लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, 9 जनवरी 2012

अब यहाँ से आगे ....


अब यहाँ से आगे .... साधन पवित्र हो !! 





                                    पिछले दिनों अन्ना जी की टीम टीवी पर सामने आई तो पता चला वो दो-राहे पर है   ...असमंजस्य की शिकार है ... और उन्हें जनता की मदद की दरकार हैं  / पहली बार तो लगा की शायद वे लोग गंभीर है ... पर फिर  टीवी चैनलों चलने वाली बहसों में उनमें पूर्वाग्रह,  दुराग्रह की हद तक नजर आया .. आक्रामकता अब उनकी  एक ऐसी बुराई बन चुकी है की उससे पीछा छुड़ाने में उन्हें बहुत वक्त लगेगा  ... अन्ना जी के स्तर के व्यक्तित्व के विकास के लिए उनकी टीम ने अपने अन्दर अब तक कोई प्रयत्न नहीं किया ... जब वे कहते है की वे टीम अन्ना है तो फिर अकेले अन्ना के भरोसे वे सब क्यों है ... उनकी ही यह घोषणा थी कि वे टीम अन्ना पर लगे आरोपों कि स्वतंत्र जाँच एक निवृतमान न्यायाधीश से करवाएंगे ... उसमें इतनी देर क्यों ? क्या सरकार की किसी भी देरी पर हल्ला मचाने में वे इतनी देर करते ? कथनी और करनी की  समानता से टीम अन्ना के सदस्य काफी दूर है ... जबकि अन्ना जी ने जितना जितना कहा वे करते रहे है ... यहीं पर आकर टीम अन्ना,  अन्ना को कमजोर कर देती है ... और यहीं कारण है की दूसरी पंक्ति में अभी कोई लीडर नहीं जो अन्ना के भरोसे पर खरा उतर सके / विनम्रता से भी काम बन जाते है ... शिष्टाचार से भी दुश्मन पर जीत हासिल हो सकती है ... घृणा को प्यार से जीता जा सकता है ... गाँधी की तस्वीरों के इतनी नजदीक रहकर भी वे अब तक नहीं जान पा रहे है / 


                   टीम अन्ना की बातें , उनका व्यवहार कितनी निराशा हमारे युवाओं के मन में भर रहा है ... कितनी घृणा वे करने लगे है हमारे लोकतंत्र के महत्पूर्ण स्तम्भ संसद से ...यह अगर युवा  वर्ग से जरा बात करें तो स्पष्ट होता है .... एक लोकपाल की खातिर जो की देर सवेर आएगा ही ... क्या इतनी घृणा फ़ैलाने की इजाजत हमें है ?  ... समझे लोकपाल तो आ जायेगा पर तरुणाई के मन में अन्दर तक फैलाती घृणा और निराशा मिटाने में कितने वर्ष लग जायेंगे ... उनकी बढती अधीरता उनका स्वभाव बन जाएगी ... फिर क्या उपाय होगा टीम अन्ना के पास ... जरा सोंचे तो सही / 


                  वे  चतुर  हैं जानते है की किसी को सुधारने की प्रक्रिया बड़ी कठिन हैं ... इसलिए शायद बड़ी सोंची समझी रणनीति के तहत उन्हौने " Support Anna " कहा ... जबकि  कहना  यह  चाहिए  था   " अन्ना  का  अनुसरण  करों  " पर  वे  जानते  थे  भीड़  कैसे  आएगी  क्योंकि  आसान  हल  हम  भारतीयों  को  खूब भाते हैं / 

                                                         
                                                            आज जब फिर से गाँधी जी ( Gandhi ) और उनके अहिंसक आन्दोलनों की हम केवल चर्चा ही नहीं कर रहे हैं ... उन पर चलकर भी देखा जा रहा है ... ऐसे में अगर दुसरें सुधर जाय... मैं तो ठीक हूँ ...की जगह सुधार की पहल पहले हमारी ओर से हो ...पर हाँ ... तर्क-शक्ति और उसके उपयोग में टीम अन्ना का कोई सानी नहीं है ... पर तर्कों से बहस जीती जा सकती है ... दिल नहीं ... . अभी कल कहीं से सुना कि " पहला पत्थर भ्रष्टाचारियों पर वो फेंके जिसने कोई पाप नहीं किया हो ... तब तो समाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज ही नहीं उठेगी "...एक हद तक सही है पर नकारात्मकता से भरी हुई है .... पर अगर इसे यूँ कहा जाये कि उस पर पहला पत्थर मारा जाय जो हमारे सबसे नजदीक हो ... तो शायद हमारी नज़र हम पर पहले पड़े क्योंकी सबसे नजदीक तो हमारे हम ही हुए ना ... फिर कैसे किसी पर पत्थर फेंकने की नौबत आयेगी ..और बरबस मन कचोटने लगेगा ...उठता हुआ हाथ रुक जायेगा तथा स्वयं सुधार का राजमार्ग खुल जायेगा /

                   अगर कोई कसम खाकर यह कहता है की मैं दूध का धुला हूँ तो उसके साथ जमाना खड़ा होता है ... ऐसे में अगर वहीं गच्चा खा जाता है तो मेरे भाई उसकी लडाई कमजोर हो जाती है ... उसके साथ खड़े लोग अवाक् रह जाते है ...एक बात और हमारी लड़ाई कोई दूसरा नहीं लड़ सकता, ना ही लड़  पायेगा, और वह लडाई है अपने अन्दर से भ्रष्टाचार को निकाल बाहर करना वह भी बिना दिन्डोरा पिटे .. क्योंकि हमारा कोई बुरा आचरण हो .. उसके पहले शिकार हम ही होते है ... !!   भगवान बुद्ध की वाणी " जैसे लोहे के ऊपर उठा हुआ मल ( जंग ) उसी पर उठ कर उसी को खाता है , वैसे ही मर्यादा का उल्लंघन करने वाले ( व्यक्ति ) के अपने ( ही) कर्म ( उसे ) दुर्गति की और ले जाते हैं    // धम्मपद // "

