हम सबको फ़क्त इतनी सी शिकायत ही तो रहती है ... कि हमें किसी की मुहब्बत हा सहारा मिल गया होता .. .. खैर शिकायतें होना हर बार लाजमी हो यह कतई जरुरी भी तो नहीं .... हमारी नजरो को हर दम वही नज़ारे दिखाई दें ... जिन -जिन नज़रों को वे निहारना चाहती हैं ... और इसी जद्दोजहद में जो जो नज़ारे सामने हैं उनसे हम नज़रे फिराते रहते हैं .... यूँ ख़ुशी हमारे नजदीक होकर भी दूर दूर रहती हैं .
तूफां आते रहते हैं ... और कौन से किनारों के मिल जाने से तूफानों से निजात मिल जाती हैं ... दरअसल हम अपने अपने सपनों से प्यार करते हैं ... और जो जो हमारे सपनों की मददगार मालूम होते हैं ... वे भले लगते हैं ... पर जब जब किन्ही दो के सपने नहीं मिलते तो टकराव या दुराव शुरू हो ही जाता हैं .

" आप आये बहार आई " फिल्म का नाम ही सार्थक है ये इशारा करने के लिए कि किसी खास बड़ी खुशियों के इन्तेजार में जाने कितनी छोटी छोटी खुशियों की क़ुरबानी हम देते रहते हैं ... 1971 से अब तक जाने कितने बरस बीत गए फिर भी यह गीत " मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता ... " हमेशा तरोताजगी भरा लगता हैं ... " मोहम्मद रफ़ी साहब की विशाल सागर सी गहराइयों सी आवाज़ और लता जी की किनारों सी भरोसे वाले सुरों में यह गीत सुन्दर बन पड़ा हैं ... आनंद बक्षी साहब की सुन्दर रचना ... लक्ष्मी -प्यारे जी के संगीत में ढलकर कानों में जाकर ह्रदय में सीधे उतर जाती हैं ...
फिर भी सबको सबकी मुहब्बत का सहारा मिले ... इसी आस के साथ ... शुभ दिन !!!