...  उनका हमारे जीवन में प्रभाव जब तक दिखाई नहीं देगा ..तब तक  ज़माने के गले कोई बात उतरने वाली नहीं / यही और यही कारण हैं की गाँधी जी का प्रभाव सालों साल बीत जाने के बाद भी अपने ही दम पर आज भी  कायम हैं /


                                           अक्सर भीड़ तमाशा देखने वालों की भी लग जाती हैं ... इसलिए टीम अन्ना जब तक भीड़ का मनोरंजन किसी की नक़ल उतार कर या किसी पर बेहूदा आरोप लगाकर करती रहेगी  भीड़ शायद जुटती रहेगी  ... कल ही टी. वी. पर किसी बहस के कार्यक्रम में किसी ने टीम अन्ना पर यह आरोप लगाया की टीम अन्ना पर भी दाग हैं ... तो टीम अन्ना ( Team  Anna  ) का तर्क सुनकर हंसी आ गयी की जन लोकपाल बनाओ फिर लोकपाल हमें भी सजा देगा ... भाई नेता तो अपने ऊपर लगे आरोपों का अदालतों में सामना कर रहे हैं ... देर सबेर उनका फैसला आ ही जाये शायद ... पर जो आप खुद मानते हो की वे गलत हैं उसको अपने आप को सुधारने में सीना जोरी व् देरी समझ से परें एवं कोरी अकड़ और घमंड का परिचायक हैं /

                                            खैर आज की सकारात्मक खबर यह हौसला बढाती हैं कि अकेला चना भी चाहे तो भाड़ फोड़ सकता हैं ... और कल की टीम अन्ना की जुगत "  थोथा चना बाजे घना "  वाली  कहावत को चरितार्थ करती हैं ... जरा सोंचे ?  ....साधुवाद   " जादव पायेंग जी "  /  

( यह खबर नईदुनिया के 26 .3 .12  सोमवार के अंक में पहले पन्ने पर छपी हैं जिसे www.naidunia .com  पर भी देखा जा सकता हैं )

बुधवार, 28 मार्च 2012

सुधारने की जिद नहीं .. सुधरने की कोशिश हो !!

सुधारने की जिद नहीं .. सुधरने की कोशिश हो  !!




अन्ना टीम अब " क " टीम बनकर रह गयी हैं ... केजरी , किरण, किशन, कुमार  और उनकी बातें ...  कड़ा, कानून, कुतर्क, कुत्सित विचार , क्रोध , कुटिलता  इत्यादि ... भाई मैं जड़ों की बात कर रहा था ... और आप सहमत हुए भी तो तने पर आकर ... हमारी संसद तना हैं देश का ... इस तने में पोषक रस आता हैं जड़ों से ...जड़े हैं ...  मैं , आप ,और एक- एक भारतीय ... जड़े सुधरें तो धीरे - धीरे तने तक सुधार होगा ही ... तना सुधरेगा तो पेड़ लहलहा उठेगा ही ...  इसमें किसी को भी शक नहीं ?  अब सोंचे टीम अन्ना को मैं क्यों कोसता हूँ ... इसलिए नहीं की वो लोकतंत्र रूपी पेड़ को सुधारने के लिए क्यों जूझ रही हैं ...  बल्कि इसलिए की वह तने पर जहरीले रसायनों का छिडकाव कर रहीं हैं ... छिडकाव करें उससे भी एतराज नहीं ...पर छिडकाव की कोशिशें तने पर करने की कोई भी समझदार आदमी या किसान नहीं करता ... क्योंकि बीमारी जड़ों से आती हैं ... वहां इलाज हो या या फिर कभी कभी फौरीतौर पर पत्तियों पर भी इलाज कोई कोई करता हैं ... तने को किसान नहीं काटता कभी ... वर्ना सारे पेड़ से हाथ धो बैठेगा वह खूब जानता हैं ...  

