विपश्यना साधना : एक परिचय
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साधना विधि

इस सार्वजनीन
साधना-विधि का उद्देश्य विकारों का संपूर्ण निर्मूलन एवं परमविमुक्ति की अवस्था को
प्राप्त करना है। इस साधना का उद्देश्य केवल शारीरिक रोगों को नहीं बल्कि मानव
मात्र के सभी दुखों को दूर करना है।
विपश्यना
आत्म-निरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की साधना है। अपने ही शरीर और चित्तधारा पर पल-पल
होनेवाली परिवर्तनशील घटनाओं को तटस्थभाव से निरीक्षण करते हुए चित्तविशोधन का
अभ्यास हमें सुखशांति का जीवन जीने में मदद करता है। हम अपने भीतर शांति और
सामंजस्य का अनुभव कर सकते हैं।
हमारे विचार, विकार, भावनाएं, संवेदनाएं जिन वैज्ञानिक नियमों के अनुसार चलते हैं, वे स्पष्ट होते हैं।
अपने प्रत्यक्ष अनुभव से हम जानते हैं कि कैसे विकार बनते हैं, कैसे बंधन बंधते हैं
और कैसे इनसे छुटकारा पाया जा सकता है। हम सजग, सचेत, संयमित एवं शांतिपूर्ण बनते हैं।
परंपरा
शिविर
विपश्यना दस-दिवसीय
आवासी शिविरों में सिखायी जाती है। शिविरार्थियों को अनुशासन संहिता, का
पालन करना होता है एवं विधि को सीख कर इतना अभ्यास करना होता है जिससे कि वे
लाभान्वित हो सके।
शिविर में गंभीरता
से काम करना होता है। प्रशिक्षण के तीन सोपान होते हैं। पहला सोपान—साधक पांच शील पालन
करने का व्रत लेते हैं, अर्थात् जीव-हिंसा, चोरी, झूठ बोलना, अब्रह्मचर्य तथा नशे-पते के सेवन से विरत रहना। इन शीलों का पालन करने से मन
इतना शांत हो जाता है कि आगे का काम करना सरल हो जाता है।
अगला सोपान— नासिका से आते-जाते
हुए अपने नैसर्गिक सांस पर ध्यान केंद्रित कर आनापान नाम की साधना का अभ्यास करना।
चौथे दिन तक मन कुछ
शांत होता है, एकाग्र होता है एवं विपश्यना के अभ्यास के लायक होता है—अपनी काया के भीतर
संवेदनाओं के प्रति सजग रहना, उनके सही स्वभाव को समझना एवं उनके प्रति समता रखना।
शिविरार्थी दसवे दिन
मंगल-मैत्री का अभ्यास सीखते हैं एवं शिविर-काल में अर्जित पुण्य का भागीदार सभी
प्राणियों को बनाया जाता है।
इस साधना में सांस
एवं संवेदनाओं के प्रति सजग रहने के अभ्यास के बारे में एक विडिओ(५.७MB) नि:शुल्क क्विकटाईम मुवी प्लेयर के जरिए देखा जा
सकता है।
यह साधना मन का
व्यायाम है। जैसे शारीरिक व्यायाम से शरीर को स्वस्थ बनाया जाता है वैसे ही
विपश्यना से मन को स्वस्थ बनाया जा सकता है।
साधना विधि का सही
लाभ मिलें इसलिए आवश्यक है कि साधना का प्रसार शुद्ध रूप में हो। यह विधि
व्यापारीकरण से सर्वथा दूर है एवं प्रशिक्षण देने वाले आचार्यों को इससे कोई भी
आर्थिक अथवा भौतिक लाभ नहीं मिलता है।
शिविरों का संचालन
स्वैच्छिक दान से होता है। रहने एवं खाने का भी शुल्क किसी से नहीं लिया जाता।
शिविरों का पूरा खर्च उन साधकों के दान से चलता है जो पहिले किसी शिविर से
लाभान्वित होकर दान देकर बाद में आने वाले साधकों को लाभान्वित करना चाहते हैं।
निरंतर अभ्यास से ही
अच्छे परिणाम आते हैं। सारी समस्याओं का समाधान दस दिन में ही हो जायेगा ऐसी
उम्मीद नहीं करनी चाहिए। दस दिन में साधना की रूपरेखा समझ में आती है जिससे की
विपश्यना जीवन में उतारने का काम शुरू हो सके। जितना जितना अभ्यास बढ़ेगा, उतना उतना दुखों से
छुटकारा मिलता चला जाएगा और उतना उतना साधक परममुक्ति के अंतिम लक्ष्य के करीब
चलता जायेगा। दस दिन में ही ऐसे अच्छे परिणाम जरूर आयेंगे जिससे जीवन में
प्रत्यक्ष लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
सभी गंभीरतापूर्वक
अनुशासन का पालन करने वाले लोगों का विपश्यना शिविर में स्वागत है, जिससे कि वे स्वयं
अनुभूति के आधार साधना को परख सके एवं उससे लाभान्वित हो। जो भी गंभीरता से
विपश्यना को अजमायेगा वह जीवन में सुख-शांति पाने के लिए एक प्रभावशाली तकनिक
प्राप्त कर लेगा।
आप विपश्यना शिविर में प्रवेश के लिए
आवेदन कर सकते हैं।
मंगल गीत
हम किसी की ना कभी हत्या करेंगे
/
हमकिसी की ना कभी
चोरी करेंगे /
हम न झूठी बात
बोलेंगे कभी /
हम न कड़वी बात
बोलेंगे कभी /
हम न गन्दी बात
बोलेंगे कभी /
हम सदा ही धरम का
पालन करेंगे /
हम सदा ही पाप से बचते रहेंगे /
हम सदा ही शील का पालन करेंगे /
हम सदा ही चित्त
को वश में करेंगे /
हम सदा ही चित्त
को निर्मल करेंगे /
वंदना माता -पिता की नित करेंगे /
वंदना हम गुरुजनों
की नित करेंगे /
हम सदा ही धरम का
पालन करेंगे /
हम सदा ही पाप से
बचते रहेंगे /
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वेब साईट : www .vridhamma
.org
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