कहीं तो मिलेगी ...

१९६२ में बनी "आरती" फिल्म का यह खुबसूरत नगमा गीतकार मजरूह सुल्तान पूरी साहब की लेखनी का कमाल है ... लता जी की स्वरलहरिया रोशन साहब की मौसिकी में सज कर पूरी ताकत से इस बात का एहसास कराती हैं की भाई निराश न हो जाना ... कभी तो मिलेगी ... बहारों की मंजिल राहें !
खैर ... रास्ते कैसे भी ही उनपर हम समता भाव लिए चलें तो चलें आखिर कैसे ? अगर यह बात मन में उठ रही हो तो मानो थोडा-सा और आगे हम समाधान की तरफ बड़ गए समझो ... हाँ भाई अब भाग्य भरोसे कब तक बैठे रहोगे ... हम हमारे मन की कई कमजोरियों को जो हमारी जिंदगी की गाड़ी की राह में हमेशा परेशानियाँ खड़ी करने से बाज नहीं आती जैसे ... साहस की कमी , अधीरता , विषमता के भाव , क्रोध , घृणा इत्यादि ... और जिन्हें हम भाग्य मानते है ...अब उनपर हम काबू ही नहीं पा सकते है वरन उनसे नितान्त छुटकारा भी संभव है ... और इसी उपाय का नाम हैं विपश्यना ध्यान साधना ... जो भगवान बुद्ध की एक अनुपम खोज है ... और आज उसी शुद्धतम रूप में उपलब्ध है ... अधिक जानकारी के लिए www .vridhamma .org . लॉग ऑन करें !! मंगल हो !!!