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रविवार, 22 जनवरी 2012

कहीं तो मिलेगी ..!!

कहीं तो मिलेगी ...
    



                     जीवन में आशा-निराशा का आना- जाना लगा रहता है ... जीवन की गाड़ी कभी उबड़-खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाती है तो कभी सपाट सड़क पर सरपट दौड़ती है ...  कभी पतझड़ से सामना होता है तो कभी सुन्दर दृश्यावली सामने होती है ... कभी तो जीवन की गाड़ी एक- एक इंच बड़ी मुश्किल से सरकती उसे धक्का भी लगाना पड़ जाता है ...और कभी हवा से बातें करती है / हर स्थिति में सम और प्रसन्न रहना ही " जीवन जीने की कला है " यह बात कहना निहायत आसान है पर व्यवहार में जब समता भावना उतरने लगे तभी माने की कल्याण की बात हुयी अन्यथा इस गीत के समाप्त होने पर एक शून्य-सा सामने खड़ा होगा /

                             १९६२ में बनी "आरती" फिल्म का यह खुबसूरत नगमा गीतकार मजरूह सुल्तान पूरी साहब की लेखनी का कमाल है ... लता जी की स्वरलहरिया  रोशन साहब की मौसिकी में सज कर पूरी ताकत से इस बात का एहसास कराती हैं की भाई निराश न हो जाना ... कभी तो मिलेगी ... बहारों की मंजिल राहें !

                                खैर ... रास्ते कैसे भी ही उनपर हम समता भाव लिए चलें तो चलें आखिर कैसे ? अगर यह बात मन में उठ रही हो तो मानो थोडा-सा और आगे हम समाधान की तरफ बड़ गए समझो  ... हाँ भाई अब भाग्य भरोसे कब तक बैठे रहोगे  ... हम हमारे मन की कई कमजोरियों को जो हमारी जिंदगी की गाड़ी की राह में हमेशा परेशानियाँ खड़ी करने से बाज नहीं आती जैसे ... साहस की कमी , अधीरता , विषमता के भाव , क्रोध , घृणा  इत्यादि  ... और जिन्हें हम भाग्य मानते है ...अब उनपर हम काबू ही नहीं पा सकते है वरन उनसे नितान्त छुटकारा भी संभव है ... और इसी उपाय का नाम हैं विपश्यना ध्यान साधना ... जो भगवान बुद्ध की एक अनुपम खोज है ... और आज उसी शुद्धतम रूप में उपलब्ध है ... अधिक जानकारी के लिए www .vridhamma .org . लॉग ऑन करें !! मंगल हो !!!