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बुधवार, 28 सितंबर 2011

महंगाई की बत्तीसी ..



महंगाई की बत्तीसी ...

                             
                                 अभी हाल में महंगाई पर कितनी खबरें आई और गयी ... मुयी महंगाई.. टस से मस ना हुयी ... वहीं की वहीं रही ...ऊपर से .. एक कोने में खड़ी वो जोर-जोर से हंसती अगल जा रही है ... साथ खड़े बाज़ार भाई से उसे अभी कहते  सुना की ... भाई,  मैं ना तो कहीं जाती हूँ और ना आती हूँ ... फिर भी मेरे बारें लोग हमेंशा चर्चारत रहने से मुझे बड़ा सुख अनुभव होता हैं .. ...मैं तो शास्वत हूँ ... महाभारत काल में भी थी ... रामायण काल में भी ... कृष्ण और सुदामा थे तब भी थी ही ...और आज कौन सी नहीं हूँ ... लोग मुझे हमेशा क्यों कोसते रहते है ... लम्बी लम्बी सांसे लेकर वे क्या जताना चाहते है .. मैं उनकी बातों मैं आने वाली नहीं ... देखो ना उस मुए सुनील की माँ को ...वो क्या मुझे लेकर कम परेशान रहती थी जब सुनील छोटा था ... तब सुनील की दादी अपने पुराने ज़माने को याद कर कर के सुनील की माँ को नानी याद दिला दिया करती थी ... अरे बहु जानती हो हमारे ज़माने मैं घी इतने रुपये सेर था ! ...ऐसा था वैसा था ... पर उससे किसी ने पूछने की जहमत नहीं उठाई  की वह उस ज़माने में कितने सेर घी खरीद पाती थी ......अरे वो अब्दुल चूड़ीवाला थोडा समझदार है ...अपनी ख्वातुन की महंगाई की रट पर वो झल्लाकर ठीक ही कहता है  ..खात्यां ..की खात्यां अन गुर्गुरात्यां ..!!!

                             

                                  अरे ...ये खुश होकर रहे तो मैं क्या बढ जाउंगी ?... रोते रहेंगे तो क्या घट जाउंगी ...? बड़ी बातें करते है ... थोडा संभलकर क्यों नहीं खर्च करते अपनी आमदनी ... अब देखो ३२ रूपये की बात  ...आज तो  हद कर दी ... ३२ रुपय्ये मैं क्या होता है ! ... क्या मिलता है !!  ... कैसे  कोई जिए इतने कम में !!!  ... ये सरकार महंगाई के जले पर नमक ना डाले !!!!      सुबह से लगा है गरीब की वकालत में मुआ टी.वी. ..  पर उस गरीब से कोई नहीं पूछता ...  ना ही वो मुआ बताता ! ... मैंने कहा ...  बोलो भाई सही बात बताओ ... तो कहने लगा .. अरे ..रहने दो..  कोई नहीं सुनने वाला यहाँ ... ये केवल रोना ही जानते है ... इनकी असलियत तो तुम भी खूब जानती हो !   महंगाई दीदी ... मेरा नाम ले लेकर हल्ला तो खूब मचाते है ... खैरात बंटते ही मुझे भूल ..  खुद खा जाते है ... सरकार सही कह रही है ... ३२ रूपये में  दो वक्त खाना खाता हूँ ... खाता रहूँगा ... तुम्हारा आशीर्वाद रहे मुझपर ...और इन महंगाई के रोने वालों से बस इस ग़ज़ल की दो लाईने कहना चाहता हूँ ...  "" तुम से मिलकर मुझे रोना था बहुत रोना था ... पर आपकी इस बात ने मुझे रोने ना दिया  ""    

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