जड़े सुधरेंगी जब, लाभ होगा तब ...
प्रारंभ में यूँ लगता है जैसे अच्छा आचरण करके हम औरों पर एहसान करते हैं , पर गहराइयों से जानेंगे तो मालूम होने लगेगा हम ऐसा करके स्वयं का सर्वाधिक भला करते है / ईमानदारी का संज्ञान दुनिया देर -सबेर लेती ही हैं...यहाँ तक की बेईमान भी इमानदारों की तलाश में रहते हैं /
सभी अपने मन कि कमजोरियों के गुलाम है ..कहीं न कहीं मन ही हमारी कमजोरियों कि वकालत भी करने लगता है ....ठीक है.... फिर भी हम मन को ही मन से सुधारने का काम भी कर सकते हैं ..यह संभव है विपश्यना साधना के अभ्यास से .... सुने गए ज्ञान से भला होता है ..सुन कर समझे गए ज्ञान से भी भला होता है ..... पर इन सबसे ज्यादा भला तो सुन और समझकर बात को अपने आचरण में उतारने से होता है . .. ऐसा होता है... इसीलिए भारतीय रेलवे बोर्ड ने अपने आदेश क्रमांक - ई ( टी आर जी ) २००५ ( ११) ९३ नई - दिल्ली दिनांक २०.११.२००७ के द्वारा अपने कर्मचरियों को विपश्यना के १० दिवसीय शिविरों में भाग लेने के लिए विशेष आकस्मिक अवकाश की सुविधा दी है .
संप्रदाय विहीन, सबके अपनाने योग्य विपश्यना के ये १० दिवसीय शिविर निःशुल्क होते है..ऐसे शिविर पुराने साधकों के द्वारा, आने वाले भावी साधकों के लिए शुद्ध चित्त से दिए गये दान से संचालित होते है . भावी शिविरों कि जानकारी विपश्यना की वेब साईटwww.vridhamma.org से प्राप्त कि जा सकती है .
संप्रदाय विहीन, सबके अपनाने योग्य विपश्यना के ये १० दिवसीय शिविर निःशुल्क होते है..ऐसे शिविर पुराने साधकों के द्वारा, आने वाले भावी साधकों के लिए शुद्ध चित्त से दिए गये दान से संचालित होते है . भावी शिविरों कि जानकारी विपश्यना की वेब साईटwww.vridhamma.org से प्राप्त कि जा सकती है .
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