
उस शुभ की आहट ... उस मंगल की अनुगूँज हमें हमारे राष्ट्र गीत में बखूबी सुनाई देती ही हैं ... गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगौर का कोमल और अतिसंवेदनशील मन उस शुभ की , उस मंगल की आहट को बखूबी सुन और देख पा रहा है ... तभी वे कह पड़ते हैं ... " तव शुभ नाम जागे ... तव शुभ आशीष मागे ... गाहे तव जय गाथा ... जन-गण-मंगलदायक जय हे ... "
अब तक इस शुभ की आगवानी में एक-एक कर कई कड़ियाँ जुड़ती गयी है ... सबसे पहले हमारे गणतंत्र का संविधान कुछ यूँ बना की उसमें सबको समानता के स्तर पर लाकर हर तरह की अभिव्यक्ति और मान्यता को मानने की भरपूर आज़ादी देकर इंसानियत के कुदरती विकास को मानो पंख ही लगा दिए ... आज तमाम विश्व हमारी इस अनेकता में एकता की अजब-गजब रिवायत और इसकी भीनी-भीनी खुशबु से सम्मोहित है .. और बड़ी आशा से हमारी ओर टकटकी लगाये देख रहा हैं ...

आमजन की भागीदारी विकास की राह में अधिक कारगर तरीकें से सामने आने वाली हैं ... दीमक की भांति हमारी अर्थव्यवस्था को खाने वाला आर्थिक भ्रष्टाचार पर " विशिष्ठ पहचान संख्या " योजना के पूरी तरह लागू होने और उसके जमीं पर उतरने के बाद धीरे- धीरे सहज ठंग से बिना किसी हो हल्ले के बहुत कुछ नियंत्रित हो जाने वाला हैं ... तमाम बैंक खाते ... तमाम खरीद फरोख्त ... तमाम लेनदेन ... अब कोई छुपा हुआ व्यवहार नहीं रह जाने वाला हैं ... " विशिष्ठ पहचान संख्या " के जरिये हर उस लेनदेन पर पारदर्शिता रहेगी ... हर किसी आर्थिक लेनदेन पर नजर रहेगी ... जिन पर अब तक गोपनीयता का आवरण होने के कारण तमाम तरह अनियमितताएं होती रही हैं ।
" विशिष्ठ पहचान संख्या " इंसानों की कई अन्य गतिविधियों और हलचल पर भी नजर रख सकेगा ... इससे अपराधियों की पहचान और उनकी कारगुजारियों पर पैनी नजर रखना भी संभव हो सकेगा ... गुमशुदा व्यक्तियों की खोज और पहचान करना अधिक आसान बन जायेगा ... दुनिया के बहुसंख्य अपराध पहचान छुपाकर ही किये जाते हैं ... अब " विशिष्ठ पहचान संख्या " की बूते पहचान छुपाना नामुमकिन सा हो जाने वाला हैं ... आतंकवाद जैसी कायरान हरकतें भी पहचान छुपा सकने के चलते ही फलती फूलती हैं ... अब " विशिष्ठ पहचान संख्या " के अस्तित्व में आने से इन पर भी लगाम लगेगी ।
" विशिष्ठ पहचान संख्या " के जरिये समाज कल्याण के जरुरी क्षेत्रों की पहचान और उसके निराकरण में लगने वाले संसाधनों का सटीक आकलन संभव हो जायेगा ... जिससे वर्तमान में गलत आकलन और गैरजरूरी मदों में धन की बर्बादी पर एक हद तक कमी आकर पैसे का अधिकतम सदुपयोग संभव हो सकेगा।
हम वसुदैव -कुटुम्बकम की अवधारणा की बड़ी पैरवी करते हैं ... उस पर हमें बड़ा अभिमान भी हैं ही ... परन्तु सारा विश्व एक कुटुंब हो उससे पहले पुनर्जन्म की सिद्धांत के चलते यह हो ही रहा है ... अब सारे ब्रह्माण्ड से पुण्यशाली जीव हमारी इस पावन धरा पर जन्म लेने के अपने शुभ संकल्पों के चलते जन्म लेते जा रहे हैं ... और उनका इस धरा पर जन्म किस माँ की कोख से हो यह उनके भी वश की बात नहीं ...
