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गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

एकता का बाजा ...

एकता का बाजा ...



          35  साल पुरानी फिल्म " अमर अकबर एंथोनी ".... का यह एक साधारण गीत ... पर हर होती  आतंकवाद की घटना के बाद से लगातार दिमाग में अपने आप गूंजने लगाता हैं  ... टीवी पर और यहाँ फेसबुक पर भी सभी जगह लोग अपनी अपनी तरह से इस घटना पर रोष व्यक्त करते रहते हैं ...  और कुछ को सरकार को कोसने का एक नया बहाना भी मिल जाता हैं  ... चलो कोई नहीं सबका अपना अपना मत ... और सबकी अपनी - अपनी स्वतंत्रता ... हम तो गीत के भाव पकडे  ...


                एक बात मन में लगातार उथलपुथल मचाती रहती हैं कि ...  आखिर क्या  इस तरह की घटनाओं को सिर्फ व्यवस्था का दोष कहना उचित होगा , रक्षा एजेंसियों पर तोहमत लगाकर एक बाजु बैठ जाना न्यायसंगत होगा ... आखिर क्यों अनहोनी - होनी बन जाती हैं ... क्यों ... तभी इस गीत से एक बात बिजली की तरह कौंधी ... वह ये की ...  हम येन-केन-प्रकारेण ... अपने छोटे-छोटे स्वार्थों की खातिर , मान -अभिमान की खातिर , श्रेष्ठता के दंभ की खातिर ... ऊपर ऊपर से लाख चाहे पर गाहे-बगाहे ऐसी हरकतें करते ही जाते हैं कि  ..."  अमर , अकबर और एंथोनी " एक जगह ठीक से जमा नहीं होने पाते ... 


            और यही तो शर्त हैं ... जब यह शर्त पूरी हो तभी तो .... "अनहोनी को होनी" और "होनी को अनहोनी" बनने  का मार्ग प्रशस्त हो  ... जब एक जगह , एक छत के नीचे  , दिखावे भर के लिए नहीं ...  सचमुच में .... दिल की तलस्पर्शी गहरायिओं से ... केवल एकता का बाजा ही नहीं बजे  ... बाजे के पीछे शर्मीले और थोड़े नहीं अति हटीले दूल्हा -दुल्हन ( सभी सम्प्रदायों एवं मतमतान्तरों के लोग ) आये और एक हो ... रखे और निभाए अपने अपने  रीती- रिवाज, उत्सव पर्व ... पर एक दुसरे के मतों का सम्मान करते हुए ...फिर कुछ करना कराना नहीं पड़ेगा ... आपसी सद्भाव , प्रेम भाईचारा ही अभूतपूर्व  मिलन की रैना बन जायेगा  और कोई गम की रात नहीं होगी फिर ... 


              यारो अब नहीं रोनी सूरत लेकर बहुत जिए ... कोस- कुसाकर भी अब तक देख ही लिया ... कोई दूसरा आयें हमारे बीच शांति , सद्भाव बढ़ाये ... इसका इन्तेजार  बहुत हुआ ... अब इसका इन्तेजार ख़त्म करो ... हम जहाँ है ... जैसे हैं ... वहीँ से प्रेम को बढ़ाने की शुरुआत हो जाएँ ... प्रण करें की हमसे कोई ऐसी -वैसी हरकत ना हो जाएँ जिससे शर्मीले और थोड़े नहीं अति हटीले दूल्हा -दुल्हन एक होने से वंचित हो जाएँ ... 


          देखना " अमर अकबर एंथोनी " के सही मायनों में एक होते ही बिजली की तेजी से इस तरह की भयानक समस्याएं काफूर हो जाएँगी ... जैसे गधे के सर से सिंग गायब  हो जाते हैं ... हा हा !!

जब जागे तब सवेरा ... 
अब और नहीं तेरा-मेरा ...
एक जगह जमा हो सभी ..
तभी हो सुख का रैन- बसेरा ..

भला हो ... मंगल जगे !!