                                        हमारा युवा जो आज गांधीजी को खोजता हैं ... उनकी  विचाधारा से प्रभावित हैं ... को अँधेरे में रखकर अपने भड़काऊ , और नकारात्मक विचारों को गांधीजी के नाम पर फैला रहीं हैं टीम अन्ना ... कुमार जी टीम अन्ना के सदस्य का एक कुतर्क आप भी बना सोंचे समझे दोहरा रहे हैं ...  " की डाक्टर से शिकायत हैं तो खुद डाक्टर बन जाओ यह कैसा हल हैं "  ... कितना बड़ा कुतर्क हैं ... हमें भ्रष्टाचारियों से नहीं भ्रष्टाचार से शिकायत  हैं और करनी भी चाहिए ... सभी कहते हैं अपराध से घृणा हो अपराधी से नहीं ... यहीं कारण हैं की हमारी कितनी ही बुरी आदतें हो हमारा परिवार उनके कारण हमें घर से बाहर नहीं न कर देता ... वह लगातार अपने तयी कोशिशें करके हमारी बुरी लतों को छुड़ाना चाहता हैं ... हमसे पीछा छुड़ाने का विकल्प वह नहीं अपनाता ... और कोई अपनाये भी तो उसका कृत्य सराहा नहीं जाता ... अनुशरण के काबिल नहीं समझा जाता ... उसके कृत्य को सभी अपनाये यह नहीं कहा जाता .... न खुले आम उसकी वकालत की जाती हैं ... 

                                    अब कल को अगर सारे दल मिलकर केजरी भाई या कुमार  भाई या किरण बहन को कहें की आप देश सम्भालों चुनाव भी मत लड़ों ... पर पूर्ण - शुद्धता का प्रमाण पत्र अपने अन्ना से ही ले आओ तो क्या अन्ना का वह प्रमाण पत्र पूर्ण रूप से सही होगा ... गुनाह हर आदमी से होता हैं ... कभी कभी गलत इलजाम भी लग जाते हैं ... गुनाहों की सजा मिले इसका प्रयत्न न्याय प्रणाली तो करती ही हैं ... कर्म और उसके फल का शाश्वत नियम भी ख़ामोशी से निष्पक्ष होकर बिना रुके  करता ही रहता हैं ... 

                                 थोड़ी या बहुत खामियां हर आदमी में रहती हैं ... फिर भी घर में समाज में और देश में उसे काम करने के अवसर मिलते रहते हैं ... जिसमें ज्यादा खामिया होती हैं ... वह थोड़ी दूर चलकर कभी न्याय प्रणाली के सहारे कभी गीता के नियम के अनुसार मुख्यधारा से हट ही जाता हैं ... फिर वह अपनी विफलता से सीखे तो ठीक नहीं तो दूसरों पर अपनी विफलता का ठीकरा फोड़कर अपनी बुरी आदतों का और अधिक गुलाम होकर विलुप्त भी हो जाता हैं ... पर आकाश में ध्रुव तारे सा वहीँ चमकता हैं जो लगातार अपने सुधार की प्रक्रिया को जारी रखता हैं ... दूसरों  का नैतिक बल बड़े यह प्रयास तो हम अपने ही नैतिक बल को बढाकर करें तो सफलता दूर नहीं होती  ... गांधीजी कांग्रेस के सपोर्ट या उसके अनुयायिओं की  संख्या बल के सहारे न तो तब थे न अब हैं ... उन्हौने अपना नैतिक बल अपने जीवन कल में शनैः शनैः बढाया जो हम देख पाते हैं ...  जो हम नहीं देख पाते हैं वह असल बल तो उनका अध्यात्मिक बल था ... जिसे नैतिक बल की बड़ी मजबूत नीव पर खड़ा किया था गांधीजी ने ... सोंचे जरा !!! 

रविवार, 25 मार्च 2012

कल्याणकारी सकारात्मकता !!

कल्याणकारी सकारात्मकता   !!



                           
                   स खबर को पढने पर एक बात महसूस होगी की ताउम्र " जादव पायेंग " लड़ा नहीं .. अपितु उसने संघर्ष का कल्याणकारी रास्ता चुना ... आपको थोडा सा अजीब लगे ... पर बात गौर करने लायक हैं ... आज जब हम देखते हैं की सडकों पर उतरकर धरना  देना और घेराव करना एक फैशन-सा बनता जा रहा हैं ... और बड़ी सफाई से उसे महात्मा गाँधी जी से जोड़कर और फुलावा देने की कोशिश की जाती हैं ... पर अगर ध्यान से गांधीजी के जीवन को समझने की कोशिश की जाय तो हमारे युवा पाएंगे की आजकल देश में इंडिया अगेंस्ट करप्शन ( India against Corruption  ) के आन्दोलनों के विपरीत गांधीजी अपने आन्दोलनों में शिष्टाचार और अहिंसा को सर्वोपरि मानते थे ... और घेराव की राजनीती से गाँधी जी का दूर-परे का भी सम्बन्ध नहीं / आखिर लोकतंत्र अपनों को अपनों के खिलाफ लड़ाने का नहीं शिष्ट रहकर संघर्ष करने का नाम हैं /

