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शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

गांधीजी की ऐश ट्रे !!!


गांधीजी की ऐश ट्रे !!!

हिंदुस्तानी प्रचारसभा की बैठक गोबर लिपि जमींन पर सेवाग्राम की गांधी कुटी में चल रही थी । कुर्सियों के आभाव में सभी जमीन पर बैठे थे । काका साहेब कालेलकर, पं. सुन्दरलाल, डॉ ताराचन्द, श्रीमनन्नारायन और स्वयं बापू । इस मीटिंग के तुरन्त बाद मौलाना आज़ाद के साथ गांधीजी की एक जरुरी मीटिंग थी । अतः अगली मीटिंग से जरा पहले बापू अपनी जगह से उठे और एक कुर्सी मंगवाई तथा एक छोटी तिपाही स्वयं ले आये । फिर एक आले में रखा मिटटी का छोटा पात्र उस तिपाही पर रख दिया ।

चल रही मीटिंग में से किसी ने बापू से पूछ लिया कि ये कुर्सी और तिपाही क्यों लगाई । तब बापू ने हंसकर कहा " मौलाना आने वाले है ना उन्हें जमीन पर बैठने की आदत नही हैं । ये सारा प्रबन्ध उन्ही के लिए हैं ।

और वह मिटटी का छोटा पात्र किस लिए है ? फिर प्रश्न आया ।

ओह' उसका पूछते है ? वह ऐश पॉट हैं । फिर गांधी ने उन्मुक्त हंसी बिखेरते हुए पूछा । क्यों ? कैसी है कल्पना ?

जो लोग मौलाना आज़ाद की धूम्रपान की लत से परिचित थे उस ऐश पाट का रहस्य तुरंत समझ गए ।

मितरो म. गांधी जिस किसी को एकबार अपना मान लेते थे फिर किस तरह उसे पूरा अपनाते थे और वो भी बिना अपनी बात थोपे हुए । याने दूसरों की वैचारिक स्वतंत्रता और आदतों का कितना बारीक़ ध्यान रखते थे की उनके साथी असहज ना महसूस करें । इसीलिए तो वे अपने साथ विभिन्न सम्प्रदायों, वर्णों, जातियों और बोली भाषा और देश विदेश के प्रतिभावान , तेजस्वी और गुणी स्त्री पुरुषों को अपने साथ जोड़ सकें और वो भी अक्षुण्ण भरोसे के साथ ।

बापू तुम फिर आना मेरे देश !!!

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