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सोमवार, 2 जुलाई 2012
जड़े सुधरेंगी जब, लाभ होगा तब ...
जड़े सुधरेंगी जब, लाभ होगा तब ...
आजकल एक ही शोर चारों तरफ है , भ्रष्टाचार...भ्रष्टाचार, पर गहराई से विचार करे तो मात्र शोर मचाने से कोई बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं होगा, बल्कि ज्यूँ - ज्यूँ भ्रष्टाचार उजागर होते जायेंगे त्यूं-त्यूं भ्रष्टाचार से बचने - बचाने के नए - नए तरीके विकसित होते ही जाना हैं ..मानो मर्ज बढता ही गया ज्यूँ - ज्यूँ दवा की . इसका मतलब यह भी नहीं कि भ्रष्टाचार के दानव को यूँ ही पनपने दिया जाय ..नहीं... एक तरफ तो उस पर वार हो जिससे वाचिक एवं कायिक स्तर पर भ्रष्ट आचरण से लोग बचे रहे, वहीँ दूसरी तरफ हमें प्रत्येक को उसकी जड़ों का भी सुधार करना होगा, जिससे मानसिक स्तर पर जब - जब मन के विकार जैसे लालच, वासना , हिंसा इत्यादि बुरे आचरण के लिए उकसाए तब तब उनका शमन हो /
प्रारंभ में यूँ लगता है जैसे अच्छा आचरण करके हम औरों पर एहसान करते हैं , पर गहराइयों से जानेंगे तो मालूम होने लगेगा हम ऐसा करके स्वयं का सर्वाधिक भला करते है / ईमानदारी का संज्ञान दुनिया देर -सबेर लेती ही हैं...यहाँ तक की बेईमान भी इमानदारों की तलाश में रहते हैं /
सभी अपने मन कि कमजोरियों के गुलाम है ..कहीं न कहीं मन ही हमारी कमजोरियों कि वकालत भी करने लगता है ....ठीक है.... फिर भी हम मन को ही मन से सुधारने का काम भी कर सकते हैं ..यह संभव है विपश्यना साधना के अभ्यास से .... सुने गए ज्ञान से भला होता है ..सुन कर समझे गए ज्ञान से भी भला होता है ..... पर इन सबसे ज्यादा भला तो सुन और समझकर बात को अपने आचरण में उतारने से होता है . .. ऐसा होता है... इसीलिए भारतीय रेलवे बोर्ड ने अपने आदेश क्रमांक - ई ( टी आर जी ) २००५ ( ११) ९३ नई - दिल्ली दिनांक २०.११.२००७ के द्वारा अपने कर्मचरियों को विपश्यना के १० दिवसीय शिविरों में भाग लेने के लिए विशेष आकस्मिक अवकाश की सुविधा दी है .
संप्रदाय विहीन, सबके अपनाने योग्य विपश्यना के ये १० दिवसीय शिविर निःशुल्क होते है..ऐसे शिविर पुराने साधकों के द्वारा, आने वाले भावी साधकों के लिए शुद्ध चित्त से दिए गये दान से संचालित होते है . भावी शिविरों कि जानकारी विपश्यना की वेब साईटwww.vridhamma.org से प्राप्त कि जा सकती है .
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