                                        कल हुआ अन्ना हजारे जी  ( Anna  Hazare  Ji  ) एक दिवसीय उपवास कार्यक्रम उपहास कार्यक्रम और भीड़ की शक्ति का प्रदर्शन बनकर रह गया. दिनभर सरकार को कोसने में ही जाया हुआ. अंततः भीड़ को कोरी नकारात्मकता के अंधे कुँवें में धकेल कर अन्ना जी और उनकी टीम अपनी पीठ आप ठोकती हुयी घर चली गयी /

                                    तीस साल पहले " जादव पायेंग जी "  अगर की जंगलों को बचाने और उनकी देखरेख ठीक से नहीं हो रही हैं की बात को लेकर अनसन , उपवास , घेराव , सरकारों पर कुछ न करने के लांछन और नित नए आरोपों की बौछार करते तो भाई और सब कुछ हो जाता इतना बड़ा जंगल खड़ा नहीं होता ... पर हाँ अगर उनकी किस्मत अच्छी होती तो कोई विदेशी सम्मान जरूर उनकी झोली में होता ... पर उन्हौने दिखा दिया की  असल फायदा तो सकारात्मकता को जमीं पर उतारने से ही होता है /

                                         हम गलत के खिलाफ बोलें इसकी यहाँ खिलाफत नहीं ...  पर हाँ साथ ही साथ जिसे हम सही ठहरा रहे हैं ... जो हमारे आदर्श हैं ...  उनका हमारे जीवन में प्रभाव जब तक दिखाई नहीं देगा ..तब तक  ज़माने के गले कोई बात उतरने वाली नहीं / यही और यही कारण हैं की गाँधी जी का प्रभाव सालों साल बीत जाने के बाद भी अपने ही दम पर आज भी  कायम हैं /


                                           अक्सर भीड़ तमाशा देखने वालों की भी लग जाती हैं ... इसलिए टीम अन्ना जब तक भीड़ का मनोरंजन किसी की नक़ल उतार कर या किसी पर बेहूदा आरोप लगाकर करती रहेगी  भीड़ शायद जुटती रहेगी  ... कल ही टी. वी. पर किसी बहस के कार्यक्रम में किसी ने टीम अन्ना पर यह आरोप लगाया की टीम अन्ना पर भी दाग हैं ... तो टीम अन्ना ( Team  Anna  ) का तर्क सुनकर हंसी आ गयी की जन लोकपाल बनाओ फिर लोकपाल हमें भी सजा देगा ... भाई नेता तो अपने ऊपर लगे आरोपों का अदालतों में सामना कर रहे हैं ... देर सबेर उनका फैसला आ ही जाये शायद ... पर जो आप खुद मानते हो की वे गलत हैं उसको अपने आप को सुधारने में सीना जोरी व् देरी समझ से परें एवं कोरी अकड़ और घमंड का परिचायक हैं /

                                            खैर आज की सकारात्मक खबर यह हौसला बढाती हैं कि अकेला चना भी चाहे तो भाड़ फोड़ सकता हैं ... और कल की टीम अन्ना की जुगत "  थोथा चना बाजे घना "  वाली  कहावत को चरितार्थ करती हैं ... जरा सोंचे ?  ....साधुवाद   " जादव पायेंग जी "  /  

( यह खबर नईदुनिया के 26 .3 .12  सोमवार के अंक में पहले पन्ने पर छपी हैं जिसे www.naidunia .com  पर भी देखा जा सकता हैं )

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

सच का दम भरें ...


सच का दम भरें ...





