तुझपे कुर्बान ...

इस गीत में कई सहकलाकारों का जमघट है ... पर मजाल हैं कोई इस गीत की मस्ती से अलग नज़र आ जाये ... यहाँ तक की निर्जीव सा चम्मच भी ढोलक पर बराबर ताल में गिरता रहता है ... उस निर्जीव चम्मच के योगदान को भी संगीतकार रवि साहब ने बखूबी स्थान दिया हैं ... डिरेक्टर यश चोपड़ा साहब ने भी उसे बखूबी दिखाया हैं /
१९६५ में बनी यह फिल्म वक्त का यह गीत आज भी जब बजता हैं तो बरबस सबका ध्यान अपनी ओर खींचने की गजब की काबिलियत रखता हैं ... बलराज साहनी साहब एक अदद सादा इन्सान थे और उनका सादगी पसंद मन भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति बिना किसी कोशिश के सहज कर जाता था /
मन का सादगी पसंद और बाहर-भीतर एक-सा होना दुनिया को सकारात्मकता से महकाता रहता हैं ... ऐसा व्यक्तित्व इस धरा पर रहे न रहे उनके मन से निकली सकारात्मक तरंगे माहौल को यदा-कदा तरंगित करती रहती हैं /