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बुधवार, 5 जून 2013

हमसे का भूल हुई ... ?


      मसे का भूल हुई ... जो ये सजा हमका मिली ...?

कभी कभी यूँ भी वक्त आता है जब यूँ लगता हैं की भलाई का फल बुराई मिल रहा हैं ... और मन कुछ उदास होकर ही नहीं रहता ... वह निराशा के भंवर गोते पर गोते लगाता हैं ... और भलाई के कामों पर से उसका जैसे भरोसा ही उठता जाता हैं ...

                 यही वह वक्त होता है जब नकारात्मकता को हमारे अन्दर हावी होने के स्वर्णिम अवसर मिलते हैं ... और ऐसे में लगे हाथ हम दूसरों पर इल्जाम भी लगा देते हैं ... के ये सब उनके ही कारण हो रहा हैं ... और नकारात्मक बातों पर हमारा विश्वास और गहराता जाता हैं .. ... दरअसल यह हमारी भारी गलतफहमी के ही कारण होता है की हम बुरे फलों को हमारे भलाई के फल समझ बैठते हैं ... और भलाई के फलों का इन्तेजार नहीं कर पाते हैं ... हम क्या कोई भी असल में वही काटता हैं जो जो हमने बोये हैं ... बीजों की तासीर और उनकी फल दे सकने की क्षमता के अनुसार उनके फल आगे पीछे आते रहते हैं 

                " फल भले कामों के भले ही आयेंगे और बुरे कामो के बुरे ही " यह भरोसा रहे ... और कोशिश रहे की हमसे बुरे काम हो ही ना ... इस हेतु मन पर अपना अधिकार हो ... और मैला मन हम हो सके उतना - उतना निर्मल करते जाए ... क्योंकि निर्मल मन बुरा काम कर नहीं सकता ... और हमारा जीवन सुन्दर और बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की राह चल पड़ता हैं ... और मन यह भरोसा पाता हैं की हमसे कोई भूल ना हो जाय ...

              
 जरुर सुने यह गीत पर थोडा सकारात्मक होकर ... तब ही तो बात बनेगी ... भला हो !!!