                                      दुसरों पे जय से पहले... ! खुद को जय करें ... यह गीत बरास्ता कानों के सीधा दिल में उतर जाता है.. भाव बहुत ऊँचें हैं.. मन की अति उच्च अवस्थाओं का चित्रण है.. सुनते सुनते ही मन एक तरह से सम्मोहित होकर .. समता और मुदिता की उचाईयों को सपने में जीता है.. यका-यक मन अति-बलशाली सा प्रतीत होता है..पर गीत समाप्त होते न होते मन मुरझाने लगता है.. एक शून्य-सा चारों और छा जाता है.. थोडा ठहर कर सोंचे तो पाएंगे की यह सब किसी से माँगा जा रहा था.. एक झलक, एक सपना था.. एक जाल था जो हमारी तरफ फेंका गया था.. और शौक तो देखो उसमें फँस कर हम बहुत खुश हुए जा रहे थे.. पर अंत में निराश होने के आलावा हमारे पास क्या रह जाता है.. भेदभाव मन से कैसे दूर हों ? दोस्त गलती करें तो क्या हम माफ कर पाते है ? झूठ बोलते रहने की आदत कैसे छूटें ?.. तभी तो सच का दम भर पायें ! और तुक्का ये की दूसरों पे जय से पहले खुद को जय करें.. कैसे संभव हो ? .. मांगे तो मांगे किससे ?.. कौन देगा हमें ?.. कोई क्यों देगा ?.. हम कब मांगते-पन से बाज आयेंगें ? .. कैसे हो की हम अपने मालिक आप बन जाये.. महावीर, गौतम, ईशा और कबीर अपने आपे से आगे जाकर..मुक्त कहलाये.. खुद को जय कर पायें.. यह नहीं की ऐसे गीत हमारा भला नहीं करते.. करते है जी..हमारे मन में इच्छा जगाते है.. देखो ना मात्र गाना सुनकर सुकून आ जाता है, तो कितना सुकून मिलेगा जब हम खुद पर जय कर पाएंगे.. सोंच कर मन नाचने लगता है ! मन को और कोई नहीं, बस मन ही वश में कर सकता है.. मन पर छाई नकारात्मकता और बुराइयों की चादर को हमें ही हटाना होगा क्योंकि हमने ही तो उन्हें ओढा है !


                                                    मन की शक्ति कहीं मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में नहीं बल्कि मानव मन में ही निहित है और कुदरत ने हमें दे रक्खी है.. कुदरत को हमारी नादानी पर कितना अफसोस होता होगा की उसकी संतान कुँए के पास भी प्यासी है..और कातर कंठ से नादानी में मांगे ही जा रही है / मन की शक्ति जो हमारे अन्दर सुप्त अवस्था में है..बीज रूप में है..उसे हमें विकसित करना होगा..उसका संवर्धन करना होगा / हम महापुरुषों की वाणी में सुनते भी आये है यथा " जनि नानक बिन आप चिन्हे, कटे ना भ्रम की काई रे ", "Know Thyself", " मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास रे" इत्यादी / संसार में जो भी महापुरुष हुए कठोर तप द्वारा अपने मन की शक्ति को विकसित करके ही हुए..कहीं बाहर खोजने नहीं गए..और इसी शक्ति को अपने अन्दर खोजकर स्वयं मुक्त हुए और बड़े करुण चित्त से संसार को रास्ता बता गए / कोई भी महापुरुष मार्गदाता होता है, मुक्तिदाता नहीं ! आगे और स्पष्टीकरण कर गए की मुक्त होना, बुद्ध होना किसी एक की मोनोपली नहीं..मानवमात्र मन की इस शक्ति को अपने अन्दर खोज सकता है..शायद इसीलिए कहा गया है " हिम्मते मर्दा मददे खुदा " अगर अपने मन की गांठों को खोलने का काम विवेक और श्रद्धा के साथ करेंगे तो धर्म की सारी शक्तियां हमारी मदद करने ही लगेंगी /

                                                  भगवान गौतम बुद्ध ने छः वर्षो की दुष्कर तपश्चर्या के बाद यह घोषणा की थी की मैं मुक्त हूँ.. तथा मन पर विजय का सुख ही मुक्ति का सुख है.. निर्वाण की अवस्था में हूँ अर्थात अब कोई बाण नहीं कोई दुक्ख नहीं.. पर साथ ही साथ उन्हौने यह भी कहा की मैंने खोज लिया है, पा लिया हैं, सत्य को तथा सत्य तक जाने के मार्ग को ! और ऐसा कहकर वे चुप नहीं रह गए सारे जीवन लोगों को अत्यंत करुण चित्त से, मुक्त हस्त से दुक्ख-विमुक्ति का मार्ग बाँटते रहे, वे केवल नीति और आदर्शों की बातें कहकर नहीं रह गए, आदर्श कैसे जीवन में उतरें, कैसे चले सच की राह यही बताते रहे.. तब के भारत में उस समय लाखों-करोड़ों लोगों ने उनके बताये मार्ग पर चलकर अपना मंगल साधा.. आज सौभाग्य से उनका बताया मार्ग "विपश्यना ध्यान" हमें उपलब्ध है, उस पर चले तो वही लाभ आज भी होते है, जो आज से २६०० वर्ष पहले होते थे....!