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सोमवार, 23 जनवरी 2012

बन्दे में था दम ...

बन्दे में था दम ...



                             
                     जाग्रति फिल्म का यह गीत प्रदीप साहब की लिखी एक नायाब रचना हैं ... आजकल देखने में आ रहा है  की गाँधी का नाम लेकर या उनकी तस्वीर के आगे बैठकर लोग गाँधी-वाद  के नाम पर घेराव,  दुरागाह  तथा सद्भावना की जगह दुर्भावना को देकर भारी अविश्वास को बढावा देते हैं  ... यूँ प्रतीत होता हैं की उन्हें तो बस उनके नाम का सहारा चाहिए ... अहिंसा के सिद्धांत से उनका दूर-दूर का भी नाता नहीं ... अहिंसा का इस्तेमाल आन्दोलनों में करते समय जिनसे वे घृणा करते हैं उन्हें कोसने या उन पर कीचड़ उछालने में ( वैचारिक हिंसा )  जरा भी  देर या कोताही नहीं करते ... कीचड़ इस हद तक उछाला जाता हैं की उनके संपर्क में आ रहा युवा गुमराह होकर अहिंसा के हथियार को हिंसा की म्यान में रखा हुआ पाता हैं .... फैसला नहीं कर पाता की वह क्या करें ... गाँधी जी पर उसकी जानकारी बस मंच से मिल रही बातों तक ही सिमट कर रह जाती हैं  ... दो - चार -मिनट आज के युवा से बात करें तो पाते हैं कि वह अपनी तरह के  गाँधी-वादियों के साथ खड़ा तो हैं पर अहिंसक आन्दोलनों में साधनों की पवित्रता के महत्त्व से वह कितना अनजान है / हिंसा का मतलब आज के युवा के लिए सिर्फ मारपीट तक ही सिमट कर रह गया है ... वैचारिक हिंसा की बारीकियों से उसका परिचय भी कैसे हो ... उसके सामने कहीं कोई मिशाल ही नहीं ...कहीं कोई उदाहरण ही नहीं /

                                                अंग्रेज बंदूकों से लडाई में माहिर ही नहीं थे उनके पास सालों- साल तक लड़ने की अंतहीन तैयारी भी थी ... पर बन्दुक के आगे निहत्तों से कैसे लड़ा जाएँ इस बात की उनकी न तो कोई तैयारी थी ... न अनुभव / बस यहीं वे पिछड़ने लगें ... गाँधी जी मानते थे की  " अपराध से तो घृणा की जाय पर अपराधी से कदापि नहीं " ... इस बात अमल करते हुए गाँधी जी ने अपनी कथनी और करनी  की समानता से अंग्रेजों का हाल बेहाल कर दिया ... वे समझ ही नहीं पाए  ... उनकी अजीब ठब की लढाई की करामात का लोहा सदियों तक दुनिया भुला नहीं पायेगी ... गाहे-बगाहे उनकी भूरी-भूरी प्रसंसा आये दिन सुनने में आती ही रहती है ... गाँधी जी ने कभी प्रचार प्रसार को या भीड़ को महत्व  नहीं दिया .. कवी प्रदीप साहब ने बड़ी सुन्दरता से गाँधी जी जैसे विशाल व्यक्तित्व को शब्दों में ढाला हैं ... गीत सुनते हुए ... विचारों को चलने दे ...




दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल 
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल 

आंधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल 
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल .. 

धरती पर लड़ी तूने अजब ढब की लढाई 
दागी कहीं तोप  न  बन्दुक  चलाई

दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई
वाह  रे फ़क़ीर खूब करामात दिखाई 

चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल 
 साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ..

शतरंज बिछाकर यहाँ बैठा था ज़माना 
लगता था के मुश्किल हैं फिरंगी को हराना 
टक्कर थी बड़े जोर की दुश्मन भी था दाना 
पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना 
मारा वो कस के दांव तो उलटी सभी की चाल 
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ..

जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े 
मजदुर चल पड़े थे और किसान चल पड़े
हिन्दू व मुसलमान सिख पठान चल पड़े
कदमों पे तेरे कोटि-कोटि प्राण चल पड़े 
फूलो सेज छोड़ दौड़ पड़े जवाहर लाल 
 साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ..

 मन में थी अहिंसा की लगन तन पर  लंगोटी 
लाखों में घूमता था लिए सत्य की सोंटी ... 
वैसे तो देखने थी हस्ती तेरी छोटी ... 
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी "
दुनिया में तु  बेजोड़ था, इन्सान बेमिसाल ..
साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल ... 
जग में कोई जिया है तो बापु तु ही जिया ...
तु ने वतन की राह पे सब कुछ लुटा दिया ..
माँगा न कोई तख़्त न कोई ताज ही लिया ..

अमृत दिया सभी को मगर खुद जहर पीया 
जिस दिन तेरी चिता  जली रोया था महाकाल 
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल 
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल 
रघुपति राघव राजा राम ...


                                          एक तरफ जब आज का युवा,  गाँधी को आज के माहौल में खोजता हैं ... वह थोड़ा अपना स्वयं का अध्ययन गाँधी जी विषय में बढाये ... न की दूसरों की गायों को चराने का सा काम करें ... निश्चय ही वह बड़ी उर्जा और ताजगी पायेगा ... और गाँधी को जैसे-जैसे जानता जायेगा ... कुछ नहीं खोएगा ... हर बार नयी सकारात्मक उर्जा से ओतप्रोत हुए बिना नहीं रहेगा ... भला हो !!! 


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