शनिवार, 7 जनवरी 2012

हमारा खत .. गांधी का पता...!!!



हमारा खत .. गांधी का पता...!!! 



                       जनता जिस दिन नैतिकता को जीवन में उतारना चाहिए ऐसा सोचेगी और फिर सचमुच उसे जीवन में उतारने को अधीर हो उठेगी ... वह दिन हर एक के जीवन में मंगल के उदय का दिन होगा ... अभी यह धारणा बलशाली है की प्रचार से जनता तक पहुंचा जा सकता है चाहे नैतिक आधार कमजोर ही क्यों ना हो ... पर इस बात से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता की झूठा दिखावा .. बेमतलब के आडम्बर ... कोरे उपदेश ... अर्थहीन वादविवाद ... आरोप प्रत्यारोप ... सत्याग्रह के नाम पर दुराग्रह ... बेमतलब की अधीरता ...अंध-निंदा  इत्यादि का जीवन ज्यादा लम्बा नहीं हो सकता /
                            
                              महात्मा गाँधी जी की प्रसिद्धि और लगातार बढती लोकप्रियता तथा बिना किसी प्रयास के उनकी सर्वग्राहिता इस बात को पुष्ट करती है ... अब तो यहाँ तक देखने में आ रहा है की उनके धुर विरोधी भी उनकी तस्वीर अपने मंचों पर लगाने ही होड़ में कमतर नहीं ... अतः जो नेता सादगी पूर्ण हैं ... कथनी और करनी के महत्व को जानते है ... बोलने से ज्यादा करने में जिनका करने में विश्वास है ... कानून पर जिनका भरोसा है और उनके पालन को जो सुनिश्चित कर रहे है या करते है ... निस्संदेह भविष्य उन्हीं का है ... यही भारतभूमि की तासीर है /

                                  खरपतवार यहाँ उगती रहेगी पर फैलाव और विकास तो असली और सर्वहितकारी फसलों का ही होगा देखो न इस पोस्टकार्ड के पते को १९३० में गांधीजी की लोकप्रियता और सर्व जान्यता की कहानी कहता है जब प्रचार प्रसार के साधन कितने तटस्थ थे ... कितने कम थे ... प्रचार - प्रसार की तो कोई रणनीति  होती ही नहीं थी  ... फिर बस उनका नैतिक और अध्यात्मिक बल ही तो बचता है जो आज तक उनके अस्तित्व को कितना मजबूत आधार दे रहा है ... यह हमारे नेता जितना जितना समझेंगे उतने उतने अपने मंगल के साथ देशहित को आगे बढाएंगे ही ... यही बात धीरे धीरे फैलेगी ही !!

                                   इस  गीत की रचना कितनी पुरानी है ... फिर भी जैसे आज के हालातों का बयां कर रहा है .... उनके सत्याग्रह के कितने गलत और सतही मतलब निकले जा रहे हैं  ... घेराव की राजनीति ,  वैचारिक हिंसा और बिना सोंचे समझे आरोप प्रत्यारोप   और आक्रामकता का घालमेल कितनी चतुराई से किया जा रहा है / नयी पीड़ी जो गाँधी से प्रभावित है ...उन्हें गांधी जी को जानने के लिए स्वयं अध्ययनशील  होना होगा ... आजकल प्रसारित हर बात को,  हर आग्रह को कितना कितना वो सही है खुद नापे-तौले ... क्योंकि प्रचार-प्रसार के इस युग में कब आपकी झोली में नकली और दिखावटी सामान आ जाये... कौन अधीर है ? ... क्यों अधीर है ? ... अगर यह अगर ध्यान से देंखे ... थोडा धीरज से विचारें तो स्पष्ट होता जायेगा ही /