मतलब साफ हैं ... वे हर कहीं ... हर सम्प्रदाय में , हर जाति -बिरादरी , हर प्रदेश में यहाँ वहां सब जगह बिखर जाने वाले हैं ... अब उन सम्यक जीवों के लिए इस पावन धरा पर माहौल बने यही हमारा कर्तव्य है और यही करना हमारा हेतु भी ... जब ऐसे पुण्यशाली जीवों का पुनर्जन्म के अचूक सिद्धांत के तहत सब जगह बिखरना तय ही हैं तो ...ऐसे में कब तक भला टिक पायेगा कट्टरवाद , जातिगत संकीर्णता , मानव मानव में भेदभाव , सांप्रदायिक वैमनस्य ... और यकीं माने ... सही मायनों में इस पावन धरा पर विश्व एक कुटुंब बनकर आकार ले रहा हैं ... यही होने जा रहा हैं ... और इसी की तैय्यारियाँ जोर-शोर से जारी हैं ... " विशिष्ठ पहचान संख्या " की अनूठी योजना इस का एक बड़ा और सटीक आधार बन आकर ले रहा हैं।
जबकि सुधार के ये सारे प्रयत्न जो की निहायत जरुरी हैं ...फिर भी जब तक मानव मन से लालच , वासना , द्वेष , हिंसा इत्यादि विकारों के पूर्व कर्मों के संस्कारों का विशाल जखीरा खतम होने का कोई सम्यक मार्ग हाथ नहीं लगेगा ... तब तक पूर्व कर्मों के फलों का वे चाहे अच्छे हों या बुरे के उदय का समय आता ही रहेगा ... और मानवता अच्छे कर्मों के फलों के उदय के समय का सदुपयोग न कर पाने के कारण या बुरे फलों के उदय के लिए दूसरों को जिम्मेवार ठहराने की आजकल फ़ैल रही नयी बुरी आदत के चलते ... जब तब दुखी - संतापित होती ही रहेगी ...
यही पीड़ा बुद्ध की भी थी ... तभी उन्हौने अपने अथक प्रयासों से सम्यक मार्ग खोज निकाला था ... और मानवता के इतिहास में अभूतपूर्व प्रकाश के उदय का कारण बनें थे आज भी बहुत प्रबल संभावनाएं हैं ... इंसानियत फिर एक बार अपनी बुलंदियों को छूने वाली हैं ... यह उसी की तैय्यारियाँ हैं ...
भला हो !!!
" विशिष्ठ पहचान संख्या " के जरिये समाज कल्याण के जरुरी क्षेत्रों की पहचान और उसके निराकरण में लगने वाले संसाधनों का सटीक आकलन संभव हो जायेगा ... जिससे वर्तमान में गलत आकलन और गैरजरूरी मदों में धन की बर्बादी पर एक हद तक कमी आकर पैसे का अधिकतम सदुपयोग संभव हो सकेगा।

मतलब साफ हैं ... वे हर कहीं ... हर सम्प्रदाय में , हर जाति -बिरादरी , हर प्रदेश में यहाँ वहां सब जगह बिखर जाने वाले हैं ... अब उन सम्यक जीवों के लिए इस पावन धरा पर माहौल बने यही हमारा कर्तव्य है और यही करना हमारा हेतु भी ... जब ऐसे पुण्यशाली जीवों का पुनर्जन्म के अचूक सिद्धांत के तहत सब जगह बिखरना तय ही हैं तो ...ऐसे में कब तक भला टिक पायेगा कट्टरवाद , जातिगत संकीर्णता , मानव मानव में भेदभाव , सांप्रदायिक वैमनस्य ... और यकीं माने ... सही मायनों में इस पावन धरा पर विश्व एक कुटुंब बनकर आकार ले रहा हैं ... यही होने जा रहा हैं ... और इसी की तैय्यारियाँ जोर-शोर से जारी हैं ... " विशिष्ठ पहचान संख्या " की अनूठी योजना इस का एक बड़ा और सटीक आधार बन आकर ले रहा हैं।
जबकि सुधार के ये सारे प्रयत्न जो की निहायत जरुरी हैं ...फिर भी जब तक मानव मन से लालच , वासना , द्वेष , हिंसा इत्यादि विकारों के पूर्व कर्मों के संस्कारों का विशाल जखीरा खतम होने का कोई सम्यक मार्ग हाथ नहीं लगेगा ... तब तक पूर्व कर्मों के फलों का वे चाहे अच्छे हों या बुरे के उदय का समय आता ही रहेगा ... और मानवता अच्छे कर्मों के फलों के उदय के समय का सदुपयोग न कर पाने के कारण या बुरे फलों के उदय के लिए दूसरों को जिम्मेवार ठहराने की आजकल फ़ैल रही नयी बुरी आदत के चलते ... जब तब दुखी - संतापित होती ही रहेगी ...
यही पीड़ा बुद्ध की भी थी ... तभी उन्हौने अपने अथक प्रयासों से सम्यक मार्ग खोज निकाला था ... और मानवता के इतिहास में अभूतपूर्व प्रकाश के उदय का कारण बनें थे आज भी बहुत प्रबल संभावनाएं हैं ... इंसानियत फिर एक बार अपनी बुलंदियों को छूने वाली हैं ... यह उसी की तैय्यारियाँ हैं ...
भला हो !!!