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शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

..महंगाई मार गयी !!

..महंगाई मार गयी .



                                      ये महँगाई पर latest गीत है ... पिपली लाइव का गीत ससुरा भी latest है पर सदाबहार नहीं ...महँगाई भी ससुरी सदाबहार है पर latest नहीं !! ... मैं छोटा था तब भी महंगाई का रोना था ...पुरानी फ़िल्में देखता हूँ ...उनमें भी महँगाई ने कहानी को अकसर महत्वपूर्ण एवं निर्णायक मोड़ दिए है ... पुराने भारत में भी थी ...यहाँ तक की रामायण काल में सबरी के घर रही ... कृष्ण युग में सुदामा को जकड़े रही ...कबीर के सामने पसरी  रही ( यह अगल बात है की कबीर जी की चादर पर अपना रंग न छोड़ पाई ) ... 

                                                         पर एक ख्याल आता है ... हम इंसानों में कितनी बेकरारी है ...देखें अरबों खरबों पशुओं को , पक्षियों को उनके पास कोई संग्रह नहीं , कोई अर्थशास्त्र नहीं, कोई पक्ष नहीं तो विपक्ष भी कहाँ होगा ? ...उनका सारा खर्च खाने-पीने का ... घास-फूस का ... दाने-पानी का ... कितना होगा सोंच भी नहीं सकते ... पर देखो सब चलता रहता है .... एक नहीं कई बारी तो उनका संतोषी जीवन हमारी इर्ष्या का कारण बना है .... उदास न हों ... रोते-रोते भी यह जिंदगानी कट ही जाएगी ... तो क्यों न हँसते-हँसते काटे इस जिंदगानी को ...इस गीत मजा जरूर ले ले कोई फैसला होने तक..