धीरज बड़े काम की चीज हैं ...

" मन धीरज रखे " ... इस गीत का अप्रतिम सन्देश हैं ... साथ ही साथ वह धीरज क्यों न रखे इस बात कि लम्बी फेहरिश्त मन का धीरज डांवाडोल करती रहती हैं ... साहिर साहब ने कुछ भी नहीं छुपाया पर हमें तो अपने काम की चीज ... अरे वही " सकारात्मकता" को जो इस गीत के प्राण हैं को मजबूती से पकड़ना हैं ... क्योंकि वही हमारे मंगल का कारण बनेगी /
धीरज और संतोष एक ही सिक्के के दो पहलु हैं ... और दोनों ही परम धन भी ! पर देखों न दोनों सुलभ और अनमोल होते हुए भी मानव मन की पकड़ से कोसो दूर हैं ... बेचारा मन यदाकदा गीतों में ... कहानियों में ... प्रवचनों में धीरज और संतोष की बातें करके ही रह जाता हैं ... कभी इन अनमोल और परम धनों की छाह उसे नसीब नहीं होती / कई अडचने हैं ... कई बाधाएं हैं ... जिनके चलते दुःख की गर्त में सदियों से डूबा मन अब ऊपर उठ सहज सुख की और जाने की प्राकृतिक शक्ति और युक्तियाँ भुला बैठा हैं /

हाँ बड़े बड़े सवालों का जवाब मिले यह हमारा कुदरती हक़ हैं ! ... पर बड़े बड़े सवालों के आसान हल भी हो सकते हैं इस बात पर हमारा जरा भी यकीं नहीं ! ... और यहीं पर हमारे इसी अविश्वास का फायदा बुरी लतों और बुरे मंसूबों से मौके की तलाश में बैठे ठगों ने खूब उठाया हैं / मन का जितना विस्तार बाहर-बाहर हैं उससे कई गुना ज्यादा हमारे अन्दर हैं और हमारे अन्दर ही छुपा हैं सारे संसार का रहस्य / सुना नहीं क्या ... " मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास में "
सदियों पूर्व सिद्दार्थ गौतम के सामने भी यहीं जटिल सवाल था कि इतने उपदेश, इतने सुख साधन मानव को दुखों से पार क्यों नहीं ले जा पा रहे हैं ? ... इस सवाल के जवाब को पाने को बेताब उनका मन फिर लग गया उस समय के परंपरा गत साधनों को आजमाने में .... पर दुःख विमुक्ति कि राह उन्हें नहीं मिली ! ... फिर तो उन्हौने बड़े कठिन जतन से दुखों से विमुक्ति के परम मार्ग विपश्यना को पुनः खोज निकाला ... और इस मार्ग से उस समय के भारत और पडौसी देशों में करोड़ों लोगों का मंगल सधा ... सौभाग्य से उनकी खोज विपश्यना ( Vipassana ) आज भी हमें उस मौलिक स्वरुप में उपलब्ध हैं ....और आज भी विपश्यना साधना के वहीँ फल आते हैं जैसे सदियों पहले आते थे ..... मंगल हो !!
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