बुद्ध मेरे इष्ट ... # स्वामी विवेकानंद

उनके उपदेश इतने सरल की राह चलने वाला भी उन्हें समझ जाय / उनमें सत्य को अति सरलता से समझाने की अद्भुत क्षमता थी / उनके पास मस्तिष्क और कर्मशक्ति विस्तीर्ण आकाश जैसी और ह्रदय असीम था / वे मनुष्यों को मानसिक और आध्यात्मिक बंधनों से मुक्त करना चाहते थे / उनका ह्रदय विशाल था, वैसा ह्रदय हमारे आसपास के अनेकों लोगों के पास भी हो सकता है और हम दूसरों की सहायता भी करना चाहते हों पर हमारे पास वैसा मस्तिष्क नहीं / हम वे साधन तथा उपाय नहीं जानते , जिनके द्वारा सहायता दी जा सकती हैं / परन्तु बुद्ध के पास दुक्खों के बंधन तोड़ फेंकने के उपायों को खोज निकालने वाला मस्तिष्क था / उन्हौने जान लिया था की मनुष्य दुक्खों से पीड़ित क्यों होता है और दुक्खों से पार पाने का क्या रास्ता है /

उन्हौने निम्मतम व्यक्तियों को भी उच्चतम उपलब्धियों का अधिकारी बताया / उन्हौने हर किसी के लिए निर्वाण के द्वार खोल दिए / बुद्ध की बातें लोगों में बड़ी तेजी से फैलने लगी / ऐसा उस अद्भुत प्रेम के कारण हुआ, जो मानवता के इतिहास में पहली बार एक विशाल ह्रदय से प्रवाहित हुआ और जिसने अपने को केवल मानव मात्र की ही नहीं अपितु प्राणी मात्र की सेवा में अर्पित कर दिया - ऐसा प्रेम जिसने जीव-मात्र के लिए मुक्ति का मार्ग खोज निकालने के अतिरिक्त अन्य किसी बात की चिंता नहीं की /
उस समय के भारतवर्ष में ( आज के बर्मा से अफगानिस्तान तक तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक ) करोड़ों लोगों उनके बताये मार्ग पर चलकर अपना मंगल साधा था / बुद्ध ने कहा - " ये सारे अनुष्ठान और अन्धविश्वास गलत है, जगत में केवल एक ही आदर्श है, सारे मोह ध्वस्त कर दो, जो सत्य है वही बचेगा ! बादल जैसे ही हटेंगे सूर्य चमक उठेगा ! सारे जीवन उन्हौने अपने लिए एक विचार तक नहीं किया / मत्यु के समय भी उन्हौने अपने लिए किसी विशिष्ठता का दावा नहीं किया / मैं आजीवन बुद्ध का परम अनुरागी रहा हूँ ..अन्य किसी की अपेक्षा मैं बुद्ध के प्रति सबसे अधिक श्रद्धा रखता हूँ - वे मेरे इष्ट हैं / "
( नोट : जिस साधन, जिस उपाय " विपश्यना " की खोज बुद्ध ने की थी एवं जिसे लोगों में उदात्त चित्त और मुक्त हस्त से सारे जीवन बांटते रहे वही विपश्यना साधना आज अपने शुद्ध रूप में आचार्य श्री सत्यनारायण गोयनका जी के प्रयत्नों से उपलब्ध हैं / कहते है दुक्खों से विमुक्ति का अनमोल मार्ग कोई क्या मोल लेकर सिखाए ! अतएव इस विद्या को आज भी बिना किसी मोल के, बिना भेदभाव के उसी प्रकार सिखाया जाता है जिस प्रकार उस समय सिखाया जाता था / आज भी वही परिणाम आते है जैसे २६०० वर्ष पूर्व आते थे / विपश्यना के ये शिविर पुराने लाभान्वित साधकों के दान पर चलते है ..सबके मंगल के लिए ! सबके कल्याण के लिए !! )
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