आप तो फिर हिसाब लगाने लगे ... !!
मुकेश की आवाज में यह गाना पैदल ही निकल पड़ता है ... बहुत बड़े सन्देश के साथ ... बहुत ऊँचे दर्जे की सोंच के साथ ... यात्रा लम्बी जरूर है ... पर जरूरी है एक-एक कदम मंजिल की तरफ बढ़ाते जाना है ... हम प्रतिदिन जाने कितने अच्छे-बुरे निश्चय करते है ... और उनमें से कितनों पर कायम रह पाते है ... कभी सोचा है ? ...अरे- अरे आप तो हिसाब लगाने लगे ... सुना नहीं ... गाना क्या कहता ... हिसाब के बही-खातों से बात न कभी बनी है न कभी बनेगी ... बात सीधी है जैसी करनी वैसी भरनी /
यह सफ़र जितनी जल्दी शुरू करें उतना ही भला ... खुदा के पास जाना है ना ... पर खुदा दूर भी तो नहीं ... वो तो इत्ता पास है ... कि नज़रों की फोकल लेंग्थ भी ज्यादा है भाई ... या यूँ कहें नज़रों को अपनी और ही तो घुमाना है ... यह करके तो देखो जरा ... आँखे चकरा न जाये ... किसी ने क्या खूब कहा है... " खुदा ऐसे एहसास का नाम है, रहे सामने और दिखाई न दे " ... हाँ... हाँ अब ठीक समझे अंतर-मन की यात्रा की बात ही कही जा रही है ... छोडो इन हाथी घोड़ों को ... महल चौबारों को ... और इस अकड को तो अब्बी के अब्बी छोड़ दीजिये भाई / खुदा को कहाँ ढूंढ़ रहे है हम ... कहा ना खुदा ...याने खुद ... खुद को खोजने में झूठ का सहारा लेंगे तो खुद को ही न ठगेंगे / ..... कुछ दिनों में मैं भी इस तरह की एक यात्रा पर जाने वाला हूँ ... यह गाना मेरे कानों में गूंजता रहेगा ... लौट कर बताऊंगा की पैदल यात्रा में कितनी दूर जा पाया ... सुना है कोशिश करने वालों की हार नहीं होती ... " तीसरी कसम " फिल्म का यह शानदार नगमा फ़िलहाल आपके साथ कुछ दूर पैदल चलने को तैयार है .... OK ...TATA .."