बुधवार, 2 मार्च 2016

" अपराध से घृणा करो, अपराधी से नही "


मितरो, जब म. गांधीजी ने पहले पहल भारत में अन्याय के खिलाफ लढाई शुरू की तो वो अंग्रेजों से लड़ना है ये सोचकर नही की । उनकी सोच यही रही की अन्याय से लड़ना हैं ।

चंपारण के एक मामूली किसान के आग्रह पर वे चंपारण गए वहां जाकर जब उन्होने भी पाया की कुछ अत्याचार जरूर हुए हैं अंग्रेजों द्वारा तो वे उनकी लढाई को राजी हो गए ।

आजकल के नेता होते तो क्या कहते , यही कहते किसी सभा में की अन्याय का बदला अन्याय हैं । अंग्रेजो का अन्याय देखकर मेरा खून ख़ौल उठता हैं । मारो कूटो इत्यादि इत्यादि । और शुरू हो जाती मारा मारी । और आपस में लड़वाकर फिर वहां से चुपचाप निकल लेते । फिर भी पिसते कौन ? आम जनता ही ना । और कुछ उल्टा सीधा हो जाता तो कह देते मेरी बात को लोगों ने गलत समझ लिया ।

पर मितरो अगर ऐसा होता तो गांधी फिर महात्मा नही कहलाते । वहां सबसे पहले उन्होने अंग्रेजो के खिलाफ अर्जियां लिखवा कर अदालत को सौपने का तय किया । और ये सुनिश्चित किया की अर्जियों में वर्णित जुल्मो सितम 100 % सच हो । जरा भी उसमें झूठ ना हो । नही तो और वकील जो उनकी सहाय के लिए थे इस काम में माहिर थे की बात को बढ़ाचढ़ा कर लिखते इस लालच में की जरा जोरदार शिकायत होगी तो तेज एक्शन होगी । पर नही गांधीजी स्वयं उन अर्जियों को पढ़ते थे और उनमें कांट छांट करके उन्हें सत्य के नजदीक लाते । उनकी यह बात देखकर कुछ वकील नाराज भी हुए उनका तर्क होता था की सीधी ऊँगली से घी नही निकलता । पर गांधी अडिग रहे । और अर्जियों को सही करते रहे । इस काम में वे रात दिन अथक लगे रहे ।

और एक महत्व का पर जरुरी काम किया बापू ने क्योंकि वे बड़े सजग रहते थे और प्रचार की तो उनमें रंच मात्र भी कामना नही रहती थी और वे जानते थे प्रेस को तभी मज़ा आता है जब सनसनी फैले अतः गांधी जी ने प्रेस को इस आंदोलन से दूर रखा ! उन्हें डर था प्रेस रिपोर्टिंग से मामला और बिगड़ेगा, अंग्रेज चिढ जायेगें !

उधर अंग्रेज इस इन्तजार में थे की अब तो उनकी बहुत शिकायत होगी और बढ़ाचढ़ा कर होगी । पर जब अदालत में अर्जियां गयी तो एकदम सादा थी उनमें मिर्च मसाला नही था । ना अंग्रेजों के लिए कोई बुरा भला सम्बोधन । भाषा अत्यंत संयत शांत और कोई भड़काऊ बात नही । और इस तरह गांधीजी ने अपना पहला रण जीता चंपारण में । अदालत ने न्याय दिया । जबकि अदालत में अंग्रेजो का वर्चस्व था । कानून उनके हाथ था ।

क्यों हुआ ये चमत्कार ? ये सब हुआ इसलिए की अंग्रेजो से गांधीजी ने व्यक्तिगत दुश्मनी कहीं जाहिर नही की । उन्हें तो बस अपराध से घृणा करना आता था । अपराधी से नही ।

तो आओ ऐसे विचारों से बचे जो हमें अपराधी से घृणा करना सिखाते हैं और हमें उकसा कर कानून अपने हाथ में लेने को ललचाते हैं । फिर चाहे वो सम्प्रदाय के नाम पर हो, या और किसी नाम पर ही क्यों ना हो ।

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