भारी रणसज्जा का बोझ ...

और वहीँ हो रहा हैं /
कड़े कानून तो भ्रष्टाचरण का एलोपैथिक इलाज हुआ ... असल फायदा और आराम तो हमें अपने आप को नैतिकता का दामन थामने को तैयार करने से होगा ... आज कितने कानून हैं ... बलात्कार , चोरी , और हत्या जैसे अपराधों पर लोगों को सजाएँ भी हो ही रही हैं ... पर देखो न कोई दिन खाली नहीं जाता ... हर रोज नित - नए अपराधों कि फेहरिश्त सुबह-सुबह अख़बार घर पर दे जाता हैं /
हम गाँधी जी को केवल संसार का सबसे महान इन्सान मानकर न रह जाएँ ... बल्कि उनकी बातों के अनुसार आचरण करते भी नजर आयें तभी शायद सबके कल्याण का मार्ग खुलेगा ... अन्यथा दूसरों को भ्रष्ट कहने और अपने बुरे आचरण को छुपाने में ही बहुत सारा समय व्यर्थ गँवा देंगे / महात्मा गांधीजी का एक विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ जो हमेशा कि तरह कालजयी हैं ... अमूल्य तो हैं ही /
" हमारा राष्ट्र सच्चे अर्थ में आध्यात्मिक राष्ट्र उसी दिन होगा , जब हमारे पास सोने की अपेक्षा सत्य का भंडार अधिक होगा , धन और शक्ति के प्रदर्शन की अपेक्षा निर्भयता अधिक होगी और अपने प्रति प्रेम की अपेक्षा दूसरों के प्रति उदारता अधिक होगी / यदि हम केवल इतना ही करें की अपने घरों , मुहल्लों और मंदिरों में धन के आडम्बर का प्रवेश न होने देकर नैतिकता का वतावरण पैदा करें तो हम भारी रणसज्जा का बोझ उठायें बिना शत्रु से . चाहे वह जितना भी भीषण क्यों न हों , निपट सकते हैं / " ..... महात्मा गाँधी