
वही बीते नज़ारे, वही बीते वाकये फिर उसी लय में एक - एक कर जागी आखों के सामने सपनों की तरह गुजरने लगते हैं ... गुजरते जाते हैं ...
एक-एक लम्हा और अधिक उर्जा से लबरेज बस नजदीक ही कहीं छुपा हुआ सा महसूस होता हैं ... जब मन अपनी सारी ताकत लगाकर भी उस भूले एहसास की पुनरावृत्ति होते नहीं देखता तो हलकी सी निराशा आना लाज़मी हैं ... जिंदगी की राहों में पुराने मक़ाम कभी लौट कर नहीं आते ... बस हर नए मक़ाम पर हर एहसास को जब-जब हम बिना छुए हुए से गुजरते जाएँ तो सफ़र एक हद तक आसान हो जाता हैं ...

1966 की 46 साल पुरानी की फिल्म " दो बदन " का यह गीत बड़ा ही सुगम है ... एक उम्दा काम्बिनेशन बन गया हैं ... गीत के बोल , संगीत की धुन , बेमिसाल गायकी , साधा हुआ अभिनय , दृश्यों का संयोजन कुछ यूँ गुंथे हुए हैं की आँखें बंद हो या खुली कतई फर्क नहीं पड़ता ... यादें बेरोकटोक आती जाती रहती हैं ...
सुने सुनाये ... लाइफ बनाये । .... शुभ दिन।