वर्तमान क्षण ...!!
धर्म प्रज्ञा जागृत रखकर ही हम वर्तमान क्षण में जीना सीख सकते हैं / यह क्षण जो प्रत्युत्पन्न क्षण है , जो की अभी -अभी उत्पन्न हुआ है , यही तो हमारे काम का है / जो क्षण बीत गए , उनको हम याद भले कर लें , पर उनमें हम जी नहीं सकते / जो क्षण अभी आये नहीं , उनकी हम कल्पना या कामना भले कर लें , परन्तु उनमें हम जी नहीं सकते / हमारे जीने के लिए तो यही क्षण है जो अभी-अभी उत्पन्न हुआ है / अगर हम इस क्षण में जीते हैं तो ही सही मानें में जीते हैं / अन्यथा तो केवल मात्र जीने का बहाना भर करते हैं , वस्तुतः जीते नहीं / क्योंकि वर्तमान क्षण ही तो यथार्थ है और यथार्थ में जीना ही तो सही जीना है /

इसी अवस्था को जब भगवान बुद्ध ने पाया तो उनके मुंह से हर्ष के ये उद्गार निकले .. जिन्हें उदान भी कहा गया .." यह चित्त नितांत संस्कार विहीन हो गया / किसी बांधने वाले संस्कार का नाम लेश नहीं रहा और साथ ही साथ तृष्णा का भी पूर्णतया क्षय हो गया "
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