                   महात्मा गाँधी जी के जीवन की एक घटना... गाँधीजी प्रतिदिन सुबह एक चम्मच शहद,  निम्बू पानी के साथ लेते थे , अतः उनकी इस जरूरत का ध्यान उनके सहायक हमेशा रखते थे ... वे किसी समय यात्रा पर थे और उनके सहायक ने दो-चार दिन की जरूरत के हिसाब से शहद अपने साथ रख लिया ... यात्रा के एक दिन के बाद उन्हें फिर अगली सुबह शहद पानी मिला तो वे पूछ बैठे यह शहद कहाँ से आया ?  जवाब आया पिछले मुकाम से आगे और शहद लगेगा सोंच कर छोटी सी शीशी में शहद  का संग्रह कर लिया था /  महात्मा गाँधी संग्रह के खिलाफ थे .. उन्हौने तुरंत गलती को ठीक करने की ठानी और आगामी कई दिनों तक शहद का त्याग किया / जब गाँधी की तस्वीर के सामने ... गाँधी की विचार-धारा का मान नहीं बढेगा तो फिर क्या मिलेगा कोरे आदर्शवाद से !! गाँधी जी हमेशा अपनी छोटी से छोटी गलती को भी हिमालय जैसी बड़ी मानते थे और दूसरों की बड़ी से बड़ी गलती को भी मुआफ करने की अद्भुत क्षमता रखते थे /

                  अच्छा होता अगर टीम अन्ना अपनी गलती को सही गलत-तर्कों से सही साबित करने की जगह पूरी विनम्रता से कबूल कर लेती / परन्तु उसे अपनी साफ-धवल छवि की ज्यादा चिंता है ...  हम मानव हैं गलतियाँ होती रहेंगी, जब तक हमारे मन पर हमारा पूरा नियंत्रण नहीं हो जाता और हमारे अन्दर से सारी बुराईयाँ नहीं निकल जाती .. हमारा मन सद्गुणों से नहीं भर जाता / 
                 
                        जब कोई गाँधी जी की तस्वीर के आगे बैठकर विनम्रता और अहिंसा की बातें खूब करता है और उसके आचरण में वे जरा भी नहीं उतर पाती तो गलत सन्देश जाता है ... गौर करें की कई मर्तबा अंग्रेजों को जो तहजीब और शिष्टाचार में हम भारतीयों से अपने आप को कहीं आगे मानते थे ...उनको गाँधी जी  की विनम्रता और शिष्टाचार ने एक नहीं कई बार सोंचने और झुकने को मजबूर किया था / आज तो हमारे देश के ही नेताओं को जिनका योगदान सिरे से नकारा नहीं जा सकता ... उन्हें भी शिष्टाचार की सारी हदें पर करके जाने क्या क्या कहना एक सशक्त लोकपाल की खातिर जायज ठहराया जा रहा है ... गोया लोकपाल नहीं कोई अमृत माँगा जा रहा हो और यह दिखाया जा रहा है की केवल और केवल वे ही लोकपाल के सच्चे हिमायती है ....अरे उनकी सोंच सकरात्मक होती तो जन लोकपाल बनाते-बनाते ही उनके जीवन में उसका असर दिखाई देता ..ऐसा हुआ तो नहीं ना ?  ऐसा होता तो फिर आज यह कहने की जरूरत नहीं बचती की अगर हमसे कोई गलती हुयी है तो हमें सजा मिले ..यह हठधर्मिता की पराकाष्ठा है ... प्रजातंत्र में यह सब गाँधी जी के नाम पर ठीक नहीं !!!. जब तक सदाचार जीवन का एक अंग नहीं बन जाता ...तब तक समझे की कोई कानून काम नहीं करेगा ... जब तक स्वानुशासन का महत्व नहीं उजागर होगा ....?  
                 
                   टीम अन्ना अपनी इमेज की खातिर .. अपने ऊपर लगे दागों को साफ करने की जगह उन्हें ढकना ज्यादा पसंद कर रही है  ....पर इस उधेड़बुन में वह कई गलत पैमाने भी जाने-अनजाने हमारी युवा शक्ति के सामने रख रही है ...  इससे तो समाज में यही सन्देश जायेगा की भ्रष्टाचार हम करें तो कोई गम नहीं ...हम समाज सेवा भी तो करते है !!!    यानि भ्रष्टाचार से लड़ाई भ्रष्टाचार के साथ !!!  इससे युवा लोगों में एक निराशा की भावना फैलेगी .....इसीलिए शायद वह गाँधी को वह आज के माहौल में खोजते हैं ... और खोजते हैं ऐसी शख्सियत को जिसकी कथनी और करनी में समानता हो ...ऐसे में जब कोई गाँधी सदृश उनके सामने आता है तो वे क्रेजी होकर उसके साथ खड़े होते है ... देश की आज़ादी का आन्दोलन उन्हौने नहीं देखा .. पर देश की खुशहाली के लिए वे भी बहुत कुछ करने का जज्बा रखते है .. वे एक बेदाग और सशक्त नेतृत्व की तलाश में है ... और सौभाग्य से उनके सामने अगर ऐसा नेतृत्व उभर कर आगे आता है तो यह देश के लिए अप्रतिम अवसर होगा ...संभावनाएं बहुत है ... सबके मंगल के लिए ... सबके कल्याण के लिए ....!!! 
                                   
                                     ****

कोई टिप्पणी नहीं: