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रविवार, 2 अक्तूबर 2011

काश हम यूँ भी सोचकर देखे ...?

 काश हम यूँ भी सोचकर देखे ...?
                                               


" अंतिम आदमी को ध्यान में रखकर योजनायें सरकार बनाया करे "... सरकार ऐसी , सरकार वैसी ... क्या ३२ रूपये में एक आदमी का एक दिन का गुजरा हो सकता है ? ... जाने कितनी बातें आजकल चलने लगती है .... ( सावधानी से अगर आदमी चले तो यह मुश्किल जरूर है पर असंभव नहीं ... आज भी इंदौर में ९०० रूपये में २ वक्त का खाना एक नहीं कई भोजनालय पुरे महीने खिलाने का लेते है जो की ३० रूपये प्रतिदिन का ही होता है ... यहाँ विवाद ना हो .... केवल गुजारें की बात हुयी थी ...और उसका कितना  बतंगड़ बना ... वह और कमाना चाहे तो कोई रोक है भला )  ...  तो क्या ३२ रुपये भी कमाने की कोई जुर्रत न करे या न कमा सके ... तो सरकार उस आदमी की कई तरह से मदद करती है /   गरीब की वकालत करके हम वैचारिक तौर पर उसके साथ खड़े हो सकते है ... पर वास्तविक तौर पर तो उसका अधिकाशतः शोषण ही होता है ... उसके शोषण के लिए जहाँ हम जितने जिम्मेवार है ... वहीं वो स्वयं भी कम नहीं ... अगर यह ठीक नहीं होता तो आज कई ऐसे कई उदाहरण है जो गरीबी में रहकर बिना किसी मदद के ऊँचे उठे है ... और आज अनेकों ऐसे कई गरीब है जो सरकारी मदद के बारें में जागरूक नहीं ... या उसका बेजा इस्तेमाल करते है ... कई गरीब केवल लोगों की मदद की आस में टकटकी लगाये हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते है ... और कई गरीब अपने स्वाभिमान की खातिर बिना कोई मदद अपना जीवन संतोष के साथ बीता रहे है / 


                                         हम अपने कर्मों में सुधार करते जाएँ तो आगे अच्छे फल आयेंगे ही...  यह आश्वासन ... हमें कहीं और से नहीं बल्कि  " गीता " से ही मिलता है  ... जो अपनी मदद आप नहीं करता फिर खुदा भी उसकी मदद नहीं कर सकता / एक बाप की दो संतानों भी अक्सर एक सी नहीं बन पाती जबकि उनको एक सा परिवेश मिलता है / सरकारों  को कोसना बहुत आसान है ... और यहीं हम करते है ... पर लोगों को यह समझा पाना की अपने कर्मों के सुधार की कोशिश करते जाएँ  ... कठिन साबित होता है ... इसीलिए जब सरकार को कोसने के लिए कोई आगे आता है तो उस कोरस-गान में भले-बुरे सब तन-मन और यहाँ  तक की धन से भी जुट जाते  है ... क्योंकि यह सस्ता सौदा है ... तथा इसमें प्रसिद्धि खूब मिलती है ... या आजकल फेसबुक पर कहे तो  WOW , Good . Excellent  ऐसे कमेन्ट तुरंत मिल जाते है ....  भइय्या जी अगर बेईमान को कानून के डर से ईमानदार बनाया जा सकता ... डरा धमाका कर सबको ठीक किया जा सकता तो  फिर अनेकों  माता-पिता  जो बचपन से ही अपनी - अपनी संतानों को डरा धमका कर सुधाने की क्या कम कोशिश करते है ...और हम देखते है की कई तरह की कोशिशें करने के बाद भी थोड़े ही सुधार पाते है ... कई और बिघड जाते है ... कई डर से दब्बू बन जाते है ... कई मौका परस्त ... कई चालक और नौटंकी बाज .. इन्ही में से आगे जाकर कोई अन्ना ...  कोई सरकारी नौकर ...कोई अमीर ... कोई चालबाज ..कोई तमाशबीन ...कोई धोके बाज .... कोई सरकारों में जाता है ...कोई दल बनता हैं  ...और फिर एक मिला-जुला रूप हमारे सामने आता है ( कानून बने इसका विरोध नहीं...  पर कड़े कानून से ही सब  संभव हो पायेगा ? थोडा सोंच कर देखे .... कहीं यह चींटी को मारने में बन्दूक का इस्तेमाल तो नहीं साबित होगा ...  उसका दुरुपयोग.. कब और कैसे चालक और धूर्त  लोग करने  लगेंगे हमें इसका पता भी लगते लगते काफी देर हो जाएगी ... ऐसे अनेकों  उदाहरण है ) / 


                                        हम कर क्या रहे है ...दुसरे सुधार जाएँ मैं तो सुधरा हुआ हूँ ... कोई उन्हें सुधार दे ...मैं तो  सुधरा हुआ हूँ ...  यहीं मानते जा रहे है ... और ऐसी आवाज जब कोई पुरजोर तरीके से उठाता है तो वह हमें अपनी सी लगती है ..फिर शुरु हो जाता है सामूहिक रुदन और दूसरों को कोसने का काम ... कोई जरा सा ठहर कर यह सोंचने की जरूरत नहीं समझाता की आज जिसकी आवाज में हम अपनी आवाज मिला रहे है वो अगर ईमानदार है तो क्यों ... क्या उसे मौका नहीं मिला इसलिए या वह कानून से डरता है इसलिए ... थोडा रुककर सोंचे तो पाएंगे की वह निर्भीक है, वह स्वभावतः ही ईमानदार है .. इसलिए आज इन्ही दो गुणों की वजह से वह उचाईयों पर है ... अब सवाल यह उठता है की उसके अन्दर तो स्वभावतः ही सही अमुक अमुक सद्गुण है ... मुझमें नहीं ... तो मैं भी क्यूँ ना अपने अन्दर उन गुणों का विकास करने की कोशिस करने लगूँ ... किसी भी हस्ती के साथ खड़े होकर केवल शोर मचाने में ही हम साथ देंगे तो हमारी अपनी पहचान कहीं खो जाएगी ... अगर उसके गुणों को अपने अंदर उतरने की कोशिश करने लगेंगे ... सद्गुण हमारे आचरण में उतरेंगे ... तो हमारी अपनी पहचान भी बनती जाएगी ... यहीं हमारी कोशिश से औरों को भी प्रेरणा मिलेगी ... और उस हस्ती का सही वंदन होगा ...  पूजन होगा /   
        


                                        समय मिले तो विपश्यना ध्यान साधना के बारें में विचार करें ...यह साधना  विधि इस काम में हमारी बड़ी मददगार साबित होगी ... आज के नकारात्मक माहौल में विपश्यना एक क्रियाशील और प्रभावकारी रास्ता है ...विपश्यना एक वैज्ञानिक विधि है ... ..अन्धविश्वास से कोसो दूर है /  हमारे अन्दर घर कर गए बिन बुलाये मेहमान-रूपी  दुर्गुणों की बजह से ही हम अपनी विकास की वास्तविक क्षमताओं का दोहन नहीं कर पा रहे है ... ऐसे सभी  दुर्गुणों को सद्गुणों में बदलने की अद्भुत क्षमता रखती है विपश्यना ... यह हमें स्वावलंबी बनाती है ... और जिम्मेदार भी !!!   काश हम यूँ भी सोचकर देखे ...? अपने भले के लिए ... साथ साथ सबके भले के लिए !!!


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